Issue BriefsPublished on Jun 03, 2024
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चीन की ‘ग्लोबल एक्सचेंज डिप्लोमेसी’ और उसका प्रभाव: एक अवलोकन

  • Col (Dr) DCS Mayal

    21 वीं शताब्दी की शुरुआत से ही चीन अपनी ग्लोबल एक्सचेंज डिप्लोमसी में विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हुए अपनी ऐतिहासिकसेंचुरी ऑफ़ ह्यूमिलिएशनसे ऊपर उठकर 'मिडिल किंगडम' के अपने सपने को साकार करने की कोशिश कर रहा है. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के मंच का उपयोग करते हुए चीन ने अपनी सशक्त अर्थव्यवस्था और विशाल मानव संसाधन का लाभ उठाया है. यह लाभ उसने पीपल-टू-पीपल, प्रवासियों तथा विदेशियों में अपनी पैठ बनाने के लिए पर्यटन, शिक्षा और सिस्टर-सिटी अरेंजमेंट के माध्यम से उठाया है. यह ब्रीफ वैश्विक स्तर पर लोगों की राय को अपने पक्ष में करने के लिए चीन की ओर से की जा रही कोशिशें का आकलन करती है

Attribution:

दिनेश मायल, "चीन कीग्लोबल एक्सचेंज डिप्लोमेसी और उसका परिणाम: एक अवलोकन," ORF इश्यू ब्रीफ नं. 661, फरवरी 2024, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

तकनीकी विकास के इस दौर में अब संघर्ष अथवा दो देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, पारंपरिक सेनाओं के दायरे से निकाल कर व्यापक तौर पर गैर-सेना हिस्सेदारों को आकर्षित करने लगा है. वर्तमान समाज में हार्ड-पावर यानी परंपरागत शक्ति की बजाय सॉफ्ट-पावर हावी होता जा रहा है. कटिंग-एज संचार तकनीक के उद्भव और उपयोग करने में आसान किफ़ायती उपकरण अब सभी को उपलब्ध होने लगे हैं. इसकी वजह से पारंपरिक संघर्ष क्षेत्र में स्थितियां तेज़ी से बदल रही हैं. इन संघर्षों में अब असंख्य सशक्त हिस्सेदारों की संख्या बढ़ी है, जो आमतौर पर अदृश्य भी होते हैं. इसके परिणाम स्वरूप सार्वजनिक कूटनीति का दायरा अब सरकारी नियंत्रण से निकालकर, जनता/संगठनों, जिसमें सिविल सोसाइटी, दबाव समूह, राजनीतिक नेता, पत्रकार, मीडिया केंद्र, शिक्षाविद, विचार समूह और प्रवासी शामिल हैं, के बीच पहुंच गया है.

चीन के पास विशाल जनसंख्या और प्रभाव डालने में सक्षम प्रवासी नागरिकों (150 से ज़्यादा देशों में लगभग 60 मिलियन नागरिक) की अच्छी ख़ासी संख्या मौजूद है.[1],[2]) इसके बावजूद सार्वजनिक कूटनीति को लेकर चीन लंबे समय से ज़्यादा बात नहीं करता नहीं दिखाई देता. लेकिन 21 वीं शताब्दी के आरंभ से ही चीन के इस दृष्टिकोण में बदलाव देखा जा रहा है. अब चीन सार्वजनिक कूटनीति का उपयोग करते हुए अपने ऐतिहासिक ‘सेंचुरी ऑफ़ ह्यूमिलिएशन [a] को पीछे छोड़ते हुए अपने ‘मिडिल किंगडम’ [b] के सपने को साकार करने का लक्ष्य लेकर काम कर रहा है. आधुनिक समय में इनफ्लुएंस ऑपरेशंस यानी प्रभाव डालने के अभियानों में संपूर्ण समाज को ही आधार बनाने का काम सबसे पहले चीन ने ही किया है. कोई भी देश अपने हितों और लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इनफ्लुएंस ऑपरेशंस यानी प्रभाव अभियानों का उपयोग करता है. इसके तहत संबंधित देश अपने राष्ट्रीय कूटनीतिक, सूचना संबंधी, सैन्य और आर्थिक या अन्य क्षमताओं का समन्वित, एकीकृत और एक साथ इस्तेमाल करता है. यह उपयोग शांति, संघर्ष, विवाद या फिर विवाद के पश्चात, विदेश में रहने वाले नागरिकों के फ़ैसले, बर्ताव तथा दृष्टिकोण को प्रभावित करने के लिए किया जाता है.[3]


गोपनीय जानकारी एकत्रित करने के लिए पारंपारिक तरीके अपनाने के बजाय चीनी एजेंसियां अब कुछ नए तरीकों का उपयोग करने लगी हैं. इसमें चीनी एजेंसियां ‘थाउसेंड ग्रेंस ऑफ सैंड’ अथवा मोज़ेक दृष्टिकोण या फिर ह्यूमन वेव (सीधे-सीधे जासूसी करना) या नागरिकों का इस्तेमाल करती हैं. ये एजेंसियां बड़ी संख्या में हान नागरिकों का इस्तेमाल करने के साथ विदेश में रहने वाले अपने नागरिकों का भी सहयोग लेती है.[4] बीजिंग, समाज शक्ति के विभिन्न पहलू जैसे जासूसी, सूचना नियंत्रण, औद्योगिक नीति, राजनीतिक और आर्थिक दबाव तंत्र, विदेश नीति, सेना के उपयोग की धमकी के साथ तकनीकी ताकत का भी उपयोग करता है. बीजिंग की ‘समाज की शक्ति’ के सभी पहलूओं का उपयोग करने की क्षमता और युक्ति, नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए चुनौती बनी हुई है.[5] समाज को कोई भी नुक़सान पहुंचाए बगैर ख़ुफ़िया जानकारी एकत्रित करने के लिए समाज का उपयोग करने का चीन का यह दृष्टिकोण अनूठा है. इसके लिए उसे किसी ऐसे ‘बुरे व्यक्ति’ की ज़रूरत नहीं होती, जिसकी कोई कमज़ोर नस उसने पकड़ रखी है. वह इसके लिए किसी ‘अच्छे व्यक्ति’ या कच्चे जासूस का भी उपयोग कर सकता है. इस तरह के इनफ्लुएंस ऑपरेशंस यानी प्रभाव अभियानों से गोपनीय जानकारी तेज़ी से एकत्रित हो जाती है और इसमें सरकारी हाथ होने का किसी को पता तक नहीं चलता.

