Published on Jun 30, 2020 Updated 0 Hours ago

समस्या का सबसे आसान समाधान तो ये होगा कि चीन अपनी कल्याणकारी योजनाओं को और मज़बूत करे. ताकि, उन कामकाजी लोगों की मदद की जा सके, जो विकास को रफ़्तार देने वाली इस प्रक्रिया के फ़ायदों से वंचित रह जाएंगे. इसके पीछे केवल लोक लुभावन होने या निष्पक्ष दिखने का तर्क नहीं है. बल्कि ये आर्थिक कार्यकुशलता कहा जाएगा.

क्या है चीन के ‘टू सेशन्स’ से मिले संकेत: बड़े वित्तीय स्टिमुलस के बावजूद विकास की कोई गारंटी नहीं है?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली कचियांग बीजिंग में टू सेशन्स की बैठक की शुरुआत के लिए ग्रेट हाल ऑफ़ पीपुल में प्रवेश करते हुए-21 मई 2020. कॉपीराइट एंड्रिया वेर्डेली/गेटी)

चीन में इस साल ‘टू सेशन्स (Two Sessions)’ से बड़ी किसी और बैठक की कल्पना नहीं की जा सकती. ये ऐसी बैठकें होती हैं, जहां चीन का राजनीतिक नेतृत्व हमें चीन की अर्थव्यवस्था के भविष्य के रुख़ के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करता है. इस साल कोरोना वायरस की महामारी के चलते, चीन की ये बेहद अहम राजनीतिक बैठक पहले ही टल चुकी थी. इसके अलावा चीन की सरकार, अर्थव्यवस्था को दोबारा रफ़्तार देने के लिए स्टिमुलस का एलान करने में भी हिचकिचा रही थी. इसीलिए, आख़िरकार जब चीन में इस महत्वपूर्ण बैठक की तारीख़ तय हुई, तो दुनिया इस पर हमेशा से ज़्यादा तवज्जो दे रही थी.

चीन ने अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने के लिए भारी भरकम आर्थिक पैकेज का एलान ज़रूर कर दिया. मगर, विकास का कोई लक्ष्य नहीं तय किया गया है. ये चिंता की बात है और इस बात की ओर इशारा है कि अभी चीन की अर्थव्यवस्था के आर्थिक सुस्ती से उबरने में और वक़्त लगेगा

टू सेशन्स की बैठक को लेकर दुनिया की अपेक्षाएं दो अहम मुद्दों पर केंद्रित थीं:पहला तो ये चीन की सरकार द्वारा इस साल विकास की दर  के लक्ष्य का एलान करना (या न करने पर). चीन के कई विशेषज्ञ इस बात पर एकमत थे कि इस साल एक वर्ष की जीडीपी वृद्धि के लक्ष्य के बजाय दो साल के टारगेट का एलान किया जाना चाहिए. इसे इस आधार पर वाजिब ठहराया जा सकता है कि कोविड-19 की महामारी के कारण दुनिया में असाधारण परिस्थितियां बनी हैं. और इसी कारण से आज ज़रूरत इस बात की है कि अर्थव्यवस्था के विकास उम्मीदों को 2020 से आगे ले जाने की कोशिश की जाए. लोगों की अपेक्षाओं का मार्गदर्शन करना चीन के नेतृत्व के लिए इस कारण से भी महत्वपूर्ण हो गया है कि वर्ष 2020, चीन की मौजूदा पंचवर्षीय योजना का आख़िरी साल है. और साथ ही साथ ये उस दशक की समाप्ति भी है, जब चीन ने अपनी प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. ये वो कार्यकारी लक्ष्य भी है जिसकी तुलना राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ग्रेट रिजुवनेशन (Great Rejuvenation) की योजना से भी की जानी थी. और कुल मिलाकर नतीजा ये निकला कि इस साल चीन ने अपने लिए विकास का कोई लक्ष्य नहीं निर्धारित किया है. इसका एक मतलब तो ये निकलता है कि स्थिरता से अधिक महत्व लचीलेपन को दिया गया है. चूंकि चीन के आर्थिक प्रबंधन में हमेशा स्थिरता प्रदान करने को अहमियत दी गई है, ऐसे में इस बार चीन की सरकार ने स्थिरता के बजाय लचीलेपन को महत्व देकर ये संकेत दिए हैं कि लोगों को चीन में इस वर्ष और शायद अगले साल भी आर्थिक गतिविधियों को लेकर बहुत अधिक उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए. इस साल चीन ने बेरोज़गारी का जो लक्ष्य निर्धारित किया है (6 प्रतिशत, जो कि पिछले वर्ष अप्रैल माह के स्तर के बराबर है), वो भी ये संकेत देता है कि इस साल चीन की आर्थिक विकास दर काफ़ी कमज़ोर रहेगी.

