Author : Sauradeep Bag

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Published on Jun 07, 2024 Updated 0 Hours ago

AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग का ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उद्योग और नियामक संस्था दोनों की ओर से चल रहे प्रयासों को जारी रखना होगा. इसके उपयोग को लेकर जो उम्मीद बंधी है, उसके बावजूद इसे अपनाने के फ़ैसले से कुछ ज़ोख़िम भी जुड़े हुए हैं.

AI और क्रेडिट स्कोरिंग: एल्गोरिदम से होने वाले फायदे और ज़रूरी सतर्कता

हाल के वर्षों में उभरते हुए बाज़ारों के लिए क्रेडिट यानी ऋण देने के परिदृश्य में एक परिवर्तन की लहर चलने लगी है. यह लहर क्रेडिट स्कोर की गणना करने की पद्धति को मूल से ही बदलने वाली है. ऐतिहासिक रूप से उभरते हुए बाज़ारों के लिए क्रेडिट स्कोरिंग यानी ऋण लेने की क्षमता का पता लगाने के लिए रोज़गार और आय संबंधी इतिहास को देखा जाता था. इस वज़ह से बैंकिंग क्षेत्र के बाहर या ऐसे लोग जिनके पास औपचारिक रोज़गार नहीं थे, वे ऋण पाने के लिए लगने वाली कड़ी शर्तों को पूरा नहीं कर पाते थे और लाभ पाने की रेस से बाहर हो जाते थे. लेकिन अब कुछ ऐसे नवाचार दिखाई दे रहे है, जो इन क्षेत्रों में क्रांति लाते हुए आर्थिक आजादी दिलाएंगे.

इस लहर को बुनियादी सुविधाओं में हुए महत्वपूर्ण विकास से ताकत मिल रही है. विशेष तौर पर इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्टफोन का उपयोग करने वालों की संख्या में व्यापक विस्तार इसका एक महत्वपूर्ण कारण है. 

क्रेडिट स्कोरिंग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तथा मशीन लर्निंग (ML) का एकीकरण चल रहा है, लेकिन अब इस प्रगतिशील तकनीक के एकीकरण की प्रक्रिया को देश के विकास लक्ष्यों के साथ एक ही कतार में खड़ा करने का काम शुरू हुआ है. बैंक तथा स्टार्टअप्स समेत समूचे क्षेत्र में काम करने वाले लोग और संस्थान इन तकनीकों को अपना रहे हैं. ऐसे में नागरिकों तक वित्तीय सेवाओं को पहुंचाने की क्षमता में भी वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था भी तेजी से विस्तारित हो रही है. इस नवाचार का नेतृत्व पर्यायी डाटा स्रोत, AI, और ML एल्गोरिद्‌म्स के साथ-साथ मुस्तैद क्लाउड प्लेटफॉर्म कर रहे हैं. इन तकनीकों का उपयोग करते हुए ऐसे वर्ग के लिए क्रेडिट स्कोर तैयार किया जा रहा है, जिसे अंडरबैंक्ड कहा जाता है. अब इस वर्ग के लिए क्रेडिट स्कोर उपलब्ध होने की वज़ह से बैंक ऐसे लोगों और समुदायों तक बेहतर वित्तीय समाधान पहुंचाने में सफ़ल हो रहे हैं. ये लोग परंपरागत रूप से आधिकारिक वित्तीय संस्थानों की पहुंच से ही बाहर रहे थे. AI के उपयोग को लेकर बंधने वाली आशा के बावजूद इस पर अमल के साथ कुछ ज़ोख़िम भी जुड़े हुए हैं.


डाटा के सहयोग से घटती दूरी 

भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में क्रेडिट स्कोरिंग के आधार को नया आकार देने में डाटा एक अहम ताकत बनकर उभरा है. परंपरागत व्यवस्था में नियम बेहद कड़े होते थे. इस वज़ह से अंडरबैंक्ड आबादी को इस व्यवस्था से बाहर ही रहना पड़ता था. इसका कारण यह था कि इन लोगों के पास आधिकारिक रूप से ऋण लेने के इतिहास को बताने वाले दस्तावेज़ नहीं होते थे और न ही इन लोगों की बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच होती थी. लेकिन अब एक परिवर्तन की लहर चली है. इस लहर को बुनियादी सुविधाओं में हुए महत्वपूर्ण विकास से ताकत मिल रही है. विशेष तौर पर इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्टफोन का उपयोग करने वालों की संख्या में व्यापक विस्तार इसका एक महत्वपूर्ण कारण है. 