चीन मामलों को लेकर फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (FBI) के पूर्व विश्लेषक पॉल मूर समाज का उपयोग करते हुए इनफ्लुएंस ऑपरेशन/प्रभाव अभियान चलाने के चीन के इस अनूठे दृष्टिकोण को कुछ इस प्रकार देखते हैं. उनके अनुसार, 'यदि किसी तट को निशाना बनाया जाना है, तो रूस एक सबमरीन भेजेगा. उसमें से निकलने वाला गोताखोर तट के किनारे जाकर रात के अंधेरे में रेत की कई बाल्टियां भरकर उसे मास्को ले जाएगा. इसी मामले में US एक उपग्रह तैनात कर ढेर सारी जानकारी इकट्ठा कर लेगा. लेकिन चीन इसी तट पर सैकड़ो पर्यटकों को भेज कर उन्हें वहां से केवल तट के रेत का एक कण लाने का काम सौंपेगा. जब तट पर गए सारे पर्यटक अपने देश लौटेंगे, तो उन्हें अपने टॉवल झटकने को कहा जाएगा. और इस प्रकार चीन के पास तट की सबसे ज़्यादा जानकारी पहुंच जाएगी.’[6]

 

संचार तकनीक में हुए विकास के चलते सार्वजनिक कूटनीति का महत्व और भी बढ़ गया है. क्योंकि अब व्यापक, दिखाई न देने वाले और शक्तिशाली हिस्सेदारों का नेटवर्क तैयार हो गया है. यह नेटवर्क लचीला होकर काम कर करने की क्षमता वाला है. [c] वर्तमान समय में रुकावट पैदा करने वाली तकनीक के साथ-साथ आसानी से इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण आसानी से मिल जाते है. ऐसे में इनका राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय स्तर पर उपयोग भी बढ़ने लगा है. इसके चलते आम आदमी सशक्त हुआ है. ऐसे में जनसमर्थन हासिल करने के लिए एक्सचेंज डिप्लोमेसी की तरफ भी झुकाव बढ़ा है. एक्सचेंज डिप्लोमेसी के तहत विदेश में रहने वाले चीनी नागरिकों के साथ चीन का समर्थन करने वाले विदेशी नागरिकों को गुप्त रूप से एकत्रित किया जाता है. फिर राजनीतिक दल, शिक्षा, पर्यटन और सिस्टर-सिटी अरेंजमेंट्‌स को माध्यम बनाकर इनके समर्थन से इनफ्लुएंस ऑपरेशन चलाया जाता है. हाल के दशकों में चीन ने अपने नागरिकों और विदेशी आबादी के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए एक्सचेंज डिप्लोमेसी का आक्रामक होकर इस्तेमाल किया है. ऐसा करने के पीछे उसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर चल रहे विमर्श को अपने पक्ष में करना होता है. इन एक्सचेंज प्रोग्राम्स यानी आदान-प्रदान कार्यक्रमों का लक्ष्य एक ऐसी व्यक्तिगत संबंधों वाली व्यवस्था कायम करना है जिसका उपयोग करते हुए लोगों का भरोसा जीता जाए. भरोसा जीतने के साथ ही चीन का एक कैडर यानी समर्पित लोगों का समूह तैयार करने का भी लक्ष्य है. यह समूह न केवल राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक अथवा विदेश नीति के मामलों में चीनी मान्यता और मूल्यों को समझेगा, बल्कि चीन का पक्ष लेते हुए दूसरों को समझाने का काम भी करेगा.[7] 

 

चीन के पास सरप्लस पूंजी है और इसे ख़र्च करने की ताकत भी मौजूद है. ऐसे में चीन अपनी छवि को चमकाने के लिए विदेशों में ही अभियान चलाकर संतोष नहीं कर रहा. बल्कि अब चीन विदेशियों को अपना बनाकर अपने यहां को-ऑप्ट भी कर रहा है अर्थात उन्हें अपनी नागरिकता भी दे रहा है. इसके अलावा वह विदेशियों के साथ समन्वय साधकर भी अपनी इमेज को सुधारने में जुटा हुआ है. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के दम पर चीन ने अपनी वित्तीय शक्ति के साथ एक्सचेंज डिप्लोमेसी मिला लिया है. एक ओर चीन की आर्थिक शक्ति उसकी छवि को एक आकर्षक शैक्षणिक और पर्यटन केंद्र के रूप में मज़बूती देती है. दूसरी ओर विदेशी विद्यार्थियों और विश्वविद्यालयों को चीन की ओर से दिए जाने वाले अनुदान के कारण बुनियादी सुविधा संबंधी BRI परियोजनाओं को लेकर उसकी आलोचना करने वालों की कोशिशों पर पानी फिर जाता है.[8]

इनफ्लुएंस ऑपरेशंस चलाने के लिए चीन, विदेशी नागरिकों के साथ-साथ विदेश में रहने वाले प्रवासी नागरिकों को प्रभावित करने के लिए अनेक एजेंसियों का उपयोग करता है. परंपरागत और प्रसिद्ध गुप्तचर एजेंसियां जैसे मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी, मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी और इंटेलिजेंस ब्यूरो का उपयोग करने के अलावा चीन अनेक गैर-परंपरागत गुप्तचर एजेंसियों से भी काम लेता है. इसमें यूनाइटेड फ्रंट वर्क्स डिपार्टमेंट (UFWD), चाइनीज़ स्टूडेंट एंड स्कॉलर एसोसिएशन (CSSA), चाइना एसोसिएशन फॉर इंटरनेशनल फ्रेंडली कॉन्टैक्ट एवं कनफुशियस इंस्टीट्यूट्स/ कनफुशियस क्लासरूम्स (CIs/CCs) का समावेश है. इन गैर-परंपरागत एजेंसियों का उपयोग एक्सचेंज डिप्लोमेसी के माध्यम से गोपनीय जानकारी एकत्रित करने, दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप करने के साथ प्रोपोगैंडा यानी प्रचार करने या चीन को लेकर धारणा बनाने के अभियानों का प्रबंधन करने के लिए किया जाता है. चीनी अनुसंधान संस्थान जैसे ‘चाइनीज़ इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस’ और ‘चाइनीज़ इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज़’, नियमित रूप से विदेशी अतिथियों को आमंत्रित करते हैं और अपने यहां के शिक्षाविदों के प्रतिनिधमंडल को विदेश भेजते हैं. चीन का शिक्षा मंत्रालय भी विदेश में पढ़ने वाले चीनी विद्यार्थियों और शिक्षाविदों पर नज़र रखता है. इन विद्यार्थियों और शिक्षाविदों को सांस्कृतिक और फ्रेंडशीप संगठनों के साथ-साथ विदेशी अकादमिक यानी शैक्षणिक समूहों जैसे CSSA and CIs/CCs के माध्यम से चीनी शिक्षा मंत्रालय सहायता करता है. जब CIs/CCs पर यह आरोप लगे कि वे शैक्षणिक आज़ादी को दबा रहे हैं, सेंसरशीप को बढ़ाकर प्रचार और गोपनीय जानकारी एकत्रित करने का काम करते हैं, तो चीन ने इन संस्थानों को नए अवतार में पेश कर दिया. अब इन संस्थाओं को सेंटर फॉर लैंग्वेज एजुकेशन एंड को-ऑपरेशन के नाम से जाना जाता है.[9],[10]

 

