Author : Rajiv Ranjan

Published on Mar 21, 2020 Updated 9 Days ago

सरकार, सामाजिक संगठन और आम जनता मिल कर ऐसा सघन और आपसी सामंजस्य वाला अभियान शुरू करें, जिससे कोरोना वायरस के प्रकोप को पराजित किया जा सके.

#Covid-19 के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमें चीन से मिल रहा है सबक!

कोरोना वायरस, जिसका आधिकारिक नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 रखा है, वो अब तक दो लाख से ज़्यादा लोगों को अपना शिकार बना चुका है. वायरस का संक्रमण पांच महाद्वीपों के सौ से अधिक देशों में फैल चुका है. इस वायरस से संक्रमित पहले मरीज़ की पहचान आठ दिसंबर 2019 को चीन के हूबे प्रांत के शहर वुहान मं हुई थी. जब वुहान के स्थानीय अस्पताल के कुछ डॉक्टरों ने सार्स (SARS) जैसे वायरस के संक्रमण की शुरुआती रिपोर्ट दी थी, तो चीन के अधिकारियों ने उसे अफ़वाह बता कर दबा दिया था. ऐसा माना जाता है कि ग़लत सूचना और इस वायरस को समझने में ग़लती के कारण, चीन में उस समय लोगों के बीच दहशत फैल गई थी, जब वो नए साल यानी ईयर ऑफ़ रैट का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे थे. ईयर ऑफ़ रैट को चीन के लोग मनहूस मानते है. अतीत में चीन ने जो सबसे भयानक संकट झेले हैं, जैसे कि 1840 का अफ़ीम युद्ध, वर्ष 1900 का बक्सर युद्ध, 1960 का भयंकर अकाल और 1998 में यांग्त्ज़े नदी में आई भयंकर बाढ़ या फिर 2008 में सिचुआन में आया ज़बरदस्त भूकंप. ये सब की सब आपदाएं, ईयर ऑफ़ रैट में चीन पर आई थीं.

चीन में संक्रामक बीमारियों के फैलने का एक लंबा-चौड़ा इतिहास दस्तावेज़ों में दर्ज है. 1840 ईस्वी से पहले चीन के अलग-अलग ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में 826 महामारियों के फैलने का ज़िक्र मिलता है. इनमें से कुछ बीमारियों का प्रकोप इस तरह है-

  1. रैडक्लिफ़ युद्ध के दौरान थ्री किंगडम में महामारी फैली थी.
  2. टैंग वंश के राजा टियानबाओ के शासन काल के तेरहवें वर्ष में
  3. सॉन्ग वंश के आख़िरी दिनों में जब मंगोलिया की सेना ने सिचुआन दियाओयू शहर की घेरेबंदी की थी, 1259 और 1279 में युआन वंश के इतिहास में दर्ज है.
  4. 1641-43 में मिंग राजवंश और क़िंग राजवंश के उदय के दौरान चोंगझेन में महामारी फैलने का रिकॉर्ड दर्ज है.

2003 में जब सार्स (SARS) वायरस फैला था, तो चीन ने जिस बुरी तरह से उस चुनौती से निपटने का प्रयास किया था, उसकी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी आलोचना हुई थी. विशेष तौर पर बाक़ी दुनिया को इस वायरस के बढ़ते प्रकोप के बारे में न बताने की वजह से.

इस काम में तकनीक ने चीन की बहुत मदद की. जिसके सहयोग से चीन ने संक्रमित लोगों और उनके संपर्क में आए लोगों तक पहुंच कर उन्हें बाक़ी समाज से अलग-थलग किया.

हालांकि, इस बार जब इस बात की पुष्टि हो गई कि कोरोना वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है. और ये नया वायरस है जिसका फिलहाल कोई इलाज नहीं है. तो, चीन की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था इस वायरस के प्रकोप को थामने के लिए युद्ध स्तर पर काम करने लगी थी. एक करोड़ दस लाख लोगों की आबादी वाले वुहान शहर की पूरी तरह से तालाबंदी कर दी गई थी, ताकि वायरस ज़्यादा फैल न सके. यहां तक कि हूबे प्रांत और वुहान शहर के पार्टी प्रमुखों को भी इस संकट से सक्षमता से न निपट पाने के कारण तुरंत बर्ख़ास्त कर दिया गया था. इससे भी अधिक अहम बात ये कि चीन के अन्य शहर भी स्वेच्छा से क्वारंटीन में चले गए. यानी उन्होंने अनधिकारिक रूप से ख़ुद को बाक़ी देश से अलग-थलग कर लिया. इसके बहुत अच्छे नतीजे सामने आए. चीन में और यहां तक कि हूबे प्रांत में भी, अब वायरस का संक्रमण और नए मामले सामने आने का सिलसिला लगभग शून्य तक पहुंच गया है.

