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भारत पश्चिमी एशिया के साथ विकसित हो रहे संबंधों का लाभ अरब दुनिया के रास्ते मुंबई से यूरोप तक मल्टी-मॉडल लिंक्स का विस्तार करने के लिए कर सकता है.
18 अक्टूबर को भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के विदेश मंत्रियों के बीच हुई वर्चुअल बैठक ने भारत के पश्चिम एशिया के साथ और उसके आगे के ताल्लुकात में एक महत्वपूर्ण नया आयाम जोड़ा है. सबसे पहले तो बैठक का समय बहुत अहम है. यह बैठक ऐसे समय में हुई जब भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस.जयशंकर इज़राइल के आधिकारिक दौरे पर थे और फोटोग्राफ्स में उन्हें इज़राइल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री येर लापिद (Yair Lapid) के साथ खड़े हुए दिखाया गया था जबकि अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटनी ब्लिंकन (Antony Blinken) और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायद अल नाहयान (Sheikh Addullah bin Zayed al Nahyan) इसमें वर्चुअली जुड़े थे. उतना ही अहम यह भी है कि यह बातचीत, 13 अक्टूबर को वॉशिंगटन डीसी में आयोजित यूएस-यूएई-इज़राइल की त्रिपक्षीय बैठक के चंद दिनों बाद हुई थी.
इस फोर-वे मीटिंग का प्रारंभिक अध्ययन यह संकेत देता है कि इसका प्रमुख फोकस उन देशों के बीच आर्थिक और व्यावसायिक रिश्तों को बढ़ावा देना है जो विभिन्न अहम क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण में समाभिरूपता देखते हैं. इसमें ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने को लेकर विशेष ज़िक्र है, सक्रिय फॉलोअप पर ज़ोर दिया गया है और इस बात की ओर संकेत है कि दुबई एक्सपो के इतर भी चारों मंत्रियों के बीच मुलाकात हो सकती है.
इस फोर-वे मीटिंग का प्रारंभिक अध्ययन यह संकेत देता है कि इसका प्रमुख फोकस उन देशों के बीच आर्थिक और व्यावसायिक रिश्तों को बढ़ावा देना है जो विभिन्न अहम क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण में समाभिरूपता देखते हैं.
लेकिन यह एक अधिक महत्वाकांक्षी आयाम को भी खोलता है. प्रोफेसर माइकल टैनचम (Michael Tanchum) ने हाल ही में भारत-अरबमेड (ArabMed) गलियारे की संभावनाओं के बारे में लिखा है जो क्षेत्र की उभरती भूराजनीति को फायदा पहुंचा सकती है जिससे ग्रीक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट ऑफ परेयस के ज़रिए मुंबई और यूरोपियन मुख्य भू-भाग के बीच मल्टी मॉडल लिंक निर्मित किया जा सकता है.
पहली बार पढ़ने पर, प्रस्तावित भारत-यूएई फूड कॉरिडोर और ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल्स सेक्टर में सहयोग को लेकर उनके कुछ अनुमान बेहद आशावादी नज़र आये. प्रारंभिक ऐलान और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित उनके द्वारा किये गए बहिर्वेशन से इन क्षेत्रों की ज़मीनी हक़ीक़त काफी भिन्न रही हैं. हालांकि इससे, भारत के साथ यूरोप को जोड़ने वाले संभावित नये व्यापार गलियारे पर उनकी ज़रूरी थीसिस की अहमियत कम नहीं हुई है और यह उपयोगी होगा कि हाल के घटनाक्रमों पर नज़र डाला जाए जो इसे एक वास्तविकता बना सकती है.
दुबई में कॉन्सुल्स जनरल ऑफ इंडिया और इज़राइल ने अक्टूबर 2021 में भारत-इज़राइल-यूएई बिज़नेस मीट की मेज़बानी करने की पहल भी की थी. और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ इंडो-इज़राइल चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स (IFIICC) दुबई में अपने अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय में लॉन्च हुआ है.
