Author : Vinay Kaura

Published on Jun 23, 2017 Updated 0 Hours ago

ज्यादातर विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि मांग, आपूर्ति एवं मुद्रा का एक खतरनाक मेल पंजाब में नशीली दवाओं के प्रकोप के लिए जिम्मेदार हैं।

नशे के खिलाफ जंग: पंजाब सरकार के लिए चुनौतियां

ज्यादातर विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि मांग, आपूर्ति एवं मुद्रा (करेंसी) का एक खतरनाक मेल पंजाब में नशीली दवाओं के प्रकोप के लिए जिम्मेदार हैं। पंजाब— पाकिस्तान,अफगानिस्तान एवं ईरान— के तथाकथित गोल्डेन क्रेसेंट से तस्करी कर लाई गई नशीली दवाओं का एक पारगमन बिंदु (ट्रांजिट प्वाईंट) तथा बाजार दोनों ही है। जहां अफगानिस्तान में उत्पादित हेरोईन की भारत-पाकिस्तान की 553 किमी लंबी और अवैध घुसपैठ की संभावनाओं से युक्त सीमा से तस्करी की जाती है, अफीम, अफीम की भूसी, चरस एवं हशीश जैसी अन्य नशीली दवाएं आस पास के देशों से आती हैं। इस शोध पत्र में पंजाब में नशे की समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकने में कांग्रेस के नेतृत्व में नई पंजाब सरकार के सामने आ रही विभिन्न चुनौतियों पर गौर किया गया है। इसमें मांग एवं आपूर्ति दोनों का ही समूल नाश करने एवं उन विशिष्ट उपायों, जो पंजाब सरकार उठा सकती है, की चर्चा की गई है।

भूमिका

जब कोई रणनीति अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल हो जाती है तो एक दूरदर्शी एवं साहसी राजनीतिक नेतृत्व को निश्चित रुप से नई रणनीतिक दृष्टिकोण का अनुसरण करना चाहिए जिससे खतरों को कम से कम किया जाए और सफलता की संभावनाएं बढ़ाई जाएं। पंजाब में नशीली दवाओं के प्रकोप की खतरनाक स्थिति का मुकाबला करने के लिए वर्तमान रणनीतियों की उल्लेखनीय कमियों को देखते हुए, राज्य के नए राजनीतिक नेतृत्व से वैसी नई रणनीतियों की उम्मीद की जा रही थी जो केवल राजनीतिक तमाशेबाजी और हड़बड़ी में सुधार के उपायों पर निर्भर न हो। बहरहाल, ऐसा भले ही प्रतीत हो रहा हो कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पंजाब की नई सरकार सारे सही फैसले कर रही हो, पर राज्य में ड्रग्स की समस्या का समाधान ढूंढने की राह में अभी भी कई बड़ी बाधाएं खड़ी हैं।

ड्रग की तस्करी और व्यापक रूप् से नशे की लत पंजाब की सबसे उल्लेखनीय सामाजिक-राजनीतिक चुनौती बन चुकी है जो कई प्रकार से पूरे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनती जा रही है। खासकर, ऐसे संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में इस समस्या की भयावहता को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि इसके खिलाफ एक ऐसी संपूर्ण लड़ाई छेड़ी जाए जिसमें कामयाब होने में अगर कई वर्ष भी लग जाएं तो उसे जारी रखा जाए। नशे की समस्या पिछले कई वर्षों के दौरान और बदतर होती गई है और 2017 के प्रारंभ में पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा था। चुनाव अभियान के दौरान, कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अमरिन्दर सिंह ने सत्ता में आने के चार सप्ताह के भीतर नशे के प्रकोप को खत्म कर देने का वायदा किया था। यह पूरी तरह एक विचित्र वायदा था; इतनी व्यापक एवं गहरी समस्या का एक महीने के भीतर समाधान एक बेहद मुश्किल काम है। बहरहाल, जैसा कि चुनाव के परिणामों ने प्रदर्शित किया, पंजाब के लोगों ने कैप्टन को इस लड़ाई कोे लड़ने का दायित्व सौंप किया है।

नई सरकार की पहल

नई सरकार के प्रारंभिक प्रयास उत्सावर्द्धक रहे हैं। अवैध नशीले पदार्थों पर नजर रखने के लिए 31 मार्च 2017 को विशेष कार्य बल (एसटीएफ) का गठन किया गया।

इसे पुलिस के अपर महानिदेशक (एडीजीपी), हरप्रीत सिद्धू की कमान में रखा गया है जिन्होंने अभी हाल ही में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के साथ अपनी प्रतिनियुक्ति पूरी की है। उनकी सहायता एसटीएफ में इंस्पेक्टर जनरल (आईजी) रैंक के तीन अधिकारी करेंगे। मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से नशीले द्रव्यों के कारोबार के खिलाफ चल रहे मुहिम की निगरानी कर रहे हैं। सिद्धू को मुख्यमंत्री कार्यालय में एक पद दिया गया है जिससे कि वह रोजाना सीधे मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट भेज सकें। [1] 24 अप्रैल, 2017 को मुख्यमंत्री ने पंजाब की खुफिया शाखा के एक हिस्से के रुप में, एक आतंक-रोधी स्क्वाड के गठन को हरी झंडी दे दी। एटीएस का लक्ष्य राज्य की जेलों में आतंकवादियों एवं गैंगस्टरों के बीच गठजोड़ को तोड़ना था, जो हाल के वर्षों में और मजबूत बन गया है। जेलों के लिए भी विशिष्ट सुरक्षा उपायों की घोषणा की गई है। [2]

