Published on Aug 21, 2023 Updated 0 Hours ago

अपनी एफएसडी रणनीति के हिस्से के रूप में पाकिस्तान द्वारा परमाणु क्षमताओं की एक विस्तृत श्रृंखला की तैनाती के बावजूद, भारत को चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

परमाणु ताकत का विस्तार क्यों कर रहा है पाकिस्तान?

पाकिस्तान ने हाल ही में ये घोषणा की है कि वो अपने न्यूक्लियर पावर प्रोग्राम को नए सिरे से तैयार करेगा. इस नई परमाणु नीति की रूपरेखा बनाने की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई को दी गई है जो पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक  प्लान डिवीजन के पूर्व मुखिया रह चुके हैं. पाकिस्तान ने अपनी इस नई परमाणु नीति को फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस यानी पूरी तरह आत्मरक्षा के लिए तैयार की जा रही नीति बताया है. वैसे सच तो ये है कि ये कोई नई नीति नहीं है. किसी ने किसी रूप में 2010 के बाद से ही ये पाकिस्तान की परमाणु नीति रही है.

भारत ने पहले ही अपनी इस नीति का ऐलान  कर रखा है कि वो परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा..इसके बाद पाकिस्तान को भी ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा

पाकिस्तान के मुताबिक उसकी ये नई नीति भारत के कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन और स्ट्रेटजी (सीएसडीएस)का जवाब है. हालांकि भारत ने आधिकारिक तौर पर इस नीति को अपनाने की बात नहीं की है. लेकिन आपको बता दें कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन और स्ट्रेटजी एक ऐसी रणनीति है जिसे भारत ने 2002 में ऑपरेशन पराक्रम के बाद अपनाया. ऑपरेशन पराक्रम के दौरान युद्ध में इस्तेमाल होने वाले साजो सामान  के साथ आर्मी को पश्चिमी सीमा तक पहुंचने में काफी वक्त लगा था. इसी के बाद कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन और स्ट्रेटजी बनाई गई.इस रणनीति के तहत अगर कभी पाकिस्तान से युद्ध की नौबत आई तो आर्मी को कम से कम वक्त में पाकिस्तान से लगती सीमा पर भेजा जाएगा और इस एकीकृत सैनिक कमांड के पास परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलें भी होंगी.जिसका मकसद पाकिस्तानी आक्रमण और आतंकी कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब देने के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर पाकिस्तानी के कुछ इलाकों पर कब्जा करना भी होगा. पाकिस्तान की नई परमाणु नीति की एक वजह भारत की मिसाइल डिफेंस की एडवांस तकनीकी भी है.भारत ने पहले ही अपनी इस नीति का ऐलान  कर रखा है कि वो परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा..इसके बाद पाकिस्तान को भी ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा. हालांकि पाकिस्तान ने नो फर्स्ट यूज यानी परमाणु हथियार का पहले इस्तेमाल नहीं करने की नीति को आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है.लेकिन पाकिस्तान की फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस यानी परमाणु हथियारों को पूरी तरह आत्मरक्षा में इस्तेमाल किए जाने की इस नीति को इसी रूप में देखा जा रहा है..पाकिस्तान ने 2011 में जिस नस्र मिसाइल को विकसित किया. उसे भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. नस्र मिसाइल एक मल्टीट्यूब बैलेस्टिक टैक्टिकल न्यूक्लियर हथियार है. नस्र मिसाइल के अब तक 6 टेस्ट किए जा चुके हैं. पहला टेस्ट 2011 में किया गया. इसके बाद 2012, 2013 में 2 बार..2014 और 2017 में भी नस्र मिसाइल का टेस्ट किया गया.नस्र मिसाइल को 2013 में ही पाकिस्तानी सेना में शामिल कर लिया गया था. और तब से ये पाकिस्तान के टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन का अहम हिस्सा है. पाकिस्तान का मानना है कि उसकी नस्र मिसाइल भारत के कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन नीति को सटीक जवाब दे सकती है.

ऐसे में लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई  जिस एफएसडी नीति को अपना रहे हैं.उस पर किसी को हैरान नहीं होना चाहिए क्योंकि रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना का हेडक्वार्टर रावलपिंडी में है) का मानना है कि उसका परमाणु प्रोग्राम पाकिस्तान के कई हितों को साधता है.पाकिस्तानी सेना के जनरल और उच्च अधिकारियों का मानना है कि परमाणु हथियारों के सहारे वो भारत की पारंपरिक  सैन्य  ताकत का जवाब दे सकते हैं क्योंकि ये बात तो किसी से छिपी नहीं है कि परम्परागत सैनिक ताकत में भारतीय सेना की क्षमता पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा है.इतना ही नहीं पाकिस्तानी जनरलों का ये भी मानना है कि अगर उसके परमाणु हथियारों का भंडार मजबूत होगा तो वो ना सिर्फ भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को जारी रख सकता है बल्कि अगर भारत आतंकी कार्रवाई का जवाब देने के लिए कोई सैनिक कार्रवाई करना चाहेगा तो पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का जखीरा भारत को ऐसा करने से रोकेगा.अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को लगातर मजबूत करने के पीछे पाकिस्तान की एक वजह ये भी है कि उसे लगता है कि वो भारत को पारम्परिक सैनिक ताकत के क्षेत्र में तो टक्कर नहीं दे सकता लेकिन परमाणु हथियारों की दौड़ में वो भारत का मुकाबला कर सकता है.यही वजह है कि फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस को पाकिस्तान अपनी राजकीय नीति का एक अहम हिस्सा मान रहा है.

