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अगर BRI के दूसरे दशक को . पहले दशक के मुकाबले ज्यादा कामयाब बनाना है तो चीन के नजरिए में बदलाव अनिवार्य होगा.
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ( BRI ) के दूसरे दशक में प्रवेश के मौके पर विकासशील देशों की इकॉनमी में अरवों डॉलर का निवेश जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पिछले हफ्ते BRI फोरम में कहा कि ‘चीन अच्छा प्रदर्शन तभी कर सकता है जब दुनिया अच्छा प्रदर्शन कर रही हो… जब चीन अच्छा करता है तो दुनिया और अच्छा करती है.’ यही नहीं, जैसी कि अपेक्षा थी, पश्चिमी देशों पर निशाना साधते हुए उन्होंने यह भी कहा कि हम इकतरफा पाबंदियां लगाने, आर्थिक दादागिरी दिखाने और सप्लाई चेन में बाधा डालने के खिलाफ हैं.
BRI की उपलब्धियां बताते हुए उन्होंने कहा कि कैसे उनकी इस पहल ने इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी को उभरते वैश्विक आर्थिक विमर्श के केंद्र में लाकर विकासशील दुनिया की मदद की है.
पिछली बार के BRI फोरम में आए 37 नेताओं के मुकाबले इस बार इसमें महज 24 वैश्विक नेता मौजूद थे.
उन्होंने बताया कि कैसे चीन ने एक ग्लोबल नेटवर्क तैयार करने की कोशिश की है जिसमें इकॉनमिक कॉरिडोर, इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टेशन रूट और इन्फॉर्मेशन हाईवे के साथ-साथ रेलवे, रोड, एयरपोर्ट्स, पाइपलाइंस और पॉवरग्रिड भी होंगे. इनसे संबंधित देशों में सामान, पूंजी, और मानव संसाधन का फ्लो बढ़ेगा और हजारों साल पुराने सिल्क रोड को आज के दौर में नई अहमियत मिलेगी.
शी ने यह संकेत देने का भी प्रयास किया कि वह BRI में कुछ बदलाव लाने को तैयार हैं ताकि मुख्यतया डिजिटल इकॉनमी और सस्टेनेबल ग्रीन डिवेलपमेंट पर जोर देते हुए उच्चस्तरीय विकास की ओर बढ़ा जा सके.
समस्या इसके अमल के तरीकों में थी, जिसकी वजह से न केवल बहुत सारे देश कर्ज के जाल में फंस गए बल्कि कई प्रॉजेक्ट वित्तीय व पर्यावरणीय कसौटियों पर कमजोर साबित हुए और ऐसे केंद्रीकृत प्रॉजेक्ट की व्यावहारिकता सवालों के घेरे में आई .
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इस फोरम के जरिए शी चिनफिंग को यह भी दिखाना था कि BRI प्रॉजेक्ट को लेकर उनके देश की प्रतिबद्धता कायम है. यह ऐसा प्रॉजेक्ट है जो न केवल उभरते ग्लोबल ऑर्डर में चीन की जिओ-पॉलिटिकल पोजिशनिंग से जुड़ा है वल्कि जिओ-इकॉनमिक्स के लिहाज से भी उतना ही अहम है.
BRI में कुछ बदलाव लाने को तैयार
पर आधिकारिक रूप से हस्ताक्षर नहीं किया है, फिर भी पुतिन BRI फोरम के लिए चीन गए.
फोरम में एक और दिलचस्प मौजूदगी रही तालिबान की, जिसका मकसद अमेरिका को यह संदेश देना था कि उसके मंसूबे तोड़ने के लिए ही सही, पर चीन इस ‘अछूत’ देश के साथ अपने संपर्क को और बढ़ाने वाला है. चीन ने अभी तक तालिबान को कूटनीतिक मान्यता नहीं दी है लेकिन पिछले महीने अफगानिस्तान में अपना राजदूत भेजने वाला पहला देश जरूर बन गया है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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