भारत को भी ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि संक्रमित लोगों की पहचान के साथ-साथ उसके संपर्क में आए लोगों का भी पता लगाकर उन्हें अलग-थलग किया जाए, ताकि संक्रमण के प्रसार को सीमित किया जा सके.

ऐसे में, जब कोविड-19 से संक्रमित लोगों और इससे लोगों की मृत्यु की संख्या पूरी दुनिया में लगातार बढ़ रही है, तो ये उचित समय है कि पूरा विश्व और ख़ास तौर से सघन आबादी वाले देश, जैसे भारत को चीन से सीखना चाहिए कि वायरस के प्रकोप को कैसे थामें. पहली बात तो ये है कि चीन ने संक्रमित लोगों का बड़ी कुशलता से पता लगाया और उनके संपर्क में आए लोगों तक पहुंचा. इस काम में तकनीक ने चीन की बहुत मदद की. जिसके सहयोग से चीन ने संक्रमित लोगों और उनके संपर्क में आए लोगों तक पहुंच कर उन्हें बाक़ी समाज से अलग-थलग किया. सह यात्रियों का पता लगाने के लिए, एक पूरी तरह से समर्पित सर्च इंजन और सूची को तैयार किया गया. ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि रेलवे, हवाई यात्रा, बस या कार से सफर के दौरान संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में और उसके आस-पास से जो कोई भी गुज़रा हो, उसका पता लगा कर उसे अलग-थलग किया जाए. भारत को भी ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि संक्रमित लोगों की पहचान के साथ-साथ उसके संपर्क में आए लोगों का भी पता लगाकर उन्हें अलग-थलग किया जाए, ताकि संक्रमण के प्रसार को सीमित किया जा सके.

दूसरी बात ये कि चीन ने अपनी संपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था को इस चुनौती से निपटने के लिए तैयार किया. और अपनी कम से कम आधी स्वास्थ्य सेवाओं को दिन-रात कार्यरत रखा, ताकि बड़े अस्पतालों में बुनियादी इलाज के लिए भीड़ न इकट्ठा हो. साथ ही साथ दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो. डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ़ को वायरस के बारे में सही जानकारी दी गई. इसके अतिरिक्त हॉस्टल, होटल, गोदामों और रिहाइशी इमारतों को भी वैकल्पिक क्वारंटीन वार्ड के तौर पर काम करने के लिए तैयार रखा गया. ताकि किसी अकल्पनीय स्थिति के लिए तैयारी पूरी हो. और ये तैयारी सिर्फ़ वुहान शहर में नहीं थी, बल्कि चीन के सभी बड़े शहरों में थी. यहां तक कि जहां वायरस का संक्रमण नहीं हुआ था, वहां भी इतनी ही तैयारी करके रखी गई थी.

तीसरी बात ये कि चीन के सोशल मीडिया सिना वीबो और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के समाचार पत्र पीपुल्स डेली में लाइव टिकर पर संक्रमित लोगों के बारे में लगातार जानकारी प्रसारित की जा रही थी. उन्होंने तो एक ऐसा ऐप भी विकसित कर लिया था, जो वायरस से संक्रमित लोगों की सजीव जानकारी दे रहा था, ताकि पीड़ित को सामाजिक रूप से कलंकित न किया जा सके. और अन्य लोगों के उसके संपर्क में आने की आशंका को न्यूनतम किया जा सके. इसी तरह, भारत में भी सोशल मीडिया (जैसे फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम वग़ैरह…) की शक्ति का उपयोग लोगों को इस वायरस के संक्रमण के लक्षणों और अन्य जानकारियों को देने में किया जाना चाहिए. आज ये बात सर्वोच्च महत्व रखती है कि सोशल मीडिया का उपयोग ग़लत जानकारी के प्रसार में न किया जा सके. वुहान में तालाबंदी के शुरुआती दिनों में अप्रवासी मज़दूर अपने गांवों से बिना अधिकारियों को बताए हुए भाग निकले थे. जिसके कारण अन्य गांववालों को संक्रमण का ख़तरा उत्पन्न हो गया था. हालांकि, कुछ ही दिनों के अंदर उन सभी भागे हुए मज़दूरों का पता लगा कर उन्हें अपने-अपने गांवों में उनके सारे परिजनों और रिश्तेदारों व अन्य संपर्कों के साथ क्वारंटाइन कर दिया गया था. और उन पर चौबीसों घंटे नज़र रखी जा रही थी.

भारत और चीन की स्वास्थ्य व्यवस्था में भारी अंतर को देखते हुए भारत में अधिकारियों के सामने ये बहुत बड़ी चुनौती होगी कि वो आवश्यक उपकरणों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें एवं जमाखोरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई कर सकें

चौथी बात ये कि वायरस का विस्तार होने के साथ-साथ इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि लोग सुरक्षा के उपकरण की जमाखोरी करने लगें. जिससे उनकी क़ीमतों में भयंकर वृद्धि हो जाए. भारत और चीन की स्वास्थ्य व्यवस्था में भारी अंतर को देखते हुए भारत में अधिकारियों के सामने ये बहुत बड़ी चुनौती होगी कि वो आवश्यक उपकरणों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें एवं जमाखोरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई कर सकें. इसके लिए, चीन की तरह ही भारत को भी, सभी शहरों में मास्क और अन्य सुरक्षात्मक उपकरणों की बिक्री को नियमित करने की शुरुआत कर देनी चाहिए, विशेष तौर से जिन शहरों में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या अधिक है.