चीन की ओर से चलाए जाने वाले इनफ्लुएंस ऑपरेशंस में अनेक गैर-परंपरागत हिस्सेदार भी शामिल होते है. इसमें राजनेता, विभिन्न धर्मों के लोग, विद्यार्थी, कारोबारी, अनुसंधानकर्ता/शैक्षाविद्‌ और सोशल मीडिया इनफ्लुएंर्सस का समावेश है. यह सभी लोग परसुएसिव यानी समझाने वाले, डिसुएसिव यानी मना करने वाले और कभी-कभी कोएर्सिव यानी ज़बरदस्ती करने वाले अभियान चलाते हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि चीनी सीमाओं के भीतर और बाहर लक्षित आबादी चीन की पसंदीदा नीतियों का ही समर्थन करने वाला दृष्टिकोण अपनाएं. निश्चित ही विदेश में रहने वाले अनेक चीनी नागरिकों, यहां तक कि US जैसे देशों में रहने वालों को भी, लगता है कि चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) उनकी निगरानी कर रही है.[11] US में चीन की ओर से चलाए जाने वाले जासूसी संबंधी मामलों में हो रही तेज़ी इस बात का संकेत है कि चीन के इनफ्लुएंस ऑपरेशंस बढ़ रहे है. 2020 में निश्चित रूप से FBI के निदेशक क्रिस्टोफर-रे ने चीन को ही US काउंटर-इटेलिजेंस की सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए कहा था कि ब्यूरो के आधे से ज़्यादा सक्रिय काउंटर-इटेलिजेंस के मामले चीन से ही संबंधित है.[12]

 

चीन की विदेश पर केंद्रित इन्फ्लुएंस ऑपरेशंस

कहा जाता है कि चीन ने कथित रूप से 102 'ओवरसीज़ पुलिस स्टेशन' स्थापित कर रखें  हैं. ये विदेशी पुलिस स्टेशन 53 देशों में फ़ैले हुए हैं, जिसमें इटली, फ्रांस, कनाडा, UK और नीदरलैंड का समावेश है.  इन पुलिस स्टेशनों का उपयोग ग्लोबल सर्विलांस और कंट्रोल के लिए किया जाता है. ये सारी गतिविधियां चीनी प्रवासी नागरिकों और पर्यटकों को मदद मुहैया करवाने के नाम पर की जाती है.[13] चीनी अधिकारियों का दावा है कि अप्रैल 2021 से जुलाई 2022 के बीच वे 230,000 चीनी नागरिकों को अपने ख़िलाफ़ चीन में दर्ज़ आपराधिक मामलों का सामना करने के लिए चीन वापस लौटने के लिए मनाने में सफ़ल रहे थे.[14] चीन के प्रवासी नागरिकों को सहायता करने की अपनी नियमित गतिविधि के साथ ओवरसीज़ चाइनीज़ सर्विस सेंटर, ख़ुफ़िया गतिविधियों, विरोध को दबाने और विदेश में रहने वाले लोकतंत्र समर्थक चीनी नागरिकों की पहचान करने का भी काम करते हैं.[15] विदेश मामलों के अपने कार्यालय के ज़रिये चीन ने एक सलाहकार समिति का भी गठन कर रखा है, जिसमें विभिन्न देशों के प्रमुख लोगों [d] को शामिल किया गया है. यह समिति अप्रत्यक्ष रूप से नीतिगत सुझाव देकर विदेश नीति को लेकर मिलने वाले फीडबैक के आधार पर चीन के आधुनिकीकरण में सहायता करती है.[16]

 

US तथा यूरोप के अनेक विश्वविद्यालयों में चीनी विद्यार्थी बड़ी तादाद में पहुंचते हैं. यदि चीन ने विदेश में पढ़ने वाले अपने सभी विद्यार्थियों को वापस बुलाने का फ़ैसला किया तो उसके इस फ़ैसले का अमेरिकी और यूरोपियन उच्च शिक्षा जगत पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. 2019 में विदेश में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में चीनी विद्यार्थियों की हिस्सेदारी कुल 22 फ़ीसदी थी, जो चार बिलियन US$ ख़र्च करने की क्षमता रखते थे. उल्लेखनीय है कि चीन अपनी पब्लिक डिप्लोमेसी और BRI के पक्ष में माहौल बनाने के लिए इन्हीं विदेशी विद्यार्थियों का इस्तेमाल करता है.[e] BRI देशों में UFWD के तहत आने वाले विभिन्न छात्र संगठनों का संचालन करने और अपने इनफ्लुएंस ऑपरेशन को चलाने के लिए चीन एक्सचेंज प्रोग्राम का उपयोग करता है. UFWD के पास कथित रूप से 42 स्थानीय संगठन और 220,000 सदस्य हैं.[17]

 

फरवरी 2016 में शिक्षा मंत्रालय की ओर से एक निर्देश जारी हुआ था. इसके बाद UFWD ने विदेशी चीनी विद्यार्थियों को प्राथमिकता देने के साथ उन्हें एकजुट करने का काम किया था. शिक्षा मंत्रालय ने निर्देश दिया था कि CCP के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए देशभक्तिपूर्ण शिक्षा को मज़बूत किया जाए, विदेश में 'देशभक्तिपूर्ण ऊर्जा' संगठित करने के लिए चीनी विद्यार्थियों को तैनात किया जाए और विदेशी नागरिकों के बीच 'चीन ड्रीम ' के समर्थन को बढ़ाने की कोशिश की जाए. चीनी दूतावासों को यह निर्देश दिया गया है कि वह ऊपर दी गई गतिविधियों से जुड़े प्रयासों की एक 'थ्री डाइमेंशनल नेटवर्क' के माध्यम से सहायता करें. इस तीन आयामी नेटवर्क में चीनी विद्यार्थी, उन शैक्षणिक संस्थानों का जहां वे  शिक्षा ले रहे हैं तथा 'मातृभूमि' का समावेश है. चीन की ओर से अपने विद्यार्थियों को विदेश में ब्रांड एंबेसडर बनाकर भेजने की कोशिशों का विरोध भी हुआ है. यह विरोध उन लोगों की ओर से किया गया है जो चीन के इस प्रयास को CCP की ओर से जासूसी करने और इन्फ्लुएंस ऑपरेशंस के लिए विद्यार्थियों की भर्ती करने की नज़र से देखते हैं. विरोध करने वाले यह मानते हैं कि ये विद्यार्थी, विश्वविद्यालय में जाकर सेल्फ-सेंसरशिप लागू करेंगे और चीन से जुड़े संवेदनशील मुद्दों जैसे कि दलाई लामा, तिब्बत, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग, विगर आंदोलन और फलोंग गोंग पर जनता की सोच को प्रभावित करने का काम करेंगे.[18] विदेश में पढ़ने वाले अधिकांश चीनी विद्यार्थी सेल्फ-सेंसरशिप का पालन करते हैं. इन विद्यार्थियों को यह डर सताता रहता है कि वे अपनी छात्रवृत्ति खो देंगे या उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा या फिर उनका वीज़ा नहीं बनाया जाएगा. इसके साथ ही इन विद्यार्थियों को लगता है कि जब वे अपने देश लौटेंगे तो उन पर नज़र रखी जाएगी या फिर चीन में स्थानीय अधिकारी उनके परिवारों को परेशान करेंगे. चीन के वैश्विक जासूसी युद्ध में US की विश्व स्तरीय विश्वविद्यालयीन प्रणाली एक सॉफ्ट टारगेट बन गई है. US गुप्तचर एजेंसी ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि चीन विद्यार्थी जासूसों का उपयोग करते हुए गोपनीय जानकारी चुरा रहा है.[19] भूतपूर्व CI/CC का उपयोग करते हुए चीन पूरे विश्व के कॉलेज और स्कूल स्तर पर मेंडारि‍न पढ़ाने के लिए निशुल्क शिक्षक उपलब्ध करवा रहा है. ऐसा करते हुए चीन ख़ुद को प्रोपेगेंडा फ़ैलाने, फ्री स्पीच में हस्तक्षेप करने और जासूसी गतिविधियां संचालित करने में शामिल कर रहा है.

