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अमेरिका को अफ्रीका के साथ विशेषत: शासन, जलवायु अनुकूलन और व्यापार जैसे क्षेत्रों में अपने संबंधों पर दोगुना जोर देने की ज़रूरत है.
13 से 15 दिसंबर के बीच, राष्ट्रपति बाइडेन ने वाशिंगटन डी.सी. में यूएस-अफ्रीका नेताओं के समिट अर्थात शिखर सम्मेलन के तहत अफ्रीकी महाद्वीप के नेताओं की मेज़बानी की थी. रिपोर्टस के अनुसार, 49 अफ्रीकी सरकारों, अफ्रीकन यूनियन कमिशन अर्थात अफ्रीकन संघ आयोग, युवा नेताओं तथा युनाइटेड स्टेट्स (यूएस) के अफ्रीकी प्रवासी नागरिकों ने इस तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था. इस शिखर सम्मेलन ने अफ्रीका को लेकर अमेरिका की नए सिरे से प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन को आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा करने और साझा वैश्विक प्राथमिकताओं पर सहयोग बढ़ाने का अवसर प्रदान किया था.
इनोवेशन और डिजिटलीकरण.इस शिखर सम्मेलन ने अफ्रीका को लेकर अमेरिका की नए सिरे से प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन को आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा करने और साझा वैश्विक प्राथमिकताओं पर सहयोग बढ़ाने का अवसर प्रदान किया था.
यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में आयोजित किया गया था जब यूक्रेन में रूस के युद्ध की वजह से खाद्य और ऊर्जा असुरक्षा को बढ़ाते हुए मुद्रास्फीति, व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं में बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा करके अफ्रीका को कोविड-19 महामारी से उबारने में बाधा उत्पन्न की है. 2020 के पहले, अफ्रीकी देशों में से कुछ दुनिया के सबसे तेजी से विकसित होने वाले देशों में शामिल थे. लेकिन कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध की दोहरी चुनौतियों ने दशकों से कड़ी मेहनत कर महाद्वीप ने जो मैक्रो इकॉनॉमिक अर्थात स्थूल आर्थिक एवं सामाजिक-आर्थिक बढ़त तथा शासन संबंधी गति को हासिल किया था उसे प्रभावित करते हुए महाद्वीप को पीछे धकेल दिया है.
कुछ समय से अमेरिका और अफ्रीका के नीति निर्माताओं के बीच इस बात को लेकर द्विपक्षीय सहमति रही है कि अमेरिका को अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को नवीनीकृत करने, पुनर्जीवित करने और प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. परंपरागत रूप से, अफ्रीका में अमेरिकी भागीदारी, लोकतांत्रिक मानदंडों को बढ़ावा देने, विदेशी सहायता, गरीबी को कम करने और संघर्ष और असुरक्षा को दूर करने पर ध्यान देने तक ही केंद्रित रही है. ये प्राथमिकताए भी महत्वपूर्ण होने के बावज़ूद वे पूरे महाद्वीप में होने वाले तेज़-तर्रार परिवर्तनों को ध्यान में रखने में विफल रही हैं. आज अफ्रीका डिजिटल नवाचार और उद्यमिता क्षेत्र में दुनिया के सबसे अधिक मांग वाले स्थलों में से एक के रूप में उभरकर सामने आया है. चौथी औद्योगिक क्रांति (4आईआर) से जुड़ी नई और उभरती प्रौद्योगिकियां, महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अवसर और जोख़िम दोनों से भरी पड़ी हैं. हालांकि, जनसांख्यिकीय और संबंधपरक बदलावों के कारण, अमेरिका ने पिछले एक दशक में व्यापार और निवेश प्रवाह में गिरावट के साथ अफ्रीका में अपनी पैठ खो दी है.
अफ्रीका को लेकर यूएस कूटनीति में हाल के दिनों में उत्साह और उछाल देखा गया है. इस बदलाव का संकेत अगस्त, 2022 में उप-सहारा अफ्रीका के लिए एक नई अमेरिकी रणनीति की शुरुआत और दूसरे यूएस-अफ्रीका लीडर्स समिट के आयोजन के रूप में देखा जा सकता है.
अन्य चिंता का एक प्रमुख कारण अमेरिका-अफ्रीका संबंधों की स्थिरता को लेकर हैं, क्योंकि यूएस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन का आयोजन अपेक्षाकृत कम ही होता है. इसके पहले अंतिम शिखर सम्मेलन 2014 में आयोजित किया गया था. 2014 से लेकर 2022 तक आठ वर्षो का यह लंबा अंतराल इसलिए भी खेदजनक कहा जाएगा, क्योंकि इसी अवधि में अफ्रीका के अन्य विकास साझेदारों जैसे यूरोपियन यूनियन (ईयू), चीन, भारत, जापान, तुर्की तथा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने इसी दौरान अफ्रीकी समकक्षों के साथ नियमित रूप से शिखर बैठकों का आयोजन किया था. पहले के वर्षों की तुलना में अब अफ्रीकी देशों ने पश्चिमी सहायता पर अपनी निर्भरता को काफी कम कर दिया है. अब उन्होंने अपने बाहरी साझेदारों के दायरे में वृद्धि कर ली है. अब वहां के नेता और वहां की सरकारें, अपने राष्ट्रीय हितों और चिंताओं को लेकर ज्यादा मुखर हो गए हैं. वे अब भविष्य की दिशा तय करने अर्थात एजेंडा सेटिंग की प्रक्रिया में सक्रिय हो गए हैं.
