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Published on Apr 15, 2025 Updated 19 Hours ago

ट्रंप प्रशासन ने USAID में ज़बरदस्त कटौती की है और इसके चलते तिब्बत को मिलने वाली मदद में भी काफ़ी कमी आई है. इससे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) को झटका लगा है, क्योंकि उसे मिलने वाली क़रीब आधी धनराशि पर कैंची चल चुकी है.

अमेरिका की तिब्बत को देने वाली मदद में कमी: असर और उबरने की कोशिशों पर एक नज़र

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) यानी संयुक्त राज्य अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी की ओर से दुनिया भर में चलाए जा रहे सहायता कार्यक्रमों में से 83 प्रतिशत पहलों पर कैंची चला दी है. ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से तमाम विकासशील देशों को ज़बरदस्त झटका लगा है. भारत के धर्मशाला में स्थित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के लिए भी ट्रंप प्रशासन का यह फैसला किसी सदमे से कम नहीं है. दरअसल, सीटीए को अपने कुल बजटीय वित्तपोषण का करीब 40 से 50 प्रतिशत हिस्सा इसी यूएसएड से ही मिलता है और अब यह रकम नहीं मिलने से उसके सामने बड़ा वित्तीय संकट पैदा हो गया है. अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने तिब्बत को लगे इस झटके का प्रभाव कम करने और सीटीए को आश्वस्त करने के लिए 10 मार्च को तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग को एक आधिकारिक पत्र लिखा था. उन्होंने इस पत्र के ज़रिए पेनपा त्सेरिंग और सभी तिब्बती नागरिक को आश्वासन दिया कि तिब्बतियों के लिए और उनकी संस्कृति व पहचान को संरक्षित करने में मदद करने के लिए अमेरिकी सहयोग और सहायता पर असर नहीं पड़ने दिया जाएगा. 

पिछले दिनों आयोजित तिब्बती संसद के सत्र में सीटीए ने अपना वार्षिक बजट पारित किया है. ज़ाहिर है कि अमेरिकी वित्तीय मदद कम होने के बाद सीटीए को अपने रोज़मर्रा के कामकाज और कार्यक्रमों को संचालित करने में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका की ओर से तिब्बत को दी जाने वाली सहायता से हाथ खींच लेने के प्रभाव सिर्फ़ वित्तपोषण के मुद्दे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई दूरगामी प्रभाव भी हो सकते हैं. जैसे कि अमेरिकी सहायता के बिना तिब्बती समुदाय के लिए वैश्विक स्तर पर खुद को मज़बूती से स्थापित करने में दिक्कतें आयेंगी. और तिब्बत से जुड़े मुद्दों के प्रति दुनिया का ध्यान खींचना, साथ ही तिब्बत के अस्तित्व के लिए अपनी लड़ाई को चलाना बेहद मुश्किल हो जाएगा.

अमेरिका की ओर से तिब्बत को दी जाने वाली सहायता से हाथ खींच लेने के प्रभाव सिर्फ़ वित्तपोषण के मुद्दे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई दूरगामी प्रभाव भी हो सकते हैं. जैसे कि अमेरिकी सहायता के बिना तिब्बती समुदाय के लिए वैश्विक स्तर पर खुद को मज़बूती से स्थापित करने में दिक्कतें आयेंगी

पेनपा त्सेरिंग के मुताबिक़ हाल ही में आयोजित हुए तिब्बती संसद के सत्र के दौरान ही अमेरिकी विदेश मंत्री ने यह आधिकारिक पत्र भेजा है, जिसमें उन्होंने तिब्बती मानवाधिकारों के पक्ष में आवाज़ उठाने की बात कही है. इसके अलावा, विदेश मंत्री रूबियो ने बगैर किसी भय के तिब्बतियों द्वारा मूलभूत आज़ादी के अपने मौलिक अधिकार का उपयोग करने और तिब्बतियों को शांतिपूर्वक तरीक़े से रहने व गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का हर स्तर पर पुरज़ोर समर्थन करने के अमेरिका के संकल्प को भी ज़ाहिर किया है. हालांकि, एक बड़ी हैरान करने वाली बात यह है कि पिछले साल नवंबर में ही तत्कालीन अमेरिकी सरकार ने CTA को समर्थन के लिए अपने एक नए पंचवर्षीय कार्यक्रम का ऐलान किया था. इस कार्यक्रम को यूएसएड के ज़रिए तिब्बत फंड और अमेरिकी सरकार द्वारा कार्यान्वित किया जाना था. इस कार्यक्रम का मकसद तिब्तियों की स्थायी आजीविका को प्रोत्साहन देकर और समाज में उनकी मौज़ूदगी को बढ़ाकर, साथ ही तिब्बत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करके तिब्बती समुदायों के लोगों का सशक्तिकरण करना था.

