Author : Shivam Shekhawat

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 10, 2024 Updated 0 Hours ago

‘निवेश का क्षेत्र’ बनने की आकांक्षाओं के बावजूद, नेपाल की ढांचागत और राजनीतिक बाधाएं उसे ये लक्ष्य हासिल करने से रोक रही हैं.

निवेश की राह पर नेपाल: एक नए युग की शुरुआत

पिछले महीने नेपाल निवेश सम्मेलन (NIS) के तीसरे संस्करण के उद्घाटन के दौरान, प्रधानमंत्री प्रचंड ने नेपाल को निवेश का एक अहम ठिकाना बनने में मदद करने के पीछे के, ‘वैधानिक, सामरिक और भौगोलिक नज़रियों’ को रेखांकित किया था. बाद में प्रचंड ने अपनी सरकार की निवेश को बढ़ावा देने वाली नीतियों की तारीफ़ भी की. क्योंकि उनकी सरकार ने निवेश सम्मेलन से पहले नए अध्यादेश पारित किए थे और मौजूदा क़ानूनों में संशोधन भी किया था. निवेश सम्मेलन के दौरान नेपाल के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने भाग लिया, जिन्होंने अपने देश को निवेश के एक लाभप्रद ठिकाने के तौर पर पेश किया और निवेशकों का भरोसा जगाने के लिए देश की राजनीतिक (अ)स्थिरता को लेकर आशंकाएं दूर करने की कोशिश की. वैसे तो सरकार के कई तबक़ों ने इस निवेश सम्मेलन को कामयाब बताया. लेकिन, इनमें किए गए अंतिम वादे उन लक्ष्यों से काफ़ी कम रह गए, जिन्हें देश में लाने की उम्मीद इन्वेस्टमेंट बोर्ड नेपाल ने लगाई थी. भले ही नेपाल के आर्थिक सूचकांकों में कुछ सुधार तो आया है. लेकिन, निवेश के वादों के निकट भविष्य में ठोस योगदान में तब्दील होने पर अभी नज़र रखनी होगी. 

 

उम्मीदें बनाम हक़ीक़त: NIS 2024 के परिणाम

 

28-29 अप्रैल के दौरान तीसरे नेपाल निवेश सम्मेलन के लिए 2500 मेहमान और लगभग 800 संभावित निवेशक काठमांडू में इकट्ठा हुए थे. इस सम्मेलन में 55 देशों ने भागीदारी की थी और नेपाल की सरकार ने निवेश की संभावनाओं वाले निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की 154 परियोजनाओं का प्रदर्शन किया था. 19 परियोजनाओं में निवेश के प्रस्ताव के दस्तावेज़ भी तैयार किए गए थे. इस निवेश सम्मेलन से पहले नेपाल की सरकार ने अपने कूटनीतिक मिशनों के ज़रिए दूसरे देशों के निवेशकों से संपर्क करने और उन्हें जानकारी देने के कार्यक्रम भी आयोजित किए थे. ब्रिटेन, अमेरिका, चीन और भारत के लगभग 12  विदेशी निवेशकों ने प्रधानमंत्री प्रचंड से मुलाक़ात की थी. जबकि 30 प्रतिनिधि अलग अलग मंत्रालयों के उच्च स्तरीय अधिकारियों के साथ मिले थे.

 निवेश सम्मेलन के दौरान नेपाल के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने भाग लिया, जिन्होंने अपने देश को निवेश के एक लाभप्रद ठिकाने के तौर पर पेश किया

नेपाल के उद्योग मंत्रालय के अनुसार, चार परियोजनाओं के लिए 9.13 नेपाली रुपए के निवेश के जो वादे किए गए हैं, उनमें से 6 अरब नेपाली रुपए भक्तपुर की एक निवेश कंपनी के लिए, 3 अरब NPR काठमांडू में एक कारोबारी इमारत के लिए, 7.66 करोड़ नेपाली रुपए कैलाली में 200 किलोवाट की पनबिजली परियोजना के लिए और 6.25 करोड़ NPR, ललितपुर में होटल और रेस्टोरेंट बनाने में लगाए जाएंगे. हालांकि, नेपाल के निवेश बोर्ड ने जिन चार परियोजनाओं के विकास और उनमें निवेश के लिए दस्तावेज़ तैयार किए थे, उनमें किसी ने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई.

