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आम तौर पर टेक्नोलॉजी की ये खासियत होती है कि शुरू में वो व्यापक तंत्र का एक हिस्सा भर होती है, लेकिन जैसे-जैसे तकनीक में तेज़ी से बदलाव होता है, वैसे-वैसे वो खुद को मौजूदा प्रणालियों की मूलभूत संरचनाओं में एकीकृत कर लेती है. एक स्थिति ऐसी आती है, जब टेक्नोलॉजी सिर्फ एक उपकरण नहीं बल्कि सिस्टम की मुख्य प्रेरक शक्ति बन जाती है. वो उन ढांचों को ही बदल देती है जिन पर ये सिस्टम लंबे समय से निर्भर हैं. एक यूनिफाइड लेजर (एकीकृत खाता-बही) भी ऐसी ही एक डिजिटल वित्तीय प्रणाली है. यूनिफाइड लेजर को अलग-अलग तरह की वित्तीय संपत्तियों और प्लेटफॉर्म्स के बीच आसान और बेरोकटोक लेनदेन को सुगम बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. ये एक विकेंद्रीकृत ढांचे पर काम करता है, जो सदस्यों को विभिन्न बहीखातों के साथ जुड़ने की मंजूरी देता है. इसकी मदद से वो अलग-अलग वित्तीय प्रणालियों जैसे कि बैंकों, क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स और पारंपरिक वित्तीय नेटवर्क के बीच आसानी से लेनदेन कर सकते हैं. यूनिफाइड लेजर ये सुनिश्चित करता है कि लेनदेन पूरी तरह सुरक्षित रहे. एडवांस क्रिप्टोग्राफी के ज़रिए ये पारदर्शिता और सुरक्षा प्रदान करता है.
हाल ही में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) ने एक श्वेतपत्र जारी किया. इसमें "फिंटरनेट" (फाइनेंस + इंटरनेट यानी भविष्य के लिए वित्तीय प्रणाली) को आपस में जुड़े फाइनेंशियल इकोसिस्टम के विकेंद्रीकृत नेटवर्क के रूप में देखा जाता है. एक ऐसा इकोसिस्टम जो इंटरनेट की संरचना के समान व्यक्तियों और व्यवसायों को इसके मूल में रखता है. फिंटरनेट के लिए जिन प्रौद्योगिकियों की ज़रूरत है, उनमें से कई का पहले ही विकास हो चुका है, और कुछ तेज़ी से विकसित हो रही हैं. फिंटरनेट की सफलता सरकारी संस्थाओं और निजी क्षेत्र के बीच आपसी सहयोग पर निर्भर करेगी. इतना ही नहीं इसके लिए एक मज़बूत नियामक और आर्थिक ढांचा स्थापित करना भी आवश्यक है. सरकारी और निजी क्षेत्र के गठबंधन ही एक एकीकृत, समावेशी वित्तीय इकोसिस्टम बना सकता है. इससे वित्तीय सिस्टम का लोकतंत्रीकरण हो सकता है और सभी प्रमुख हितधारकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुशलता बढ़ा सकता है.
मौजूदा चुनौतियां
हालांकि बीते एक दशक में सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति हुई, लेकिन वित्तीय प्रणाली पर इसका इतना असर नहीं दिख रहा. यही वजह है कि इस क्षेत्र की क्षमताओं का पूरा दोहन नहीं हो सका है. वैसे पिछले कुछ साल में रिटेल पेमेंट सिस्टम विकसित हुआ है. इसका तेज़ी से प्रसार भी हो रहा है लेकिन कई मुख्य वित्तीय लेनदेन, विशेष रूप से शेयर और बॉन्ड जैसी परिसंपत्तियों के निपटान में अभी भी काफ़ी देरी का सामना करना पड़ता है. इस देरी की मुख्य वजह ये है कि ज़्यादातर जगह अब भी क्लियरिंग, मैसेजिंग और सेटलमेंट का पुराना सिस्टम प्रचलन में है. इसके अलावा व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों के मालिकाना हक़ का डेटाबेस भी अलग-थलग है. टेक्निकल स्टैंडर्ड में भी एकरूपता नहीं है, इसकी वजह से भी कई बार प्रोसेसिंग में काफ़ी वक्त लगता है. एक और मुश्किल ये है कि नियमों के पालन का सारा बोझ व्यक्तियों के ऊपर ही डाला गया है, खासकर एंटी मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में. इससे भी वित्तीय प्रणाली में दक्षता नहीं आ पा रही है. इस पूरी प्रक्रिया में बार-बार अपनी पहचान सत्यापित करनी पड़ती है, जो वैध लेनदेन में गैरज़रूरी जटिलता पैदा करती है.
