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अगर चीन शक्ति प्रदर्शन के जरिए ताइवान का स्टेटस बदलता है तो हिंद प्रशांत पर तो इसका प्रभाव होगा ही, उससे बड़ा प्रभाव इसका ग्लोबल ऑर्डर पर पड़ेगा.
अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान आकर तो चली गईं, मगर चीन ने अपने आक्रामक रुख़ में कोई कमी नहीं की. रविवार को लाइव फायर ड्रिल का पहला चरण खत्म हुआ और चीन ने कह दिया कि वह और लाइव फायर ड्रिल करेगा. अपने बड़े जहाज, मिसाइलें और एडवांस तकनीक तैनात करके वह अमेरिका और ताइवान, दोनों को अपना गुस्सा दिखा रहा है. दुनिया को बताना चाह रहा है कि वह अब सन 1996 वाला चीन नहीं है. 1996 में जब ताइवान के नेता अमेरिका गए थे, तब भी चीन ने युद्धाभ्यास करके शक्ति प्रदर्शन किया था. वही फॉर्म्युला वह इस बार भी रिपीट कर रहा है, लेकिन और अधिक आक्रामकता के साथ. तब चीन खुद को उभरता हुआ देश कहता था. आज वह अपने आपको एक सुपर पावर के रूप में देखता है.
1996 में जब ताइवान के नेता अमेरिका गए थे, तब भी चीन ने युद्धाभ्यास करके शक्ति प्रदर्शन किया था. वही फॉर्म्युला वह इस बार भी रिपीट कर रहा है, लेकिन और अधिक आक्रामकता के साथ. तब चीन खुद को उभरता हुआ देश कहता था. आज वह अपने आपको एक सुपर पावर के रूप में देखता है.
ताइवान के मामले में चीन के मौजूदा रुख के पीछे दो कारक हैं. पहला, चीन ने यह कहकर कि पेलोसी ताइवान ना जाएं, खुद को परेशानी में डाल लिया. एक बार जब ऐसा बयान दे दिया, तब उसके सामने शक्ति प्रदर्शन के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं रहा. दूसरा कारक ज्यादा गंभीर है. इसके कई पहलू हैं:
जो बाकी देश हैं हिंद-प्रशांत में, वे देख रहे हैं कि किस तरह से चीन एक छोटे से देश पर अपनी ताकत दिखा रहा है. ऐसे में साउथ-ईस्ट एशिया या हिंद महासागर के छोटे देश चीन से और सावधान हो जाएंगे.
लेकिन सवाल है कि इससे चीन को फायदा होगा या नुकसान? यह अभी तक साफ नहीं है, क्योंकि इससे कुछ संभावनाएं बन रही हैं. एक तो ताइवान के अंदर चीन का विरोध तेजी से बढ़ेगा, लोगों में आजादी की भावना और प्रबल होगी. दूसरे, जो बाकी देश हैं हिंद-प्रशांत में, वे देख रहे हैं कि किस तरह से चीन एक छोटे से देश पर अपनी ताकत दिखा रहा है. ऐसे में साउथ-ईस्ट एशिया या हिंद महासागर के छोटे देश चीन से और सावधान हो जाएंगे. वहीं, हिंद-प्रशांत में मौजूद भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, इंडोनेशिया और फिलिपींस जैसे देशों के आर्थिक सुधारों व विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा. इसका खामियाजा चीन को लंबे समय तक भुगतना पड़ सकता है.
ताइवान के आसपास चीन अपनी ताकत तो दिखा रहा है, पर वह अच्छे से जानता है कि ताइवान पर सीधे हमला नहीं कर सकता. ताइवान अपनी रक्षा कर सकता है. वह यूक्रेन जैसा नहीं है. उसकी डिफेंसिव तकनीकें बहुत अच्छी हैं. वह तकनीकी रूप से बहुत एडवांस देश है. फिर ताइवान के पास पिछले कई दशकों से अमेरिका का भी बड़ा डिफेंस सपोर्ट है. इसीलिए चीन बस शक्ति प्रदर्शन ही कर सकता है, और कुछ नहीं. इससे यह भी रेखांकित होता है कि चीन और अमेरिका के बीच की समस्या अब शीतयुद्ध से भी बड़ी होती जा रही है. इसे शीतयुद्ध नहीं कह सकते. यह कई मायनों में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चले शीत युद्ध से अलग है.
कई लोगों ने कहा है कि पेलोसी ने चीन को भड़काया. लेकिन अगर हम ताइवान का इतिहास समझें, तो वहां आजादी और अपनी अलग पहचान बनाने की तलब बहुत ज्यादा है. इसे अगर हम अमेरिका की गलती मानते हैं तो ताइवान के साथ अन्याय होगा. अंतत: यह ताइवान और उसके लोगों के ऊपर है कि वे क्या चाहते हैं.
ताइवान अपनी रक्षा कर सकता है. वह यूक्रेन जैसा नहीं है. उसकी डिफेंसिव तकनीकें बहुत अच्छी हैं. वह तकनीकी रूप से बहुत एडवांस देश है. फिर ताइवान के पास पिछले कई दशकों से अमेरिका का भी बड़ा डिफेंस सपोर्ट है.
कोई भी देश इस तरह से किसी के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन करे तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उसे गलत ठहराना चाहिए. चीन जिस तरह का दबाव ताइवान पर डाल रहा है, वह अपने आप में गलत है. ध्यान रहे, यह सिर्फ ताइवान का मसला नहीं है. साउथ चाइना सी से लेकर भारत के साथ सीमा विवाद तक कई ऐसे मसले हैं, जहां चीन अपनी ताकत दिखाता रहा है. अगर चीन शक्ति प्रदर्शन के जरिए ताइवान का स्टेटस बदलता है तो हिंद प्रशांत पर तो इसका प्रभाव होगा ही, उससे बड़ा प्रभाव इसका ग्लोबल ऑर्डर पर पड़ेगा.
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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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