 

नेपाल में निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भारत है, जिसके बाद चीन का नंबर आता है. नेपाल के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारत की हिस्सेदारी लगभग 33.26 प्रतिशत यानी लगभग 89 अरब नेपाली रुपए हैं. जबकि FDI में चीन का हिस्सा 33.4 अरब NPR है. भारत ने सबसे ज़्यादा खनन और निर्माण सेक्टर में निवेश का वादा किया है और उसके बाद पनबिजली परियोजनाओं का नंबर आता है. वहीं, चीन के ज़्यादातर निवेश पनबिजली परियोजनाओं में ही हैं. इस निवेश सम्मेलन के दौरान दोनों देशों से काफ़ी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया था. चीन ने BRI और ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव के दायरे में नेपाल के साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और ट्रांस हिमालयन कनेक्टिविटी नेटवर्क को पूरा करने का भी वादा किया. चीन और नेपाल की दो कंपनियों के बीच सहमति पत्रों (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए. वहीं, चीन ने नेपाल के पोखरा और लुंबिनी से दो कारोबारी उड़ानें शुरू करने का भी वादा किया. 

 

नेपाल में भारत के राजदूत ने देश की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ विदेश नीति के तहत वहां निवेश को आगे बढ़ाने में मदद करने का भरोसा दिया. सम्मेलन के समापन के बाद दोनों देशों के कारोबारियों के बीच भी बैठकें हुईं. नेपाल के चैंबर ऑफ कॉमर्स और मिलेनियम इंडिया इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के बीच सहयोग के एक सहमति पत्र (MoU) पर भी दस्तख़त किए गए. नेपाल के विदेश मंत्री ने अपने देश में निवेश को उत्सुक भारतीय निवेशकों के लिए एक हैंडबुक भी जारी की, और नेपाल के बीएलसी ग्रुप और भारत के योट्टा डेटा सर्विसेज़ के बीच काठमांडू में एक डेटा सेंटर बनाने के समझौते पर भी दस्तख़त किए गए.

 

नेपाल में FDI आने की राह में कौन सी बाधाएं हैं?

 

नेपाल की सरकार ने पहला निवेश सम्मेलन 2017 में आयोजित किया था, जिसके बाद 2019 में इसका दूसरा संस्करण आयोजित किया गया. 2017 के पहले सम्मेलन के दौरान नेपाल में 13.5 अरब डॉलर के निवेश के वादे किए गए थे, और इसमें से भी 61 फ़ीसद निवेश का वादा अकेले चीन ने किया था. 2019 के सम्मेलन में 50 परियोजनाओं में 12 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया गया था, जो पिछले सम्मेलन की तुलना में कम था. चलन के मुताबिक़ इस वादे के हक़ीक़त में तब्दील होने का आंकड़ा और भी कम था. 2017 में वास्तविक निवेश 1.5 अरब डॉलर का हुआ और 2019 में केवल 9 करोड़ डॉलर का निवेश नेपाल में आया. नेपाल के आर्थिक विकास के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सतत प्रवाह बहुत ज़रूरी है. 2021-22 के दौरान नेपाल का FDI भंडार 16 प्रतिशत बढ़कर 26.43 करोड़ नेपाली रुपए पहुंच गया था. मौजूदा वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों के दौरान नेपाल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के वादों में 93.34 प्रतिशत का उछाल आया है. हालांकि, नेपाल के केंद्रीय बैंक के मुताबिक़, वास्तविक विदेशी निवेश अभी भी बहुत कम है और ये, इस साल फ़रवरी के मध्य में ख़त्म हुए इस वित्त वर्ष के पहले सात महीनों के दौरान 5.18 अरब नेपाली रुपए के आस-पास रहा है. FDI को मंज़ूरी और वास्तविक निवेश के बीच ये अंतर नेपाल में हमेशा बहुत अधिक रहा है. 1995-96 से 2021-22 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कुल मंज़ूर रक़म का केवल 36.2 प्रतिशत ही रहा था.