टू सेशन्स (Two Sessions) से जुड़ा जो दूसरा महत्वपूर्ण विषय था, वो है आर्थिक स्टिमुलस पैकेज का आकार, जिसका एलान चीन के प्रधानमंत्री ली कचियांग को करना था. अब ये बात एकदम साफ़ है कि आख़िर में जिस वास्तविक आर्थिक पैकेज का एलान किया गया, उम्मीदें उससे भी कम की लगाई जा रही थीं. जहां तक मौद्रिक पहलू की बात है तो ब्याज दर कम होने और महंगाई की दर अधिक होने का लक्ष्य निर्धारित करना ये बताता है कि आगे चल कर चीन और भी कमज़ोर मौद्रिक नीति चुनने का रास्ता अपनाएगा. और जहां तक स्टिमुलस के वित्तीय पहलू की बात है तो आगे चल कर इससे भी बड़े पैकेज की घोषणा होने की उम्मीद की जा सकती है. क्योंकि इस बैठक में स्थानीय सरकारों के बॉन्ड का हिस्सा बढ़ा कर 3.75 अरब रेनमिन्बी कर दिया गया है. जो कि पिछले वर्ष 2.6 ख़रब RMB ही था. और जैसे कि स्थानीय सरकारों के खाते में 40 प्रतिशत का इज़ाफ़ा ही पर्याप्त न हो, तो, इसके साथ साथ एक ख़रब RMB के स्पेशल ट्रेज़री बॉन्ड का भी एलान इस बैठक में किया गया. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि चीन की सरकार ने अपने बैलेंस शीट से इतर ऐसे बॉन्ड का इस्तेमाल वर्ष 2007 में किया था. और आख़िर में इन सभी एलानों की सबसे जादुई बात ये है कि वित्तीय घाटे के लक्ष्य को सीमित ही रखा गया है. क्योंकि सरकारी बॉन्ड जारी करने में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. वित्तीय घाटे का लक्ष्य वर्ष 2020 में चीन की जीडीपी (GDP) 3.6 प्रतिशत रखा गया है.

चीन ने अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने के लिए भारी भरकम आर्थिक पैकेज का एलान ज़रूर कर दिया. मगर, विकास का कोई लक्ष्य नहीं तय किया गया है. ये चिंता की बात है और इस बात की ओर इशारा है कि अभी चीन की अर्थव्यवस्था के आर्थिक सुस्ती से उबरने में और वक़्त लगेगा. जबकि चीन में इस महामारी पर क़ाबू पाए हुए भी दो महीने से अधिक समय बीत चुका है. अर्थव्यवस्था में मांग के पहलू के बारे में ये बात तो और सटीक बैठती है. दूसरे देशों में चीन के उत्पादों की मांग लगातार कमज़ोर बनी हुई है. क्योंकि आज पूरी दुनिया ही कोविड-19 की महामारी की शिकार है. और इससे भी अधिक चिंता की बात है कि चीन की घरेलू मांग भी कमज़ोर बनी हुई है. इस बात के संकेत हमें ख़ुदरा बाज़ार में बिक्री कम होने और महंगाई की दर नकारात्मक होने के दबाव से मिलते हैं.


चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ‘टू सेशन्स’ में जिस आर्थिक पैकेज या स्टिमुलस की घोषणा की गई है, उसमें संपत्तियों के निजीकरण का पहलू नदारद है. इससे भी सार्वजनिक ऋण में बढ़ोत्तरी का ही संकेत मिलता है

