Author : Prachi Mishra

Published on Aug 26, 2022 Updated 0 Hours ago

आज जब तमाम देश और बड़ी तकनीकी कंपनियां क्वॉन्टम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में तेज़ी से प्रगति कर रही हैं, तो हमें चाहिए कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इन तकनीकों के रिसर्च और विकास के स्तर पर ही नैतिक इस्तेमाल का रास्ता निकाला जाए.

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिये क्वॉन्टम कंप्यूटिंग तकनीक का इस्तेमाल!

जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए तकनीक पर आधारित समाधान दिनों-दिन अहम होते जा रहे हैं. इस वक़्त दुनिया के बहुत से देश और बड़ी तकनीकी कंपनियां, दोनों ही तेज़ी से बढ़ रहे तापमान, बारिश के बेतरतीब स्तर, भू-जल के घटते स्तर और ख़राब मौसम के भयंकर हालात से निपटने के लिए उभरती हुई तकनीकों के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. हालांकि ये तकनीकी समाधान अपने आप में अलग रहकर इस्तेमाल हुए, तो कारगर नहीं साबित होंगे. वैसे तो तमाम देशों के नेताओं और बड़ी कंपनियों ने जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए तुरंत क़दम उठाने का वादा किया है. लेकिन इस मामले में आविष्कार की अगुवाई राजनीतिक इच्छाशक्ति को ही करनी होगी.

जलवायु संकट की चुनौती से निपटने के लिए क्वॉन्टम  तकनीक के पास समाधान उपलब्ध कराने की अपार संभावनाएं हैं. क्वॉन्टम टम ऐप और प्रक्रियाएं हमारे टिकाऊ भविष्य में बहुत अहम भूमिका निभा सकती हैं.

जलवायु संकट की चुनौती से निपटने के लिए क्वॉन्टम  तकनीक के पास समाधान उपलब्ध कराने की अपार संभावनाएं हैं. क्वॉन्टम टम ऐप और प्रक्रियाएं हमारे टिकाऊ भविष्य में बहुत अहम भूमिका निभा सकती हैं. कार्बन उत्सर्जन के मानकों का पालन सुनिश्चित करा सकती हैं. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से जुड़े फ़ैसलों की प्रक्रिया में सुधार लाने के साथ साथ, क्वॉन्टम तकनीक एक बेहतर पर्यावरण के लिए दूरगामी समाधान का रास्ता भी दिखा सकती है. आज जब क्वॉन्टम तकनीक की दुनिया में बड़ी तेज़ी से तरक़्क़ी हो रही है, तो ये ज़रूरी हो जाता है कि इस तकनीक के नैतिक इस्तेमाल के लिए रिसर्च और विकास के दौरान ही उपयोगी तरीक़े से निवेश किया जाए, ताकि जलवायु परिवर्तन से निपटने में इन तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सके. आज दुनिया दूसरी क्वॉन्टम क्रांति के मुहाने पर खड़ी है और ये वक़्त बेहद मुफ़ीद है कि विचारशील नेता, समाज के आम लोग, राजनेता, उद्योग के विशेषज्ञ और विद्वान सब मिलकर जलवायु संकट की मौजूदा चुनौती से निपटने के लिए क्वॉन्टम तकनीक प्रयोग करने की राह सुगम बनाएं.

जलवायु परिवर्तन से निपटने में क्वॉन्टम तकनीकों का व्यवहारिक उपयोग

कोई आम कंप्यूटर जहां गणना के लिए बिट्स का इस्तेमाल करता है. वहीं उसकी तुलना में क्वांटम कंप्यूटर क्यूबिट्स का प्रयोग करता है. इससे हिसाब किताब लगाने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. प्रॉसेसिंग की क्षमता में बेशुमार ढंग से इज़ाफ़ा हो जाता है और इसके नतीजे नफ़ा या नुक़सान के दोहरे पैमाने पर खरे उतरने के बजाय संभावनाओं पर आधारित होते हैं. इसके चलते पेचीदा हालात की तमाम संभावनाओं का अंदाज़ा लगाने के लिए क्वॉन्टम कंप्यूटर असीमित संभावनाओं की तस्वीर पेश कर सकते हैं, जो किसी सामान्य कंप्यूटर की तुलना में उनके लिए आसान होता है. मिसाल के तौर पर अगर क्वॉन्टम कंप्यूटर को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ जोड़कर इस्तेमाल किया जाए, तो वो पानी की गुणवत्ता को लेकर नए आविष्कार वाले परीक्षण ज़्यादा सटीक अनुमानों के साथ कर सकता है. इससे अर्थव्यवस्था के तमाम क्षेत्रों में टिकाऊ विकास की राह सुधारी जा सकती है. क्वॉन्टम कंप्यूटर जिन तरीक़ों से ग्लोबल वार्मिंग को कम कर सकते हैं, उनकी चर्चा हमने आगे की है.