 

इस विकास के साथ हो रही तरक्की और तीव्र गति से विकसित होकर उभरे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अल्टरनेटिव डाटा सोर्स के संगम से एक परिवर्तनकारी लहर उठ रही है. गैर-परंपरागत डाटा जैसे यूटिलिटी भुगतान और नेटवर्क उपयोग पद्धति का उपयोग करते हुए वित्तीय संस्थान ज़्यादा समावेशी क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल्स विकसित कर सकते हैं. किसी व्यक्ति की साख़ या फिर उस व्यक्ति की उधार लेने की क्षमता का पता लगाने के लिए AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग को आधुनिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधि कहा जा सकता है. परंपरागत व्यवस्था में यह पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति के उधार और आय संबंधी इतिहास को देखा जाता था, लेकिन AI आधारित प्रणाली में विविध प्रकार के डाटा स्रोत, जैसे कि डिजिटल फुटप्रिंट, का उपयोग भी क्रेडिट स्कोरिंग के लिए किया जा सकता है. ऐसा होने पर किसी व्यक्ति के परंपरागत ऋण लेने के इतिहास को देखे बगैर भी उसका मूल्यांकन संभव है. यह मूल्यांकन करने के लिए पर्यायी डेटा स्रोत जैसे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन, सोशल मीडिया इंटरेक्शन, उसकी इंटरनेट का उपयोग करने की आदत यानी ब्राउजिंग हिस्ट्री या मोबाइल ऐप यूसेज को आधार बनाया जा सकता है. 

इसमें से कुछ समस्याएं तत्काल दिखाई देती है, जबकि कुछ के लिए गहराई से विचार किया जाना आवश्यक है. नीति निर्माताओं और अहम हितधारकों को इसे लेकर सावधान रहने की आवश्यकता है. 


भारत में जहां उसकी आबादी के एक बड़े हिस्से के पास स्थापित ऋण इतिहास उपलब्ध नहीं है, वहां इस मॉडल को लागू किए जाने पर ज़्यादा लोगों तक वित्तीय सेवाओं को पहुंचाया जा सकता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा अल्टरनेटिव डाटा का विवेक के साथ इस्तेमाल करते हुए वित्तीय संस्थान, निजी लोगों और कारोबारियों को सशक्त बनाते हुए ऋण, शिक्षा तथा वित्तीय सुरक्षा के द्वार खोल सकते हैं. इस तरह का बदलाव न केवल लचीले विकास को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है, बल्कि इससे सभी के लिए एक समान आर्थिक परिदृश्य को विकसित किया जा सकता है. हालांकि अन्य क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एकीकरण की वज़ह से काफ़ी चिंताएं देखी गई, यहां भी इन चिंताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए. 

 