इन हालात में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि, अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने के लिए और बड़े स्टिमुलस की ज़रूरत है. ऐसे में चीन के प्रधानमंत्री ली कचियांग के एलान का स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन, दिक़्क़त ये है कि दुनिया में कुछ भी मुफ़्त में नहीं मिलता है. और अतिरिक्त स्टिमुलस का मतलब होगा, सरकार के पास और नियंत्रण होगा. चीन की सरकार ने जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की है, अगर सरकार अपनी आमदनी बढ़ाने के नए ज़रिए नहीं तलाशती है तो उससे सरकारी क़र्ज़ में और बढ़ोत्तरी ही होगी. और फिलहाल तो सरकार की आमदनी बढ़ने की संभावना बहुत कम ही दिखती है. ऐसा तभी हो सकता है जब चीन की सरकार अपनी संपत्तियों का विनिवेश करे. चीन में जिस ज़मीन सुधार कार्यक्रम का पहले एलान किया गया था, उससे ग्रामीण क्षेत्र की जनता को संपत्ति अर्जित करने में और मदद मिलने की संभावना है. लेकिन, इन सभी उपायों से सरकार को अपना क़र्ज़ कम करने में किस तरह से मदद मिलेगी, ये समझ पाना ज़रा मुश्किल है. बल्कि, चीन के आर्थिक तरक़्क़ी पर ज़ोर देने वाले उपायों से इसका सरकारी क़र्ज़ बढ़ने की ही आशंका अधिक है. क्योंकि स्थानीय सरकारों से संपत्ति का स्थानांतरण ग्रामीण जनता को होने से (क्योंकि ज़मीन बेचने से अर्जित होने वाला राजस्व कम होगा) चीन के सार्वजनिक ऋण में और वृद्धि होगी. चूंकि, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ‘टू सेशन्स’ में जिस आर्थिक पैकेज या स्टिमुलस की घोषणा की गई है, उसमें संपत्तियों के निजीकरण का पहलू नदारद है. इससे भी सार्वजनिक ऋण में बढ़ोत्तरी का ही संकेत मिलता है. हमारा आकलन है कि पिछले कुछ वर्षों से चीन का वित्तीय घाटा इसके जीडीपी (GDP) के 8 प्रतिशत के आस पास ही रहता रहा है. इसका मतलब ये है कि कोविड-19 की महामारी से पहले से ही चीन का सार्वजनिक ऋण लगातार बढ़ रहा है. हालांकि, वित्तीय घाटे का अधिकतर हिस्सा स्थानीय सरकारों के विकास के कार्यो को वित्तीय मदद देने वाले खाते में दर्ज हो रहा है. इससे साफ़ है कि चीन के पास वित्तीय क़दम उठाने की उतनी शक्ति नहीं रह गई है, जितनी कभी पहले हुआ करती थी. और अगर हम इन हालात में इस पहलू को भी जोड़ कर देखें कि चीन के कॉरपोरेट क़र्ज़ का एक बड़ा हिस्सा सरकारी कंपनियों (अगर हम सूचीबद्ध कंपनियों के हवाले से देखें, तो ये क़रीब 60 प्रतिशत है) के हिस्से में आता है. तो, चीन का कुल सार्वजनिक ऋण अमेरिका या अधिकतर यूरोपीय देशों से कहीं अधिक है. पर अच्छी ख़बर ये है कि चीन की घरेलू बचत का दायरा इतना बड़ा है कि वो अपने क़र्ज़ के इस बोझ का प्रबंधन स्वदेशी स्तर पर करने में सक्षम है. दूसरे शब्दों में कहें तो, महामारी के प्रकोप के नकारात्मक आर्थिक पहलुओं पर क़ाबू पाने के बाद चीन के पास इतनी आर्थिक शक्ति बचेगी कि वो अपने सरकारी क़र्ज़ के बोझ को कम करने में सफल हो सके. इस संदर्भ में हमें व्यापक आर्थिक सुस्ती के आगे भी जारी रहने के लिए तैयार रहना चाहिए. क्योंकि बढ़ते सरकारी क़र्ज़ को सीमित रखने के लिए सरकारें पूंजी पर नियंत्रण और बढ़ाएंगी, ताकि महामारी का सामना कर सकें.

यहां इस बात का भी ख़याल रखना होगा कि केवल डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश से आवश्यक रोज़गार का सृजन कर पाना मुश्किल होगा. और न ही इससे पर्याप्त ख़र्च लायक़ आमदनी बढ़ सकेगी