हालांकि कुछ भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की इस फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस नीति से भारत को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इस नीति से पाकिस्तान ना सिर्फ अपनी आर्मी को मजबूत कर रहा है बल्कि वो अपनी वायुसेना और नौसेना को भी परमाणु हथियारों से लैस कर मजबूत बना रहा है..पाकिस्तान टैक्टिकल, सामरिक और रणनीतिक तीनों तरह से परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है..लेकिन अगर गौर से देखें तो पाकिस्तान की इस नई नीति से कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. फिलहाल इसकी अहमियत सिर्फ इतनी है कि ये भारत की सीएसडीएस नीति या फिर भारत की तरफ से की जाने वाली किसी सीमित सैनिक कार्रवाई को कुछ हद तक प्रभावहीन या बेअसर कर सकती है.लंबे वक्त से भारत के खिलाफ पाकिस्तान की रणनीति किसी सैनिक कार्रवाई की नहीं रही है.पाकिस्तान की अघोषित नीति भारत को आतंकवाद के ज़रिए चोट पहुंचाने की रही है.और भविष्य में भी यही जारी रहेगी.अपनी नई परमाणु नीति के बावजूद भारत के खिलाफ पाकिस्तान कोई नया जोखिम वाली या दुस्साहसिक कार्रवाई करने से बचेगा.

भारत की प्रतिक्रिया: इच्छाशक्ति, क्षमता और रणनीति

वैसे भी अगर तथ्यात्मक तौर पर देखें को भारत को खतरा पाकिस्तान के परमाणु जखीरे से नहीं बल्कि पाकिस्तान की तरफ से चलाए जा रहे कम लागत के उस युद्ध से है.जो उसने आतंकवाद के रूप में चला रखा है. खास बात ये है कि ना तो पाकिस्तान के परमाणु हथियार भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को और घातक बनाने के काम आ सकते हैं. ना ही भारत के परमाणु हथियार आतंकवादी घटनाओं पर काबू पाने के काम आ सकते हैं, जैसा कि हमने उरी आतंकी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद देखा था..हालांकि इन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ये दावे भी किए गए कि पहले ही सरकारों ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की थी. लेकिन तब ना तो सरकारों ने इस तरह की स्ट्राइक्स को लेकर कोई जानकारी दी थी. ना ही उनसे आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के रुख में कोई बदलाव नहीं आया.

एस. जयशंकर ने तब ये बात भी कही थी कि आतंकवाद को लेकर भारत की नीति प्रिडिक्टेबल  यानी ऐसी नहीं होनी चाहिए जिसे लेकर दुश्मन पहले से ही अनुमान लगा ले.

ना तो वाजपेयी सरकार ने 2001 में भारत की संसद पर हुए पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद कोई जवाबी सैनिक कार्रवाई की.ना ही मनमोहन सिंह सरकार ने 2008 में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मुंबई पर किए गए आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया.इन आतंकवादी घटनाओं के बाद भारत की तरफ से किसी तरह की जवाबी कार्रवाई नहीं होने से पाकिस्तान को यह  लगने लगा था कि वो भारत पर चाहे जितने भी हमले कर ले.भारतीय नेतृत्व में इतना दम नहीं है कि वो इसका जवाब दे सके.विदेश मंत्री बनने से पहले एस. जयशंकर ने एक बार कहा था कि पाकिस्तानी नेतृत्व ये समझ चुका था कि आतंकवादी हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया किस तरह की होगी.एस. जयशंकर ने तब ये बात भी कही थी कि आतंकवाद को लेकर भारत की नीति प्रिडिक्टेबल  यानी ऐसी नहीं होनी चाहिए जिसे लेकर दुश्मन पहले से ही अनुमान लगा ले. चूंकि पहले भारत आतंकवादी हमले होने पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब नहीं देता था तो पाकिस्तान भी ये समझ गया था कि परमाणु शक्ति सम्पन्न देश होने की आड़ में आतंकवाद जैसे कम लागत के युद्ध को जारी रखकर वो भारत को तगड़ी चोट पहुंचा सकता है.

पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स के काफिले पर जब जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया था तब उसमें भारत के 40 जवान शहीद हुए थे. लेकिन इस आतंकी हमले के बाद जिस तरह भारतीय वायुसेना ने सीमा पार कर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा  प्रांत में बालाकोट इलाके में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शिविरों में हवाई हमला किया. उसने ये दिखा दिया कि आतंकी हमले पर अब भारत का रुख  पहले की तरह उदासीन नहीं रहेगा.भारत ने इस हमले के लिए जिस तरह वायुशक्ति  का टैक्टिकल इस्तेमाल किया..वो एक तरह से भारत की कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन और स्ट्रेटजी का ही दूसरा रूप था. पाकिस्तान के परमाणु हथियार सिर्फ भारत के परमाणु हमले को रोकने के ही काम आ सकते हैं..बालाकोट जैसी सर्जिकल स्ट्राइक को रोकने में वो नाकाम हैं.साफ है जिस तरह भारत के नई नेतृत्व औऱ नई सरकार के रुख के सामने पाकिस्तान के परमाणु हथियार बेअसर हैं. उसी तरह पाकिस्तान का फुल स्पेक्ट्रम डॉक्ट्रिन भी उरी के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक या फिर बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक को रोकने में प्रभावहीन है क्योंकि इनके इस्तेमाल से दोनों देशों के बीच हालात और ज्यादा बिगड़ सकते हैं.

ये भारत के लिए अच्छा है कि पाकिस्तान हमेशा ये अंदाज़ा लगाते रहे कि अगर उसने भारत पर आतंकी हमला करवाया तो फिर भारत की जवाबी कार्रवाई क्या होगी. लेकिन इसके साथ ही भारत के लिए ये भी जरूरी है कि वो अपनी टैक्टिकल परमाणु क्षमता बढ़ाए.

भारतीय सेना ने जिस तरह सीमा पार कर वायुसेना की मदद से बालाकोट में हमला किया. वो एक तरह से आतंकी हमलों को लेकर भारत के रुख में आए बदलाव और उसकी अनापेक्षित यानी दुश्मन को चौंकाने वाली रणनीति को दिखाता है. अगर इसे सामरिक दृष्टि से भी देखें तब भी ये कहा जा सकता है कि अगर भारत एक परमाणु सम्पन्न देश को घेरना चाहता है तो सर्जिकल स्ट्राइक की उसकी ये रणनीति सही है. पाकिस्तान लंबे वक्त से भारत के खिलाफ आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है. भारत की पहले की सरकारों ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की. जिससे पाकिस्तान की हिम्मत बढ़ी लेकिन मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के दिमाग में कुछ खौफ तो बिठाया है.

ये भारत के लिए अच्छा है कि पाकिस्तान हमेशा ये अंदाज़ा लगाते रहे कि अगर उसने भारत पर आतंकी हमला करवाया तो फिर भारत की जवाबी कार्रवाई क्या होगी. लेकिन इसके साथ ही भारत के लिए ये भी जरूरी है कि वो अपनी टैक्टिकल परमाणु क्षमता बढ़ाए. अभी तक यही देखा गया है कि भारत के किसी भी सरकार ने इस दिशा में रुचि नहीं ली. रणनीति के नजरिए से देखें तो अब तक के भारत की प्रतिक्रिया हमेशा से बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की रही है. लेकिन ये आम तौर पर चीन के खिलाफ रहा है. लेकिन पिछले कुछ वक्त से कई सुरक्षा विशेषज्ञ भारत सरकार से नो फर्स्ट यूज यानी पहले आक्रमण ना करने की अपनी नीति पर दोबारा विचार करने की अपील कर रही है जिससे पाकिस्तान और चीन के दिमाग में ये बात बैठ जाए कि अगर उन्होंने भारत के खिलाफ कुछ दुस्साहसिक कार्रवाई की तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में ये बात कही थी कि अब तक तो भारत की नीति पहले हमला नहीं करने की रही है.लेकिन भविष्य में क्या होगा. ये तब की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. ऐसे में अगर अपनी पूर्व घोषित परमाणु नीति में बदलाव किए बगैर भारत अपने टैक्टिकल परमाणु हथियारों को लेकर खुद को मजबूत करता है तो ये भी भारत के अब तक के रुख में एक बड़ा बदलाव होगा और अगर भारत अपने परमाणु हथियारों के ज़खीरे को नहीं बढ़ाता अपनी परमाणु शक्ति को मजबूत नहीं करता तो फिर भारत को गैर नाभिकीय  क्षमता को बढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिए. ऐसा ही एक फील्ड जिसमें भारत सरकार को ध्यान देना चाहिए वो है साइबर युद्ध.हो सकता है भारत पहले से ही साइबर युद्ध के ज़रिए पाकिस्तान को सबक सिखा रहा हो. साइबर युद्ध और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर  के साथ-साथ कभी कभी एयर स्ट्राइक जैसे कदम उठाने चाहिए. साइबर हमले न  सिर्फ भारत की वैश्विक रणनीति के हिसाब से सही है बल्कि इसके सहारे वो पाकिस्तान के सैटेलाइट्स  को भी बेकार कर सकते हैं. यही वजह है कि पाकिस्तान भले ही अपनी परमाणु क्षमता बढ़ा रहा हो लेकिन भारत को इससे बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. भारत को जरूरत इस बात की है कि वो अपनी सैनिक क्षमताओं को बढ़ाए. सेना को आधुनिक बनाए.सैनिकों को बेहतरीन ट्रेनिंग दे.जिससे जरूरत पड़ने पर इस सभी सैनिक क्षमता को आपातकालीन अवस्था में जल्द से जल्द मोर्चे पर तैनात किया जा सके.

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