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करते परवान गुरुद्वारे पर हमले ने अफ़ग़ानिस्तान में भारत की हालिया सक्रियता पर नए सिरे से सवाल खड़े कर दिए हैं क्योंकि काबुल में तालिबान के काबिज होने के बाद नई दिल्ली उसके साथ सहयोग को लेकर बड़े संकोच में रही है.
बीते शनिवार को अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के ‘करते परवान‘ गुरुद्वारे पर आतंकी हमला हुआ. इसमें एक सिख और तालिबान के एक सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई. अफ़ग़ान सुरक्षाकर्मियों ने विस्फोटक से लदे एक ट्रक को गुरुद्वारे में घुसने से रोककर बड़े हमले की साजिश को विफल कर दिया. अन्यथा मृतकों की संख्या बढ़ सकती थी. जिस समय यह हमला हुआ तब गुरुद्वारे में करीब 30 लोग मौजूद थे. अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय आतंकी समूह आइएस-खुरासान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. उसने कहा है कि यह हमला हिंदुओं, सिखों और उन पथभ्रष्ट लोगों को सबक सिखाने के लिए किया गया, जिन्होंने अल्लाह के रसूल का अपमान किया है. इसे भाजपा के उन नेताओं की पैगंबर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी से भी जोड़कर देखा जा रहा है, जिन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया.
यह हमला हिंदुओं, सिखों और उन पथभ्रष्ट लोगों को सबक सिखाने के लिए किया गया, जिन्होंने अल्लाह के रसूल का अपमान किया है. इसे भाजपा के उन नेताओं की पैगंबर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी से भी जोड़कर देखा जा रहा है, जिन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया.
‘करते परवान‘ गुरुद्वारे पर हमले ने अफ़ग़ानिस्तान में भारत की हालिया सक्रियता पर नए सिरे से सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि काबुल में तालिबान के काबिज होने के बाद नई दिल्ली उसके साथ सहयोग को लेकर बड़े संकोच में रही है, जबकि भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान की अहमियत को देखते हुए यह आवश्यक है कि वह अपनी अफ़ग़ान नीति पर नए सिरे से विचार करे. विशेषकर इस क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान के संदिग्ध इरादों को देखते हुए जरूरी है कि भारत अफ़ग़ानिस्तान को पूरी तरह अनदेखा न करे. इसी महत्ता को समझते हुए कुछ दिन पहले विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल अफ़ग़ानिस्तान गया. गत वर्ष अगस्त में काबुल स्थित भारतीय दूतावास को बंद करने के बाद पहली बार भारत का कोई प्रतिनिधिमंडल वहां पहुंचा. जेपी सिंह ने वहां तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की. कहा जा रहा है कि भारत सरकार अफ़ग़ानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति बहाल करने पर विचार कर रही है. इस दौरान तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख सुहेल शाहीन ने स्पष्ट किया कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल से कहा है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में अपना कूटनीतिक मिशन पुन: संचालित करे और उसके सामान्य परिचालन के लिए सुरक्षा उपलब्ध कराने में अफ़ग़ान सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है.
अफ़ग़ान लोग जिस प्रकार की मानवीय आपदा से जूझ रहे हैं, उसे देखते हुए नई दिल्ली की मदद का दायरा भी स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. इसने अफ़ग़ानिस्तान में भारत की साख और विश्वसनीयता बढ़ाई है.
भले ही बीते दस महीनों के दौरान काबुल के साथ नई दिल्ली की कड़ियां कुछ टूट गई हों, लेकिन उसने मानवीय मदद का हाथ जरूर बढ़ाए रखा. हालिया दौरे को लेकर यह रेखांकित किया गया कि इसका उद्देश्य व्यापक रूप से यह सुनिश्चित करना था कि अफ़ग़ान लोगों तक आवश्यक मदद उचित रूप से पहुंचे. भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने काबुल के इंदिरा गांधी चिल्ड्रंस हास्पिटल, हबीबा हाईस्कूल और चिमताला इलेक्ट्रिक सब-स्टेशन जैसी उन परियोजनाओं का दौरा किया, जो अफ़ग़ान लोगों के जीवन में जमीनी स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाई हैं. भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति हमेशा आम अफ़ग़ानियों की भलाई पर केंद्रित रही है. यह नीति कभी काबुल में सत्तारूढ़ सरकार का चेहरा देखकर तय नहीं हुई. दोनों देशों के लोगों के बीच प्राचीन सभ्यतागत संबंध इसका प्रभावी पहलू रहे. यही मानवीय भावना है जो जमीनी स्तर पर भारत की व्यापक उपस्थिति को दर्शाती है. भारत अफ़ग़ानिस्तान को 20,000 टन गेहूं, 13 टन दवाएं, सर्दियों के कपड़े, कोविडरोधी टीकों की पांच लाख खुराक के साथ-साथ ईरान में अफ़ग़ान शरणार्थियों के लिए दस लाख वैक्सीन डोज़ उपलब्ध करा रहा है. अफ़ग़ान लोग जिस प्रकार की मानवीय आपदा से जूझ रहे हैं, उसे देखते हुए नई दिल्ली की मदद का दायरा भी स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. इसने अफ़ग़ानिस्तान में भारत की साख और विश्वसनीयता बढ़ाई है. इससे भारत के प्रति यही धारणा बन रही है कि भले ही इस देश में भारत को अपने प्रतिकूल माहौल झेलना पड़ रहा हो, लेकिन संकट के समय पड़ोसी की मदद से वह कदम पीछे नहीं खींचता. सहायता को लेकर उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं उठ सकते.