 नेपाल के निवेश बोर्ड ने जिन चार परियोजनाओं के विकास और उनमें निवेश के लिए दस्तावेज़ तैयार किए थे, उनमें किसी ने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई.

देश में FDI का प्रवाह रोकने में बाधा बनने वाली मौजूदा समस्याओं को दूर करने के लिए नेपाल ने पिछले कुछ दशकों के दौरान कई क़दम उठाए हैं, ताकि निवेश के लिए उचित माहौल बनाया जा सके. 2019 में नेपाल ने विदेशी निवेश और तकनीक के तबादले के क़ानून में बदलाव किया था, और 2020 में इंडस्ट्रियल एंटरप्राइज़ेज़ एक्ट पारित किया गया. मौजूदा वित्त वर्ष में निवेश के वादों में बढ़ोत्तरी के पीछे उन बदलावों को वजह बताया जा रहा है, जो नेपाल ने अपने बजट में किए थे. बजट के बयान में 10 करोड़ नेपाली रुपए से कम के निवेश के लिए केवल सात दिनों के भीतर स्वत: मंज़ूरी का रास्ता खोलने का वादा किया गया था. वित्त मंत्री के मुताबिक़, कारोबार में लगने वाला समय और लागत कम करने और अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने के लिए भी कई प्रयास किए गए हैं.

 

निवेश सम्मेलन से पहले ज़मीन अधिग्रहण क़ानून, इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन के क़ानून, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच साझेदारी का एक्ट और FITTA जैसे लगभग आठ क़ानूनों में अध्यादेश के ज़रिए संशोधन किया गया था. नेपाल के प्रधानमंत्री के मुताबिक़ हाल ही में उनके देश ने द्विपक्षीय निवेश समझौते की एक रूप-रेखा को भी मंज़ूरी दी है, और उन्होंने देशों से इन पर दस्तख़त करने की गुज़ारिश की. फरवरी 2024 में नेपाल और ऑस्ट्रेलिया ने व्यापार एवं निवेश की रूप-रेखा के समझौते पर दस्तख़त और आदान-प्रदान किए थे. क़ानूनों में बदलाव की सामान्य प्रक्रिया अपनाने के बजाय अध्यादेश का रास्ता अपनाने पर विपक्ष ने सरकार द्वारा अपनाए गए इस तरीक़े की विश्वसनीयता पर सवाल ज़रूर खड़े किए हैं.

 देश में FDI का प्रवाह रोकने में बाधा बनने वाली मौजूदा समस्याओं को दूर करने के लिए नेपाल ने पिछले कुछ दशकों के दौरान कई क़दम उठाए हैं, ताकि निवेश के लिए उचित माहौल बनाया जा सके.

