Author : Naghma Mulla

Published on Aug 11, 2023 Updated 0 Hours ago

नीति निर्माण और निर्णयन प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर महिलाओं की पूर्ण और बराबर भागीदारी के बिना सतत् विकास की दिशा में कोई भी प्रयास प्रभावी नहीं हो सकता.

‘सतत् विकास की राह (SDG) में महिला-नेतृत्व एक ज़रूरी और पूर्व शर्त है’

सतत् विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की प्रभावशीलता और कुशलता को सुनिश्चित करने में महिलाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इस दिशा में प्रगति के लिए और उसे बनाए रखने के लिए नीति निर्माण और निर्णयन प्रक्रिया में महिलाओं की पूर्ण और बराबर भागीदारी ज़रूरी है. संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को साकार करने के लिए इन भूमिकाओं में महिलाओं की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी को बढ़ावा देना होगा.

हालांकि, महिलाओं के लिए शिक्षा, रोजगार, अवकाश और राजनीतिक भागीदारी में सीमित अवसर लिंग आधारित सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को मज़बूत करते हैं. यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 13 करोड़ लड़कियां स्कूल से बाहर हैं. इसके अलावा, शैक्षिक सामग्री और शिक्षण पद्धतियों में लैंगिक पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता बनी हुई है, जो लड़कियों को स्टेम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में जाने से रोकती है. यह असमानता स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण क्षेत्रों और निजी कंपनियों में शीर्ष अधिकारियों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में महिजालाओं के कम प्रतिनिधित्व में तब्दील हो जाती है.

यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 13 करोड़ लड़कियां स्कूल से बाहर हैं. इसके अलावा, शैक्षिक सामग्री और शिक्षण पद्धतियों में लैंगिक पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता बनी हुई है, जो लड़कियों को स्टेम क्षेत्रों में जाने से रोकती है. 


आर्थिक मोर्चे पर यह लैंगिक अंतराल काफ़ी स्पष्ट है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, 2022 में महिलाओं की श्रम बाज़ार में भागीदारी 47 प्रतिशत थी, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 72 प्रतिशत था. यहां तक कि औरतें जब काम करती हैं तो पुरुषों की तुलना में कम कमाती हैं. विश्व बैंक के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2020 में जिस काम के लिए पुरुष एक डॉलर कमा रहे थे, उसी काम के लिए महिलाओं को 77 सेंट दिए जा रहे थे. UN Women के अनुसार, महिलाएं पुरुषों की तुलना में तीन गुना ज्य़ादा समय अवैतनिक कामों में बिताती हैं, जिसमें देखभाल और घरेलू काम शामिल हैं. इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन (IPU) के अनुसार, जनवरी 2023 तक के आंकड़ों को देखें तो इस असंतुलन के कारण  वैश्विक स्तर पर राष्ट्रीय सांसदों में महिलाओं की संख्या केवल 25.5 प्रतिशत थी. इस दर से, राजनीति में लैंगिक समानता तक पहुंचने में 50 साल और लगेंगे.

पुरुषों की तुलना में कम अधिकार


अधिकारों के संरक्षण की बात करें तो 2021 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं को औसतन तीन चौथाई कानूनी अधिकार दिए गए थे. इसके अलावा, महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा की दर लगातार ऊंची बनी हुई है. UN Women की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि विश्व स्तर पर 3 में से 1 महिला ने अपने जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं.

नीति निर्माण और निर्णयन प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर महिलाओं की पूर्ण और बराबर भागीदारी के बिना सतत् विकास की दिशा में कोई भी प्रयास प्रभावी नहीं हो सकता. भले ही लैंगिक समानता की राह में कई चुनौतियां हैं, लेकिन कानूनी और नीतिगत सुधार से लेकर सांस्कृतिक परिवर्तन जैसे कई समाधान भी हैं. नेतृत्व भूमिकाओं में महिलाओं के महत्त्वपूर्ण योगदान को हम महिला सशक्तिकरण की परिवर्तनकारी क्षमता के रूप में देख सकते हैं.

2022 में फ्रैंक रिक्रूटमेंट ग्रुप द्वारा किए एक शोध में पाया गया कि महिला नेतृत्व वाली शीर्ष 500 कंपनियों में से 87 प्रतिशत ने औसत से अधिक लाभ कमाया.


निर्णयन भूमिकाओं में महिलाओं को नियुक्त करना कंपनियों और समाजों के लिए लाभप्रद हो सकता है. 2022 में फ्रैंक रिक्रूटमेंट ग्रुप द्वारा किए एक शोध में पाया गया कि महिला नेतृत्व वाली शीर्ष 500 कंपनियों में से 87 प्रतिशत ने औसत से अधिक लाभ कमाया. इसके विपरीत, बिना महिला नेतृत्व वाली कंपनियों में केवल 78 प्रतिशत कंपनियों ने समान स्तर की सफलता हासिल की. निर्णयन भूमिकाओं में उनकी मौजूदगी महिला नेताओं की भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी साबित हो सकती है, जिससे लैंगिक समानता के लक्ष्य को आगे बढ़ाया जा सकता है. इसके अलावा, महिला नेताएं अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय जैसे सामाजिक मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं और एक समतापूर्ण और टिकाऊ समाज की स्थापना में योगदान देती हैं.

उदाहरण के लिए जैसिंडा अर्डर्न के नेतृत्व को देखें, जिन्हें कोरोना महामारी के खिलाफ़ प्रभावी नीतिगत फैसलों के लिए सराहा गया. एंजेला मर्केल की मज़बूत नेतृत्व शैली के कारण उन्हें स्वतंत्र दुनिया के नेता के रूप में पहचान मिली. उन्होंने जर्मनी में शरण मांगने वाले लाखों शरणार्थियों को शरण देकर नैतिक साहस का प्रदर्शन किया और साथ ही अपने इस फ़ैसले से उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उसकी जगह बरकरार रहे.