बिजली की कमी और आपूर्ति

बिजली का उत्पादन, ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है और ऊर्जा के क्षेत्र में क्वॉन्टम कंप्यूटिंग का एक व्यवहारिक इस्तेमाल ये हो सकता है कि इससे मांग व आपूर्ति के बीच अंतर का सटीक पूर्वानुमान लगाकर बिजली उत्पादन की क्षमता का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा क्वॉन्टम क्षमताओं का प्रयोग करके बिजली की आपूर्ति में फ़र्क़ और बर्बादी का भी पता लगाया जा सकता है. क्योंकि बिजली की आपूर्ति के दौरान जितना नुक़सान होता है, वो बिजली के भंडारण, उसकी आपूर्ति और वितरण पर गहरा असर डालता है. भारत में हर साल बनने वाली क़रीब 15 से 20 प्रतिशत नवीनीकरण योग्य ऊर्जा बर्बाद हो जाती है, क्योंकि बिजली ग्रिड ऊर्जा के उतार चढ़ाव का प्रबंधन नहीं कर पाती है. ये चुनौतियां इसलिए पैदा होती हैं, क्योंकि हवा की रफ़्तार और सूरज की किरणों की तपिश में बहुत उतार-चढ़ाव होता रहता है और अभी इनका एक हद तक ही ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाया सकता है. इसी तरह क़रीब 20 प्रतिशत बिजली, ट्रांसमिशन के दौरान ही बर्बाद हो जाती है. जो स्मार्ट ग्रिड क्वांटम एल्गोरिद्म का इस्तेमाल करती हैं, वो आपूर्ति के दौरान होने वाले इश नुक़सान (AT&T) से बच सकती हैं.

भवन निर्माण में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो, इसके लिए निर्माण के नए संसाधन बनाने में क्वॉन्टम तकनीकें काफ़ी मददगार हो सकती हैं. ग़लती सुधारने वाले क्वॉन्टम कंप्यूटर जो अगले कम से कम दस बरस तक तैयार होने वाले हैं,

भवन निर्माण के संसाधन

कंस्ट्रक्शन और भवन निर्माण क्षेत्र, पूरी दुनिया में 40 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है. इससे नए टिकाऊ सामान तैयार करने, उत्सर्जन का स्तर कम करने और प्रदूषण को घटाने की काफ़ी संभावनाएं नज़र आती हैं. भवन निर्माण में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो, इसके लिए निर्माण के नए संसाधन बनाने में क्वॉन्टम तकनीकें काफ़ी मददगार हो सकती हैं. ग़लती सुधारने वाले क्वॉन्टम कंप्यूटर जो अगले कम से कम दस बरस तक तैयार होने वाले हैं, वो ऐसे नए तत्वों को बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो. क्वांटम केमिस्ट्री से तैयार मॉडल की मदद से सीमेंट, एल्यूमिनियम और स्टील जैसी चीज़ों का विकल्प तलाशा जा सकता है. क्योंकि इन सबको तैयार करने में बहुत ऊर्जा लगती है और इस्तेमाल के दौरान इनसे ख़ुद भी काफ़ी कार्बन उत्सर्जन होता है. क्वॉन्टम कंप्यूटर की मदद से तैयार भवन निर्माण की नई सामग्री हल्की और ज़्यादा मज़बूत होगी, जो मूलभूत ढांचे को टिकाऊ बनाएगी और उनके रख-रखाव के साथ-साथ उनकी जगह नए निर्माण में होने वाले ख़र्च को कम करेगी.

परिवहन और लॉजिस्टिक्स

माल और सामान को ट्रक, ट्रेन, विमान और जल परिवहन के ज़रिए लाने ले जाने और इंसानों की कार, बसों, ट्रेन और दूसरे निजी वाहनों के ज़रिए आवाजाही, दुनिया की 20 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार होती है. परिवहन के आधुनिक साधनों में फ्लुइड डायनामिक्स का इस्तेमाल होता है. लेकिन, उसका कुशल इस्तेमाल इसलिए सीमित ही रह जाता है, क्योंकि आम कंप्यूटर बड़े स्तर की सतह की गणना नहीं कर पाते हैं. इसका मतलब है कि इस मामले में अधिकतर गणना कंप्यूटर के बजाय वास्तविक सतह पर होती है. इससे न केवल ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है, बल्कि गणना का भी कुछ ही मामलों में प्रयोग हो पाता है. ऐसी समस्याओं का समाधान क्वॉन्टम तकनीक से हो सकता है, जो एक साथ कई संभावनाओं का आकलन कर सकते हैं और सिस्टम की सीमाओं के परे जाकर बेहतर डिज़ाइन उपलब्ध कराने के साथ साथ नुक़सान को भी कम कर सकते हैं. बोइंग और एयरबस जैसी विमान निर्माता कंपनियां भी क्वॉन्टम पर आधारित आविष्कारों के इस्तेमाल पर विचार कर रही हैं, जिनसे ईंधन की खपत कम की जा सके.

