Published on Aug 04, 2017 Updated 0 Hours ago

वित्त वर्ष 2017 के लिए आईएमएफ का विकास अनुमान थोड़ा आशावादी प्रतीत होता है क्‍योंकि भारत की आर्थिक विकास दर 7.2 फीसदी से कुछ ही कम रहेगी। इसी तरह वित्त वर्ष 2018 के लिए आईएमएफ का विकास अनुमान थोड़ा निराशावादी प्रतीत होता है क्‍योंकि भारत की आर्थिक विकास दर 7.7 फीसदी से कुछ ही अधिक रहेगी।

क्या आईएमएफ ने जीएसटी के असर को दरकिनार कर दिया?

स्रोत: पीटीआई

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 24 जुलाई को जारी अपने नवीनतम विश्व आर्थिक आउटलुक अपडेट के अंतर्गत अपने विकास अनुमानों में भारत द्वारा लागू किए गए वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के असर को संभवत: शामिल नहीं किया है। वैसे तो संबंधित डेटा का प्रवाह अभी तक शुरू नहीं हुआ है, लेकिन ऐसी चर्चाएं आम हैं कि कई वस्‍तुओं को फि‍लहाल खुदरा दुकानों तक पहुंचने से रोका जा रहा है। बादाम से लेकर कलम एवं पुस्तकों तक के कुछ क्षेत्रों और सीधे उपभोक्ताओं से जुड़े व्यवसायों में कुछ हद तक ठहराव की स्थिति देखी जा रही है। जीएसटी को लागू किए जाने के बाद प्रथम महीना पूरा होने में अभी कुछ दिन बाकी हैं और यदि इस वजह से हो रही आर्थिक उथल-पुथल एवं सियासी शोर-शराबे की बातों को एक तरफ रख दें तो भी यह बात तय है कि फि‍लहाल इसके चलते विकास की गति धीमी होने का वास्तविक खतरा नजर आ रहा है। हालांकि, यह सब जीएसटी की लंबी कहानी में महज अटकलबाजियां हैं और सही तस्‍वीर पाने के लिए हमें धैर्य रखना चाहिए और इसके साथ ही संबंधित आंकड़ों का इंतजार भी करना चाहिए।

अनुभवजन्य आधार पर हमारे पास ये आंकड़े हैं। आईएमएफ ने अपने आउटलुक ने कहा है, ‘वित्त वर्ष 2017 में 7.2 फीसदी और वित्त वर्ष 2018 में 7.7 फीसदी विकास दर के साथ भारत अब भी विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती या विकासोन्‍मुख महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है।’ इतना ही नहीं, अगले दो वर्षों के लिए अनुमानित भारत की यह विकास दर विश्‍व की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और भारत के आर्थिक प्रतिद्वंद्वी चीन की विकास दर की तुलना में क्रमश: 0.5 फीसदी और 1.30 फीसदी ज्‍यादा है। अगले दो वर्षों के दौरान वैश्विक उत्पादन में क्रमश: 3.5% और 3.6% की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि इस दौरान उभरते बाजार एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के क्रमश: 4.6% और 4.8% की दर से बढ़ने का अनुमान है। वहीं, दूसरी ओर सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्र अर्थात उभरते एवं विकासशील एशिया द्वारा इन दोनों ही वर्षों के दौरान 6.5% की आर्थिक विकास दर के साथ अगुवाई करने की उम्मीद है।

आईएमएफ के विकास अनुमान (प्रतिशत में)

2017

2018

भारत 7.2 7.7
चीन 6.7 6.4
वैश्विक उत्‍पादन 3.5 3.6
स्‍पेन 3.1 2.4
कनाडा 2.5 1.9
अमेरिका 2.1 2.1
मेक्सिको 1.9 2.0
जर्मनी 1.8 1.6
ब्रिटेन 1.7 1.5
फ्रांस 1.5 1.7
रूस 1.4 1.4
जापान 1.3 0.6
इटली 1.3 1.0
दक्षिण अफ्रीका 1.0 1.2
ब्राजील 0.3 1.3