प्रत्येक जिले में एंटी-नारकोटिक्स प्रकोष्ठ इकाइयों द्वारा समर्थित स्टेशन हाउस अधिकारी स्तरीय टीमों का गठन किया गया है। इसके अतिरिक्त, संबंधित राज्य एजेन्सियों को अपनी गतिविधियों को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) एवं राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) जैसी केंद्रीय एजेन्सियों के साथ समन्वय करने को कहा गया है जिससे कि भारत एवं दुनिया के अन्य हिस्सों से पंजाब में नशीली दवाओं की तस्करी को रोका जा सके। [3] सभी पुलिस स्टेशनों को नशीली दवाओं के तस्करों एवं शराब व्यापारियों की सूची बनाने का निर्देश दिया गया है जिन्हें पिछले 10 वर्षों के दौरान कम से कम दो बार सजा दी गई है। उन पर निगरानी रखने को भी कहा गया है। ये सब बेशक सकारात्मक कार्रवाईयां हैं पर अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। एसटीएफ को सौंपा गया दायित्व काफी जटिल है, खासकर, यह देखते हुए कि पंजाब में नशीली दवाओं का कारोबार कितना व्यापक और गहरा है। हकीकत यह है कि पंजाब नशीली दवाओं के लिए एक विशाल बाजार है। इसलिए, केवल आपूर्ति ढांचे को तोड़ने से इसकी मांग समाप्त नहीं होगी। वास्तव में, सिद्धू ने यह भी कहा है कि ‘केवल माल की जब्ती और छापेमारी से बात नहीं बनेगी। हमें रोकथाम, जब्ती एवं नशेडि़यों के पुनर्वास के लिए एक समन्वित रणनीति बनाने की आवश्यकता है।’ [4]

सतत चुनौतियां

पंजाब भी इस नियम का कोई अपवाद नहीं है कि नशीले पदार्थो की तस्करी ही तस्करी वाले क्षेत्रों में नशे की लत फैलाने में मददगार हो जाती है। हेरोईन उत्पादन करने वाले गोल्डेन क्रेसेंट-पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं ईरान-के साथ पंजाब की समीपता इसे बेहद संवेदनशील बना देती है। पंजाब लंबे समय से तस्करी किए जाने वाले ऐसे रास्ते पर स्थित है जहां अफगानिस्तान से पड़ोसी पाकिस्तान के बरास्ते हेरोईन लाया जाता है और उसके बाद क्षेत्र के बाजारों तक इसे पहुंचाया जाता है। पंजाब जो एक समय भारत के ‘गेहूं की टोकऱी’ वाले राज्य के रूप में विख्यात था, आज विभिन्न प्रकार के गैरकानूनी पदार्थों के एक अंतिम गंतव्य के रूप में उभर कर सामने आया है।

पाकिस्तान में स्थित ड्रग सिंडिकेट एवं तस्कर अफगानिस्तान से हेरोईन खरीदते हैं और फिर पंजाब के अमृतसर, तरन तारन, गुरदासपुर, फिरोजपुर एवं फाजिल्का जिलों तथा पड़ोसी राज्यों के कुछ जिलों के जरिये भारत में इसकी तस्करी करते हैं। खासकर, अमृतसर क्षेत्र अधिकांश तस्करों का पसंदीदा स्थान है। अभी हाल तक, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) या पंजाब पुलिस रोजाना पंजाब के कुछ सीमावर्ती जिलों में भारी मात्रा में अफीम की भूसी और अफीम बरामद किया करते थे। तस्करों को भारत-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ती चौकसी के कारण अपने तरीकों में बदलाव लाना पड़ा है। इसमें सीमा के पाकिस्तानी तरफ से भारत वाले हिस्से में प्रतीक्षा कर रहे तस्करों के लिए ड्रग के पैकेट फेंकने, बिजली के तारों वाली चारदीवारी के आर-पार प्लास्टिक की खोखली पाइप का इस्तेमाल करने और नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने के लिए छिछली नदी को पार करने जैसे तरीके शामिल है। पिछले कुछ महीनों के दौरान नशीले पदार्थों की जब्ती से भी संकेत प्राप्त होता है कि ड्रग माफिया ने जम्मू कश्मीर एवं राजस्थान जैसे अन्य सीमावर्ती राज्यों का भी इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है। बहरहाल, हालात उतने आसान हैं नहीं, जितने वे नजर आते हैं। पंजाब एवं पाकिस्तान में भी ड्रग माफिया बड़े समन्वित, संगठित एवं पेशेवर तरीके से अपने काम को अंजाम देते हैं। मौसम, भौगोलिक स्थिति, खड़ी फसलों, ‘चंद्रमा के दिनों’, परिवहन के तरीकों, जमीन पर निशान, सुरक्षा बलों की तैनाती एवं उनकी आवाजाही, निगरानी प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और तस्करी के लिए प्रयुक्त उनके स्थानीय संपर्क और उनसे सहानुभूति रखने वाले लोग, तस्करी के लिए उपयुक्त जगह तथा समय का चुनाव जैसे कई कारकों के सम्मिश्रण का एक सटीक विश्लेषण और व्यापक अध्ययन किया जाता है। किसी भी संभावित मुठभेड़ से बचने के लिए तारीख एवं समय पर अंतिम फैसला लेते समय, तस्कर इसकी रिहर्सल भी करते हैं, खासकर, पुलिस नाका (एक अस्थायी पुलिस बंदोबस्त) के स्थान एवं सीमा सुरक्षा बल की चौकसी पद्धतियों का गहराई से अध्ययन करते हैं। चूंकि अलग अलग क्षेत्रों के हालात भिन्न होते हैं, उसी के अनुसार उनके कार्य करने का तरीका भी अलग अलग होता है जिसके कारण सीमा सुरक्षा बल एवं पुलिस के लिए तस्करी के तरीकों का पता लगाना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