पर्यावरण संबंधी फ़ैसलों में क्वॉन्टम कंप्यूटिंग का इस्तेमाल

क्वॉन्टम कंप्यूर का प्रयोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी नई उभरती हुई तकनीकों के साथ मिलकर भी किया जा सकता है. इससे सबूतों पर आधारित फ़ैसले लेने की प्रक्रिया में सुधार लाया जा सकता है. वो एक साथ ज़्यादा संख्या में सिम्यूलेशन कर सकते हैं, जिससे तेज़ी से परीक्षण करने, तुलना करने, कमी सुधारने और किसी उत्पाद या सेवा को लागू करने में मददगार साबित हो सकती हैं. मिसाल के तौर पर यूरोपीय संघ के बहुत से देश कोयले की जगह तरल प्राकृतिक गैस (LNG) जैसे स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे कोयले की तुलना में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 40 प्रतिशत कम हो जाता है. हालांकि, ज़्यादातर यूरोपीय देशों को तरल प्राकृतिक गैस को बाहर से मंगाना पड़ता है, जिसके चलते सबसे बड़ी चुनौती सबसे कम ख़र्च वाला रास्ता तलाशने की होती है. फिर जहाज़ों की कितनी खेप चाहिए और परिवहन के दौरान नुक़सान कम से कम हो, इसका ख़याल भी रखना होता है. चूंकि आम कंप्यूटर ऐसी गणनाएं करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं होते, तो IBM जैसी कंपनियां अब ExxonMobil जैसी तेल और गैस कंपनी की मदद के लिए आगे आ रही हैं, ताकि वो क्वॉन्टम कंप्यूटर के आधार पर फ़ैसले ले सकें. इससे बहुत से प्राकृतिक संसाधनों की बचत होगी और वो नुक़सान कम कर पाने में भी मदद मिलेगी, जिनसे पर्यावरण को क्षति पहुंचती है.

जब क्वॉन्टम कंप्यूटिंग के एल्गोरिद्म का इस्तेमाल पूर्वानुमान वाले डेटा के मॉडल के साथ होता है, तो जंगलों में लगने वाली आग और बाढ़ से होने वाले विस्थापन को भी बहुत हद तक सीमित किया जा सकता है. इसके अलावा बिजली आपूर्ति और मांग पर असर डालने वाली भयंकर मौसम के हालात का भी बेहतर ढंग से पूर्वानुमान लगाकर उनसे निपटने के तौर-तरीक़े तलाशे जा सकते हैं.

इस वक़्त, उर्वरक के उत्पादन से दुनिया में कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में लगभग 2 फ़ीसद का इज़ाफ़ा होता है और क्वॉन्टम कंप्यूटर का इस्तेमाल करके नाइट्रोजन फिक्सेशन की प्रक्रिया को अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के मुफ़ीद बनाया जा सकता है.

इस वक़्त इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरियां, फिर चाहे वो एसिड पर आधारित हों या लिथियम आयन पर, उनकी भंडारण की क्षमता बहुत कम होती है और उन्हें नियमित रूप से बदलना पड़ता है. इसके अलावा इन बैटरियों का निस्तारण एक बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, क्योंकि उन्हें पर्याप्त सावधानी बरते बिना यूं ही फेंक दिया जाता है. फिर इससे मिट्टी, हवा और पानी प्रदूषित होते हैं. क्वॉन्टम कंप्यूटर से ऐसे नुस्खों का पता लगाया जा सकता है, जो बैटरी की क्षमता को बढ़ा सकें और उनका इस्तेमाल लंबे समय तक किया जा सके. इससे बैटरियों को बार बार बदलने की झंझट से छुटकारा मिलेगा. वर्ष 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने में ये बात बहुत कारगर साबित हो सकती है.