जोखिम उठाओ, इनाम पाओ

दरअसल AI, अल्टरनेटिव और अनस्ट्रक्चर्ड यानी पर्यायी और असंगठित डाटा का उपयोग करते हुए निजी व्यक्तियों का क्रेडिट स्कोर तैयार कर सकता है. उसकी इस क्षमता के बावजूद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की कुछ समस्याएं जन्मजात है. इसमें से कुछ समस्याएं तत्काल दिखाई देती है, जबकि कुछ के लिए गहराई से विचार किया जाना आवश्यक है. नीति निर्माताओं और अहम हितधारकों को इसे लेकर सावधान रहने की आवश्यकता है. सेंट्रल बैंकर्स यानी केंद्रीय बैंकर्स को यह बात अच्छे से पता है कि केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अल्टरनेटिव डाटा सोर्स पर आधारित रहना एक बेहद आसान समाधान तो दिखाई देता है, लेकिन इसके आसपास के फैक्टर्स यानी कारकों पर भी ध्यान दिया ही जाना चाहिए. RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुरुआत से ही इस बात पर बल दिया है कि बैंक, NBFCs और फिनटेक प्रतिष्ठानों को प्री-सेट यानी पूर्व निर्धारित एल्गोरिदम का सावधानी से उपयोग करते हुए क्रेडिट असेसमेंट यानी कर्ज़ आकलन करना चाहिए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि ये एल्गोरिदम्स मजबूत होने चाहिए और इनका नियमित परीक्षण होना चाहिए. इसके साथ ही इनके प्रभाव को बरकरार रखने के लिए समय-समय पर इनका मूल्यांकन किया जाना भी ज़रूरी है. वित्तीय संस्थानों के एल्गोरिदम, AI का उपयोग करते हुए ML साधनों पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं. ऐसे में RBI वित्तीय संस्थाओं से अपने एल्गोरिदम्‌स को रीकैलिब्रेट करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है. यह रिकैलिब्रेशन वित्तीय पारिस्थितिकी प्रणाली की बदलती डायनामिक्स के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए ज़रूरी है. इसी प्रकार क्षेत्रों के बारे में नई अंतर्दृष्टि, कंज्यूमर सेगमेंट और ग्लोबल ट्रेंड्स को शामिल करने के लिए भी यह रीकैलिब्रेशन महत्वपूर्ण हो जाता है. गवर्नर दास ने इस प्रकार के एल्गोरिदम्स पर अत्यधिक निर्भरता से बचने को महत्वपूर्ण बताकर उभरते वित्तीय परिदृश्य में इन एल्गोरिदम्स की सटीकता और प्रासंगिकता को सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया था.

 

सही संतुलन हासिल करना

 

विश्व के सामने मौजूद चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए नई और उभरती हुई तकनीकों का एक साथ उपयोग करने की ठोस कोशिश होनी चाहिए. ऐसा करने की दिशा में उम्मीद और क्षमता तो दिखाई देती है, लेकिन इसके व्यापक संदर्भ और इससे जुड़े संभावित ज़ोख़िमों को लेकर सावधान रहना भी आवश्यक है. इस बात को समझ लेना भी ज़रूरी है कि इस तरह के मॉडल का निरंतर परीक्षण करना क्यों आवश्यक है. इसके साथ ही यह भी जान लेना भी आवश्यक होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एकीकरण सावधानी और सतर्कता के साथ करना क्यों ज़रूरी है. उदाहरण के लिए AI का उपयोग करते हुए किसी व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी परंपरागत क्रेडिट हिस्ट्री को देखे बगैर अल्टरनेटिव डाटा सोर्स, जैसे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन, सोशल मीडिया इंटरेक्शन, ब्राउजिंग हैबिट्स अथवा मोबाइल ऐप का उपयोग, का उपयोग करके भी किया जा सकता है. लेकिन एक सवाल हमेशा बना रहे कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने इस मूल्यांकन में सही निर्णय लिए थे. इस सवाल से एक और सवाल उठता है कि क्या इसमें सटीकता और विशेष स्थितियों का आकलन करने के लिए मानवीय हस्तक्षेप का उपयोग किया जाए. AI तथा ML में, एक ‘‘ब्लैक बॉक्स’’ का संदर्भ ऐसे एल्गोरिद्‌म्स होते है, जिसका अर्थ लगाना बेहद मुश्किल होता है. अस्पष्टता की यही स्थिति दायित्व, निष्पक्षता और पक्षपात को लेकर चिंताएं पैदा करती है. उदाहरण के लिए अगर AI सिस्टम ने किसी व्यक्ति को ऋण देने अथवा नौकरी देने से इंकार कर दिया, तो यह निर्णय लेने की उसकी प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है. लेकिन ब्लैक बॉक्स मॉडल के तहत यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

 AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग व्यवस्था का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वित्तीय क्षेत्र इस व्यवस्था को कितना अपनाता है और यह व्यवस्था भविष्य में ख़ुद कितनी विकसित होती है. 