ड्रग माफिया सभी बिन्दुओं का एक पूरा डाटाबेस तैयार रखते हैं। वे पूरे इलाके की छानबीन कर लेते हैं और अपने काम को सफलतापूर्वक अंजाम देते हैं। उन्हें इलाके की भी पूरी जानकारी होती है जिसकी बदौलत पाकिस्तान के मोबाइल नेटवर्कों तक उनकी पहुंच भी आसानी से हो जाती है। नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़े ड्रग माफिया सीमा पार से नशीली दवाओं की तस्करी के लिए अत्याधुनिक तरीके इस्तेमाल करते हैं, पुलिस एवं खुफिया निगरानी से दूर रहते करते हैं। भारतीय और पाकिस्तानी तस्कर बारी—बारी से भारतीय और पाकिस्तानी सिम कार्डों का इस्तेमाल करते हैं, जिसके कारण खुफिया एवं सुरक्षा एजेन्सियों के लिए उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है। [6]

भारत एवं पाकिस्तान सीमा पर अच्छी सड़कों का अभाव भी सीमा पर लगी बाड़ के नीचे सुरंगों की खुदाई के जरिये भारी मात्रा में मादक दवाओं की खेप के हस्तांतरण के काम को आसान बना देती हैं।

जैसे ही ये दवाएं सफलतापूर्वक भारत की सीमा में आ जाती हैं, भारत की तरफ का कूरियर उन्हें पंजाब तथा नई दिल्ली, मुंबई, गोवा एवं मनाली जैसे अन्य गंतव्यों तक भेजने के लिए उन्हें दूसरे स्तर की कूरियर टीम के सुपुर्द कर देता है। [7] इसका एक अच्छा खासा हिस्सा समुद्री रास्ते से यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका तक भी भेज दिया जाता है।

गोल्डेन क्रेसेंट रास्ते के अतिरिक्त, हेरोईन पंजाब में उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान से भी प्रवेश करती है। [8] राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में अफीम की भूसी की खेती एवं बिक्री वैध है जिसकी वजह से भटिंडा, फाजिल्का एवं मानसा जैसे राजस्थान के निकट के जिलों में इन दोनों तत्वों की बहुतायत में मौजूदगी देखने में आती है। एनसीबी के क्षेत्रीय निदेशक कौस्तुभ शर्मा के अनुसार, हेरोईन हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों से भी प्राप्त की जा सकती है। [9] उन्होंने बताया कि ‘हेरोईन की उपलब्धता इन दो राज्यों में बढ़ी है और इन्हें यहां से सोर्स किया जा सकता है।’

त्रुटिपूर्ण सुरक्षा तंत्र 

पंजाब में, भारत एवं पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा (आईबी) 553 किमी लंबी है। बीएसएफ की लगभग 18 बटालियनें नाइट विजन डिवाइस (एनवीडी), हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर (एचएचटीआई), बैटल फील्ड सर्वेलेंस राडार (बीएफएसआर), लॉंग रेंज फाइंडर एवं हाई पावर्ड टेलीस्कॉप जैसे आधुनिक प्रौद्योगिकीय उपकरणों की सहायता से कांटेदार सीमा रेखा की निगरानी करती है। [12]

अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तार की घेरेबंदी पूरी हो चुकी है लेकिन भूभाग से जुड़ी कठिनाइयों से उत्पन्न दरारों के कारण यह पूरी तरह फूलप्रूफ नहीं है। उदाहरण के लिए, जनवरी 2016 में पठानकोट में हुए हमले के दौरान, पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों ने भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए पंजाब में ताश सीमा चौकी के निकट, बमियाल के 5 किमी नीचे स्थित जलीय भूभाग का इस्तेमाल किया था। [13]

कानून व्यवस्था का रखरखाव पंजाब पुलिस की जिम्मेदारी है। खुफिया ब्यूरो, राजस्व खुफिया निदेशालय एवं एनसीबी जैसी कुछ केंद्रीय एजेन्सियां पंजाब में सक्रिय हैं। पंजाब नशे की समस्या का समाधान करने में अगर विफल रहा है, तो उसका एक प्रमुख कारण राज्य द्वारा अपनाया गया वह तरीका रहा है जिसका उपयोग वह अपने सुरक्षा तंत्र के प्रबंधन के लिए करता रहा है। इस समस्या से निपटने को लेकर पुलिस, बीएसएफ एवं राज्य तथा केंद्रीय खुफिया एजेन्सियों के बीच किसी भी प्रकार के तालमेल एवं समन्वय की भारी कमी रही है। वास्तव में,पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी)-भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सरकार अक्सर बीएसएफ पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पर्याप्त बल की तैनाती न करने का आरोप लगाती रही है। अपने बचाव में, बीएसएफ नेे सही ही दावा किया था कि पाकिस्तान से तस्करी करके लाई गई हेरोईन और अफीम पंजाब में आने वाले कुल अवैध ड्रग का केवल एक बहुत छोटा सा हिस्सा है। भारत-पाकिस्तान के विद्वेषपूर्ण संबंधों की वजह से ड्रग समस्या के निपटान के लिए सीमा पार से सहयोग पाना नामुमकिन सा ही है। पाकिस्तानी रेंजरों एवं भारतीय रेंजरों के बीच सहयोग की कमी ड्रग विरोधी मुहिम को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना देती है। [14]

कानूनी बाधाएं एवं विशेषज्ञता का अभाव

पंजाब पुलिस की नशे से जुड़े आतंकवदी तंत्र की जांच करने की सीमित क्षमता है, खासकर, इस समस्या का मुकाबला करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकीय एवं वैज्ञानिक उपकरणों की उसके पास कमी है। जांचों को शुरुआत में हमेशा कामयाबी मिलती हो, ऐसा नहीं है और कई बार निम्न कार्यप्रणाली भी इसके लिए जिम्मेदार होती है। नारकोटिक्स ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक सबस्टांस (एनडीपीएस) कानून के तहत दोषसिद्धि की निम्न दर और दंड में देरी भी समस्या की कुछ वजहें रही हैं।

पंजाब पुलिस की नशे से जुड़े आतंकवदी तंत्र की जांच करने की सीमित क्षमता है, खासकर, इस समस्या का मुकाबला करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकीय एवं वैज्ञानिक उपकरणों की उसके पास कमी है।