 

डेंग शियाओपिंग के सुधारों के पश्चात, अपने प्रवासी नागरिकों को लेकर चीन के दृष्टिकोण में बेहद तेज़ी से परिवर्तन हुआ. इन लोगों को शक की निगाहों से देखने की बजाय चीन अब यह मानने लगा था कि ये लोग अपने कौशल और पैसों से चीन के विकास में योगदान दे सकते हैं. BRI परियोजनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय विकास में प्रवासियों की भूमिका को काफ़ी सराहा गया है. 2016 में अधिकारियों ने इनिशिएटिव में शामिल विदेश में रहने वाले चीनी नागरिकों के लिए ‘बिजनेस कांफ्रेंस’ का आयोजन करना शुरू कर दिया.[20] इसका उद्देश्य BRI से जुड़े विभिन्न देशों के साथ चीनी बातचीत को आसान बनाना था. विदेश जाकर पढ़ने वाले विद्यार्थियों को वापस लाने की लगातार की गई कोशिशों के परिणामस्वरूप अब स्वदेश लौटने वाले विद्यार्थियों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है. 2017 में विदेश जाने वाले कुल 608,000 चीनी विद्यार्थियों में से 79 प्रतिशत (480,900) ने स्वदेश लौटने का निर्णय लिया. यह संख्या 1987 के पांच प्रतिशत तथा 2007 के 30.6 प्रतिशत से उल्लेखनीय रूप से काफ़ी ज़्यादा है.[21] 

चीन ने पर्यटन का आर्थिक साधन के रूप में उपयोग करते हुए पब्लिक डिप्लोमेसी में इसकी वजह से काफी लाभ उठाया है. कभी वह अपने नागरिकों को विदेश जाने के लिए प्रोत्साहित करता है तो कभी उनके विदेश जाने पर पाबंदी लगा देता है. (उल्लेखनीय है कि वह ऐसे देशों में अपने पर्यटकों को जाने से रोकता है, जहां की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही आधारित होती हैं). कभी-कभी चीन अपने यहां आने वाले लोगों के वीज़ा पर भी पाबंदियां लगा देता है. 2018 में आसान वीज़ा प्रक्रिया, बढ़ती आय और लाभदायक एक्सचेंज रेट (मुद्रा विनिमय दर) की वजह से दुनिया भर के पर्यटकों के लिए चीन पसंदीदा पर्यटन स्थल बन गया था.[22] एक अनुमान है कि 2030 तक वैश्विक पर्यटन में चीन की हिस्सेदारी लगभग एक चौथाई हो जाएगी.[23] अन्य देशों के मुकाबले चीनी पर्यटकों की ख़र्च करने की क्षमता ज़्यादा होती है. उदाहरण के तौर पर 2018 में चीनी पर्यटकों ने US पहुंचने पर औसतन 11,500 US$ प्रति व्यक्ति ख़र्च किया, जबकि अन्य सारे देशों को मिलाकर यह खर्च प्रति व्यक्ति औसतन 2,900 US$ से थोड़ा कम ही था.[24] चीन के आउटबाउंड टूरिज्म़ रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भविष्यवाणी की है कि, "2018 में देश के नागरिकों की विदेश यात्रा 145 मिलियन थी, जो 2030 तक बढ़कर 400 मिलियन हो जाएगी."  इसका मतलब यह है कि UNWTO (यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गनाइज़ेशन) की ओर से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन में जो 600 मिलियन अतिरक्त यात्राओं का इज़ाफ़ा होने की भविष्यवाणी की गई है उसमें से आधे से ज़्यादा यात्राएं चीन से शुरू होंगी. 2017 में जहां कुल 1.2 बिलियन US$ ख़र्च हुआ था, वहीं 2030 में यह ख़र्च बढ़कर 1.8 बिलियन US$ होने का अनुमान है.[25] 

चीन ने अपनी पर्यटन संबंधी ताक़त का दोहन ताइवान को नियंत्रित रखने के लिए किया है. ताइवान के साथ आधिकारिक कूटनीतिक संबंध बनाए रखने वाले सभी देशों को चीन ने अपने अप्रुव्ड डेस्टिनेशन स्टेटस (ADS) एग्रीमेंट्‌स में प्रतिबंधित कर रखा है. ADS समझौते, चीनी सरकार की किसी अन्य देश की सरकार के साथ चीनी पर्यटकों को समूह के साथ यात्रा करने की अनुमति देने की व्यवस्था है. 2016 से 2019 के बीच पर्यटन पर आधारित अनेक देशों जैसे पनामा, डोमिनिकन रिपब्लिक, सोलोमन द्वीप, फिजी, ग्रेनाडा और डोमिनिका ने ताइवान के साथ अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए. 2017 में उत्तर कोरिया की सीमा पर टर्मिनल हाई अल्टीट्यूड एरिया डिफेंस की तैनाती के बाद चीन ने दक्षिण कोरिया जाने वाले अपने बाहरी पर्यटकों पर भी पाबंदी लगा दी. इसकी वजह से दक्षिण कोरिया में 2016 में पहुंचने वाले चीनी पर्यटकों की संख्या रिकॉर्ड 8.1 मिलियन थी, वह घटकर 2017 में 4.2 मिलियन तक धराशायी हो गई.[26] दक्षिण एशिया में भी चीन माउंट एवरेस्ट पर आक्रामक होकर एक संचार नेटवर्क स्थापित कर रहा है, ताकि वह विश्व के सबसे ऊंची चोटी पर नियंत्रण हासिल कर सकें.

 

उल्लेखनीय है कि चीन ने BRI के माध्यम से अपने पर्यटन के साथ धर्म (बौद्ध धर्म) को एकीकृत कर दिया है. चाइनीज़ ह्यूमन इंटेलिजेंस एजेंसियों ने बुद्धिस्ट कम्युनिटी में घुसपैठ भी कर ली है. यह घुसपैठ दक्षिण एशिया के बुद्धिस्ट टूरिस्ट सर्किट के माध्यम से हुई है, ताकि इस क्षेत्र में दलाई लामा के प्रभाव का जवाब दिया जा सकें.[27]