विदेशी मदद पर निर्भरता

त्सावांग नामग्याल ने 2013 में अपने एक आर्टिकल में संभावना जताई थी कि वर्ष 1959 के बाद से CTA को कुल 530 मिलियन अमेरिकी डॉलर दान में मिले हैं. उनकी बातों पर यकीन किया जाए तो सीटीए को अलग-अलग स्रोतों से हर साल 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय मदद मिलती होगी. इससे साफ ज़ाहिर होता है कि सीटीए विदेशों से मिलने वाली वित्तीय मदद पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. हाल ही में अमेरिका ने सीटीए को वित्तीय मदद देने में जो कटौती की है और उससे से हालात पैदा हुए हैं, उनसे साबित होता है कि सीटीए विदेशी मदद पर किस हद तक निर्भर है. यूएसएड पर कैंची चलने के बाद सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने फरवरी 2025 में कहा था कि अमेरिका से मिलने वाली वित्तीय मदद पर रोक लगने से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को कई कार्यक्रमों का संचालन करने में गंभीर रुकावटें झेलनी पड़ेंगी. अमेरिका द्वारा फंड आवंटन में की गई कटौती में तिब्बती शरणार्थियों और विदेशों में रहने वाले तिब्बती समुदायों के विकास व शिक्षा के लिए तिब्बत फंड के ज़रिए दी जाने वाली 7 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि भी शामिल हैं. इसके अलावा, इस कटौती का ब्यूरो ऑफ पॉपुलेशन, रिफ्यूजी एंड माइग्रेशन के ज़रिए भारत और नेपाल में स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े कार्यक्रमों के लिए दी जा रही 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद, साथ ही सीटीए के पंचवर्षीय विकास कार्यक्रम, जिसका कि चौथा साल चल रहा है, के लिए दी जा रही 3 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सालाना मदद समेत अमेरिका से मिलने वाली कुल 15 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहयता पर असर पड़ेगा. अमेरिका द्वारा USAID में की जाने वाली कटौती से सीटीए के धर्म एवं संस्कृति विभाग की तीन वर्षीय तिब्बती डिजिटल लाइब्रेरी परियोजना और यूएसएड के माध्यम से वित्तपोषित 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के इनसाइड तिब्बत प्रोग्राम पर भी व्यापक असर पड़ेगा. इनसाइड तिब्बत प्रोग्राम CTA की देखरेख में चलाया जाता है. वर्ष 2024 में दी गई अमेरिकी वित्तीय मदद के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यूएस ने वैश्विक स्तर पर तिब्बती कार्यक्रमों के लिए 23 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया था.

 अमेरिका द्वारा फंड आवंटन में की गई कटौती में तिब्बती शरणार्थियों और विदेशों में रहने वाले तिब्बती समुदायों के विकास व शिक्षा के लिए तिब्बत फंड के ज़रिए दी जाने वाली 7 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि भी शामिल हैं.

देखा जाए तो CTA को पहले निर्वासित तिब्बती सरकार के रूप में जाना जाता था. सीटीए की तीन शाखाएं यानी एक्ज़ीक्यूटिव, लेजिस्लेटिव और ज्यूडीशरी हैं. कार्यकारी शाखा का नेतृत्व सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग (राजनीतिक नेता) के पास है, विधायी शाखा का नेतृत्व त्सोक्त्सो (अध्यक्ष) के पास है, जबकि न्यायपालिका की अगुवाई त्रिम्पोन चेवा (मुख्य न्याय आयुक्त) करते हैं. सिक्योंग को निर्वासित तिब्बती सरकार का प्रधानमंत्री (पीएम) नामित किया गया था, लेकिन हाल ही में उस पद को बदलकर 'राष्ट्रपति' कर दिया गया है. दुनिया के अलग-अलग देशों में रहने वाले तिब्बती प्रवासी ग्रीन बुक के माध्यम से वित्तीय योगदान देकर CTA का सहयोग करते हैं. ज़ाहिर है कि ग्रीन बुक 1972 से निर्वासित तिब्बती सरकार द्वारा जारी एक दस्तावेज़ है. ग्रीन बुक के माध्यम से तिब्बती प्रवासियों को CTA की गतिविधियों और कार्यक्रमों का सहयोग करने एवं स्वैच्छिक दान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. 

