Published on Nov 09, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के आकलन में दस प्रतिशत का अंतर, उसको जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में अच्छे या ख़राब के दर्जे में डाल सकता है.

भारत में ऊर्जा की खपत मापने के आंकड़ों में इतना फ़र्क़ क्यों है?

ये लेख, कॉम्प्रिहेंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया ऐंड दि वर्ल्ड सीरीज़ का एक हिस्सा है


भारत में ऊर्जा क्षेत्र के आंकड़े हासिल करने के लिए कई बहुत शानदार स्रोत हैं. मिसाल के तौर पर, बिजली क्षेत्र के लिए आवश्यक ज़्यादातर आंकड़े, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (CEA), केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (CERC) और ग्रिड इंडिया मुहैया कराते हैं. वहीं, पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़े विस्तारित आंकड़े और जानकारी पेट्रोलियम प्लानिंग एंड  एनालिसिस सेल (PPAC) उपलब्ध कराती है. ऊर्जा, कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के मंत्रालय, रिन्यूएबल एनर्जी और संबंधित विभाग इंटरएक्टिव डैशबोर्ड के ज़रिए मूल्यवान आंकड़े उपलब्ध कराते हैं. भारत सरकार का सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, एनर्जी स्टैटिस्टिक्स इंडिया नाम के सालाना प्रकाशन में CEA, CERC और PPAC के साथ साथ ऊर्जा से जुड़े मंत्रालयों और संस्थानों से मिले आंकड़ों का मिलान करता है. हाल ही में सरकार के घरेलू थिंक टैंक, नीति आयोग ने जलवायु ऊर्जा के नाम से एक नया डैशबोर्ड शुरू किया है. भारत में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति से जुड़ें आंकड़ों के स्रोतों का विस्तार सकारात्मक है. लेकिन, उपलब्ध आंकड़ों को इकट्ठा करके और इनका मिलान करके, आसानी से समझ में आने वाली इकाइयों में प्रस्तुत करने के लिए किसी केंद्रीय एजेंसी का न होना, एक ऐसी चुनौती है, जिसका समाधान निकाला जाना अभी बाक़ी है. इन आंकड़ों के घरेलू स्रोतों के बीच आपस में समानता न होने और घरेलू आंकड़ों और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से मिलने वाले आंकड़ों में भी भारी अंतर होने की वजह से भारत में ऊर्जा से जुड़े बदलाव की वार्ता को अशुद्ध बना देते हैं.

भारत में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति से जुड़ें आंकड़ों के स्रोतों का विस्तार सकारात्मक है. लेकिन, उपलब्ध आंकड़ों को इकट्ठा करके और इनका मिलान करके, आसानी से समझ में आने वाली इकाइयों में प्रस्तुत करने के लिए किसी केंद्रीय एजेंसी का न होना, एक ऐसी चुनौती है, जिसका समाधान निकाला जाना अभी बाक़ी है.

ऊर्जा की प्राथमिक खपत में ईंधन की हिस्सेदारी

एनर्जी स्टैटिस्टिक्स  इंडिया 2023 (ESI 2023) के साथ साथ नीति आयोग के जलवायु एवं ऊर्जा डैशबोर्ड (NACED) में भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत से जुड़े आंकड़े होते हैं. ESI 2023 के मुताबिक़, भारत की 33,508 पेटा जूल्स (PJ) या फिर 33.5 एक्साजूल (EJ) प्राथमिक ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी 48 प्रतिशत, तेल की 31 फीसद, प्राकृतिक गैस की 7 प्रतिशत और ग़ैर जीवाश्म ईंधन (परमाणु, पनबिजली और नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों (RE)) की हिस्सेदारी 2021-22 में 14 प्रतिशत थी. ESI 2023 के आंकड़ों में घरों में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले अपरिष्कृत जैविक ईंधन (यानी लकड़ी, जानवरों के गोबर और खेती के कचरे) को शामिल नहीं किया गया है.

वहीं, NACED के मुताबिक़, 2022 में भारत की 75.3 करोड़ टन तेल के बराबर (mtoe) या [31.5 EJ] के बराबर प्राथमिक ऊर्जा खपत में कोयले का हिस्सा 58.33 प्रतिशत, तेल का 29.66 फ़ीसद, प्राकृतिक गैस का 8.95 प्रतिशत और ग़ैर जीवाश्म ईंधनों (परमाणु, पनबिजली और RE) का हिस्सा 3.06 प्रतिशत था. NACED के आंकड़ों में ग़ैर जीवाश्म ईंधनों से हासिल की गई ऊर्जा को भी अलग अलग बताया गया है. जिसमें भारत की कुल प्राथमिक ऊर्जा खपत में पनबिजली का हिस्सा 1.68 प्रतिशत, RE का 0.89 फ़ीसद और परमाणु ऊर्जा का 0.49 प्रतिशत बताया गया है. NACED साफ़ तौर पर ये कहता है कि अपरिष्कृत जैविक संसाधनों को इन आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है और ऊर्जा की खपत के ये आंकड़े लगभग पूरी तरह से सरकार के मंत्रालयों और संस्थानों के हैं.