ऐसा प्रतीत होता है कि नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से जीडीपी पर पड़ा असर शायद पर्याप्‍त नहीं था (इस बारे में विस्‍तृत विवरण नीचे दिया गया है), क्‍योंकि सरकार ने इसके कुछ ही माह बाद जीएसटी को लागू करने की दिशा में भी अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। इसके रूप में सरकार ने एक और ऐसा बड़ा व्‍यवधान उत्‍पन्‍न किया है अथवा बदलाव लाया है जिससे पूरे भारत में कर प्रणाली और ज्‍यादा सुचारू एवं और अधिक अपेक्षित या प्रत्‍याशित हो गई है, लेन-देन एवं सामान की डिलीवरी की गति तेज हो गई है और इसके साथ ही इस कर प्रणाली ने अपनी सरल प्रोत्साहन संरचना के जरिए अप्रत्यक्ष करों के नेटवर्क में और अधिक कारोबारियों को ला दिया है।

निरंतर एवं लगभग अपेक्षित आर्थिक व्‍यवधान वाले इस युग में भी भारत जिस अच्‍छी गति से विकास कर रहा है, वह उसकी अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता और भारत के नए नेतृत्व में पुरानी एवं पुरातन संरचनाओं को ध्‍वस्‍त करके उनकी जगह पर नई व्‍यवस्‍थाओं को 21वीं सदी में अपनाने के लिए नीतिगत जोखिम उठाने से संबंधित उसके साहस को दर्शाता है।

यह माना जा रहा था कि इस अपेक्षाकृत अधिक कारगर कर प्रणाली को अपनाने से कर दायरे में शामिल कारोबारियों के लिए बिजनेस करना और ज्‍यादा आसान हो जाएगा। मसलन, किसी भी उत्‍पाद पर पूरे देश में एक ही टैक्‍स लगेगा, अंतर-राज्यीय ट्रांसपोर्टरों के वाहनों की आवाजाही अवरोध मुक्‍त हो जाएगी, इस प्रोत्साहन प्रणाली के तहत निर्माता से रिटेलर की ओर टैक्‍स क्रेडिट का प्रवाह होगा और वस्‍तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) के रूप में एक इलेक्ट्रॉनिक सहायक (बैकएंड) बुनियादी ढांचा इस नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को और ज्‍यादा सुचारू बना देगा। यह भी माना जा रहा था कि जो लोग टैक्‍स नेटवर्क से बाहर हैं उन्‍हें जीएसटी प्रणाली अपने दायरे में लाने पर विवश कर देगी। दरअसल, सड़कों पर हो-हंगामा करने वाले ज्‍यादातर लोग वैसे हैं जो कर चोरी करते रहे हैं। इसके साथ ही सियासत करने वाले ऐसे लोग भी इनमें शामिल हैं जो अपने वजूद को बनाए रखने के लिए शोर-शराबा और राजनीतिक प्रदर्शनों का बेजां इस्‍तेमाल करते हैं। इन सभी का अंदाजा पहले ही लगाया जा चुका था और उसी तर्ज पर ड्रामेबाजी जारी है। हालांकि, यह तय है कि आने वाले समय में जीएसटी प्रणाली की अनिवार्यता को उद्यमी अंततः भलीभांति समझ जाएंगे और फि‍र वे इसे अपना लेंगे। गड़बड़ी करने वाले ऐसे कारोबारी जिन्‍होंने जानबूझकर टैक्‍स चोरी करने वाले बिजनेस मॉडल को अपना रखा था वे इस प्रणाली से बाहर हो जाएंगे। वहीं, इस तरह के कुछ कारोबारी अपने बिजनेस में गड़बड़ी करने के नए तरीके ढूंढ ही निकालेंगे। हमें उनको लेकर परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है।