इसलिए, केवल ‘समावेशिता’ की नीति से आगे बढ़ते हुए महिलाओं को निर्णयन भूमिकाओं के लिए तैयार करना होगा ताकि सतत् विकास की प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया जा सके और इसके मूल में लैंगिक समानता को शामिल किया जाना चाहिए. न केवल महिलाओं की क्षमताओं को बढ़ाया जाना चाहिए और उनके अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए, बल्कि उन्हें निर्णय लेने और नीति विकास प्रक्रियाओं में शामिल होने के समान अवसर भी प्रदान किए जाने चाहिए. महिलाओं को नेतृत्व भूमिकाओं के लिए तैयार करना एक बहुत बड़ी चुनौती है, जिसके लिए कई हितधारकों को अपने स्तर पर बहुत सारे प्रयास और बदलाव करने होंगे.

हालांकि यह यात्रा महिलाओं के समान प्रतिनिधित्व से शुरू होती है. शुरुआत के लिए, सरकारों के नीतिगत हस्तक्षेप से इसे हासिल किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, नॉर्वे ने महिलाओं को कंपनियों के बोर्ड में 40 प्रतिशत आरक्षण के नियम को सफलतापूर्वक लागू किया है, और इन पदों पर गैर-सूचीबद्ध देशों को शामिल करने के लिए उसने हाल ही में इस नीति के विस्तार का प्रस्ताव भी सामने रखा रखा है. सरकारों को सार्वजनिक और निजी जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की समान भागीदारी को बढ़ावा देने वाले कानून बनाने और लागू करने चाहिए. इन कानूनों को लैंगिक भेदभाव पर भी रोक लगानी चाहिए और इनका उल्लंघन करने पर उचित दंडात्मक प्रावधानों को मंजूरी देनी चाहिए. कॉरपोरेट कंपनियों को महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिकाओं में नियुक्त करने के लिए को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. प्रतिभाशाली महिला प्रबंधकों को उनके पद पर बनाए रखने और कॉरपोरेट संरचना में उनके उभार को संभव बनाने के लिए सोच-समझकर प्रयास करना होगा.

चूंकि राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रशासन में केवल प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, इसलिए महिलाओं आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रशिक्षण देना होगा ताकि वे निर्णयन प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग ले सकें. इसे क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के अलावा महिलाओं के सामाजिक संपर्क में विस्तार के जरिए हासिल किया जा सकता है.

निष्कर्ष



शिक्षा महिलाओं के लिए अगला बड़ा लक्ष्य है. शिक्षा व्यवस्था को लड़कियों को सक्रिय भागीदार, नेतृत्वकर्ता और निर्णयकर्ता बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. छोटी उम्र से ही लैंगिक समानता की अवधारणाओं से परिचित कराना और उन्हें मज़बूत करने से एक ऐसे समाज के निर्माण में मदद मिल सकती है जहां निर्णयन प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को महत्त्वपूर्ण समझा जाए और इसके लिए उन्हें बढ़ावा दिया जाए. उच्च शिक्षा में, स्टेम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) में महिलाओं के प्रवेश और संबंधित क्षेत्रों में रोज़गार में आने वाली बाधाओं को पहचान कर उन्हें दूर किया जाना चाहिए.

महिलाओं को सही मायनों में नेतृत्व भूमिकाओं में शामिल करना बेहद चुनौतीपूर्ण है. इसके लिए व्यक्ति, समाज, सरकार और वैश्विक संस्थाओं के स्तर पर ठोस प्रयास करने होंगे.


समाज को ऐसी पितृसत्तात्मक परंपराओं और मानसिकता को चुनौती देते हुए उसमें बदलाव लाना चाहिए जो यह मानती है कि महिलाओं में नेतृत्व क्षमता नहीं होती है. महिलाओं को नेतृत्व भूमिकाओं में शामिल करने के लिए उनकी क्षमताओं को पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है, जिसके लिए सांस्कृतिक परिवर्तन को बढ़ावा देना होगा.

महिलाओं को सही मायनों में नेतृत्व भूमिकाओं में शामिल करना बेहद चुनौतीपूर्ण है. इसके लिए व्यक्ति, समाज, सरकार और वैश्विक संस्थाओं के स्तर पर ठोस प्रयास करने होंगे. हालांकि, ये प्रयास एक समतापूर्ण, समृद्ध और टिकाऊ दुनिया बनाने की दिशा में एक निवेश है. संयुक्त राष्ट्र का एजेंडा 2030 यानी सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) गरीबी को समाप्त करने, पृथ्वी का संरक्षण करने और सभी के लिए शांति और समृद्धि का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में सार्वभौमिक प्रयास किए जाने का आह्वान है. जैसे-जैसे हम इन लक्ष्यों के लिए तय किए गए आखिरी दशक की समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं, हमें याद रखना चाहिए कि लैंगिक समानता का लक्ष्य बाकी लक्ष्यों से अलग-थलग नहीं है, बल्कि बाकी सारे लक्ष्यों को हासिल करने का एक सशक्त माध्यम है. इस तरह से, सतत् विकास लक्ष्यों में हमारी सफ़लता इस बात पर निर्भर करती है कि हम पितृसत्तात्मक मानदंडों को ख़त्म करने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और दुनिया भर में महिलाओं की आवाज़ और उनकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए क्या कर रहे हैं.

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