चीनी मॉडल के तहत गोपनीय जानकारी एकत्रित करने का काम विविध परंपरागत और गैर-परंपरागत एजेंसियां करती हैं. गैर-परंपरागत एजेंसियों में सरकारी स्वामित्व वाले प्रतिष्ठान, निजी कंपनियां, व्यक्तिगत लोग और चुनिंदा विश्वविद्यालयों का समावेश है. चीनी सेना के लोग, सरकार, कारोबारी और शिक्षाविद्‌ भी दशकों से पश्चिम से गोपनीय जानकारी की चोरी करने का उद्देश्य लेकर एक दूसरे के साथ संगठित होकर काम कर रहे हैं. चोरी की यह व्यवस्था बग़ैर किसी भय के चलती रहती है और चीन की अर्थव्यवस्था और उच्च-तकनीक वाली सेना को मज़बूती प्रदान करती रहती है. उनके मुख्य निशाने पर US होता है जिसे वे हर वर्ष काफ़ी बड़ा नुक़सान पहुंचाते हैं. यह नुक़सान ट्रिलियंस में होता है. ट्रेड सीक्रेट की चोरी को लेकर देश विशेष से जुड़ा डाटा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन IP कमीशन के अनुसार, सभी प्रकार के IP चोरियों के मामले में चीन ही इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (IP) यानी बौद्धिक संपदा का दुनिया में सबसे बड़ा खिलाड़ी है. कमीशन के अनुसार इन चोरियों की वजह से US की अर्थव्यवस्था को सालाना 600 बिलियन US$ का नुक़सान होता है.[28] याद रहे कि US स्थित विभिन्न उद्योगों और क्षेत्र में चीन की ओर से की जा रही तकनीक चोरी की कोशिशों के 1000 से ज़्यादा मामलों की जांच FBI के पास है.[29]

CCP ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से सेना के लगभग 2500 वैज्ञानिकों को विभिन्न देशों में भेज रखा है. यह वैज्ञानिक विदेशों में नागरिक क्षेत्र में मौजूद ज्ञान को लेकर PLA की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने का काम करते हैं. कहा जाता है कि सेना के वैज्ञानिक वहां प्रतिभाओं को ख़ोजने का कार्यक्रम चलाते हैं और शैक्षणिक सहयोग के साथ संयुक्त अनुसंधान पहल का आयोजन कर विभिन्न देशों के पास मौजूद प्रतिभाशाली लोगों को एकजुट करते हैं. यह काम मुख्यतः ड्यूल यूज़ यानी दोहरे उपयोग (मिलिट्री और सिविल यूज़) के लिए किया जाता है. इन गतिविधियों का लाभ चीन को मिलता है. इसके अलावा ये वैज्ञानिक विभिन्न प्रकार की ख़ुफ़िया गतिविधियों में भी लिप्त रहते हैं. इस पहल को स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्री के झंडे तले नेशनल डिफेंस के लिए लॉन्च किया गया था. इसका नेतृत्व PLA की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिफेंस टेक्नोलॉजी करती है. इस यूनिवर्सिटी के साथ 61 नागरिक विश्वविद्यालय जुड़े हैं. अब इन सभी विश्वविद्यालों को लेकर यह पर्दा उठ चुका है कि वे चीन के लिए ख़ुफ़िया गतिविधियों में शामिल हैं.[30] 

 

चीन की देश के भीतर इंफ्लुएंस ऑपरेशंस

चीन के पास अच्छी गुणवत्ता वाले शैक्षणिक संस्थान मौजूद है, जिसका उपयोग वह विद्यार्थियों, जनता की राय बनाने वालों और देश के भविष्य के नेताओं को आकर्षित करने के लिए करता है. चीन में आने वाले अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों की संख्या में काफ़ी वृद्धि देखी गई है. 2002 में जहां यह संख्या 85,000 थी, वहीं 2016 में यह लगभग 420 प्रतिशत बढ़कर 442,000 पहुंच गई है.[31] 2016 में 40 प्रतिशत सभी नए अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को चीन की सरकार की ओर से प्रायोजित किया गया था.[32] चीन में शिक्षा ग्रहण करते हुए इन विद्यार्थियों को चीन के सांस्कृतिक मूल्यों, मापदंड और उसकी नीति संबंधी स्थिति की जानकारी मिलती है. ऐसे में वे विवादास्पद रूप से अपने देश लौटने पर चीन की नीतियों का समर्थन करने लगते हैं. इसके अलावा ने चीन को लेकर विदेशियों में बनी आम धारणा और समझ में सुधार लाने में भी सहायक साबित होते हैं. शिक्षा की आड़ लेकर चीन अपने इंफ्लुएंस ऑपरेशंस को चलाने के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने का काम भी करता है. 2018 में दुनिया भर के 196 देशों के 492,000 विद्यार्थी चीन का दौरा करने आए थे. इन विद्यार्थियों ने इस यात्रा के दौरान 1,004 विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों, विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान और अन्य शैक्षणिक संस्थाओं का दौरा किया था.[33] विदेशी विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए चीन अच्छा-ख़ासा अनुदान भी बांटता है. यह अनुदान ख़ासकर BRI सहयोगी देशों के विद्यार्थियों के बीच बांटा जाता है. 2016 में चीन पहुंचकर शिक्षा ग्रहण करने वाले अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों में दो-तिहाई विद्यार्थी BRI देशों से ही आए थे. इसी वर्ष इन देशों के विद्यार्थियों को 61 प्रतिशत सरकारी छात्रवृत्ति का लाभ दिया गया था. इतना ही नहीं चीनी सरकार की सर्वाधिक छात्रवृत्ति पाने वाले 10 देशों में BRI सहयोगी देशों का ही समावेश था.[34] 2018 में चीन ने BRI के तहत अपना पहला सिल्क रोड स्कूल खोला. यह स्कूल पूर्वी चीन के जिआंगसू प्रांत में स्थित सूझोऊ शहर के रेनमिन विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ था. इस स्कूल को खोलने का उद्देश्य BRI देशों के साथ मित्रता और संबंध बढ़ाने के लिए इन देशों के विद्यार्थियों का उपयोग करना था. चीन आने वाले दक्षिण एशियाई विद्यार्थियों के मामले में आकर्षक छात्रवृत्ति की पेशकश करते हुए चीन, धीरे-धीरे भारत को पीछे छोड़ रहा है. 2016-17 में भारत ने 24,000 एशियाई विद्यार्थियों को अपने यहां उच्च शिक्षा संस्थानों में जगह दी थी, जबकि चीन में 2,25,000 विद्यार्थियों को यह अवसर मुहैया करवाया गया था.[35] दक्षिण एशियाई विद्यार्थियों के मामले में चीन अब उच्चतर शिक्षा लेने वाला पसंदीदा स्थान बन गया है और उसने इसमें भी भारत को पीछे छोड़ दिया है.[36] शिक्षाविदों के बीच भी जागृति, रुचि और अवसर बढ़ाने की कोशिश करते हुए चीन अपने देश की नि:शुल्क यात्राओं का आयोजन कर रहा है.[37] 

 