ये एक विकेंद्रीकृत ढांचे पर काम करता है, जो सदस्यों को विभिन्न बहीखातों के साथ जुड़ने की मंजूरी देता है. इसकी मदद से वो अलग-अलग वित्तीय प्रणालियों जैसे कि बैंकों, क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स और पारंपरिक वित्तीय नेटवर्क के बीच आसानी से लेनदेन कर सकते हैं. यूनिफाइड लेजर ये सुनिश्चित करता है कि लेनदेन पूरी तरह सुरक्षित रहे.
सेटलमेंट की धीमी प्रक्रिया, लेनदेन की उच्च लागत और बेहतर विकल्पों की कमी से व्यवसाय और व्यक्तियों पर एक जैसा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसका नतीजा ये होता है कि कंपनियों को कार्यशील पूंजी का इंतजाम करने के लिए या तो बड़ी मात्रा में नकदी का भंडार रखना होता है, या फिर महंगे लोन पर निर्भर होना पड़ता है. इतना ही नहीं आम लोगों को मज़दूरी या सरकारी मदद पाने के लिए अक्सर काफ़ी देरी का सामना करना पड़ता है. ऐसी सूरत में उनके सामने महंगे ब्याज पर कर्ज़ लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. पुराने सिस्टम और मैनुअल तरीके से काम करने की वजह से कई बार इसमें गलतियों और देरी की आशंका बढ़ जाती है. इसके काम की लागत बढ़ती है और कुशलता भी कम होती है. हालांकि ये नहीं कहा जा सकता कि हर जगह ऐसा होता होगा, लेकिन वैश्विक स्तर पर वित्तीय प्रणालियों में इस तरह की कमियां लगातार बनी हुई हैं. हालांकि ये मानना गलत होगा इन कमियों की वजह से वैश्विक वित्तीय मशीनरी रुक गई है, लेकिन इससे ये बात तो साबित होती है कि वित्तीय प्रणाली में लगातार नवाचार की ज़रूरत है.
यूनिफाइड लेजर कैसे काम करता है?
यूनिफाइड लेजर एक डिजिटल फाइनेंशियल सिस्टम है. इसे विभिन्न वित्तीय प्लेटफॉर्म्स के बीच बेरोकटोक लेनदेन को आसान बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसका एक उद्देश्य सभी बहीखातों में लेनदेन की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. इसमें उपयोगकर्ता की विश्वसनीय पहचान, डिजिटल दस्तख़त और अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर काम करने की क्षमता जैसी सुविधाएं मिलती हैं. इसका लक्ष्य वित्तीय लेनदेन में पहुंच और सुरक्षा दोनों में सुधार करना है. ये प्रणाली पारंपरिक वित्तीय बुनियादी ढांचे की मौजूदा कमियों, जैसे कि पहचान का सत्यापन और सेटलमेंट में देरी, को दूर करने की कोशिश करती है. इसके अलावा, यूनिफाइड लेजर, अचल संपत्ति से लेकर डिजिटल टोकन तक, विभिन्न नियामक मानकों का पालन करने और उनकी सुरक्षा का प्रबंधन करने में सक्षम है. इसमें सारी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके उन तक पहुंच आसान बनाने की क्षमता है. एकीकृत बहीखाता तकनीक में वित्तीय प्रणाली को बदलने की ताक़त है. इससे ये ज़्यादा समावेशी, कुशल और वैश्विक मांगों के अनुकूल हो जाता है.
फिंटरनेट को विनियमित कैसे किया जाए?
यूनिफाइड लेजर समेत फिंटरनेट के सफल कार्यान्वयन के लिए कुछ चीजें बहुत ज़रूरी हैं. सदस्यों की सुरक्षा और वित्तीय प्रणाली की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कानूनी, नियामक और शासन के ढांचे की ज़रूरत है. इस तरह के उपायों को अपनाए बिना फिंटरनेट उपभोक्ताओं, व्यवसासियों और समाज का विश्वास खो सकता है. वित्तीय सुरक्षा के लिए जो मौजूदा कानून हैं, उन्हें फिंटरनेट में भी लागू किया जाना चाहिए. ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी है कि इससे फिंटरनेट सिस्टम में मौजूद लूपहोल्स का फायदा ना उठा सकें. प्रतिभागियों और परिसंपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है. हालांकि, यूनिफाइड लेजर कुछ नई कानूनी चुनौतियां भी पेश करता है. अभी ये स्पष्ट नहीं है कि क्या केंद्रीय बैंक टोकनयुक्त रकम जारी कर सकते हैं. टोकनयुक्त परिसंपत्तियों (टोकनाइज़्ड असेट्स) के वर्गीकरण और उनमें टैक्स लगाने जैसे मुद्दों पर भी अस्पष्टता बनी हुई है. यहां पर ये बताना ज़रूरी है कि टोकनाइज़्ड असेट्स एक प्रकार की वित्तीय परिसंपत्ति है जो पारंपरिक बैंक जमाओं का प्रतिनिधित्व करती है, जैसे कि बचत या चेकिंग खाते. इन्हें डिजिटल टोकन में बदल दिया जाता है. ये टोकन आमतौर पर ब्लॉकचेन या क्रिप्टोकरेंसी पर बनाए जाते हैं, जो स्वामित्व के आसान हस्तांतरण, सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से लेनदेन की अनुमति देता है.