नेपाल में निवेश के सतत प्रवाह की राह में कई संरचान्मक और बरसों से चले आ रहे मसले खलल डालते रहे हैं. भयंकर भ्रष्टाचार, विदेशी कंपनियों के काम करने की राह में रोड़ों, FDI हासिल कर सकने वाले क्षेत्रों की नकारात्मक सूची और कुछ क्षेत्रों में सरकार के एकाधिकार जैसे मसले निवेशकों के भरोसे पर असर डालते हैं. इस साल के निवेश सम्मेलन में ब्रिटेन की सरकार के दक्षिण एशिया के लिए व्यापार आयुक्त ने सरकार से गुज़ारिश की कि वो दोहरे कराधान से बचने के लिए वैधानिक उपाय करे और ऐसी नीतियां बनाए जिससे निवेशों को संरक्षण प्राप्त हो सके. स्थान और सेक्टर के लिहाज़ से भी विदेशी निवेश के विकल्प बेहद सीमित रखे गए हैं. सरकारों में जल्दी जल्दी बदलाव और नीतियों को पलटना भी एक बड़ा मसला रहा है. निवेश की न्यूनतम सीमा पर कभी आगे तो कभी पीछे चलना भी नेपाल की हीला-हवाली का एक उदाहरण है. पहले निवेश की न्यूनतम सीमा को 50 लाख नेपाली रुपए से बढ़ाकर 5 करोड़ रुपए कर दिए गया था. पर, बाद में इसे दो करोड़ NPR कर दिया गया. ब्यूरोक्रेसी की लालफीताशाही, सख़्त श्रमिक क़ानून और परिवहन की भारी लागत जैसी मुश्किलें मिलकर निवेश के प्रवाह को बाधित करती हैं.

 

हाथ से फिसलती स्थिरता?

 

निवेश सम्मेलन के दौरान देशों द्वारा किए गए निवेश के बड़े बड़े वादों से हटकर देखें, तो इस सम्मेलन के दौरान सरकारी एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी को लेकर काफ़ी आलोचना की गई थी. अध्यादेश जारी करने को भी अच्छा क़दम नहीं माना गया था. पनबिजली परियोजनाओं में निवेश के प्रस्ताव पेश करने के लिए निवेशकों को 45 दिन का समय दिया गया है. वहीं, अन्य परियोजनाओं के लिए ये समय सीमा 35 दिन की है. लेकिन, इन वादों को हक़ीक़त में तब्दील करने के लिए, राजनीतिक स्थिरता बहुत आवश्यक है. सम्मेलन के एक हफ़्ते से भी कम वक़्त के भीतर मौजूदा गठबंधन सरकार के एक प्रमुख दल जनता समाजवादी पार्टी नेपाल (JSP-N) में टूट हो गई और JSP के नाम से एक नए दल का गठन कर लिया गया. इससे राजनीतिक स्थिरता का ख़तरा पैदा हो गया, जिससे निवेशकों का भरोसा डिग सकता है. यही नहीं, प्रधानमंत्री प्रचंड को बाद में संसद से विश्वास मत हासिल करना पड़ गया, जो दिसंबर 2022 में उनके सत्ता में आने के बाद से चौथा मौक़ा था. वैसे तो गठबंधन अभी मज़बूत है. लेकिन, ये सियासी दांव पेंच अक्सर गठबंधन में सेंध लगाने में सफल रहते हैं, जैसा कि हमने मार्च महीने में देखा था, जब प्रधानमंत्री प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस से अपना रिश्ता तोड़कर एक नया गठबंधन बनाया था. ये सारे उलटफेर किसी भी आगामी निवेश की प्रगति में बाधक बन सकते हैं.

 

निष्कर्ष

 

अमेरिका और चीन में पूरी दुनिया में चल रही प्रतिद्वंदिता दक्षिणी एशिया में भी दिखाई देती है और इस क्षेत्र की बाहर की बहुत सी शक्तियां यहां पर अपने पांव जमाने में दिलचस्पी का इज़हार करती रही हैं. ऐसे में नेपाल के सियासतदान ये मानते हैं कि वो मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल का इस्तेमाल अपने फ़ायदे और आर्थिक तरक़्क़ी के लिए कर सकते हैं. इसीलिए, नेपाल ने बार बार ख़ुद को ‘निवेश के क्षेत्र’ के तौर पर प्रचारित करने की कोशिश की है. लेकिन, जैसा कि हमेशा होता आया है कि आर्थिक फ़ायदे हासिल करने और देश में ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी निवेश तब तक नहीं लाया जा सकता, जब तक उन संरचनात्मक और राजनीतिक बाधाओं को दूर न किया जाए, जो नेपाल में निवेश की राह में बाधा बनते हैं.

 

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