इसमें शायद ही कोई संदेह है कि पश्चिम एशिया में भूराजनीति का परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा है, अगर भारत के साथ यूरोप को जोड़ने वाले मल्टी-मॉडल गलियारा वास्तविकता बन रहा है तो विकट चुनौतियों को दूर करना ही होगा. राजनीतिक स्तर पर, सऊदी अरब को इज़राइल जाने वाली शिपमेंट्स को अपने उत्तर-दक्षिण रेलवे से गुज़रने की अनुमति देने पर हामी भरनी होगी. मार्च 2018 में एक छोटा लेकिन प्रतिकात्मक कदम उठाया गया था, जब एयर इंडिया के दिल्ली-तेल अवीव के अधिष्ठापन उड़ान को सऊदी अरब के ऊपर से उड़ने की अनुमति दी गई थी. इसके बाद काफी कुछ हुआ है जिसमें अब्राहम समझौता और इज़राइल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू का सऊदी अरब का अनुमानित गुप्त दौरा शामिल है. ऐसे भी संकेत हैं कि अमेरिका रियाद से तेल अवीव के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ने का अनुरोध कर रहा है, और फलस्तीन के मोर्चे पर मिली कुछ प्रगति ऐसा होने में उत्प्रेरक साबित हो सकता है. जॉर्डन प्रस्तावित रेलवे गलियारे पर टिप्पणी करने में हिचकिचा रहा है लेकिन एक बार जॉर्डन के सेक्शन में फंडिंग को लेकर ज़्यादा स्पष्टता आने पर वो एक व्यावहारिक रुख अपना सकता है. और मिस्र को इस आश्वासन की ज़रूरत होगी कि स्वेज नहर के राजस्व पर इसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा.
माइकल टैनचम (Michael Tanchum) ने यह हिसाब लगाया है कि मल्टी-मॉडल लिंक के ज़रिए भारत-अरबमेड कॉरिडोर मुंबई से परेयस के बीच शिपिंग का समय वर्तमान के 17 दिनों से घटाकर 10 दिन करेगा. यह अपने आप में एक आकर्षक प्रस्ताव है, लेकिन इस तरह की प्रकृति की परियोजना की आर्थिक क्षमता काफी हद तक माल परिमाण पर निर्भर होगी. यहीं पर भारत की चतुर विदेश नीति इस क्षेत्र में चलती है और उसकी उभरती व्यापार नीति एक अहम भूमिका निभा सकती है. सालों तक अपने पैर घसीटने के बाद, भारत ने अब यूएई, इज़राइल और यूरोपियन यूनियन के साथ अपने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) बातचीत को फास्ट ट्रैक पर रख दिया है. वर्तमान वर्ष में भारत का विदेश व्यापार 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पार हो जाएगा और ईयू हमारे सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बना हुआ है. फिलहाल विश्व की बड़ी कंपनियों को भारत में निर्माण को लेकर आकर्षित करने के लिए, चीन पर निर्भरता कम कर और भारत के अपने परफॉर्मेन्स लिंक्ड इंसेक्टिव्स (PLIs) कार्यक्रम को जोड़ते हुए कुछ निर्माता संयंत्रों को भारत में लाकर लचीली आपूर्ति चेन बनाने का काम किया जा रहा है, जो इन ट्रेंड्स को मज़बूत गतिशक्ति देगा.
भारत के पास इस परियोजना को लेकर दीर्घकालिक, रणनीतिक नज़रिया अपनाने का मौका है. IRCON जैसी कंपनियां इस धारणा के साथ सऊदी अरब और जॉर्डन में परियोजना के अधूरे कार्य का हिस्सा बनने के लिए उग्रता के साथ बोली लगा सकती है कि फंडिंग स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से की जाएगी.
भारत के पास इस परियोजना को लेकर दीर्घकालिक, रणनीतिक नज़रिया अपनाने का मौका है. IRCON जैसी कंपनियां इस धारणा के साथ सऊदी अरब और जॉर्डन में परियोजना के अधूरे कार्य का हिस्सा बनने के लिए उग्रता के साथ बोली लगा सकती है कि फंडिंग स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से की जाएगी. स्थापित शिपिंग रूट्स की तुलना में प्रस्तावित भारत-अरबमेड गलियारे की क्षमता, प्रभाव और व्यापार संभावनाओं को जांचने के लिए अगले कुछ महीनों तक इसका विस्तार से अध्ययन करना एक शुरुआती बिंदु हो सकता है, और पश्चिम एशिया और यूरोप में आपूर्ति चेन के भीतर ज़्यादा प्रभावशाली तरीके से जुड़ने के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष फायदों को मापने का एक प्रयास.
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