पांचवीं बात ये है कि सार्वजनिक स्थानों पर जाने वाले और परिवहन के सार्वजनिक माध्यमों का उपयोग करने वाले हर व्यक्ति के शरीर का तापमान मापान जाना चाहिए, ताकि संक्रमण को सीमित किया जा सके. हवाई अड्डों पर मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण, घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय यात्री आपस में मिल जाते हैं. वो एक ही क़तार में खड़े होते हैं और इससे संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है. इसमें कोई दो राय नहीं कि हर यात्री की स्क्रीनिंग होनी चाहिए, लेकिन, अलग-अलग जगहों से आए यात्रियों को आपस में मिलने देने से संक्रमण फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है. हवाई अड्डे के कर्मचारियों को चाहिए कि वो अलग-अलग शिफ्ट में काम करें और अधिक काम करने के लिए उन्हें अधिक भुगतान किया जाना चाहिए. साथ ही साथ, हवाई अड्डों और मेट्रो स्टेशनों पर लोगों की जांच के लिए नियुक्त अर्धसैनिक बलों के जवानों को चाहिए कि वो कीटनाशकों का इस्तेमाल करें और अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक उपकरण हमेशा पहने, ताकि संक्रमण के प्रसार को सीमित किया जा सके.

छठवीं बात ये कि स्कूल और कॉलेजों में बाहर के लोगों का प्रवेश बेहद सीमित कर दिया जाना चाहिए, ताकि कैम्पस में रह रहे लोगों को संक्रमण से सुरक्षित किया जा सके.

सातवीं बात ये कि सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों और सार्वजनिक ठिकानों को कोविड-19 के बारे में सही जानकारी प्रचारित करनी चाहिए. यहां तक कि जनता को शिक्षित करने एवं जागरूकता फैलाने के अभियान में सामाजिक संगठन और स्वयंसेवी समूहों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए.

आठवीं बात ये कि सभी इस बीमारी से जुड़े सभी आवश्यक दस्तावेज़ एवं संदेशों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कर के भारत के हर क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रसारित किया जाना चाहिए. चीन की राष्ट्रीय भाषा मैन्डैरिन होने के बावजूद, चीन में कोविड-19 से संबंधित सभी जानकारियों को अंग्रेज़ी, तिब्बती, वीगर और कई अन्य भाषाओं में अनुवाद करके प्रसारित किया गया था. ताकि अल्पसंख्यक भाषाएं बोलने वालों तक भी सही जानकारी पहुंचाई जा सके. ऐसी आधिकारिक जानकारी को पूरे देश में राजनीतिक दलों, मीडिया संस्थानों और सामाजिक समूहों द्वारा भी पहुंचाया जाना चाहिए. ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि कोविड-19 के बारे में सही जानकारी ऐसे तरीक़े से दी जाए कि जो उन सभी समूहों तक पहुंच सके, जिनके लिए ये जानकारी तैयार की गई है. यहां तक कि देश के दूर-दराज़ के कोनों तक भी ये सूचना पहुंचाई जानी चाहिए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, फिल्मी सितारों और अन्य सेलेब्रिटी के सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग लोगों को कोरोना वायरस के प्रति शिक्षित करने एवं जागरूकता फैलाने में किया जाना चाहिए. फैक्ट चेक करने वाले सोशल मीडिया जैसे फैक्ट चेकर, आल्ट न्यूज़ और अन्य भी अपनी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं, ताकि ग़लत सूचना और अफ़वाहों को फैलने से रोका जा सके.

कोरोना वायरस के विरुद्ध अपने एकनिष्ठ अभियान के अंतर्गत चीन ने ये सुनिश्चित किया कि इस महामारी का प्रकोप न केवल इसके हूबे प्रांत के वुहान शहर तक सीमित रहा, बल्कि वो इस पर कुछ हफ़्तों के अंदर नियंत्रण पाने में भी सफल रहा. कुछ ही हफ़्तों के सघन प्रयासों से चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण का प्रसार पूरी तरह से रुक गया है. भारत और विश्व के अन्य देशों को निश्चित रूप से चीन के इस अनुभव से सीख लेनी चाहिए. और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार, सामाजिक संगठन और आम जनता मिल कर ऐसा सघन और आपसी सामंजस्य वाला अभियान शुरू करें, जिससे कोरोना वायरस के प्रकोप को पराजित किया जा सके.

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