जहां हमें सावधान रहने की जरूरत है उनका वास्‍ता हमारे विकास अनुमानों से है। बेशक, जीडीपी वृद्धि दर धीमी हो जाएगी। हर अर्थशास्त्री को यह मालूम है और सरकार भी इससे भलीभांति वाकिफ है, क्योंकि आर्थिक लेन-देन करने वाले कारोबारी इस नई कर प्रणाली पर अभी करीबी नजर रख रहे हैं जिसे स्थिरता हासिल करने में कुछ वक्‍त लगेगा। ‘जीएसटी को कुछ समय बाद लागू किया जाना चाहिए था’ जैसी दलीलें बकवास हैं क्‍योंकि यही दलीलें आज से तीन महीने, छह महीने, 12 महीने और यहां तक कि एक दशक बाद भी जीएसटी को लागू करने पर दी जातीं। यही नहीं, फलां वस्तु या फलां सेवा पर कर की दरें कम रखे जाने को लेकर शोर-शराबा भी पहली तिमाही में बदस्‍तूर जारी रहेगा और यह जीएसटी को लागू करने के बाद दूसरी तिमाही तक अपने-आप थम जाएगा।

जीएसटी प्रणाली की वास्तविक समस्याएं उसकी दरों या उसे लागू करने के समय से जुड़ी हुई नहीं हैं। इन समस्‍याओं का वास्‍ता दरअसल नई कर अनुपालन प्रणाली से है जिससे भारत के कारोबारियों का पाला इससे पहले कभी भी नहीं पड़ा है। दूसरे शब्‍दों में, नई कर अनुपालन प्रणाली भारत के कारोबारियों को कतई रास नहीं आ रही है।

जब कोई व्‍यक्ति इसमें कर नीति की चिर-परिचित अवधारणा को भी शामिल कर देता है जिसके तहत कर अधिकारी उद्यमियों के साथ अपराधी की तरह व्यवहार किया करते थे तो वह अर्थव्यवस्था में अनावश्यक घबराहट का माहौल उत्‍पन्‍न कर देता है। जाहिर है, इस तरह की सोच वाले कारोबारियों को ऐसा लगता है कि इस नई कर प्रणाली को अपनाने से बेहतर यही है कि किसी भी तरह इससे दूर ही रहा जाए। इस नई कर प्रणाली के अनुपालन में इतनी जटिलता है कि कोई भी गलती नहीं करना असंभव होगा। वैसे, सरकार अपनी ओर से इन आशंकाओं को निराधार साबित करने की कोशिश कर रही है। उदाहरण के लिए, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने उद्यमियों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि जीएसटी को लागू करने के बाद पहले दो महीनों में गलत प्रविष्टियों के लिए कोई भी पेनाल्‍टी नहीं लगेगी। यह माना जा रहा है कि कर अनुपालन से जुड़ी उलझनों के सुलझते ही कारोबारी लेन-देन की गति तेज होने, कर संग्रह की दक्षता बेहतर होने, मध्यम अवधि में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था द्वारा औपचारिक स्‍वरूप ग्रहण करने और कारोबार करने के फायदों का एक ऐसा मिला-जुला बढि़या चक्र शुरू हो जाएगा जो देश में आर्थिक विकास को नई गति प्रदान करेगा।

