Author : Akanksha Khullar

Published on Dec 16, 2022 Updated 0 Hours ago

कॉप27 को एक ऐसा मंच बनना चाहिए जहां अंतर-सरकारी जलवायु वार्ता में महिलाओं को केंद्र में रखा जाए.

COP27 में महिलाओं की असंतुलित भागीदारी

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सम्मेलन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व ऐतिहासिक रूप से कम रहा है और मिस्र में आयोजित इस बार का जलवायु सम्मेलन (कॉप27) भी महिलाओं की भागीदारी के मामले में अपवाद नहीं रहा. इस आयोजन में भाग ले रहे अलग-अलग देशों के प्रमुखों और सरकारी प्रतिनिधियों की एक तस्वीर- जो शिखर सम्मेलन की शुरुआत में सोशल मीडिया पर वायरल हो गई- ने वास्तव में कुल 110 लोगों के बीच सिर्फ़ सात महिला नेताओं की मौजूदगी दिखाई. 

BBC के द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार बातचीत के कमरे में समिति के सदस्यों के तौर पर महिलाओं का हिस्सा महज़ 34 प्रतिशत था. कुछ देश ऐसे भी थे जिनके दल में 90 प्रतिशत से ज़्यादा पुरुष शामिल थे. 

वैसे इस बिगड़े हुए लिंग अनुपात ने पर्यावरण से जुड़े प्रमुख मुद्दों जैसे कि फंडिंग, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सीमित करने, कार्बन उत्सर्जन, इत्यादि को लेकर बातचीत में हिस्सा लेने वाले अलग-अलग प्रतिनिधियों के दल को लेकर व्यापक रुझान के बारे में बताया. BBC के द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार बातचीत के कमरे में समिति के सदस्यों के तौर पर महिलाओं का हिस्सा महज़ 34 प्रतिशत था. कुछ देश ऐसे भी थे जिनके दल में 90 प्रतिशत से ज़्यादा पुरुष शामिल थे. 

ऐसे में जो सवाल उठाने की आवश्यकता है वो ये है कि क्या जलवायु परिवर्तन में राहत, आपदा में कमी और अनुकूलन की रणनीतियां महिलाओं को शामिल किए बिना वास्तव में समग्र रूप से विकसित की जा सकती हैं? यहां ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि दुनिया की कुल आबादी में क़रीब आधी महिलाएं हैं. 

जलवायु कार्रवाई में महिलाओं की ज़रूरत क्यों? 

महिला पर्यावरण और विकास संगठन (WEDO), जो जलवायु मंच पर महिलाओं की भागीदारी पर नज़र रखता है, के अनुसार हाल के COP27 में महिला प्रतिनिधियों की संख्या संयुक्त राष्ट्र के अब तक के जलवायु शिखर सम्मेलनों में सबसे कम में से थी. वास्तव में महिलाओं की संख्या कम हो गई है. 2018 में कॉप24 के दौरान महिलाओं की संख्या सबसे ज़्यादा थी और तब वहां 40 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि मौजूद थीं. कॉप27 के दौरान महिलाओं को लेकर ये स्थिति तब है जब अलग-अलग देशों ने 2011 के शिखर सम्मेलन में ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए संकल्प लिया था. 

लेकिन जलवायु परिवर्तन के लैंगिक प्रभाव को देखते हुए महिलाओं एवं लड़कियों को अंतर-सरकारी जलवायु बातचीत के केंद्र में रखने की आवश्यकता है. वास्तव में जब आपदा आती है तो सबसे ज़्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है क्योंकि उन्हें ज़्यादा आर्थिक परिणामों का सामना करना पड़ता है, बिना किसी आमदनी के देखभाल एवं घरेलू काम का अतिरिक्त बोझ सहना पड़ता है, संसाधनों तक उनकी पहुंच कम हो जाती है, पढ़ाई छूट जाती है और परिवार के वित्तीय संकट के प्रबंधन में सहायता के लिए उन्हें कम उम्र में ही शादी करनी पड़ती है. 

एक्शनऐड के द्वारा प्रकाशित एक नई रिसर्च के अनुसार जलवायु परिवर्तन लिंग आधारित हिंसा को लेकर महिलाओं की असुरक्षा में भी बढ़ोत्तरी करता है. इससे उनकी प्रजनन क्षमता के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को भी नुक़सान होता है. 

यहां तक कि बाढ़, सूखा या जलवायु से जुड़े दूसरे संकट के दौरान परिवार के लिए पानी, अनाज और ईंधन का इंतज़ाम करने में महिलाओं की ज़िम्मेदारी काफ़ी कठिन हो जाती है. इसकी वजह से उन्हें मजबूर होकर लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है. इस तरह वो अपने स्वास्थ्य को जोख़िम में डालती हैं. एक्शनऐड के द्वारा प्रकाशित एक नई रिसर्च के अनुसार जलवायु परिवर्तन लिंग आधारित हिंसा को लेकर महिलाओं की असुरक्षा में भी बढ़ोत्तरी करता है. इससे उनकी प्रजनन क्षमता के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को भी नुक़सान होता है. 