इन चुनौतियों के बावजूद अफ्रीका को लेकर यूएस कूटनीति में हाल के दिनों में उत्साह और उछाल देखा गया है. इस बदलाव का संकेत अगस्त, 2022 में उप-सहारा अफ्रीका के लिए एक नई अमेरिकी रणनीति की शुरुआत और दूसरे यूएस-अफ्रीका लीडर्स समिट के आयोजन के रूप में देखा जा सकता है. नई रणनीति, अफ्रीका की केंद्रीयता को अमेरिकी के राष्ट्रीय हितों और आर्थिक भागीदार के रूप में क्षेत्र के मूल्य को स्वीकार करती है. यह रणनीति ‘‘अफ्रीकी एजेंसी’ पर जोर देकर अफ्रीका को महान-शक्ति प्रतिद्वंद्विता के क्षेत्र के रूप में देखने की धारणाओं को कम करने का प्रयास करती है. इसके पहले अफ्रीका को लेकर अमेरिका के संबंध जीरो-सम कम्पीटिशन के रूप में केवल वहां चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते थे. लेकिन इस वजह से अमेरिका को वहां ज्यादा कुछ हासिल नहीं होसका. ऐसे में यह यूएस के हित में ही होगा कि वह वहां उस क्षेत्र में अपने प्रयासों को दोगुना करें, क्योंकि उसके पास शासन, जलवायु अनुकूलन, ऊर्जा संक्रमण और वाणिज्यिक संबंधों को मजबूत करने का मौका है. ऐसा वह इस क्षेत्र के साथ व्यापार और निवेश पर गहराई से ध्यान देकर कर सकता है.
ऐसे में यूएस-अफ्रीकी नेताओं के शिखर सम्मेलन ने राष्ट्रपति बाइडेन को यह मौका दिया है कि वह व्यक्तिगत रूप से अफ्रीका को लेकर वाशिंगटन को नए दृष्टिकोण से विचार करने की वकालत करें. इसने बाइडेन प्रशासन द्वारा अब तक की गई कुछ सुविचारित प्रतिबद्धताओं को क्रियान्वित करने का मौका भी प्रदान किया है.
बाइडेन-हैरिस प्रशासन अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्रों में अगले तीन वर्षो के दौरान 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने जा रहा है. यह एक बड़ा निवेश है और यह यूएस के हित में ही रहेगा कि वह अपने इस आश्वासन पर खरा उतरे. यूएस-अफ्रीका लीडर्स समिट कार्यान्वयन के लिए नए विशेष राष्ट्रपति प्रतिनिधि बनने के लिए अफ्रीकी मामलों के पूर्व सहायक सचिव, राजदूत जॉनी कार्सन तैयार हैं, ताकि इन प्रयासों का समन्वय और निरीक्षण कर सकें.
यूएस-अफ्रीका नेताओं के शिखर सम्मेलन का आयोजन ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर किया गया है जब यूएस-अफ्रीका के संबंधों में मूल और रणनीतिक दृष्टिकोण से मज़बूत करने की आवश्यकता है. राष्ट्रपति बाइडेन ने अभी तक अफ्रीका दौरा नहीं किया है. लेकिन सेक्रेटरी ब्लिंकन पिछले वर्ष ही महाद्वीप का तीन बार दौरा कर आए हैं. अफ्रीकी देशों और उसके नेताओं के लिए व्यक्तिगत यात्राओं के माध्यम से दिखाई देने वाला प्रतीकवाद, बहुत मायने रखता है. अमेरिका के लिए यह बेहद आवश्यक है कि वह इस शिखर सम्मेलन के बाद, वह इस तरह के सम्मेलन को किसी छिटपुट बैठक की तर्ज पर आयोजित करने के स्थान पर नियमित तौर पर इसका आयोजन करें.
यहां यह भी समझ लेना ज़रूरी है कि अफ्रीकी देशों के लिए अमेरिका और चीन दोनों ही विकास की दृष्टि से अहम साझेदार है. भले ही इन दोनों के साथ अफ्रीकी देशों के संबंधों का स्तर अलग-अलग क्यों न हो.
यहां यह भी समझ लेना ज़रूरी है कि अफ्रीकी देशों के लिए अमेरिका और चीन दोनों ही विकास की दृष्टि से अहम साझेदार है. भले ही इन दोनों के साथ अफ्रीकी देशों के संबंधों का स्तर अलग-अलग क्यों न हो. अनेक क्षेत्रों में चीनी प्रतिष्ठान यूएस के प्रतिष्ठानों को पीछे छोड़ रहे हैं. उदाहरण के तौर पर अपनी कम कीमतों की वजह से सड़क और पुल निर्माण से जुड़े क्षेत्र में चीनी प्रतिष्ठान यूएस से आगे है. लेकिन स्वास्थ्य सुविधा, नवीनीकृत ऊर्जा और वित्तीय तकनीक जैसे कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां यूएस कंपनियों को प्रतिस्पर्धी कहा जा सकता है. यूएस को इस तुलनात्मक फ़ायदे की स्थिति का लाभ उठाकर यहां दोगुणा ताकत लगाते हुए वहां के व्यापक और उत्साह से भरपूर अपने यहां के प्रवासी अफ्रीकी नागरिकों को समाहित करते हुए और संवाद साधना चाहिए. यह प्रवासी नागरिक अब भी अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को बनाए हुए है. अब समय आ गया है कि अमेरिका, अफ्रीका और अफ्रीकियों के प्रति अपनी सतत प्रतिबद्धता प्रदर्शित करें.
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Abhishek Mishra is an Associate Fellow with the Manohar Parrikar Institute for Defence Studies and Analysis (MP-IDSA). His research focuses on India and China’s engagement ...
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