इस संदर्भ में डाटा प्रायवसी गंभीर चिंता का विषय बनकर उभरती है. अल्टरनेटिव डाटा, जिसमें सभी गैर-परंपरागत वित्तीय डाटा प्वाइंट्‌स का समावेश होता हैं, एक मूलभूत सवाल पैदा करता है : नागरिकों को अपनी सारी निजी जानकारी उजागर करने के लिए क्यों मजबूर किया जाए? जब विश्व में विभिन्न देश अपने नागरिकों के डाटा को सुरक्षित रखने के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी कर रहे हैं, ऐसे में सभी तक वित्तीय सेवा पहुंचाने के लिए निजी डाटा का उपयोग करना नैतिक उलझन पैदा करने वाला साबित होता है. इससे एक और बड़ा तार्किक सवाल भी उठता है कि क्या विकास हासिल करने और नागरिक सुविधाओं में इज़ाफ़े के आगे डाटा प्रायवेसी का कोई महत्व नहीं है? क्या दोनों लक्ष्य हासिल करते हुए हम डाटा प्रायवेसी की पवित्रता की अनदेखी करेंगे?

 

लेकिन पेड़ देखकर जंगल को भूल जाना उचित नहीं होगा. हमें इसका उपयोग करने के लाभ की दिशा देखना होगा. सबसे पहले लोगों तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाने से जुड़े बेहद ज़्यादा मुनाफ़े के बारे में सोचना होगा. इसके साथ ही भुगतान संबंधी बर्ताव, विशेषत: यूटिलिटी बिल्स, ऋण और क्रेडिट लाइन के भुगतान, को देखकर भी एक मॉडल को विकसित करने की संभावना मौजूद है. ऐसे मॉडल्स पर जब अमल किया जाएगा तो यह संभावित डिफॉल्ट यानी कर्ज़ लौटाने में नाकामी को लेकर देर से सूचना देंगे, जबकि डिफॉल्ट होना लगभग तय होता है. इसी प्रकार के अनेक नवाचारों पर विचार संभव है. शायद इसे एक कदम आगे ले जाकर ब्लॉकचेन तकनीक के साथ एकीकृत किया जा सकता है. ऐसा होने पर सिस्टम के भीतर भी पारदर्शिता में वृद्धि होना भी संभव है.

 

AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग व्यवस्था का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वित्तीय क्षेत्र इस व्यवस्था को कितना अपनाता है और यह व्यवस्था भविष्य में ख़ुद कितनी विकसित होती है. ML एल्गोरिद्‌म्स जैसे-जैसे अधिक मजबूत एवं उन्नत होते जाएंगे और अल्टरनेटिव डाटा सोर्स भी आसानी से उपलब्ध होंगे, वैसे-वैसे AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल्स के अधिक सटीक और क्रेडिट रिस्क का मूल्यांकन करने में अधिक विस्तृत होने की उम्मीद है. इस बात के कुछ सबूत दिख रहे है कि डिजिटल फुटप्रिंट की वज़ह से निजी लोगों की क्रेडिट तक पहुंच बढ़ाने में सहायता मिल रही है. ऐसे लोग जिनकी अब तक आधिकारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुंच ही नहीं थी उन तक ये सेवाएं पहुंचने से जहां वित्तीय समावेशन बढ़ेगा वहीं असमानता भी घटेगी.

इन मॉडल्स के निरंतर विकास और अपनाने के पीछे जो शक्ति काम करेगी वह है इनकी समावेशी ऋण मूल्यांकन व्यवस्था तैयार करने की क्षमता. यह एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो हरेक उस व्यक्ति का भी मूल्यांकन करें, जिसके पास परंपरागत ऋण संबंधी दस्तावेज़ या क्रेडिट हिस्ट्री मौजूद नहीं है. लेकिन इसमें कुछ चुनौतियां खड़ी होंगी, जिन पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है. पारदर्शिता, पक्षपात और डाटा प्राइवेसी और इसकी सुरक्षा का मुद्दा इन मॉडल्स के विस्तार के साथ ही अहम होता जाएगा. AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग का ज़िम्मेदारीपूर्ण और नैतिकता के साथ उपयोग करने के लिए उद्योग तथा नियामक संस्थाओं की ओर से चल रहे प्रयास जारी रहने होंगे. इसी प्रकार संबंधित तकनीक में विकास, जैसे ब्लॉकचेन, भी पारदर्शिता को बढ़ाने का अवसर देंगे और AI आधारित क्रेडिट स्कोरिंग की सुरक्षा को भी मजबूती प्रदान करेंगे. लेकिन संबंधित तकनीक की भी अपनी ही जटिलताएं भी होंगी.


सौरदीप बाग ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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