Expert Speak Raisina Debates
Published on May 22, 2024 Updated 0 Hours ago

वैसे तो राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के असामयिक निधन से ईरान के सामने अनिश्चित भविष्य की चुनौती खड़ी हो गई है. लेकिन, इससे फ़ौरी तौर पर ईरान की राजनीतिक स्थिरता पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा.

ईरान में अब आगे क्या होगा?

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और विदेश मंत्री हुसैन अब्दुल्लाहियान, उत्तरी पश्चिमी ईरान में अपना हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने के एक दिन बाद, 20 मई को मृत पाए गए थे. इसकी वजह से ईरान के सामने अनिश्चित भविष्य की चुनौती खड़ी हो गई है. इब्राहिमस रईसी जून 2021 में राष्ट्रपति चुने गए थे. मध्य पूर्व (पश्चिमी एशिया) की बदलती हुई भू-राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले ईरान के लिए रईसी की असामयिक मौत ईरान के लिए बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर हुई है. अब सवाल उठ रहे हैं कि उनकी गद्दी कौन संभालेगा और विदेश नीति के मामले में ईरान किस रास्ते पर चलेगा.

 

इब्राहिम रईसी के कार्यकाल के दौरान अमेरिका और ईरान के संबंध बिगड़ते ही चले गए थे. क्योंकि दोनों देश कई मोर्चों और विशेष रूप से यूक्रेन और ग़ज़ा में चल रहे मौजूदा संघर्षों के साथ साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम जैसे कई मसलों पर एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे. अमेरिका में इसी साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं.

 इब्राहिम रईसी के कार्यकाल के दौरान अमेरिका और ईरान के संबंध बिगड़ते ही चले गए थे. क्योंकि दोनों देश कई मोर्चों और विशेष रूप से यूक्रेन और ग़ज़ा में चल रहे मौजूदा संघर्षों के साथ साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम जैसे कई मसलों पर एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे.

भले ही ऊपरी तौर पर कुछ भी लगे, लेकिन इब्राहिम रईसी की मौत का ईरान की राजनीतिक स्थिरता पर कोई ख़ास फ़ौरी असर नहीं पड़ेगा. संवैधानिक प्रक्रियाओं और सुरक्षा की मज़बूत व्यवस्थाओं की वजह से अगले राष्ट्रपति के हाथों में सत्ता की बागडोर बड़ी आसानी से जाने की गारंटी है. ईरान के संविधान की धारा 131 के मुताबिक़, देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़मेनेई की मंज़ूरी से पहले उप-राष्ट्रपति मुहम्मद मोख़बर ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद संभाल लिया है. ईरान की संरक्षक परिषद के शुरुआती एलान के मुताबिक़, ईरान में नया राष्ट्रपति चुनने के लिए 28 जून 2024 को चुनाव कराए जाएंगे.

 

ईरान में आने वाले चुनावों से पारंपरिक रूप से रूढ़िवादी कई और उम्मीदवारों के लिए राष्ट्रपति पद पर दावेदारी ठोकने का मौक़ा मिलेगा. इब्राहिम रईसी को एक रूढ़िवादी राष्ट्रपति माना जाता था, जिनके सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़मेनेई से क़रीबी संबंध थे. उनके निधन की वजह से ईरान के सियासी मंज़र में कुछ बदलाव तो आएगा, जिससे कुछ अन्य रूढ़िवादी नेताओं को आगे आकर राष्ट्रपति चुनाव में मुक़ाबला करने का अवसर प्राप्त होगा. अब ईरान की सड़कों और सार्वजनिक स्थानों में यही सवाल सबसे ज़्यादा पूछा जा रहा है कि रईसी की जगह नया राष्ट्रपति कौन बनेगा. कुछ संभावित उम्मीदवारों में- अंतरिम राष्ट्रपति मुहम्मद मोख़बर; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख अली शमख़ानी; संसद के स्पीकर मुहम्मद बघेर क़लीबाफ़; और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) से जुड़े रहे ईरान की संसद के पूर्व अध्यक्ष अली लारीजानी हो सकते हैं. इस समय ईरान की सत्ता पर रूढ़िवादी नेताओं का दबदबा है. ख़ास तौर से उन लोगों का जो ईरान के सर्वोच्च नेता ख़मेनेई और ताक़तवर IRGC से जुड़े हुए हैं. चूंकि सुधारवादी इस वक़्त हाशिए पर हैं. ऐसे में आने वाले वक़्त में संभावित सत्ता संघर्ष मुख्य रूप से रूढ़िवादी तबक़े के भीतर ही होगा. केवल रूढ़िवादी नेताओं के बीच होने वाले मुक़ाबले की वजह से मुहम्मद बघेर क़लीबाफ़, इब्राहिम रईसी की जगह लेने वाले सबसे मज़बूत प्रत्याशी हो सकते हैं. क्योंकि, रूढ़िवाती सत्ता वर्ग के बीच में उनको काफ़ी समर्थन हासिल है.