ये उभरती हुई तकनीक, उर्वरक उद्योग के लिए भी बहुत उपयोगी हो सकती है. इस वक़्त, उर्वरक के उत्पादन से दुनिया में कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में लगभग 2 फ़ीसद का इज़ाफ़ा होता है और क्वॉन्टम कंप्यूटर का इस्तेमाल करके नाइट्रोजन फिक्सेशन की प्रक्रिया को अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के मुफ़ीद बनाया जा सकता है. आज दुनिया के कई रिसर्चर और वैज्ञानिक क्वॉन्टम मॉडल का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि वो ये पता लगा सकें कि मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया किस तरह से नाइट्रोजन इकट्ठा करते हैं. बाद में इसे कृत्रिम रूप से इस्तेमाल करके मिट्टी के प्रदूषण को कम किया जा सकेगा और रसायनों पर आधारित नाइट्रोजन वाली उर्वरकों को उत्पादन में बिजली की खपत कम की जा सकेगी.

आगे की राह

इस वक़्त जलवायु संकट को कम करने के लिए क्वॉन्टम  तकनीक के इस्तेमाल पर बहुत सीमित बहस हो रही है. जहां तक सरकारों की बात है तो उन्होंने क्वॉन्टम तकनीक को बढ़ावा देने के लिए रणनीतियों, अभियानों और कार्यक्रमों की शुरुआत की है. लेकिन, अभी भी ज़्यादातर देश इस तकनीक के व्यवहारिक इस्तेमाल को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं. अभी ये फ़ैसला नहीं हो सकता है कि इस तकनीक का फ़ौरी इस्तेमाल किया जाए या फिर दूरगामी नतीजों के लिहाज़ से प्रयोग हो. जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार बातों से जुड़े फ़ैसले कोई एक देश अकेले नहीं कर सकता है. इसके लिए क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल में अगुवा देशों को ही परिचर्चा को आगे बढ़ाना होगा. तमाम देशों के राजनेताओं को चाहिए कि वो क्वॉन्टम तकनीक की मदद से बड़ी चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए आपस में तालमेल करें. इस मामले में क्वाड और G20 जैसे बहुपक्षीय संगठन, परिचर्चा और विचार-विमर्श का मंच उपलब्ध करा सकते हैं.

तकनीकी विकास के साथ साथ क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल के नैतिक ढांचे का विकास करना भी उतना ही अहम होगा. आज कुछ मुट्ठी भर देश और गिनी चुनी कंपनियां ही क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल में सबसे आगे हैं. ऐसे में ये सुनिश्चित किए जाने की ज़रूरत है कि वो पर्यावरण और क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल से जुड़े अहम फ़ैसलों पर हावी न हो जाएं.

इसके साथ साथ क्वॉन्टम तकनीक से जुड़े समाधानों के इस्तेमाल के लिए पेशेवर लोगों, समाज के सामान्य वर्ग के विशेषज्ञों, जलवायु परिवर्तन के एजेंटों और अफसरों को भी व्यापक प्रशिक्षण देने और उनके कौशल विकास की दरकार होगी. इससे हर भागीदार ये सुनिश्चित कर सकेगा कि तकनीकी समाधान उनकी ज़रूरतों के हिसाब से प्रयोग किए जा सकें. जिन देशों को क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल में बढ़त हासिल है, उन्हें बेहतर तजुर्बों और जानकारी को साझा करने में बड़ा दिल दिखाना होगा, ताकि दुनिया भर में क्वॉन्टम  तकनीक के इस्तेमाल लायक़ कामगारों की फौज तैयार हो सके. जब बात क्वॉन्टम तकनीकों के लिए पैसे जुटाने की आती है, तो ज़्यादातर देशों ने इसके लिए फंड तो आवंटित कर रखा है. लेकिन उन्हें ये भी सुनिश्चित करना होगा कि क्वॉन्टम उद्योग अपने बल पर खड़ा हो सके. इसके लिए निवेश के विशेष ढांचे खड़े किए जा सकते हैं और वैश्विक बैंक व वित्तीय संगठन उन तकनीकों के रिसर्च और विकास के लिए पूंजी मुहैया करा सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में मददगार हों.

तकनीकी विकास के साथ साथ क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल के नैतिक ढांचे का विकास करना भी उतना ही अहम होगा. आज कुछ मुट्ठी भर देश और गिनी चुनी कंपनियां ही क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल में सबसे आगे हैं. ऐसे में ये सुनिश्चित किए जाने की ज़रूरत है कि वो पर्यावरण और क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल से जुड़े अहम फ़ैसलों पर हावी न हो जाएं. इसके बजाय क्वॉन्टम समुदाय को पर्यावरण के जानकारों और फ़ैसले लेने वालों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जिससे कि क्वॉन्टम तकनीक के इस्तेमाल का ढांचा, समझौता, नियम और नैतिक इस्तेमाल के दिशा निर्देश तय किए जा सकें.

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