एनडीपीएस कानून के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, पांच ग्राम से कम मात्रा में हेरोईन की जब्ती पर छह महीनों तक की कैद एवं 10,000 रुपये तक का आर्थिक दंड लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, संदिग्ध व्यक्ति को जमानत भी आराम से मिल सकती है। कानूनी खामियों का लाभ उठाने के लिए अधिकांश तस्करी छोटी मात्राओं में की जाती है। तस्करी के बाद पंजाब में हेरोईन पहुंच जाने के बाद बड़ी मात्रा में इसकी आपूर्ति नहीं जाती। ज्यादातर मामलों में, नशे की लत वाले लोगों को छोटी मात्राओं में कूरियर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

पुलिस-राजनीतिज्ञ-तस्कर सांठगांठ

पंजाब में राजनीति और ड्रग्स का चोली दामन का संबंध है। एक सेवा निवृत्त भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी शशि कांत का दावा है कि बड़ी राजनीतिज्ञ पार्टियों की नशीले पदार्थों के तस्करों के साथ काफी मिलीभगत है और यही वजह है कि पंजाब ‘नशीले पदार्थों की राजनीति’ के युग से गुजर रहा है। उन्होंने ड्रग्स की तस्करी में संलिप्त 90 व्यक्तियों की फेहरिस्त बनाई थी और उसे एसएडी-भाजपा सरकार को सुपुर्द कर दी थी। उन्होंने दावा किया कि ‘इसमें सभी दलों के राजनीतिज्ञ, कुछ वर्तमान मंत्री, कुछ पूर्व मंत्री, वर्तमान एवं पूर्व विधायक, कुछ बहुत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी एवं बड़ी संख्या में स्टेशन हाउस ऑफिसर रैंक के अधिकारी संलिप्त थे। इस सूची में कुछ एनजीओ भी शामिल थे।’ [15] बहरहाल, राज्य सरकार ने यह उम्मीद करते हुए कि यह मुद्वा खुद ही समाप्त हो जाएगा, इस पर खामोश रहना ही उचित समझा। जनवरी, 2014 में पहलवान से ड्रग तस्कर बने जगदीश सिंह भोला ने दावा किया था कि पंजाब के पूर्व राजस्व मंत्री ब्रिक्रम सिंह मजीठिया कई करोड़ रुपये की ड्रग तस्करी के रैकेट में संलिप्त थे। [16] इसके बाद इस मामले की की गई जांच में कुछ भी ठोस उभर कर सामने नहीं आया।

पंजाब में राजनीति और ड्रग्स का चोली दामन का संबंध है।

शशि कांत ने पंजाब उच्च न्यायालय के सामने बताया था कि राजनीतिक चुनाव अभियानों के बढ़ते खर्च की वजह से धीरे धीरे ड्रग धंधे के पैसे पर अधिक से अधिक निर्भर होते जा रहे हैं और वे मतदाताओं को रिझाने के लिए नारकोटिक्स से दंड मुक्ति का इस्तेमाल भी करते हैं। कांत ने यहां तक दावा किया है कि ‘पंजाब पुलिस, नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो, खुफिया ब्यूरो एवं सीमा सुरक्षा बल के जवान भी कानूनी वर्दी की आड़ में इस धंधे में संलिप्त हैं।’ [17]

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने भी जून 2016 में राज्य सभा में यह स्वीकार किया था कि पंजाब पुलिस, राज्य जेल विभाग, पंजाब होम गार्ड, बीएसएफ, रेल सुरक्षा बल एवं चंडीगढ़ पुलिस के 68 कर्मचारियों को नशीली दवाओं के कारोबार में उनकी संलिप्तता के कारण गिरफ्तार किया गया है। इन 68 गिरफ्तारियों में से 53 केवल पंजाब पुलिस के ही जवान थे, सात राज्य जेल विभाग के, चार बीएसएफ के, दो पंजाब होम गार्ड के एवं एक चंडीगढ़ पुलिस का जवान था। [18]

जनवरी, 2016 में पठानकोट वायु सेना अड्डे पर हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर नशीली दवाओं के मुद्वे को केंद्रबिंदु में ला खड़ा किया। राजनीतिज्ञों, सीमा पार के ड्रग कार्टेल एवं पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों ने कथित रूप से आतंकियों को पंजाब सीमा में घुसपैठ कराने में मुख्य भूमिका निभाई। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता में गृह मामलों पर संसदीय स्थायी समिति ने आतंकवादियों द्वारा पंजाब के पुलिस अधिकारी सलविंदर सिंह की रिहाई की अनुमति दी जब आतंकियों ने उनके कार्यालय की गाड़ी छीन ली थी तथा इसका इस्तेमाल पठानकोट हवाई ठिकाने पर पहुंचने के लिए किया था। पंजाब पुलिस की भूमिका पर हमले करते हुए तथा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की भूमिका पर सवाल उठाते हुए समिति ने फरवरी, 2017 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में सरकार से जिहादियों की भारत में घुसपैठ को सुगम बनाने में ड्रग तस्करों की भूमिका की जांच करने को कहा है। [19]

पिछले वर्ष राज्य पुलिस को पुलिस भंडारण स्थानों से जब्त किए गए ड्रग के ‘पुनर्प्रसार’ पर अंकुश लगाने के लिए सुसज्जित सुरक्षा विशेषताओं वाली केंद्रीकृत वेयरहाउस की प्रणाली बनानी पड़ी थी। पंजाब के डीजीपी सुरेश अरोड़ा के अनुसार, ऐसी अवधारणा है कि जब्त ड्रग्स, जिन्हें पुलिस स्टेशनों में रखा जाता है, का सिपाहियों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है, लेकिन यह अवश्य कहना चाहूंगा कि हर पुलिस वाला भ्रष्ट नहीं होता.. लेकिन चूंकि आरोप लगाए गए हैं, इसलिए यह फैसला किया गया है कि राज्य के महत्वपूर्ण जिलों में केंद्रीकृत ड्रग मालखाना खोलेे जाएंगे।’ [20]