भारतीय सहायता

भारत सरकार ने सेंट्रल तिब्बतन रिलीफ एसोसिएशन यानी केंद्रीय तिब्बती राहत संघ (CTRA) को वित्तीय वर्ष 2025-26 तक के लिए 40 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता प्रदान की है. ज़ाहिर है कि केंद्र सरकार द्वारा भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों के लिए चलाए जा रहे कार्यालयों के प्रबंधन एवं दूसरी कल्याणकारी योजनाओं के प्रशासनिक ख़र्चों को पूरा करने के लिए 8 करोड़ रुपये की वार्षिक सहायता दी जाती है. तमाम दूसरी रिपोर्टों के मुताबिक़ भारत तिब्बती शरणार्थियों की मदद के लिए तिब्बती बजट की लगभग 10 प्रतिशत राशि देता है. भारत इस धनराशि को सीधे अनुदान, राज्य-स्तरीय वित्तीय सहायता और अप्रत्यक्ष मदद के ज़रिए प्रदान करता है. इस अप्रत्यक्ष सहायता में तिब्बती शरणार्थियों के रहने के लिए ज़मीन और बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने जैसी मदद शामिल है. इसके अतिरिक्त, भारत द्वारा तिब्बती संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए भी कई वित्तीय सहायता योजनाएं चलाई जाती हैं. कर्नाटक सरकार ने दक्षिण भारत में तिब्बती शरणार्थियों की आबादी वाले इलाक़ों को विकसित करने के लिए 3 करोड़ रुपये (2023-24) प्रदान किए थे. इसके अलावा भी तमाम वैश्विक चैरिटेबल संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और एजेंसियों द्वारा भारत में रह रहे तिब्बतियों को वित्तीय और दूसरी सहायता उपलब्ध कराई जाती है.

तमाम दूसरी रिपोर्टों के मुताबिक़ भारत तिब्बती शरणार्थियों की मदद के लिए तिब्बती बजट की लगभग 10 प्रतिशत राशि देता है. भारत इस धनराशि को सीधे अनुदान, राज्य-स्तरीय वित्तीय सहायता और अप्रत्यक्ष मदद के ज़रिए प्रदान करता है.

गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से USAID से जुड़े मामलों को अमेरिकी विदेश मंत्री देख रहे हैं, ऐसे में CTA को उनके बहुत उम्मीदें हैं. सीटीए को लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने यूएसएड की समीक्षा की जो 90 दिवसीय समयसीमा निर्धारित की है, उसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री ज़रूर तिब्बतियों और निर्वासित तिब्बती सरकार को वित्तीय मदद जारी रखने के तौर-तरीकों पर काम करेंगे. हालांकि, फिलहाल पूरी दुनिया में तिब्बत से जुड़े धर्मार्थ संगठन और एनजीओ सीटीए को अधिक से अधिक वित्तीय मदद उपलब्ध कराने के लिए सक्रिय हो गए हैं. ज़ाहिर है कि अब तक सीटीए आर्थिक और दूसरी मदद के लिए अमेरिका पर बहुत अधिक निर्भर रहा है और मौज़ूदा परिस्थितियों में यह ज़रूरी भी हो जाता है कि वित्तीय मदद हासिल करने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशे जाएं. जहां तक भारत द्वारा तिब्बती शरणार्थियों और CTA को उपलब्ध कराई जाने वाली सहायता का सवाल है, तो इस मामले में भारत की भूमिका अब तक कुछ अलग रही है. भारत की ओर से सीटीए को एक निश्चित राशि ही अनुदान सहायता के रूप में प्रदान की जाती है और यह उसकी ज़रूरतों की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है. एक अहम बात यह भी है कि फिलहाल अगर भारत सीटीए को उपलब्ध कराई जाने वाली सहयाता में कोई बदलाव करता है, या कहें कि उसे बढ़ाने जैसा कोई क़दम उठाता है, तो यह तय है कि उसे ट्रंप प्रशासन की तरफ से असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा.


भाष्यम कस्तूरी, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व निदेशक हैं.

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