पश्चिमी मीडिया

 

पश्चिमी देशों का मीडिया, लंबे समय से ये शोर-गुल बहुत मचाता रहा है कि ईरान का इस्लामिक गणराज्य अपने दूरगामी अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. हालांकि, ईरान में इस्लामिक शासन व्यवस्था ने ख़ुद को एक टिकाऊ व्यवस्था के तौर पर साबित किया है और पिछले चार दशकों से उसका धार्मिक ढांचा मज़बूती से बना हुआ है. हो सकता है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के बीच नेतृत्व परिवर्तन के दौरान कुछ संघर्ष होता हो. लेकिन, ईरान में शासन व्यवस्था के बुनियादी संस्थान अभी तो स्थिर नज़र आते हैं, और उनमें कोई टूट-फूट नहीं दिखाई देती है. अयातुल्लाह ख़मेनेई के नेतृत्व ने ईरान की हुकूमत को निरंतरता और स्थिरता प्रदान की है और उनके दिशा निर्देश में आगे भी ये व्यवस्था अपने आपको स्थिर बनाए रखेगी. अंदरूनी चुनौतियों और बाहरी दबाव के बावजूद, ईरान के इस्लामिक गणराज्य ने काफ़ी लचीलापन दिखाया है और उसने अपने पूरे इतिहास में तमाम तूफ़ानों सुरक्षित बचने की क़ाबिलियत दिखाई है. कई दशकों से पश्चिमी देशों के नैरेटिव में या तो इस्लामिक गणराज्य के ढह जाने या फिर जन आंदोलन के ज़रिए उखाड़ फेंके जाने के दावे किए जाते रहे हैं. इन सभी अटकलों के बावजूद, एक अहम बात जो ध्यान देने वाली है कि राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी, सर्वोच्च नेता अयातुल्ला ख़मेनेई की विरासत संभालने के प्रमुख उम्मीदवार नहीं थे.

 घरेलू चुनौतियां एक तरफ़, पर रईसी के जाने के बाद भी ईरान की विदेश नीति जस की तस बनी रहेगी. हो सकता है कि बदलते हुए हालात के मुताबिक़ कुछ फ़ौरी बदलाव किए जाएं. पर, निकट भविष्य ईरान की विदेश नीति को दिशा देने वाले बुनियादी सिद्धांतों में कोई ख़ास बदलाव होने की उम्मीद नहीं है. 

घरेलू चुनौतियां एक तरफ़, पर रईसी के जाने के बाद भी ईरान की विदेश नीति जस की तस बनी रहेगी. हो सकता है कि बदलते हुए हालात के मुताबिक़ कुछ फ़ौरी बदलाव किए जाएं. पर, निकट भविष्य ईरान की विदेश नीति को दिशा देने वाले बुनियादी सिद्धांतों में कोई ख़ास बदलाव होने की उम्मीद नहीं है. देश के सामरिक फ़ैसले सर्वोच्च नेता और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद लेती है, राष्ट्रपति कार्यालय नहीं. आगे चलकर भी ईरान हमास और हिज़्बुल्लाह जैसे प्रतिरोध करने वाले उन हथियारबंद संगठनों को मदद देता रहेगा, जो इज़राइल के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं. इसका मतलब ये है कि नया राष्ट्रपति बनने के बावजूद ईरान की क्षेत्रीय नीतियां, इस इलाक़े में अपने सहयोगियों को समर्थन देना और परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी नीतियों में कोई ख़ास बदलाव नहीं आने वाला है.

 

अब जबकि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव क़रीब आते जा रहे हैं, तो हो सकता है कि इज़राइल दोनों देशों के बीच चल रहे संघर्ष को और बढ़ाने की कोशिश करे. ये हालात मध्य पूर्व के व्यापक इलाक़े में जटिल और उथल-पुथल भरे आयामों को ही रेखांकित करते हैं, जहां भू-राजनीतिक प्रतिद्वंदिताएं और सुरक्षा संबंधी चिंताएं अक्सर खुफिया अभियानों और पलटवार के क़दमों के ज़रिए सामने आती हैं. वैसे तो बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को अभी भी उम्मीद है कि वो अमेरिका को ईरान के ख़िलाफ़ युद्ध में घसीट सकता है. लेकिन, ऐसा लगता है कि अमेरिका, ईरान से सीधे तौर पर टकराव नहीं चाहता है. राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत की पुष्टि होने के बाद, अमेरिका और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रिश्तों के बावजूद, अमेरिकी सरकार ने ईरान के राष्ट्रपति के निधन पर आधिकारिक रूप से शोक जताया था. वैसे तो ईरान की विदेश नीति में राष्ट्रपति और विदेश मंत्री मुख्य नीति निर्माता नहीं हैं. लेकिन, इस स्तर का पद ख़ाली रहने से ग़ज़ा को लेकर उसकी कूटनीतिक गतिविधियों पर बुरा असर असर पड़ सकता है और अमेरिका में चुनाव से पहले बाइडेन प्रशासन से बातचीत करने का एक सुनहरा अवसर ईरान के हाथ से निकल सकता है. इसका नुक़सान ये हो सकता है कि इससे अमेरिका की मध्य पूर्व की नीति पर बेंजामिन नेतन्याहू का असर और मज़बूत हो सकता है.


(वली गोलमोहम्मदी पीएच.डी. तारबियात मोडारेस विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, तेहरान, ईरान में सहायक प्रोफेसर हैं.)

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