निष्कर्ष

जहां नशेडि़यों को तो पकड़ लिया जाता है, पर बड़े आपूर्तिकर्ताओं को लगभग कभी भी नहीं पकड़ा जाता। अमरिन्दर सिंह सरकार ने अभी स्पष्ट रूप से इसका खुलासा नहीं किया है कि किस प्रकार आपूर्तिकर्ताओं को निशाना बनाने की नई रणनीति पिछली सरकार की नीति से अलग होगी। सार्वजनिक बयानों को छोड़ कर इसकी कोई रूपरेखा नहीं है कि सरकार की योजना लंबे समय से चले आ रहे इस पुलिस-नेता-तस्कर की मिलीभगत से किस प्रकार निपटने की है।

अगर कांग्रेस की नई सरकार कोई निर्णयात्मक बदलाव लाने में समर्थ होती है तो इस सांठगांठ का वजूद समाप्त हो जाएगा। कानून को अमल में लाने वाली सभी एजेन्सियों को एक ही एजेन्डे पर सहमत करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी।

पाकिस्तान की भारत-विरोधी रणनीति की भारत को भारी सैन्य, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी है। नशीली दवाओं, हथियारों एवं नकली मुद्रा की सीमा पार की तस्करी उस रणनीति का एक अनिवार्य हिस्सा है क्योंकि यह सीधी भिड़ंत एवं भारत के खिलाफ सैन्य हस्तक्षेप के खतरे को रोकता है। इसके परिणामस्वरूप, पंजाब की नशे की समस्या पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठानों के हित में है। कांग्रेस की नई सरकार को पंजाब के युवाओं में नशे की लत छुड़ाने की अहम चुनौती को स्वीकार करनी चाहिए। इसलिए, रोजगार अवसरों के सृजन, मनोरंजन एवं खेल कार्यकलापों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

अविलंब उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों में निम्नलिखित शामिल हैं-

  • अमरिन्दर सिंह सरकार को तत्काल एक संस्थागत तंत्र का निर्माण करना चाहिए जिसमें राज्य की पुलिस, बीएसएफ, डीआरआई, एनसीबी, खुफिया ब्यूरो एवं अन्य महत्वपूर्ण एजेन्सियों का प्रतिनिधित्व हो। यह संयुक्त प्लेटफॉर्म विभिन्न एजेन्सियों के बीच बेहतर समन्वय करने, सहक्रियता का निर्माण करने एवं ऑपरेशनों के दौरान दुहराव को रोकने में सहायक होगा।
  • सुरक्षाकर्मियों की कमी, ड्रग का पता लगाने से संबंधित उचित प्रशिक्षण का अभाव एवं कुछ ऐसे प्रक्रियागत विलंब, जिन्हें रोका जा सकता है, पंजाब में नशीली दवाओं की रोकथाम के प्रयासों को बाधित करती हैं। ड्रग्स का पता लगाने एवं जांच से संबंधित पुलिस को पेशेवर व विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए फंडिंग में बढोतरी की जानी चाहिए।
  • बीएसएफ एवं पंजाब पुलिस को सीमा सुरक्षा के लिए क्रमशः पहली और दूसरी पंक्ति माना जाता है। इसलिए, बेहतर समन्वयन के लिए पुलिस के जिला अधीक्षक एवं सीमा सुरक्षा बल के स्थानीय कमांडेंटों के बीच नियमित बैठकें होनी चाहिए। पंजाब में सुरक्षा एजेन्सियों के बीच सूचना साझा करने वाले तंत्र की कमी का अतीत में ड्रग माफिया द्वारा काफी लाभ उठाया गया है। बीएसएफ, पंजाब पुलिस, डीआरआई, खफिया ब्यूरो एवं अन्य एजेन्सियों को अपराध की पिछली पद्धतियों, जांच के रिकॉर्डों आदि से संबंधित उनके पास जो भी जानकारी उपलब्ध है, उसे साझा करने के लिए आगे आना चाहिए।
  • ड्रग्स से संबंधित ऐसे मामलों की जांच को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो लंबे समय से रुकी हुई हैं, विशेष रूप से जो ड्रग की तस्करी एवं आपूर्ति करने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं। चूंकि बड़ी संख्या में ड्रग्स के तस्करों को बीएसएफ एवं पंजाब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है, पुलिस एवं बीएसएफ द्वारा ऐसे मामलों पर इसके बाद भी समुचित रूप से कदम उठाते रहना चाहिए।