मदद के बढ़ते हाथ के साथ-साथ अब अफ़ग़ान जमीन पर भारत की उपस्थिति भी आवश्यक हो गई है. यदि भारत अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय आधार पर एक बड़ा मददगार बना रहता है तो फिर कोई कारण नहीं कि उस सहायता को लोगों तक पहुंचाने के लिए वह अन्य पक्षों या संगठनों पर निर्भर रहे. भारत के लिए यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि वह यह देखे कि मदद सबसे ज्यादा जरूरतमंदों तक पहुंच रही है या नहीं? अपनी मानवीय मदद के प्रबंधन के लिए भारत को समानता एवं न्याय के अपने सिद्धांतों का पालन करना होगा. इसलिए तालिबान से कड़ी जोडऩा एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्राथमिकता बन गई है.
हालिया दौरे में तालिबान के उप-विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई ने कहा कि अफ़ग़ान-भारत रिश्ते परस्पर सम्मान एवं हितों के आधार पर आगे बढ़ेंगे और वे किसी अन्य देश की प्रतिद्वंद्विता से प्रभावित नहीं होंगे.
तालिबान के स्तर पर भी यह दिखता है कि वह भारत के क्षेत्रीय एवं वैश्विक कद को स्वीकार कर रहा है. उसे आभास है कि नई दिल्ली सें पींगें बढ़ाए बिना व्यापक वैश्विक पहुंच एवं ठोस सक्रियता संभव नहीं. हालिया दौरे में तालिबान के उप-विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई ने कहा कि अफ़ग़ान-भारत रिश्ते परस्पर सम्मान एवं हितों के आधार पर आगे बढ़ेंगे और वे किसी अन्य देश की प्रतिद्वंद्विता से प्रभावित नहीं होंगे. उनका संकेत पाकिस्तान की ओर है. असल में तालिबान पिछले कुछ महीनों से भारत को यही संदेश देने में लगा है. वहीं अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों पर इस कारण भी दबाव बढ़ रहा है कि तालिबान पाकिस्तानी सेना और तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के साथ एक समझौते की कोशिश कर रहा है. इस कोशिश के चलते संघर्षविराम की घोषणा अवश्य हो गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर तनातनी कायम है. न केवल टीटीपी को सुरक्षित पनाह देने, बल्कि पाकिस्तान-अफ़ग़ान सीमा पर अपने दावे से तालिबान पाकिस्तान को चुनौती देता आ रहा है. इसलिए कोई हैरानी नहीं कि तालिबान भारत से कड़ियां जोड़ने में लगा हुआ है. ऐसे में भारत के लिए यह बढिय़ा अवसर है कि वह तालिबान से संपर्क अपनी शर्तों के साथ आगे बनाए.
तालिबान के साथ व्यापक सक्रियता भारत के लिए नई संभावनाएं बनाएगी, क्योंकि चीन, रूस और ईरान जैसे अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी भी वहां अपनी पैठ बढ़ाने में लगे हैं. हालांकि तालिबान की वैचारिक कट्टरता में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है, लेकिन बीते दो दशकों में दुनिया बहुत बदल गई है. इसे देखते हुए नई दिल्ली को अफ़ग़ान अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं को लेकर अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखनी चाहिए. इस मामले में वह वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर तालिबान को जवाबदेह बनाने की कोशिश करे. कुल मिलाकर जो परिदृश्य है, उसमें कोई कारण नहीं कि भारत अफ़ग़ानिस्तान में अपनी उपस्थिति से कतराता रहे.
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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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