Author : Manoj Joshi

Originally Published दैनिक भास्कर Published on Jun 13, 2024 Commentaries 0 Hours ago

भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं तब तक पूरी नहीं हो सकतीं, जब तक कि उसका क्षेत्र उसके साथ न हो.

भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं: क्षेत्रीय सहयोग के बिना अधूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों के नेताओं को आमंत्रित करके अच्छा संकेत दिया. सात देशों के नेता- मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे, नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे, मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ और सेशेल्स के उपराष्ट्रपति अहमद अफीफ इस कार्यक्रम में मौजूद रहे.

पाकिस्तान का नाम मेहमानों की फेहरिस्त में नहीं था, हालांकि याद रहे कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 2014 में मोदी के पहले शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया था. तब से भारत-पाकिस्तान के बीच बहुत सारे रिश्ते खत्म हो चुके हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि इस बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को आमंत्रित करने की कोई योजना थी या नहीं, लेकिन वैसे भी वे शनिवार शाम को ही चीन की अपनी पांच दिवसीय यात्रा से लौटे थे.

भारत को अपनी विवादित सीमा पर बीजिंग से जैसी सैन्य चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन से मिलने वाली चुनौती भी समान रूप से महत्वपूर्ण है.

पिछले नवंबर में पदभार संभालने के बाद चीन-समर्थक मुइज्जू की यह पहली भारत यात्रा थी. अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत- जिन्होंने नई दिल्ली को अपना पहला पड़ाव बनाया था- मुइज्जू भारत से पहले तुर्किये और फिर चीन की यात्रा पर गए थे.

मालदीव के साथ भारत के संबंधों में तब खटास आ गई थी, जब मुइज्जू ने 88 या उससे ज्यादा भारतीय सैन्यकर्मियों को वापस बुलाने के लिए कहा था, जो भारत द्वारा मालदीव को उपहार में दिए तीन हेलीकॉप्टरों की देखभाल कर रहे थे.

 

पड़ोसी पहले

2014 में मोदी के पहले शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान सहित सभी सार्क (SAARC) देशों के नेता शामिल हुए थे. 2019 में दूसरी बार शपथ ग्रहण करने तक भारत के पाकिस्तान से रिश्ते बहुत खराब हो गए थे और सार्क भी निष्क्रिय हो गया था, इसलिए बिम्सटेक (BIMSTEC या बहु-क्षेत्रीय और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी में की गई पहल) में शामिल देशों पर जोर दिया गया था.

भारत का कहना है कि वह हिंद महासागर क्षेत्र के लिए अपने पड़ोसियों को पहले रखने की नीति के साथ-साथ सागर (SAGAR) क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास पर जोर देता है. लेकिन भारत किसी भी चीज से ज्यादा चीन को अपने दिमाग में रखता है. भारत को अपनी विवादित सीमा पर बीजिंग से जैसी सैन्य चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन से मिलने वाली चुनौती भी समान रूप से महत्वपूर्ण है.

बांग्लादेश का ही उदाहरण लें, जहां 2011 से 2019 के बीच चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 10.9 गुना बढ़ा है और यह बुनियादी ढांचे, सूचना-प्रौद्योगिकी, रक्षा सहयोग और ऊर्जा उद्योग जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर केंद्रित है. भारत से बांग्लादेश की निकटता और बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर उसका होना उसे चीन के लिए भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है.

पिछले एक दशक में, चीन ने बेल्ट एंड रोड पहल के तहत बांग्लादेश में 35 परियोजनाओं के लिए 4.45 अरब डॉलर प्रदान किए हैं, जिसमें कर्णफुली सुरंग, पद्मा नदी पुल आदि शामिल हैं. बांग्लादेश भारत और अमेरिका के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिए चीन से अपने संबंधों का उपयोग करना चाहता है.

बांग्लादेश में लोकतंत्र के मुद्दों पर भारत का रुख अमेरिका की तुलना में अधिक सूझबूझ भरा है और वह बांग्लादेश का प्रमुख रणनीतिक साझेदार बना हुआ है. साथ ही वह उसके साथ कई परिवहन और ऊर्जा परियोजनाओं में भी शामिल है.

पिछले एक दशक में, बांग्लादेश से भारत का द्विपक्षीय व्यापार 2012-2013 में 5.3 अरब डॉलर से बढ़कर 2021-22 में 15.93 अरब डॉलर तक हो गया है.

पिछले एक दशक में, बांग्लादेश से भारत का द्विपक्षीय व्यापार 2012-2013 में 5.3 अरब डॉलर से बढ़कर 2021-22 में 15.93 अरब डॉलर तक हो गया है. गैर-टैरिफ बाधाओं और सीमा पार आवागमन से संबंधित प्रक्रियागत मुद्दों के कारण व्यापार में जरूर बाधा आई है.

निकट-अतीत में भारत ने अपने कुछ पड़ोसियों को नाराज किया है. उदाहरण के लिए, 2015 में नेपाल की छह महीने की नाकेबंदी के कारण उसमें भारत के खिलाफ काफी नाराजगी निर्मित हो गई थी. हालांकि भारत ने इससे इनकार किया था कि नेपाल में मधेशी प्रदर्शनकारियों द्वारा शुरू की गई नाकाबंदी में उसकी भूमिका थी. लेकिन अब मुश्किल पड़ोसियों से निपटने में नई दिल्ली ज्यादा शांतिपूर्ण रवैया अपना रही है. इसका उदाहरण मालदीव के साथ उसका व्यवहार है.

 

बदला हुआ रुख 

मुइज्जू की हरकतों के बावजूद भारत ने मालदीव के साथ दोस्ताना रवैया कायम रखा है. हाल ही में मुइज्जू ने ऋण राहत के लिए नई दिल्ली से सहायता भी मांगी. लेकिन भारत का अपने पड़ोसियों के प्रति बदला हुआ रुख सबसे स्पष्ट रूप से तब दिखाई दिया था, जब विदेशी मुद्रा भंडार की कमी होने के कारण श्रीलंका को संकट का सामना करना पड़ा था.

तब भारत ने तुरंत 4 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की थी, जो आईएमएफ के 3 अरब डॉलर के बेलआउट से भी अधिक थी. भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं तब तक पूरी नहीं हो सकतीं, जब तक कि उसका क्षेत्र उसके साथ न हो.

 

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