Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 01, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन में इससे पहले भी विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, जिन्हें ताकत के जोर से दबाया जाता रहा है. संभावना है कि इस बार भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मशीनरी मौजूदा असंतोष को पूरी क्रूरता से दबा दे.

Zero Covid-19 Policy: चीनी गवर्नेंस मॉडल पर क्यों उठा सवाल?

Source Image: राजधानी पेइचिंग में जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग-- नवभारत टाइम्स

चीन (China) में शी चिनफिंग की सख्त जीरो कोविड पॉलिसी (Zero COVID-19 Policy) पर वहां के लोगों की जो चिंता है, उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इसके चलते लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. पिछले हफ्ते उरूमकी के उत्तर-पश्चिमी शहर में फ्लैटों के एक ब्लॉक में आग लग गई, जिसमें दस लोग जलकर मर गए. इसके बाद तो शंघाई और पेइचिंग से लेकर शिनच्यांग और तिब्बत तक चीन के प्रमुख शहरों में लोगों का विरोध खुलकर सामने आ गया. इन विरोध-प्रदर्शनों में एक बात मुख्य रूप से दिख रही है कि लोग चीनी राष्ट्रपति की खुलकर आलोचना कर रहे हैं और उनसे इस्तीफा देने की मांग की जा रही है. महीनों से प्रतिबंधों का सामना कर रहे लाखों चीनी नागरिकों की चिंता इन विरोध-प्रदर्शनों के दौरान आक्रोश में उबलती दिख रही है तो इसकी कई वजहें हैं.

इन विरोध-प्रदर्शनों में एक बात मुख्य रूप से दिख रही है कि लोग चीनी राष्ट्रपति की खुलकर आलोचना कर रहे हैं और उनसे इस्तीफा देने की मांग की जा रही है.

  • पहली, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के बाद शी चिनफिंग उस गौरव का आनंद ले रहे हैं, जिसमें उन्होंने चीन के टॉप लीडर के रूप में अभूतपूर्व तीसरा कार्यकाल हासिल किया.
  • दूसरी, अब विदेश दौरों में वह अपनी वैश्विक साख को चमकाने की कोशिश में लगे हुए हैं. लेकिन लगता है कि अपने ही देश में वह अपनी नीतियों से पैदा हो रहे संकट और गुस्से से बेखबर हैं. पिछले महीने हुई कांग्रेस में उन्होंने अपनी सख्त कोविड पॉलिसी की कामयाबी का गुणगान किया और साथ ही इसे जारी रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई.
  • तीसरी, ऐसा लगता है कि बड़े पैमाने पर टेस्ट, क्वारंटाइन और स्ट्रिक्ट लॉकडाउन के चलते उन इलाकों के लोगों में असंतोष पनप रहा है, जहां कोविड-19 के प्रकोप का पता चला है.
  • चौथी, जहां दुनिया आगे बढ़ती हुई दिख रही है, वहीं चीन में लगातार लॉकडाउन के चलते सामने आ रही चुनौतियों को पहचानने के बावजूद शी के अजेंडे को सिर्फ इसलिए सही साबित करने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि उन पर उनकी छाप है.
  • पांचवीं, चीन में आज जो कुछ भी हो रहा है, वह शासन के अधिनायकवादी मॉडल के खतरों के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाता है. आम चीनियों की दुर्दशा का जवाब देने के लिए वहां का पूरी तरह से बंद सिस्टम संघर्ष कर रहा है. इससे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थिति खतरे में पड़ गई है, जिसने अपनी सर्वोच्चता की राजनीतिक स्थिति को हमेशा बनाए रखने की कोशिश की है.

ताइवान का जनादेश

चीन से कुछ दूर ताइवान में बैलेट बॉक्स के जरिए दूसरे तरीके से असंतोष व्यक्त किया गया है. 2020 के राष्ट्रीय चुनावों में भारी बहुमत से जीतने वालीं राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने बाद में गवर्निंग डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया. वजह रही वहां के स्थानीय चुनावों में उनकी पार्टी का खराब प्रदर्शन. ताइवान के ये चुनाव काफी हद तक घरेलू सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर होते हैं. वहीं राष्ट्रपति ने चुनावी लड़ाई को चीन के साथ बढ़ते तनाव के इर्द-गिर्द फ्रेम करके चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को लोकतंत्र पर एक संदेश देने की कोशिश की थी. लेकिन वोटरों के मन में कुछ और चल रहा था, जो कि राष्ट्रपति इंग-वेन के लिए साफ मेसेज था. अब उन्होंने जनादेश को शालीनता से स्वीकार किया है और वोटरों के संदेश के आगे झुकते हुए पार्टी नेतृत्व छोड़ने का फैसला किया है.

