Published on Jun 05, 2024

संकलन- विक्रम माथुर

विवादों के पिटारे में उम्मीद: इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस पर ज़ोर समाधानों पर हो!


इस साल के विश्व पर्यावरण दिवस पर ज़ोर क़यामत के दिन की भविष्यवाणी वाले चश्मे उतारकर, उम्मीदों की उन किरणों पर नज़र डालने पर है, जो ज़मीन की बहाली, सूखे के प्रति लचीलापन लाने और रेगिस्तानों को बढ़ने से रोकने वाले विचारों और कार्यकलापों से रौशन है.

ख़ुशक़िस्मती से विश्व पर्यावरण दिवस उसी महीने में पड़ रहा है, जब भारत में नई सरकार का गठन होगा; भारत द्वारा 2070 तक शून्य विसर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की वजह से सबसे नाज़ुक स्थिति में पहुंचे लोगों को संरक्षित करने और सशक्त बनाने में मदद करने के लिए, नई सरकार की नीतियों और फ़ैसलों पर नए विचारों और नए समाधानों की छाप होनी चाहिए. किसी भी देश की जनसंख्या के साथ सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए जलवायु संबंधी क़दमों का वास्तविक और टिकाऊ होना बहुत बारीक़ी से जुड़ा है. इसका संबंध दूरगामी खाद्य सुरक्षा, जनता की अच्छी सेहत और टिकाऊ आर्थिक विकास से भी है.

ये विचारों और कहानियों का ये प्रेरणास्पद और उम्मीदों भरा सारांश एक मूल विचार को रेखांकित करता है कि- नहीं, ये दुनिया का अंत नहीं है! सरकारों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा आत्मनिरीक्षण और और सोच समझकर क़दम उठाया जा सकता है और उठाया जाना भी चाहिए. कम शक्तिशाली या शक्तिविहीन छोटे समुदाय, जिनको सबसे ज़्यादा नुक़सान की आशंका है, उन्होंने दिखाया है कि जलवायु और पर्यावरण को बचाने के लिए ऐसे क़दम कैसे उठाए जा सकते हैं, जो टिकाऊ, कुशल और समावेशी हों; इसे दोहराया जा सकता है. इन समुदायों ने दिखाया है कि व्यक्तियों, समुदायों, संगठनों और सरकारों के बीच सहयोग सफल हो सकता है.

निबंधों की इस सीरीज़ में योगदान देने वालों ने इन्हीं पहलुओं पर विस्तार से, स्पष्टता से और संक्षेप में रौशनी डाली है. जंगल, कार्बन सोखने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा हैं और उनका संरक्षण और बहाली की जानी चाहिए. नई सरकार को तुरंत इस बात को नए सिरे से परिभाषित करने की ज़रूरत है कि जंगल का मतलब क्या होता है. फिर उसे जंगलों के प्रबंधन के लिए ऐसी मज़बूत नीतियां बनाकर उन्हें लागू करना चाहिए, जिससे जंगलों की ज़मीन का जंगल से इतर के कामों में इस्तेमाल न हो सके. रेगिस्तानों के फैलने को रोकने की लड़ाई में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं, और इसके इस्तेमाल करने की राह में आने वाली चुनौतियों की पड़ताल की जा रही है. जलवायु के प्रति लचीलेपन के लिए खाद्य व्यवस्था को परिवर्तित करने की अहमियत और इसे कैसे किया जाए, इन सबकी व्याख्या की जा रही है. भयंकर मौसम की घटनाओं और बदलती आब-ओ-हवा का जनता की सेहत पर पड़ रहे असर को भी स्पष्ट रूप से बताया गया है. अब जबकि इस बहुआयामी समस्या के हर पहलू की पड़ताल करके, उस पर विचार और समझने की कोशिश की जा रही है, तो इसके समाधान भी निकल रहे हैं.

इस धरती के सामने पर्यावरण की समस्याओं का एक पिटारा ज़रूर है. लेकिन, उनसे लड़ा जा सकता है, क्योंकि उम्मीद अभी भी बाक़ी है.

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Vikrom Mathur

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