सदस्यों की सुरक्षा और वित्तीय प्रणाली की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कानूनी, नियामक और शासन के ढांचे की ज़रूरत है. इस तरह के उपायों को अपनाए बिना फिंटरनेट उपभोक्ताओं, व्यवसासियों और समाज का विश्वास खो सकता है. वित्तीय सुरक्षा के लिए जो मौजूदा कानून हैं, उन्हें फिंटरनेट में भी लागू किया जाना चाहिए.
आधुनिक वित्तीय प्रणाली को सफल बनाना है तो टोकनयुक्त परिसंपत्तियों की विशेषताओं को समायोजित करने के लिए कानूनी ढांचे में बदलाव करने होंगे. हालांकि ये नया परिदृश्य प्रतिस्पर्धा और आपसी सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए नए नियम पेश करने का मौका मुहैया करा रहे हैं. लेकिन इसके साथ ही कुछ शासन के मुद्दे भी खड़े हो रहे हैं. खाता-बही के स्वामित्व और नियंत्रण, वित्तीय संस्थानों की भूमिका और लेनदेन के नियमों को लेकर अभी स्पष्टता आनी बाकी है.
यूनिफाइड लेजर का भविष्य क्या है?
यूनिफाइड लेजर सिस्टम को अपनाने से वित्तीय कुशलता और समावेशन में सुधार होता है लेकिन ये वित्तीय स्थिरता को लेकर बड़ी चिंताओं को भी जन्म देता है. अगर पर्याप्त सुरक्षा इंतज़ाम किए बगैर तेज़ी से इसे अपनाया जाएगा तो ये वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है. ये सोचना गलत होगा कि सिर्फ एक नई तकनीकी वित्तीय प्रणाली शासन पर विश्वास के संकट के मुद्दे को हल कर सकती है. बहुत ज़्यादा वित्तीय विकेंद्रीकरण से जवाबदेही और निगरानी का वो मौजूदा सिस्टम ख़त्म या कमज़ोर हो सकता है, जो वर्तमान में केंद्रीय बैंक और नियामक संस्थाएं प्रदान कर रही हैं. हालांकि डिसेंट्रलाइज्ड लेजर पारदर्शिता बढ़ाते हैं, लेकिन उनमें एक केंद्रीय नियामक की कमी होता. ऐसी स्थिति में धोखाधड़ी, बाज़ार में हेरफेर और प्रणालीगत ज़ोखिमों को रोकना बहुत मुश्किल हो जाता है, विशेष रूप से सीमा पार लेनदेन के मामले में संदिग्ध गतिविधियों को रोकना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. ऐसी वित्तीय प्रणालियों की शासन संरचनाओं और नाकामी के लिए जवाबदेही को सटीक रूप से परिभाषित करना बहुत अहम है.
विभिन्न देशों की सरकारों, नियामकों और बहुपक्षीय संगठनों के बीच इस पर आम राय नहीं बन पाई है. इससे ये आशंका पैदा होती है कि शायद इस सिस्टम को तेज़ी से लागू नहीं किया जा सकेगा. इसके अलावा, अलग-अलग देशों में टेक्नोलॉजी तक लोगों की पहुंच में असमानताएं हैं. ये भी इसके विकास में बाधक है.