यहां हमें एक अन्य व्यवधान से सबक लेने की जरूरत है और वह है नोटबंदी (विमुद्रीकरण)। काले धन को बाहर निकालने के लिए अपनाए गए इस प्रयोग से वे तमाम अपेक्षित एवं सिलसिलेवार परिणाम सामने नहीं आए जिनका उल्‍लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान किया था और फि‍र तत्‍पश्‍चात जिनमें कुछ और अपेक्षित परिणामों को उनके मंत्रियों एवं अधिकारियों ने जोड़ दिया था। यह दावा किया जा रहा था कि नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से भ्रष्टाचार एवं काले धन से लेकर आतंकवादियों को धन मिलने, नकली नोटों और अचल संपत्ति की कीमतों में गिरावट जैसी भारत की समस्‍त आर्थिक एवं नैतिक समस्‍याओं का सरल अचूक समाधान हो जाएगा। अचल संपत्ति की कीमतों में गिरावट को छोड़कर इनमें से कुछ भी अब तक नहीं हुआ है। हालांकि, अभी प्राप्‍त हो रहे आंकड़ों के ढेर से इन उम्‍मीदों को बल मिल रहा है कि जब अगले लगभग 12 महीनों में ये आंकड़े इकट्ठे हो जाएंगे और उनका विश्‍लेषण किया जाएगा तो नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के सकारात्‍मक नतीजे करदाताओं की बढ़ती संख्या और टैक्‍स चोरी वाली कुछ रकम को सरकार द्वारा जब्‍त किए जाने के रूप में अवश्‍य ही सामने आएंगे। उदाहरण के लिए, जिन लोगों ने एक निश्चित राशि से ज्‍यादा पुराने नोट जमा किए हैं उनसे पूछताछ की जाएगी और यदि वह पैसा उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से मेल नहीं खाएगा, तो उन्हें दंडित किया जाएगा। नोटबंदी (विमुद्रीकरण) ने ‘कैश’ में लेन-देन को अब पहले से कहीं ज्‍यादा जोखिम भरा कर दिया है।

नोटबंदी (विमुद्रीकरण) का जो एकमात्र वृहद आर्थिक नतीजा सामने आया है वह है आर्थिक विकास को अल्‍पकालिक झटका। जनवरी-मार्च 2017 की तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर गिरकर 6.1 प्रतिशत के स्‍तर पर आ गई जो नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के बाद प्रथम पूर्ण तिमाही है। यह पिछले दो वर्षों में सबसे कम जीडीपी वृद्धि दर है, जो इससे पिछली तिमाही में 7.4 फीसदी और पिछले वर्ष की समान तिमाही में 7.6 फीसदी थी। यही नहीं, इस तिमाही के दौरान भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍था होने का तमगा भी चीन के हाथों गंवा बैठा क्‍योंकि उसकी जीडीपी वृद्धि दर इसी अवधि में भारत से कहीं ज्‍यादा 6.9 फीसदी रही। हालांकि, वित्‍त वर्ष 2016-17 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.1 फीसदी रही जो आश्‍चर्यजनक रूप से अपेक्षा से कहीं ज्‍यादा थी। आईएमएफ का कहना है, ‘सरकार द्वारा किए गए भारी-भरकम खर्च और संबंधित डेटा में संशोधनों की बदौलत ही वर्ष के पूर्वार्द्ध में आर्थिक विकास की रफ्तार कहीं ज्‍यादा तेज रही थी।’ इस बहुपक्षीय बैंक ने 8 जुलाई के अपने नोट, जिसे जी-20 के राजनेताओं के लिए तैयार किया गया था, में भारत के विकास अनुमानों को पूर्व स्‍तर पर ही बरकरार रखते हुए कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि नोटबंदी (विमुद्रीकरण) का नकारात्मक असर अब ‘लुप्त’ होता जा रहा है।’

आर्थिक विकास पर जीएसटी का असर ठीक वैसा ही होगा जैसा नोटबंदी (विमुद्रीकरण) का हुआ है यानी आर्थिक विकास को अल्पकालिक झटका, मध्यमकालिक स्थिरता और फि‍र दीर्घकालिक तेज रफ्तार। दूसरे शब्‍दों में, कुछ समय के लिए आर्थिक विकास को झटका लगेगा, फि‍र उसके बाद के महीनों में स्थिरता नजर आएगी और फि‍र उसके बाद के महीनों में यह तेज रफ्तार पकड़ लेगा। यही कारण है कि वित्त वर्ष 2017 के लिए आईएमएफ का विकास अनुमान थोड़ा आशावादी प्रतीत होता है क्‍योंकि भारत की आर्थिक विकास दर 7.2 फीसदी से कुछ ही कम रहेगी। इसी तरह वित्त वर्ष 2018 के लिए आईएमएफ का विकास अनुमान थोड़ा निराशावादी प्रतीत होता है क्‍योंकि भारत की आर्थिक विकास दर 7.7 फीसदी से कुछ ही अधिक रहेगी।

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