2008 में चीन ने थाउसेंड टैलेंट्‌स प्लान (TTP) लांच किया. इसका उद्देश्य विदेश में रहने वाले चीनी मूल के वैज्ञानिकों और प्रतिभाओं को नियुक्त करते हुए कथित ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलयान को पलटकर अपने यहां नवाचार प्रेरित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना था. मध्य से लेकर लंबी अवधि वाले रणनीतिक ख़तरों एवं विचारधाराओं का आकलन करने वाली US नेशनल इंटेलिजेंस कौंसिल ने TTP को US तकनीक, बौद्धिक संपदा और ज्ञान की कानूनी और अवैध चोरी को सुगम बनाने और उसे चीन पहुंचाने का माध्यम बताया है.[38] 2008 से 2018 के बीच चीन ने विदेश में रहने वाले लगभग 7,000 चीनी वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और उद्यमियों को आकर्षित करते हुए TTP के माध्यम से स्वदेश लाने में सफ़लता हासिल की थी.[39] इसके अलावा विदेश में रहने वाले युवकों को आकर्षित करने के लिए बनाया गया ‘रूट-सीकिंग’ प्रोग्राम यानी ‘जड़ों की ओर’ कार्यक्रम चीनी भाषा और संस्कृति को विदेशों में बढ़ावा देता है. इस कार्यक्रम ने अपने विभिन्न रोज़गार और छात्रवृत्ति कार्यक्रमों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया है कि प्रतिभासंपन्न कुशल चीनी प्रवासी युवा स्वदेश लौट आएं.[40] इस तरह चीन ने न केवल प्रतिभा पलायन को पलट दिया है, बल्कि वह अनेक चीनी नागरिकों और विदेशियों को भी तकनीक के अवैध हस्तांतरण में सहायता करवाने में भी सफ़ल हो गया है.[41] चीन ने ब्रिटिश सेना के अनेक पायलट्‌स को भी नियुक्त कर लिया है. ये पायलट्‌स अब चीनी सशस्त्र बलों को पश्चिमी युद्ध हवाई जहाज़ और हेलीकॉप्टर्स को पराजित कैसे किया जाए इसका प्रशिक्षण दे रहे है. उसके इस कदम को UK के हितों के लिए ख़तरा माना जा रहा है.[42]

 

GDP में यात्रा और पर्यटन संबंधी योगदान के मामले में 2018 में चीन विश्व में दूसरे स्थान (1.5 ट्रिलियन US$) पर था, जबकि इस क्षेत्र के कारण पैदा होने वाले रोज़गार (79.9 मिलियन रोज़गार) के मामले में दुनिया में नंबर एक पर था. उसी वर्ष चीन ने अपने पर्यटन संबंधी बुनियादी सुविधाओं पर 155 बिलियन US$ का निवेश किया. इस मामले में उसका आंकड़ा US की ओर से किए गए निवेश 176.3 बिलियन US$ के मुकाबले दूसरे नंबर पर था. कुल मिलाकर 2018 में चीन की GDP में यात्रा और पर्यटन का योगदान 11 प्रतिशत का था. 2028 तक यात्रा और पर्यटन की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था को किसी भी अन्य देश के मुकाबले ज़्यादा फ़ायदा होने की संभावना जताई जा रही है. 2028 तक इस क्षेत्र का उसकी GDP में योगदान 2.7 ट्रिलियन US$ का हो जाएगा. जैसे-जैसे चीन आने वाले विदेश यात्रियों की संख्या बढ़ती जायगी, वैसे-वैसे चीन अपने घरेलू पर्यटन में ख़र्च को बढ़ाता जाएगा. 2028 तक यात्रा और पर्यटन क्षेत्र में चीन की ओर से लगभग 310 बिलियन US$ का निवेश किए जाने की संभावना है. यह आंकड़ा उसके द्वारा 2017 में किए गए ख़र्च से दोगुना होगा और यह US की ओर से होने वाले संभावित ख़र्च से 303 बिलियन US$ से भी ज़्यादा है. इसी प्रकार 2018 से 2028 के बीच चीन के भीतर यात्रा और पर्यटन क्षेत्र से उसकी GDP में होने वाला योगदान सालाना 6.5 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है.[43] चीन के प्रति विदेशी नागरिकों के आकर्षण का इस्तेमाल CCP वीज़ा नियंत्रण में भी कर रहा है. वह कभी नर्म तो कभी कठोर रुख़ अपनाते हुए या तो विदेशी नागरिकों को अपने यहां आने के लिए प्रोत्साहित करता है या फिर उनकी यात्राओं को प्रतिबंधित कर देता है.

 

चीन ‘सिस्टर सिटीज़’ (या सिटी डिप्लोमेसी) की अवधारणा के मामले में दुनिया का मार्गदर्शक है. वह ‘सिस्टर सिटीज़’ का उपयोग पीपल-टू-पीपल यानी नागरिक से नागरिक संबंध को बढ़ावा देकर मज़बूत करने के लिए चीनी शहरों के साथ दूसरे देश के शहरों को जोड़ता है. 2013 में BRI के लॉन्च के बाद इस परियोजना में शामिल सहयोगी देशों के साथ उसके सिस्टर-सिटी अरेंजमेंट्‌स में वृद्धि हुई है. इस व्यवस्था में शामिल 2,600 सिस्टर सिटीज़ में BRI सहयोगी देशों की लगभग 700 सिस्टर सिटीज़ शामिल हैं.[44] इस व्यवस्था के तहत म्यूनिसिपल यानी नगर निगम और व्यापारिक नेताओं के स्तर पर वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मज़बूत किया जाता है. ग्रासरुट लेवल यानी जड़ों के स्तर पर अपने दायित्वों की आड़ लेकर चीन वैश्विक प्रशासन को नया आकार देकर चीन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली बातचीत को नियंत्रित करना चाहता है. इसके लिए वह ऐसे माध्यम को भी नियंत्रित करना चाहता है जिसका सहारा लेकर ये बातचीत होती है. मसलन वह इस बात को भी अपने नियंत्रण में लेना चाहता है कि व्यक्तिगत तौर पर, सरकारी स्तर अथवा कारोबारी स्तर पर उसके साथ बातचीत किस माध्यम या कौन से चैनल से होगी. स्मार्ट सिटीज़ इस रणनीति को संगठित करती है और CCP को सहयोग और बलपूर्वक तारीकों से नियंत्रण हासिल करने की रेखा को अस्पष्ट बनाए रखने में सहायक साबित होती है.[45] सिस्टर सिटी व्यवस्था को लेकर बातचीत अक्सर थर्ड-पार्टी संगठनों के माध्यम से की जाती है. मसलन चाइना इंटरनेशनल फ्रेंडशीप सिटीज़ एसोसिएशन, जो चीनी शहरों अथवा प्रांतों का अन्य देशों के शहरों अथवा प्रांतों के साथ जोड़ी बनाने में सहायता करता है. विश्व स्तर पर अब अनेक देश यह समझ गए है कि चीन के लिए यह ‘टाउन ट्विनिंग’ उसका इस क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने का एक सफल माध्यम ही है. याद रहे कि 2020 में तीन स्वीडिश शहरों ने चीनी शहरों के साथ अपना सहयोग समाप्त कर दिया था.[46]

 

