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अगर कंपनियां घर से काम करने के अपने फ़ॉर्मेट में बदलाव ला�
अभी बहुपक्षीय व्यवस्था के हक़ में माहौल बनाने की सख़्त ज�
जैसे-जैसे उत्सव का उल्लास बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह सवाल लग�
दिल्ली के अनुभव ने हमें सिखाया है, जहां पहले पीक पीरियड की
कोविड-19 वैक्सीन और मेडिकल उपकरणों के लिए कई देश भारतीय बा�
हर गुज़रते दिन के साथ ये साफ होता जा रहा है कि कोविड-19 महाम�
रूसी सरकार का दावा है कि लोगों को अब हर हाल में क्वारंटीन �
भूटान ने नए कोरोना वायरस की रोकथाम में तो काफ़ी प्रभावी क�
कोविड-19 की महामारी ने न केवल वैश्विक स्तर पर किसी महामारी �
कभी-कभी, अप्रत्याशित घटनाओं पर धीमी प्रतिक्रिया, अर्थव्य
अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को सावधानीपूर्वक खड़ा करना होगा �
इस महत्वपूर्ण समय में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है संघीय, प्रा�
अब जबकि सेशेल्स कोविड19 के संकट के चलते अपने लिए एक लंबी दू�
आर्थिक मज़बूरी के कारण जहां सरकारें लॉकडाउन की पाबंदियों
दुनिया के अलग-अलग देश महामारी की विकराल समस्या और विनाशक�
कोविड19 से पहले इटली, चीन से निवेश की संख्या के मामले में पा
लैटिन अमेरिका के अधिकतर देश बाक़ी दुनिया से अलग-थलग हैं. इ
मानवता के इतिहास में कोविड-19 एक ऐसी महामारी के तौर पर दर्ज़
जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध अपने शिखर पर था, �
ये अंत का आरंभ या आरंभ का अंत नहीं है, सिर्फ़ एक युग का अंत �
आने वाले समय में इस महामारी के फैलने की रफ़्तार स्थिर होन�
1950 से चीन भूटान के इलाक़े को अपने नक्शे में प्रकाशित कर रह�
सरकार को बैंकिंग सेक्टर को ये भरोसा दिलाना होगा कि वो मुक�
किसी भी शहर में बीमारियों पर स्थायी तौर पर क़ाबू पाने के ल
कोविड से पहले के समय में मेडिकल कम्युनिटी और स्वास्थ्य प�
मौजूदा पारंपरिक नियामक और प्रमाणित करने वाली संस्थाओं स�
महामारी से जो सबसे बड़ा सबक़ मिला है, वो ये है कि मानवाधिक�
ऑक्सफ़ोर्ड पॉलिटिकल रिव्यू ने ORF के अध्यक्ष समीर सरन का इ�
अगर कोविड-19 के उपचार के लिए कोई टीका या दवा बनायी जानी है, त�
जिस तरह माध्यम के तौर पर भाषा के महत्व को बरकरार रखना ज़रू
मीडिया में जिस बात को नही कहा गया, वो है इस तरह के इलाक़ों म
कुछ देर के लिए भले ही अर्थव्यवस्था की कहानी थम गई हो लेकिन
हम इस महामारी के साथ लगभग छह महीने बिता चुके हैं. संभवत: अग�
महामारी की वजह से जो लॉकडाउन लगाया गया है, उसकी वजह से मॉन�
बेशक तकनीकी चीज़ें हमारी ज़िंदगी आसान बनाती हैं. लेकिन म�
हम एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़े हैं. और आने वाले कुछ वर्षों म
भारत और अफ्रीका के लिए आज कम कार्बन उत्सर्जन वाले, स्थायी,
जब तक हम ये पक्के तौर पर नहीं जान जाते कि बीसीजी या कोई और द
जहां तक शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, खाद्य सुरक्षा और पे
महामारी सिर्फ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य त्रासदी नहीं हैं बल�
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को और ज़्यादा नेतृत्व दिखान
दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी – 55 प्रतिशत- शहरों में रहती
सरकार के लिए दीर्घकालीन चुनौती महामारी का सामना करने वाल
कोरोना वायरस जिस तेज़ी से बढ़ रहा है, उससे विकासशील देशों
क्या अंतरराष्ट्रीय क़ानून में कोई ऐसी व्यवस्था है जिसके
भारतीय सेना पहले भी महामारी से निपट चुकी है और कोलरा, चेचक
राजनेता आख़िर ख़राब हवा की फिक्र करें भी तो क्यों? जिस जनत
लॉकडाउन के कारण, ज़हरीली गैसों के उत्सर्जन में आई अस्थाय�
पूंजीवाद और नव-उदारवाद का दोष निकाला जा सकता है लेकिन उसक�
वैसे तो सामाजिक दूरी के नतीजों के लिए लोगों को पूरी तरह से