वित्तीय प्रणालियों की मदद के लिए कानूनी और नियामक ढांचा बनाना ही चाहिए. तभी यूनिफाइड लेजर का कार्यान्वयन सफलता से किया जा सकता है. लेकिन सबसे ज़रूरी ये है कि टोकनयुक्त परिसंपत्तियों की कानूनी स्थिति पर स्पष्टता लाई जाए. जब तक इसे लेकर स्पष्ट नियम नहीं बनाए जाएंगे और सीमा पार लेनदेन को विनियमित नहीं किया जाएगा तब तक वैश्विक वित्तीय प्रणाली की स्थिरता पर ख़तरा बरकरार रहेगा. टोकनयुक्त परिसंपत्तियों पर स्पष्टता नहीं होगी तो फिर अनिश्चितता की स्थिति में बार-बार नियामक संस्था की मध्यस्थता की ज़रूरत पड़ेगा. ऐसा होने पर गलत नीयत वाले लोग नियमों में विसंगतियों का फायदा उठा सकते हैं. वित्तीय प्रणाली के पूरे अधिकार क्षेत्र में वैधता और सुरक्षित लेनदेन सुनिश्चित करने के लिए मज़बूत नियामक ढांचे की स्थापना की जानी चाहिए. इसमें एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) और अपने ग्राहक को जानें (KYC) यानी नो योर कस्टमर स्टैंडर्ड को शामिल किया जाना चाहिए. कानूनी और नियामक परिदृश्य में किसी विसंगति से बचने के लिए विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों और वित्तीय नियामकों के बीच वैश्विक समन्वय होना ज़रूरी है.
अंतरराष्ट्रीय नियामक की अनुपस्थिति वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के लिए दीर्घकालिक ज़ोखिम पैदा कर सकती है. हालांकि यूनिफाइड लेजर से सिस्टम में कुशलता आती है लेकिन इससे साइबर सिक्योरिटी समेत कई ख़तरे भी पैदा होते हैं. अगर मूल तकनीक नाकाम हो जाती है या इसमें सेंध लग जाए तो फिर पूरी वित्तीय प्रणाली ख़तरे में आ सकती है. इसके अलावा डिजिटल बुनियादी ढांचे पर बहुत ज़्यादा निर्भरता से डिजिटल विभाजन की आशंका भी पैदा होती है. डिजिटल साक्षरता की कमी या तकनीक की कम समझ वाले लोग इस वित्तीय प्रणाली से बाहर हो सकते हैं. इसलिए ये ज़रूरी है कि तकनीकी प्रगति के साथ सामाजिक बुनियादी ढांचे का भी विकास हो. शिक्षा, डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट के इस्तेमाल की जानकारी से ही ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि यूनिफाइड लेजर फायदा सभी को मिले.
हालांकि वित्तीय प्रणालियों में तेज़ी से तकनीकी विकास हो रहा है. इससे सिस्टम में कुशलता, समावेशिता और कार्यपद्धति में सुधार आता है, लेकिन नई तकनीकी को पूरी तरह लागू करने से पहले इससे पैदा हो सकने वाली संभावित चुनौतियों का समाधान भी खोजना चाहिए. एकीकृत बहीखाता यानी यूनिफाइड लेजर में वित्तीय प्रणाली को बदलने की ताकत है लेकिन भू-राजनीतिक तनाव और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ऐसी प्रणालियों को लागू करने की राह में बाधाएं पैदा करती हैं. इस सिस्टम को लेकर वैश्विक मानकीकरण हासिल करना अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है. विभिन्न देशों की सरकारों, नियामकों और बहुपक्षीय संगठनों के बीच इस पर आम राय नहीं बन पाई है. इससे ये आशंका पैदा होती है कि शायद इस सिस्टम को तेज़ी से लागू नहीं किया जा सकेगा. इसके अलावा, अलग-अलग देशों में टेक्नोलॉजी तक लोगों की पहुंच में असमानताएं हैं. ये भी इसके विकास में बाधक है. हालांकि वित्तीय प्रणाली को लेकर बीआईएस की तरफ से जारी किए गए श्वेत पत्र में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उनमें दम है लेकिन उन्होंने वैश्विक वित्तीय प्रणाली को प्रभावी ढंग से काम करने से नहीं रोका है.
इससे ये सवाल खड़ा होता है: क्या ये एक समस्या है जिसका समाधान खोजा जाना है, या फिर समस्या की तलाश में समाधान है? किसी समस्या की तलाश में समाधान को नकारात्मक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए. पारंपरिक तरीकों को बढ़ाने वाले नई तकनीकी को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इन नई प्रौद्योगिकियों में पूरे सिस्टम को सुधारने की ज़बदरदस्त क्षमता होती है. हालांकि इनके साथ कुछ अनिश्चितताएं भी आती है, लेकिन इनकी वजह से उन्हें खारिज़ नहीं किया जाना चाहिए. उनका सामाजिक और आर्थिक प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन ये तभी हो सकता है, जब उन्हें परीक्षण और त्रुटि (ट्रायल एंड एरर) के माध्यम से विकसित किया जाए. इनका परीक्षण कठोर या सैद्धांतिक मॉडलों में नहीं बल्कि वास्तविक दुनिया यानी व्यावहारिक काम में होना चाहिए.
सौरदीप बेग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटेजी और टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं.
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