  • सरकार को राज्य एवं केंद्रीय एजेन्सियों के बीच खुफिया जानकारियों को साझा करने में देरी जमीनी स्तर एवं मझोले स्तर के अधिकारियों के बीच खुफिया सूचना के प्रवाह में बड़ी बाधा रही है। देश भर में खुफिया एजेन्सियां खुफिया जानकारियों को साझा करने से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रही हैं और पंजाब भी इसका कोई अपवाद नहीं है। इस कार्य में वे विभिन्न खुफिया कार्यप्रणालियों, कई प्रकार की एजेन्सियों का वजूद जो मूलभूत रूप से एक ही काम कर रही हैं, और भरोसे की कमी के कारण सीमाओं में बंध गई हैं। बदकिस्मती से, सभी प्रमुख एजेन्सियां उपरोक्त कारणों से आपस में जानकारियों को साझा नहीं कर पा रहीं और उस संस्कृति की वजह से भी, जिसमें आम तौर पर खुफिया कार्यप्रणाली को लेकर संदेह बना रहता है।
  • ड्रग सिंडिकेट पर्याप्त जासूसी देखभाल एवं योजना बनाने के बाद ही तस्करी की अपनी गतिविधियों को अंजाम देता है। उन्हें सबसे तेज रफ्तार वाले माध्यमों के द्वारा अपने कार्यों का निष्पादन सुनिश्चित करना होता है जो उन्हें सीमा के समीप की सहायक सड़कों एवं रेल की पटरियों का सहारा लेने को विवश करता है जिससे कि समय की भी बचत हो और बीएसएफ की आंखों में भी धूल झोंका जा सके। चूंकि बीएसएफ के पास पंजाब आईबी के साथ साथ पांच किलोमीटर तक ऑपरेशन के संचालन का अधिकार है, तो संयुक्त अधिकार के लिए पंजाब पुलिस एवं इसकी विशिष्ट शाखा के सदस्यों, और बीएसएफ एवं इसकी जी शाखा से बनी एक संयुक्त टीम सीमा के पांच किलोमीटर के दायरे के भीतर, अंतर्राष्ट्रीय सीमा के समानांतर, हर बीएसएफ बटालियन 10-15 प्रमुख बिन्दुओं की पहचान कर सकती है। यह ‘बहु-एजेन्सी वर्चस्व प्रणाली’ ड्रग कार्टेल को आश्चर्यचकित कर सकती है और इसके साथ साथ यह अधिक पारदर्शिता लाएगा तथा इसमें शामिल सभी व्यक्तियों के बीच भरोसा भी पैदा होगा। इसके अतिरिक्त, दूसरी स्तरीय प्रणाली अधिक गहराई प्रदान करेगी एवं सीमा क्षेत्र में तस्करों की आवाजाही को नियंत्रित करेगी। पहले से चिन्हित प्रमुख बिन्दुओं का उपयोग अचानक दिन के समय सीमा क्षेत्र में सक्रिय आपराधिक तत्वों की गतिविधियों को बाधित करने के लिए एक मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में किया जा सकता है। सीमा के आसपास अधिकांश ड्रग तस्करी गतिविधियां आधी रात एवं सुबह चार बजे के समय संज्ञान में आई हैं। सुरक्षा एजेन्सियों को विशेष रूप से इस समयावधि के दौरान अपने वर्चस्व को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
  • पंजाब की कई जेलों में बंद बहुत सारे नशेड़ी कैदियों को नियमित रूप से ड्रग्स की आपूर्ति हो रही है। वे लेनदेन के लिए पैसे को अपने संबंधियों के बैंक खातों में जमा करते हैं। इस प्रकार, जेलों में सजा काट रहे ड्रग तस्करों पर पुलिस की सख्त निगरानी होनी चाहिए जिससे कि वे जेल के भीतर सेे अपनी करतूतें जारी न रख सकें।
  • सरकार आम तौर पर किसी सफल ऑपरेशन के लिए किसी एक ही संगठन को उसका श्रेय देती नजर आती है जबकि तथ्य यह है कि यह कई सारी एजेन्सियों के संयुक्त प्रयासों का नतीजा होता है। हो सकता है, सरकार का ऐसा कोई इरादा न हो या ऐसा जानबूझ कर नहीं किया जाता हो, लेकिन इस प्रचलन से अक्सर एजेन्सियों के बीच दुर्भावना तथा कड़वाहट पैदा होती है।
  • एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में, पंजाब की नई सरकार को केवल सीमा रेखा पर घटित अपराधों की जांच के लिए ही प्रति सीमावर्ती जिला एक सीमा सुरक्षा पुलिस थाना बनाना चाहिए; इससे तस्करों को अधिक संख्या में सजा मिल सकेगी एवं विभिन्न एजेन्सियों के बीच बेहतर समन्वय हो सकेगा।
  • पंजाब की नई सरकार द्वारा आतंकवादियों एवं गैंगस्टरों के बीच फलते फूलते सांठगांठ को तोड़ने के लिए हाल में घोषित नए कदमों से राजनीतिज्ञों द्वारा संरक्षण दिए जा रहे इन आपराधिक गिरोहों की संख्या में कमी आने की संभावना है। इसके साथ साथ, ऐसे राजनीतिज्ञों, जिनके बारे में यह सर्वविदित है कि उनके ड्रग तस्करों के साथ मिलीभगत है, को निशाना बनाया जाना चाहिए और पुलिस तथा खुफिया एजेन्सियों को स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए कि वे किसी को भी न बख्शें। ऐसे मामलों की जांच में तेजी लाई जानी चाहिए।