चीन से कुछ दूर ताइवान में बैलेट बॉक्स के जरिए दूसरे तरीके से असंतोष व्यक्त किया गया है. 2020 के राष्ट्रीय चुनावों में भारी बहुमत से जीतने वालीं राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने बाद में गवर्निंग डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया.

अधिनायकवाद बनाम लोकतंत्र

ताइवान और चीन में जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए हमें न केवल अधिनायकवाद के खतरों के प्रति सचेत होना चाहिए, बल्कि यह भी समझना चाहिए कि ताइवान के लिए खड़े होने के महत्व को कम करके क्यों नहीं आंका जा सकता है. ताइवान पर आज दुनिया की नजरें टिकी हैं.

  • चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने दुनिया के एक बड़े हिस्से को लंबे समय तक यह विश्वास दिलाया था कि उसका मॉडल बेहतर क्यों था, क्योंकि उसके मॉडल को आर्थिक विकास और राजनीतिक स्थिरता देते देखा गया था. लोकतांत्रिक दुनिया में आज भी कई लोग उसी मॉडल को अपनाने को तैयार दिखते हैं.
  • लोकतंत्र की बनावट ही कुछ ऐसी होती है कि वह कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता. इसमें राष्ट्रीय परियोजनाओं को लेकर आम सहमति बनाते हुए तमाम स्टेकहोल्डर्स की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है. लिहाजा टकराव अवश्यंभावी होता है.
  • मगर लोकतांत्रिक दुनिया यूटोपियन पूर्णता की तलाश करते हुए तानाशाह शासकों को चुनौती देने के बजाय अपनी कमजोरियां खोजने में लग जाती हैं.

लोकतांत्रिक दुनिया में खुद को बदनाम करने के इस कभी न खत्म होने वाले चक्र ने शासन के चीनी मॉडल की गलतफहमी और भी मजबूत की.

चीन की आक्रामकता और उसकी खुद की आंतरिक कमजोरियां निश्चित रूप से आज की लोकतांत्रिक दुनिया की इस विशेषता को रेखांकित कर रही हैं कि इनमें चाहे जो भी खामियां रही हों, चीन का मॉडल लाखों-लाख लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की इनकी क्षमता की बराबरी कभी कर ही नहीं सकता.

जाहिर है, दुनिया के लोकतंत्र जब खुद अपने मूल्यों के लिए खड़े नहीं होंगे, तो बाकी लोग उन्हें एक उदाहरण के रूप में क्यों देखेंगे? चीन की आक्रामकता और उसकी खुद की आंतरिक कमजोरियां निश्चित रूप से आज की लोकतांत्रिक दुनिया की इस विशेषता को रेखांकित कर रही हैं कि इनमें चाहे जो भी खामियां रही हों, चीन का मॉडल लाखों-लाख लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की इनकी क्षमता की बराबरी कभी कर ही नहीं सकता.

क्या फिर दमन होगा

चीन में इससे पहले भी विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, जिन्हें ताकत के जोर से दबाया जाता रहा है. संभावना है कि इस बार भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मशीनरी मौजूदा असंतोष को पूरी क्रूरता से दबा दे. सड़कों पर लोग शी से इस्तीफा मांग रहे हैं, पर इसी वजह से शी इस्तीफा दे नहीं देंगे. फिर भी, घरेलू और विदेश नीति के मोर्चे पर चीन जिस तरह से लगातार गलतियां कर रहा है, उससे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि शासन का बहुप्रचारित चीनी मॉडल धीरे-धीरे ही सही, पर निश्चित रूप से अलग-थलग होता जा रहा है.


यह आर्टिकल नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है. 

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