और आख़िरी सवाल ये है कि चीन की सरकार इस आर्थिक पैकेज का पैसा कैसे ख़र्च करेगी? ‘टू सेशन्स’ की बैठक में प्रधानमंत्री ली कचियांग ने इस बारे में तस्वीर कुछ ख़ास स्पष्ट नहीं की. यहां ये कहने की ज़रूरत नहीं कि कोई आर्थिक पैकेज तभी प्रभावी होता है, अगर उसे उत्पादन की गतिविधियां बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाए. लेकिन, चीन के मामले में ये बात इतनी साफ़ नहीं दिखती. इसका कारण ये है कि चीन की सरकार ने रियल स्टेट और मूलभूत ढांचे के विकास जैसे क्षेत्रों में ज़रूरत से बहुत अधिक निवेश कर रखा है. दूसरे शब्दों में कहें तो चीन की सरकार ने जिस आर्थिक पैकेज का एलान किया है, उसका मक़सद सरकारी क़र्ज़ का बोझ कम करना नहीं है. क्योंकि इसे तो चीन अपनी अधिक बचत वाली पूंजी के ज़रिए संभाल सकता है. बल्कि, इस पैकेज का लक्ष्य ऐसे फ़ायदेमंद प्रोजेक्ट तलाशना है, जहां निवेश किया जा सके. इस संदर्भ में ये कहना बेहतर होगा कि कई कंपनियां चीन को इस अवसर का लाभ उठाकर अपने डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार के लिए प्रेरित कर रही हैं. वैसे तो इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन, यहां इस बात का भी ख़याल रखना होगा कि केवल डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश से आवश्यक रोज़गार का सृजन कर पाना मुश्किल होगा. और न ही इससे पर्याप्त ख़र्च लायक़ आमदनी बढ़ सकेगी. इसका एक मतलब ये भी है कि चीन के नेताओं को डिजिटिल शक्ति के विस्तार का लालच छोड़ कर, आर्थिक पैकेज का इस्तेमाल अधिक श्रम आधारित और उत्पादकता बढ़ाने वाले क्षेत्रों जैसे कि मूलभूत ढांचे और रियल स्टेट में निवेश करना चाहिए.

आर्थिक पैकेज की मदद से अधिक लक्ष्य आधारित और उत्पादकता बढ़ाने वाले क़दम उठाने वाले मदद की ज़रूरत इसलिए भी होगी ताकि कामगारों को रोज़गार मिल सके. और उनकी आमदनी इतनी हो सके कि उनके पास नियमित रूप से ख़र्च के लिए पैसों की आमद बनी रहे. इसका सबसे अच्छा ज़रिया ये होगा कि चीन की सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं को और मज़बूत बनाए. ताकि, उन कामगारों की मदद की जा सके, जो आर्थिक विकास को दोबारा पटरी पर लाने की प्रक्रिया में पीछे छूट जाएंगे. इसके पीछे केवल लोक लुभावन और निष्पक्ष दिखने का तर्क नहीं है. बल्कि, इससे आर्थिक कार्यकुशलता हासिल की जा सकेगी. संसाधनों के बेहतर वितरण की मदद से चीन, अपनी संरचनात्मक आर्थिक मंदी से बच सकेगा. जिससे फिलहाल बचने का रास्ता नहीं दिख रहा है. हालांकि, उत्पादकता बढ़ने से होने वाले लाभों का इस्तेमाल, घरेलू आमदनी बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए. इसके लिए लोगों के हाथों में नक़दी सौंप कर चीन, अपने उस खपत आधारित आर्थिक मॉडल के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो सकता है, जिसके लिए वो काफ़ी समय से कोशिश कर रहा है. किसी भी समाज में नई जान फूंकने का इससे अच्छा तरीक़ा क्या हो सकता है कि कमज़ोर तबक़े के लोगों को आर्थिक सुरक्षा के पर्याप्त संसाधन मुहैया कराए जाएं. और साथ ही साथ नई नई खोज के ज़रिए आर्थिक समृद्धि बढ़ाई जाए. नीतिओं के इस मेल से चीन का नेतृत्व इस महामारी को ऐसे ऐतिहासिक अवसर के रूप में भुना सकेगा, जिसकी मदद से अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण किया जा सके.

कुल मिलाकर कहें, तो चीन का आर्थिक वृद्धि का कोई लक्ष्य निर्धारित न करना एक अच्छी ख़बर है. पर, ये बात चीन की अर्थव्यवस्था की ख़राब स्थिति की ओर भी इशारा करती है. क्योंकि, चीन ने विशाल मौद्रिक और वित्तीय पैकेज का एलान किया है. चीन अपने इस आर्थिक पैकेज का इस्तेमाल कैसे करता है, ये बात पूरी दुनिया पर असर डालेगी. अगर, इसके माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने वाला लक्ष्य आधारित निवेश किया जाता है, तो विकास दर को दोबारा हासिल कर पाना आसान होगा. लेकिन, शायद रोज़गार बढ़ाने में उतनी सफलता न मिल सके. रोज़गार के अवसर बढ़ाने और खपत के लिए ज़रूरी आमदनी का स्तर बनाए रखने के लिए, एक मज़बूत कल्याणकारी राजकीय व्यवस्था का निर्माण करना अब वक़्त की मांग बन चुका है.

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