यह शोध पत्र निम्नलिखित दीर्घकालिक उपायों की भी अनुशंसा करता है:

  • पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्र कमजोर बुनियादी ढांचे एवं कनेक्टिविटी तथा परिवहन की कमी से त्रस्त हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा पर सुरक्षा के बुनियादी ढांचे तथा निगरानी क्षमता में बेहतरी को अमरिन्दर सिंह सरकार द्वारा शीर्ष प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पी चिदंबरम की अध्यक्षता में गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने भी 11 अप्रैल, 2017 को राज्य सभा को सौंपी अपनी रिपोर्ट में, भारत की सबसे संवेदनशील सीमा पर सीमा चौकियों के निर्माण में हो रही देरी‘ को लेकर गंभीर चिंता दर्शाई है। [21] समिति ने नोट किया है कि सरकार को ‘सार्वजनिक विरोधों, भूमि अधिग्रहण, मंजूरियों के मुद्दों’ का पूर्वानुमान लगाना चाहिए था तथा ‘देरी पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह निगरानी एवं आईपीबी (भारत-पाक सीमा) के वर्चस्व को बाधित करता है।’ समिति ने ‘फ्लडलाइट्स के नियमित रखरखाव की आवश्यकता को रेखांकित किया है जिससे कि नुकसान कम से कम हो। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में, यह सुनिश्चित करने के लिए पहले से ही एवं सुरक्षात्मक कदम उठाए जाने चाहिए कि फ्लडलाइट्स प्रभावित न हों।’ [22] जब समिति अपने अध्ययन के लिए पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में पहुंची, तो इसने पाया कि सड़कों की हालत बेहद खराब थी जिससे बलों की आवाजाही बेहद धीमी हो सकती है और इससे आपातकालीन स्थिति के दौरान उनके लिए परेशानियां खड़ी कर सकती है। इसकी वजह से समिति बिना किसी और देरी के पंजाब में मुख्य सड़क के साथ साथ एक समानांतर दूसरे दर्जे के सड़कों के निर्माण की जोरदार अनुशंसा की क्योंकि वे गश्ती एवं निगरानी कार्यों के लिए अनिवार्य हैं। [23]
  • केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार विरोधी कदमों, पुलिस एवं न्यायपालिका के आधुनिकीकरण, भले ही वे मुख्य रूप से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्रों के अधीन आते हैं, पर अतिरिक्त फोकस उपलब्ध कराने के रास्ते विकसित करने चाहिए। बिना केंद्र सरकार के नेतृत्व एवं सहयोग के, इन क्षेत्रों में ड्रग्स के प्रकोप को समाप्त करने की वर्तमान मुहिम टिकाऊ साबित नहीं हो सकती। हालांकि, संवैधानिक प्रावधानों के कारण, केद्र सरकार पंजाब में कानून एवं व्यवस्था में बहुत सीमित भूमिका का निर्वाह ही कर सकती है, पर ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां केद्र सरकार इन क्षेत्रों में ज्यादा सक्रिय हो सकती है।
  • भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित गांवों के लोग अक्सर ड्रग तस्करों के लिए अक्सर कूरियर का काम करते हैं क्योंकि उन्हें इसके लिए बहुत आकर्षक राशि मिलती है। इसलिए, सरकार को उन क्षेत्रों में जो सीमा क्षेत्र के पांच किलोमीटर की दूरी के दायरे में आते हैं, निर्धारित क्षतिपूर्ति के साथ तीन वर्षों की अवधि के लिए ‘सीमा स्वयंसेवकों’ की भर्ती करने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, क्योंकि यह उपाय कई अपराध ग्रस्त क्षेत्रों में सफल रहा है। अगर सही तरीके से यह योजना अमल में लाई गई तो इससे युवक सार्थक तरीके से रोजगार के साथ जुड़ेंगे एवं इससे अपराध की दर में कमी आएगी और साथ ही, सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय खुफिया प्रणाली में भी सुधार आएगा।
  • मांग पक्ष से संबंधित कदम उठाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना आपूर्ति पक्ष से निपटना। अवैध ड्रग व्यापार को रोकने एवं अवैध ड्रग व्यापार में संलिप्त व्यक्तियों की संपत्ति को जब्त करने के अतिरिक्त, नशीली दवाओं की मांग कम करने के लिए भी पहल की जानी चाहिए। इन कदमों में सिविल सोसाइटी समूहों को मजबूत एवं नशीली दवाओं की लत को नियंत्रित करने के लिए राज्य संगठनों के साथ संस्थागत संपर्क विकसित करने के लिए एनजीओ की सहायता करने संबंधी पहल शामिल हैं।
  • सामुदायिक नीति निर्माण अभिभावकों एवं सामुदायिक नेताओं के साथ साझीदारियों का निर्माण करने में सार्थक भूमिका निभा सकते हैं जिससे कि वे नशीली दवाओं के व्यसन को रोकने एवं उपचार करने के लिए परामर्शदाता बन सकें।
  • सरकार को युवाओं के लिए खेल एवं अन्य मनोरंजक सुविधाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि वे अपने खाली समय का स्वस्थ एवं उत्पादक तरीके से उपयोग कर सकें। युवाओं को पैसे की कमी भी उन्हें ड्रग्स संबंधित अपराधों के प्रति धकेल रही है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
  • इस बात के ठोस सबूत हैं कि संगठित ड्रग कार्टेल एवं ताकतवर ड्रग तस्करों ने उल्लेखनीय तरीके से कानून प्रवर्तन एजेन्सियों को परिवर्तित कर दिया है और उन्हें कमजोर बना दिया है। इसलिए, पुलिस एवं राज्य परियोजनाओं के लिए जिम्मेवार अन्य नौकरशाहों के व्यवहार की एसआईटी द्वारा निश्चित रूप से निगरानी की जानी चाहिए जिससे कि वे अपना काम उचित तरीके से करें। यह भ्रष्टाचार कम करने तथा कारगर नीतिगत कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में भी मददगार हो सकता है।
  • टेक्नोलॉजी से जुड़े सभी नए आविष्कार दुधारी तलवार की तरह होते हैं। पंजाब में कानून का पालन कराने वाली (प्रवर्तन) एजेन्सियों को ड्रग्स लाने-भेजने के लिए संगठित ड्रग माफिया द्वारा खुद से चालित होने वाले एरियल वेहीकल या द्रोणों के संभावित उपयोग को भी ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि ये सस्ते, सुविधाजनक एवं सुरक्षित साबित होंगे, खासकर, जब पाकिस्तान की सीमा की निगरानी करने वाली एजेन्सियां एवं गैर सरकारी प्रभावशाली संस्थाएं ड्रग माफिया की सहायता कर रही हों। तस्करी के लिए ड्रोन का उपयोग पहले ही कुछ देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में देखा जा चुका है। [24]
  • प्रदर्शन आकलन, निगरानी एवं मूल्यांकन किसी भी सफल प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण माध्यम हैं। इसलिए, सरकार द्वारा नियमित मूल्यांकन एवं ड्रग विरोधी मुहिम की जमीनी हकीकत की जानकारी अवश्य सुनिश्चित की जानी चाहिए।

संदर्भ

[1] Ravinder Vasudeva, “Will make the fight against drugs a people’s movement: ADGP Harpreet Sidhu,” The Hindustan Times, April 1, 2017, http://www.hindustantimes.com/punjab/ht-face-to-face-will-make-the-fight-against-drugs-a-people-s-movement-adgp-harpreet-sidhu-incharge-anti-drugs-special-task-force/story-qK9f50zEQCafRBxFq0JfUP.html.

[2] Harpreet Bajwa, “Punjab to set up anti-terror squad to break nexus between militants and gangsters,” The New Indian Express, April 24, 2017, www.newindianexpress.com/nation/2017/apr/24/punjab-to-set-up-anti-terror-squad-to-break-nexus-between-militants-and-gangsters-1597248.html.