वहीं, स्टैटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी 2023 ([SRWE]) जिसे पहले ब्रिटिश पेट्रोलियम (BP) स्टैटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी 2023 कहा जाता था, के मुताबिक़, भारत की 3644 EJ प्राथमिक ऊर्जा खपत (जिसमें अपरिष्कृत जैविक संसाधान शामिल नहीं हैं) में कोयले का हिस्सा 55.1 प्रतिशत था, तेल का 27.6 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस का 5.7 फ़ीसद, RE का 5.9 प्रतिशत, पनबिजली का 4.5 प्रतिशत और परमाणु ऊर्जा का 1.15 प्रतिशत था.

NACED साफ़ तौर पर ये कहता है कि अपरिष्कृत जैविक संसाधनों को इन आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है और ऊर्जा की खपत के ये आंकड़े लगभग पूरी तरह से सरकार के मंत्रालयों और संस्थानों के हैं.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मुताबिक़, 2021 में भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत 27.5 EJ थी. इसमें कोयले का हिस्सा 44 प्रतिशत, तेल का 24 फ़ीसद, अपरिष्कृत जैविक संसाधनों का 21 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस का 6 फ़ीसद और ग़ैर जीवाश्म ईंधनों का 4 प्रतिशत था, जिसमें पनबिजली का 2 प्रतिशत, RE और परमाणु ऊर्जा का 1-1 फ़ीसद हिस्सा था. IEA के 2021 के आंकड़ों को तुलना के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि वो महामारी का साल था, जब ऊर्जा की खपत में नाटकीय ढंग से गिरावट आई थी. IEA ने अभी 2022 के आंकड़े प्रकाशित नहीं किए हैं.

बिजली उत्पादन में ईंधन की हिस्सेदारी

प्राथमिक ऊर्जा खपत के मुक़ाबले, आंकड़ों के अलग अलग स्रोतों के बिजली बनाने की स्थापित क्षमता और बिजली निर्माण से जुड़े आंकड़ों के बीच ज़्यादा मेल दिखता है. घरेलू स्रोत यानी ESI 2023 और NACED दोनों ही केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (CEA) के आंकड़े इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, 2022 के वार्षिक बिजली निर्माण के NACED और SRWE के आंकड़ों के बीच 240 टेरावॉट/घंटे (TWh) का अंतर है. हो सकता है कि ये अंतर इसलिए हो, क्योंकि NACED ने वित्त वर्ष 2022-23 को आधार बनाया है, तो SRWE ने कैलेंडर  वर्ष 2022 को. हालांकि ये वजह भी आंकड़ों के अंतर की पूरी तरह से व्याख्या नहीं करती है. अलग अलग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों के आंकड़ों में बिजली निर्माण के लिए इस्तेमाल होने वाले ईंधनों की हिस्सेदारी में थोड़ा बहुत अंतर है. लेकिन, ये अंतर इतना मामूली है कि इनकी अनदेखी की जा सकती है. 2022-23 में मोटे तौर पर बिजली निर्माण में कोयले की हिस्सेदारी 73.07 से 74.28 प्रतिशत के बीच रही है. वहीं तेल और गैस से 1.4 से 2.6 प्रतिशत, परमाणु ऊर्जा से 2.49 से 2.83 फ़ीसद, पनबिजली से 9.41-10.02 प्रतिशत और रिन्यूएबल एनर्जी का हिस्सा 11.08 से 11.44 के बीच रहा है.

मसले क्या हैं?

भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत के इन आंकड़ों के बीच अंतर इतना बड़ा है कि इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. मिसाल के तौर पर, 2022 में ESI 2023 (घरेलू स्रोत) में भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत का आंकड़ा, SRWE (अंतरराष्ट्रीय स्रोत) से 8 फ़ीसद कम है, तो NACED का आंकड़ा तो SRWE के आकलनों से लगभग 15 प्रतिशत कम है. भारत की अर्थव्यवस्था में ऊर्जा कुशलता का मूल्यांकन, बहुत हद तक इन आंकड़ों के इस्तेमाल पर निर्भर करता है, जो काफ़ी पेरिस जलवायु समझौते में भारत द्वारा किए गए वादों के तहत तय लक्ष्यों को हासिल करने में मिली सफलता का आकलन करने के लिहाज़ से बेहद अहम हैं. खाना पकाने के लिए जैविक संसाधनों के इस्तेमाल को ऊर्जा की प्राथमिकता  खपत में शामिल करने या फिर न करने से भी भारत की अर्थव्यवस्था की ऊर्जा कुशलता के आकलन पर गहरा असर पड़ता है. एनर्जी एफिशिएंसी या ऊर्जा कुशलता, ऊर्जा की वो तादाद है जो GDP की एक इकाई के उत्पादन में लगती है. जैविक संसाधनों को प्राथमिक ऊर्जा खपत के आंकड़ों में शामिल करने से निश्चित रूप से भारत की ऊर्जा खपत बढ़ जाएगी और फिर उससे ऊर्जा कुशलता भी घट जाएगी.

भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी का अंतरराष्ट्रीय स्रोत यानी SRWE का आकलन, घरेलू स्रोतों से लगभग 14 प्रतिशत अधिक है. हो सकता है कि इसकी वजह कोयले की गुणवत्ता या उससे हासिल होने वाली कैलोरी के मूल्य में फ़र्क़ हो. चूंकि जलवायु परिवर्तन की वार्ताओं के बहुपक्षीय मंचों पर कोयले का इस्तेमाल कम करने की मांग उठती रहती है, इस लिहाज़ से कोयले की खपत के आंकड़े बेहद अहम हो जाते हैं. 2022-23 में भारत की प्राथमिक ऊर्जा की बास्केट में NACED के मुताबिक़ प्राकृतिक गैस की खपत, SRWE के आकलन से लगभग 50 प्रतिशत अधिक है. अगर हम घरेलू आंकड़ों पर भरोसा करें, भारत सरकार द्वारा देश की प्राथमिक ऊर्जा खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 2016 के लगभग 6 फ़ीसद से बढ़ाकर 2030 तक 15 प्रतिशत पहुंचाने के लक्ष्य के काफ़ी क़रीब पहुंच गया है. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक़, अपनी प्राथमिक ऊर्जा खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी बढ़ाने के मामले में भारत पिछड़ रहा है. देश की प्राथमिक ऊर्जा खपत में ग़ैर जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी की बात करें, तो भारत के दोनों घरेलू स्रोतों के बीच ही 75 प्रतिशत से अधिक का अंतर है. इतने बड़े अंतर की या तो वजह बतानी चाहिए या फिर उसमें सुधार किया जाना चाहिए. आज भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों का मूल्यांकन करने के लिए देश की प्राथमिक ऊर्जा खपत में ग़ैर जीवाश्म ईंधनों की हिस्सेदारी एक प्रमुख पैमाना है. प्राथमिक ऊर्जा खपत में ग़ैर जीवाश्म ईंधनों की हिस्सेदारी के कम आकलन से, कार्बन उत्सर्जन कम करने के भारत के प्रयासों को झटका लग सकता है.

जैविक संसाधनों को प्राथमिक ऊर्जा खपत के आंकड़ों में शामिल करने से निश्चित रूप से भारत की ऊर्जा खपत बढ़ जाएगी और फिर उससे ऊर्जा कुशलता भी घट जाएगी.

ऊर्जा की खपत के आंकड़े जुटाने में मात्रा को लेकर इस दुविधा से उनकी गुणवत्ता को लेकर सवाल उठ सकते हैं. डेटा को लेकर अनिश्चितताओं से ऊर्जा के मामले में  कुशलता हासिल करने की दिशा में हासिल की गई वास्तविक उपलब्धियां छुप जाती हैं और इससे कोयले के इस्तेमाल में आई ठोस कमी को लेकर आशंकाएं पैदा होती हैं. भारत द्वारा कोयले का इस्तेमाल की मात्रा के अनुमानों के पीछे अंदाज़ा लगाने को लेकर अनिश्चितता (जैसे कि हीटिंग वैल्यू, कार्बन कंटेंट वग़ैरह) बेहद ख़राब स्थिति पैदा कर सकती है, जिससे भारत के कार्बन उत्सर्जन का आकलन भी असलियत से ज़्यादा लगाया जा सकता है.

भारत के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के आकलन में 10 प्रतिशत का अंतर, उसको जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में अच्छे या ख़राब के दर्जे में डाल सकता है.

Source: Energy Statistics India 2023, Niti Aayog’s Climate and Energy Dashboard & Statistical Review
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Authors

Akhilesh Sati

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Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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