इसके अलावा चीन अपने यहां की मेडिकल टीमों को भी विदेशों में भेजता है. ये टीमें वहां के विशेषज्ञों के साथ प्रशिक्षण लेकर बातचीत करती हैं. ‘बड्डी सिस्टम’ के तहत चीन के कुछ चुनिंदा प्रांतों की मेडिकल टीमों को ‘बड्डी’ अफ्रीकन देशों में भेजा जाता है. चीन की केंद्रीय सरकार इसे सहायता मुहैया करवाती है, लेकिन इस पर अमल अफ्रीकी देशों में स्थानीय स्तर पर ही किया जाता है. ऐसा लगता है कि चीन ‘प्रोविंस टू कंट्री’ मॉडल का उपयोग एक और अधिक अफ्रीकन सिस्टर कंट्री को अनुदान मुहैया करवाने के लिए कर रहा है.[47]

 

शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद से ही चीन ने एक विस्तृत राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था का निर्माण करने के लिए अनेक कानून और विनियमनों को पारित किया है. इसका उद्देश्य कथित ख़तरों से देश की रक्षा करना और अपनी सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों को मिले कानूनी आधार को मज़बूती प्रदान करना है. पारित किए गए कानूनों में काउंटर-एस्पियोनेज यानी गुप्तचर-रोधी (2014), राष्ट्रीय सुरक्षा (2015), आतंकवाद-रोधी (2015), साइबर सिक्योरिटी (2016) तथा विदेशी NGO प्रबंधन (2016) के साथ-साथ आपराधिक कानून में नौंवा संशोधन (2015), अधिवक्ताओं और लॉ फर्म्स के प्रबंधन की प्रणाली (दोनों 2016) तथा ड्राफ्ट इन्क्रिप्शन एंड स्टैंर्डडाइज़ेशन लॉ का समावेश है.[48] ये कानून और विनियमन सीधे-सीधे विदेशी देशों पर लागू नहीं होते, लेकिन ये चीन में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों या चीन में पर्यटन, शिक्षा या फिर रोज़गार के लिए आने वाले विदेशी नागरिकों पर लागू होते हैं.

 

निष्कर्ष

अपनी तीव्र गति से हो रही आर्थिक वृद्धि और अपने नागरिकों के बढ़ते सहयोग के कारण चीन यह समझने लगा है कि भविष्य में दो देशों के बीच संबंध मज़बूत जनसमर्थन के बग़ैर टिकाऊ नहीं रह सकते. इसी बात को ध्यान में रखकर बीजिंग ने 21 वीं शताब्दी के आरंभ से ही एक्सचेंज डिप्लोमेसी के विभिन्न साधनों का उपयोग करते हुए चीनी और विदेशी नागरिकों के बीच जड़ों के स्तर पर संबंध मज़बूत करने की कोशिश की है, ताकि विश्व स्तर पर चीन को लेकर बनने वाली राय उसके पक्ष में रह सके. इसमें वह अपने प्रवासी नागरिक, शैक्षणिक तथा प्रतिभा कार्यक्रम, पर्यटन का पब्लिक डिप्लोमेसी के अन्य साधनों के साथ एकीकरण करते हुए उसका उपयोग कर रहा है. चीन ने छात्रवृत्ति पहल का उपयोग करते हुए विदेशियों को भी लुभाने के लिए विस्तृत कदम उठाए हैं ताकि वह जनता की राय को आकार देने में सफल हो सकें. एक्सचेंज डिप्लोमेसी के माध्यम से चीन के इंफ्लुएंस ऑपरेशंस उसे भविष्य में वैश्विक राय को आकार देने में सहायता करते हुए सक्षम बनाएंगे. इसी तरह वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे चीन के स्पष्ट प्रभाव ने US, पश्चिमी यूरोप समेत अन्य मज़बूत लोकतांत्रिक देशों को चीन के शायद परोपकारी दिखाई देने वाले विस्तारवाद को चुनौती देने पर मजबूर कर दिया है. हाल के वर्षों में COVID-19 के मुद्दे पर हुई आलोचना और BRI संबंधी नीतियों के कर्ज़ का जाल होने से जुड़ी चिंताओं के कारण चीन की पब्लिक डिप्लोमेसी संबंधी कोशिशों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है. यही क्रम भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है, लेकिन देखना यह है कि क्या चीन अपनी एक्सचेंज डिप्लोमेसी और इंफ्लुएंस ऑपरेशंस में सुधार करते हुए इसका जवाब देगा या नहीं.

End Notes

[1] Zhuang Guotu, "The overseas Chinese: A long history," The UNESCO Courier, September 21, 2021, https://courier.unesco.org/en/articles/overseas-chinese-long-history.

[2] Hong Liu and Els van Dongen, "The Chinese diaspora," Oxford Bibliographies, June 8, 2017, https://www.oxfordbibliographies.com/display/document/obo-9780199920082/obo-9780199920082-0070.xml.

[3] Eric V Larson et al, Foundations of Effective Influence Operations: A Framework for Enhancing Army Capabilities, Santa Monica: RAND Corporation, 2009, pp 2

[4] Peter Mattis, "China’s Misunderstood Spies," The Diplomat, October 31, 2011, https://thediplomat.com/2011/10/chinas-misunderstood-spies/.

[5] Nicholas Eftimiades, "The 5 Faces Of Chinese Espionage: The World’s First ‘Digital Authoritarian State’," Breaking Defense, October 22, 2020, https://breakingdefense.com/2020/10/the-5-faces-of-chinese-espionage-the-worlds-first-digital-authoritarian-state/.

[6] David Wise, "America’s Other Espionage Challenge: China," The New York Times, March 5, 2018, https://www.nytimes.com/2018/03/05/ opinion/china-espionage.html.

[7] Samantha Custer et al., "Ties That Bind: Quantifying China's Public Diplomacy and Its "Good Neighbor" Effect," (Williamsburg, VA: AidData at William & Mary, 2018), March 21, 2018, pp12, https://www.aiddata.org/publications/ties-that-bind,

[8] Samantha Custer et al., “Silk Road Diplomacy: Deconstructing Beijing’s Toolkit to Influence South and Central Asia,” (Williamsburg, VA: AidData at William & Mary, 2019), December 2019, pp8 https://docs.aiddata.org/ad4/pdfs/Silk_Road_Diplomacy_Report.pdf.

[9] Samantha Custer et al., Corridors of Power: How Beijing Uses Economic, Social, and Network Ties to Exert Influence Along the Silk Road, (Williamsburg, VA: AidData at William & Mary, 2021), pp23, https://aiddata.org/publications/corridors-of-power.

[10] Zhuang Pinghui, "Confucius institutes rebrand after overseas propaganda and influence rows," South China Morning Post, July 4, 2020, https://www.scmp.com/news/china/diplomacy/article/3091837/chinas-confucius-institutes-rebrand-after-overseas-propaganda.

[11] Gerry Groot, "The long reach of China’s United front work," Lowy Institute, November 6, 2017, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/long-reach-china-s-united-front-work.

[12]  Pete Williams, "FBI Director: Nearly Half of All Counterintelligence Cases Relate to China," NBC News, July 7, 2020, https://www.nbcnews.com/politics/national-security/fbi-director-nearly-half-all-counterintelligence-cases-relate-china-n1233079.

[13] Amy Hawkins, "Explainer: China’s Covert Overseas ‘police stations’," The Guardian, April 20, 2023, https://www.theguardian.com/world/2023/apr/20/explainer-chinas-covert-overseas-police-stations.