[3] “Time ticking on poll promise, Punjab govt says 485 drug dealers nabbed in 10 days,” The Hindustan Times, March 29, 2017, http://www.hindustantimes.com/punjab/time-ticking-on-poll-promise-punjab-govt-says-485-drug-dealers-nabbed-in-10-days/story-MXURz648uSQQdMV5L7r9LJ.html.

[4] Ravinder Vasudeva, see n.1

[5] Yogesh Rajput, “Punjab drug problem: The lost generation,” Governance Now, April 28, 2015, www.governancenow.com/news/regular-story/-punjab-drug-problem-the-lost-generation.

[6] Based on the personal experience of one of the authors, R.K. Arora, in carrying out successful anti-drug operations against drug mafia and subsequent investigations into some high-profile cases of seizures and arrests in 2011 and 2012. See Vimal Bhatia, “20 kg heroin worth Rs 100 cr seized at Raj border,” The Times of India, April 19, 2012, http://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/20-kg-heroin-worth-Rs-100-cr-seized-at-Raj-border/articleshow/12726056.cms.; “Heroin worth Rs 25cr seized near Rajasthan border,” Daily Bhaskar, January 24, 2012, http://daily.bhaskar.com/news/RAJ-JPR-heroin-worth-rs-25cr-seized-near-rajasthan-border-2785621.html.; “BSF men thwart smugglers’ bid, recover 6 heroin packets,” The Times of India, February 25, 2012, http://m.timesofindia.com/india/BSF-men-thwart-smugglers-bid-recover-6-heroin-packets/amp_articleshow/12026266.cms.

[7] Abhishek Bhalla, “BSF sends detailed report to MHA on drug smuggling from Pakistan,” India Today, January 9, 2015, http://indiatoday.intoday.in/story/pakistan-drug-smuggling-punjab-bsf-mha-border/1/412236.html

[8] Rishika Baruah,”Why Does Punjab Have a Drug Problem? The Untold Story,” The Quint, February 2, 2017, https://www.thequint.com/india/2016/06/16/why-does-punjab-have-a-drug-problem-the-untold-story.

[9] Man Aman Singh Chhina, Navjeevan Gopal, Varinder Bhatia, “Punjab’s war on Drugs: Such a short, toxic journey,” The Indian Express, June 11, 2016.

[10] Navneet Sharma and Ravinder Vasudeva, “Captain Amarinder Singh’s drug drive in Punjab races against time,” The Hindustan Times, April 13, 2017, http://www.hindustantimes.com/india-news/captain-amarinder-singh-s-drug-drive-in-punjab-races-against-time/story-JQzFUu0uavMyoqhe2O4dWP.html.

[11] Maninder Dabas, “Golden Crescent-The Route Through Which Drugs Are Making Their Way Into Punjab,” The Times of India, June 10, 2016, http://www.indiatimes.com/news/india/golden-crescent-the-route-through-which-drugs-are-making-their-way-into-punjab-256556.html.

[12] Narender Singh and R.K. Arora, Role of Surveillance Technology in Border Security, Jaipur: Centre for Peace and Conflict Studies, 2016, pp. 13-15.

[13] Lt. General V.K. Kapoor (Retd), “Border Protection: Technologies used in Border and Perimeter Security – The Indian Context,” SP’s Land Forces, November 3, 2016.

[14] Man Aman Singh Chhina , Navjeevan Gopal , Varinder Bhatia, see n. 9

[15]Ibid.

[16] Manjeet Sehgal, “Den of drugs: How Punjab politcos are linked to Rs 700-crore drug racket”, India Today, January 12, 2014, http://indiatoday.intoday.in/story/punjab-politicians-in-dock-for-alleged-connections-to-drug-lords/1/335732.html

[17] Sanjeev Verma “‘Narco politics’ behind Punjab’s drug epidemic,” The Hindustan Times, September 12, 2013, http://www.hindustantimes.com/chandigarh/narco-politics-behind-punjab-s-drug-epidemic/story-cNlGkngMzhiWY0cdkRLSfL.html.

[18] Sukhdeep Kaur, “53 Punjab cops arrested in drug cases since 2014”, The Hindustan Times, June 13, 2016, http://www.hindustantimes.com/punjab/53-punjab-cops-arrested-in-drug-cases-since-2014/story-LE2f2pwvAmsFStjrCEV0tO.html.

[19] Rohan Dua, “House panel on Pathankot attack puts Punjab Police SP Salwinder Singh under cloud,” The Times of India, February 14, 2017, http://timesofindia.indiatimes.com/india/house-panel-on-pathankot-attack-puts-punjab-police-sp-salwinder-singh-under-cloud/articleshow/57137279.cms.

[20] “Punjab to get well-guarded warehouses for seized drugs: Punjab DGP Suresh Arora,” The Hindustan Times, October 20, 2016, http://www.hindustantimes.com/punjab/punjab-to-get-well-guarded-warehouses-for-seized-drugs-punjab-dgp-suresh-arora/story-v8l21uA8OTBVdk79aobPAL.html

[21] Department-related Parliamentary Standing Committee on Home Affairs, Two Hundred Third Report, “Border Security: Capacity Building and Institutions”, (Presented to Rajya Sabha on 11th April 2017), Rajya Sabha Secretariat, New Delhi, April, 2017.

[22] Ibid.

[23] Ibid.

[24] Sarah Berger, “Mexico Drug Trafficking: Drone Carries 28 Pounds of Heroin Across Border To US,” The International Business Times, August 13, 2015, http://www.ibtimes.com/mexico-drug-trafficking-drone-carries-28-pounds-heroin-across-border-us-2051941.; Ananya Bhattacharya, “Colombia’s narcotics smuggling is going hi-tech with drone deliveries,” Quartz, November 19, 2016, https://qz.com/841327/colombias-narcotics-smuggling-is-going-hi-tech-with-drone-deliveries/.

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