[14] Matt Delaney, "China establishes police station in New York City," The Washington Times, October 2, 2022, https://www.washingtontimes.com/news/2022/oct/2/report-china-operates-overseas- police-stations-tra/.

[15] “New exposé on the Chinese police stations around the world,” Investigative Journalism Reportika, December 16, 2022, https://ij-reportika.com/new-expose-on-the-chinese-police-stations-around-the-world/.

[16] Gauri Agarwal, “Comparing Indian and Chinese Engagement with their Diaspora,” Institute of Chinese Studies Analysis, no. 44 (April 2017), https://www.icsin.org/uploads/2017/05/12/79170556f0718143783ce8d80f142f84.pdf.

[17] Joshua Philipp, "China-Russia’s Relationship Health in Question; Leaked Documents Reveal China’s 220,000 Spies," NTD, September 1, 2020, https://www.ntd.com, September 1, 2020, https://news.ntd.com/china-russias-relationship-health-in-question-leaked-documents-reveal-chinas-220000-spies_502453.html.

[18] Samantha Custer et al., “Influencing the Narrative: How the Chinese government mobilises students and media to burnish its image,” Washington DC, US Department of State, pp 4, https://docs.aiddata.org/ad4/pdfs/Influencing_the_Narrative_Report.pdf.

[19]  Ken Dilanian, “American universities are a soft target for China’s spies, say U.S. intelligence officials,” NBC NewsFebruary 3, 2020, https://www.nbcnews.com/news/china/american-universities-are-soft-target-china-s-spies-say-u-n1104291.

[20] Timothy Heath, “Beijing’s Influence Operations Target Chinese Diaspora,” War On The Rock, March 1, 2018, https://warontherocks.com/2018/03/beijings-influence-operations-target-chinese-diaspora/.

[21] David Zweig and Zoe Ge, "What Makes or Breaks the Fortunes of Chinese Students Returning from Abroad?," South China Morning Post, July 27, 2018, https://www.scmp.com/comment/insight-opinion/asia/article/2157081/how-chinese-students-who-return-home-after-studying.

[22] Heath, "Beijing's Influence Operations"

[23] Heath, "Beijing's Influence Operations"

[24]Is China Attracting Foreign Visitors?”, China Power, August 26, 2020, https://chinapower.csis.org/tourism/.

[25]  Oliver Smith, "The Unstoppable Rise of the Chinese Traveller – Where Are They Going and What Does it Mean for Overtourism?," Travel Agent Central, April 13, 2018, https://www.travelagentcentral.com/running-your-business/unstoppable-rise-chinese-traveller-where-are-they-going-and-what-does-it-mean.

[26] Ethan Meick and Nargiza Salidjanova, China’s Response to U.S.-South Korean Missile Defense System Deployment and Its Implications, US-China Economic and Security Review Commission, 2017, https://www.uscc.gov/research/chinas-response-us-south-korean-missile-defense-system-deployment-and-its-implications.

[27]  P. Stobdan, “As China Pushes for a ‘Buddhist’ Globalisation, India Isn’t Making the Most of Its Legacy,” The Wire, May 11, 2017, https://thewire.in/diplomacy/india-china-buddhist.

[28] Eric Rosenbaum, "1 in 5 Corporations Say China Has Stolen Their IP Within the Last Year: CNBC CFO Survey," CNBC, March 1, 2019, https://www.cnbc.com/2019/02/28/1-in-5-companies-say-china-stole-their-ip-within-the-last-year-cnbc.html.

[29] Catalin Cimpanu, "FBI is Investigating More Than 1,000 Cases of Chinese Theft of US Technology," ZDNET, February 8, 2020, https://www.zdnet.com/article/fbi-is-investigating-more-than-1000-cases-of-chinese-theft-of-us-technology/.

[30]  “China Bought Influence in Bollywood, Universities, Think-tanks, Tech Industry: LSA Study Report,” Law and Society Alliance, September 5, 2021, https://lawandsocietyalliance.in2021/09/05/china-bought-influence-in-bollywood-universities-think-tanks-tech-industry-lsa-study-report/.

[31] Custer et al., “Influencing the Narrative,” pp 12.

[32]  “Soft power diplomacy of China in shreds amid pandemic,” Economic Times, December 26, 2020, https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/soft-power-diplomacy-of-china-in-shreds-amid-pandemic/articleshow/79964042.cms?from=mdr.

[33]  Wayne A. Miller, "China emerges as the No.1 study overseas vacation spot in Asia," War on Brain, February 23, 2023, https://waronbrain.com/china-emerges-as-the-no-1-study-overseas-vacation-spot-in-asia/.

[34] Custer et al., “Silk Road Diplomacy,” pp 22.

[35] Kanti Bajpai Kanti, “Why does China consistently beat India on soft power?,” Indian Express, June 23, 2021, https://indianexpress.com/article/opinion/columns/why-does-china-consistently-beat-india-on-soft-power-7371094/.

[36] Constantino Xavier and Aakshi Chaba, “China is the new hub for South Asian students,” Hindustan Times, March 12, 2020, https://www.hindustantimes.com/analysis/china-is-the-new-hub-for-south-asian-students/story-ab5ugWNnxaOeSUR8nnRnEN.html.

[37]

[38] Jing Meng, "China mutes volume on Thousand Talents Plan as US spy concerns rise but scientists still covet funding," ZDNET, December 8, 2018, https://www.zdnet.com/article/fbi-is-investigating-more-than-1000-cases-of-chinese-theft-of-us-technology/.

[39] Meng, "China Mutes Volume."

[40] Gauri Agarwal, "Like China, can Modi harness the potential of the Indian diaspora?," Wion, September 19, 2017,  https://www.wionews.com/world/like-china-can-modi-harness-the-potential-of-the-indian-diaspora-20337.

[41]  Meng, "China Mutes Volume."

[42] Deborah Haynes, "China's armed forces recruiting dozens of British ex-military pilots in 'threat to UK interests'," Sky News, October 18, 2022, https://news.sky.com/story/chinas-armed-forces-recruiting-dozens-of-british-ex-military-pilots-in-threat-to-uk-interests-12723395.

[43] “Is China Attracting Foreign Visitors”

[44] Custer et al., “Silk Road Diplomacy,” pp 8.

[45] Cristina Maza, "Experts Warn China's Technology Could Spread Authoritarianism Around the World," News Week, May 17, 2019, https://www.newsweek.com/china-technology-authoritarianism-congress-communist-party-1428827.

[46] Jianli Yang, "The Red Alert: China’s sister-city alliances are more politically-motivated than it appears, here’s the reality," News Mobile, July 26, 2020, https://newsmobile.in/articles/2020/07/26/the-red-alert-chinas-sister-city-alliances-are-more-politically-motivated-than-it-appears-heres-the-reality/.

[47] Long Wang and Joshua Bateman, "China’s Medical Aid in Africa," The Diplomat, March 14, 2018, https://thediplomat.com/2018/03/chinas-medical-aid-in-africa

[48] Murray Scot Tanner, “Beijing’s New National Intelligence Law: From Defense to Offense,” Lawfare, July 20, 2017, https://www.lawfareblog.com/beijings-new-national-intelligence-law-defense-offense.

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