इस तरह बिना किसी शक के अनुमान लगाया जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन का परिणाम लैंगिक असमानता में बढ़ोतरी के रूप में निकलता है. इसलिए दुनिया भर के नेताओं को इन महिलाओं- जो अलग-अलग असर झेल रही हैं- की आवाज़ की तरफ़ ध्यान देने की आवश्यकता है. जलवायु परिवर्तन में राहत की रणनीतियों और बातचीत को विशेष तौर पर महिलाओं से जुड़े उन मुद्दों के अनुसार होना चाहिए जिनका सामना उन्हें जलवायु से जुड़े संकट के दौरान करना पड़ता है. इसके बिना जलवायु परिवर्तन के लैंगिक अन्याय और महिलाओं के लिए मौन संकट में और बढ़ोतरी होगी. 

इसके अलावा, सतत विकास और लैंगिक समानता लाने के लक्ष्य मूलभूत तरीक़े से एक-दूसरे से जुड़े हैं और एक को हासिल किए बिना दूसरे को प्राप्त नहीं किया जा सकता है. दूसरे सदस्यों की तरह महिलाएं भी अर्थव्यवस्था, घर और समाज समेत अलग-अलग जगहों पर अदा की जाने वाली भूमिका के ज़रिए प्राकृतिक संसाधनों के पूरी तरह प्रबंधन पर असर डालती हैं. इस तरह जलवायु को लेकर बातचीत में महिलाओं को शामिल करना आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी सतत विकास के अलग-अलग आयामों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण के विकास और क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है. 

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि महिलाओं और लड़कियों ने कई सदियों से जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का असर कम करने में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाई है. साथ ही वो पर्यावरण और जलवायु न्याय से जुड़े आंदोलनों में सबसे आगे रही हैं. उन्होंने सतत ऊर्जा बदलाव को बढ़ावा देने के लिए कुछ बेहद रचनात्मक और प्रभावकारी दृष्टिकोणों को आगे रखा है जो स्थानीय प्रणाली के संरक्षण में सहायता करते हैं और स्थानीय जानकारी पर आधारित हैं.

आसान शब्दों में कहें तो वैश्विक निवेश का उद्देश्य महिलाओं, ख़ास तौर पर कमज़ोर समुदायों से आने वाली महिलाओं एवं लड़कियों, के कौशल, सामर्थ्य और ज्ञान को सीधे तौर पर बढ़ाने और उनका विस्तार करने पर होना चाहिए.

वास्तव में इस तरह के कई प्रमाण हैं जो जलवायु कार्रवाई में महिलाओं की भागीदारी एवं नेतृत्व और  बेहतर संसाधन की शासन व्यवस्था, बातचीत के परिणाम एवं आपदा तैयारी के बीच संबंध दिखाते हैं. निजी क्षेत्र के लिए भी ये सही है जहां जेंडर के आधार पर अलग-अलग तरह के कॉरपोरेट बोर्ड रूम का परिणाम जलवायु को लेकर अधिक मैत्रीपूर्ण नीतियों को अपनाने के रूप में निकला है. उदाहरण के लिए, यूरोपीय केंद्रीय बैंक के द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार “कंपनियों में महिला प्रबंधकों के हिस्से में 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी का नतीजा कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 0.5 प्रतिशत कमी के रूप में निकलता है.”

इस तरह महिलाओं को उनकी गहरी जानकारी और विशेषज्ञता के साथ जलवायु की प्रक्रिया में सह-स्वामी और एजेंडा तय करने वाले के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. उनके कौशल, जानकारी और अनुभव का इस्तेमाल स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ बहुपक्षीय जलवायु मंचों और निजी क्षेत्र में जलवायु शासन व्यवस्था के परिणामों को सुधारने में किया जा सकता है. 

क्या करने की ज़रूरत है? 

पर्यावरणीय शासन व्यवस्था को लेकर निर्णय लेने की प्रक्रिया में ऐसे समावेशी दृष्टिकोण को अपनाने के लिए कई तरह के रास्ते हैं जिसमें दुनिया की आधी जनसंख्या की आवाज़ शामिल हैं. 

इसकी शुरुआत ऐसे उपाय अपनाने से की जा सकती है जिसके तहत जलवायु कार्रवाई को लेकर निर्णय लेने में न केवल महिलाओं की सार्थक भागीदारी और सभी स्तरों पर नेतृत्व बढ़ाया जाए बल्कि मौजूद असमानता को भी दूर किया जाए. इन असमानताओं में संसाधनों जैसे कि ज़मीन, तक़नीक और वित्त तक उनकी पहुंच और नियंत्रण शामिल हैं. इन प्रथाओं और उपायों को अपनाने के साथ महिला प्रतिनिधियों की संख्या में बढ़ोतरी भी दिखाई देगी जो जलवायु पर बहस, बातचीत और राहत देने की रणनीति का विकास करने में भाग लेंगी. 

दूसरा उपाय ये है कि सभी राष्ट्रीय जलवायु नीतियों, योजनाओं और कार्रवाई के डिज़ाइन, निगरानी एवं मूल्यांकन, क्रियान्वयन और फंडिंग समेत सभी जगह लैंगिक दृष्टिकोण को समाहित करने के लिए नीति निर्माताओं के द्वारा सतर्क प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि महिलायओं की आवश्यकताओं एवं चिंताओं का पर्याप्त ढंग से समाधान किया जा रहा है. 

इसके साथ-साथ सदस्य देशों को हर हाल में लैंगिक अनुकूल वित्त के साथ-साथ लैंगिक अनुकूल सार्वजनिक सेवाओं, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण का विस्तार करना चाहिए जिससे कि जलवायु नीतियों में लिंग आधारित हिंसा को ख़त्म किया जा सके और एक देखभाल वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके. इस तरह महिलाओं के लिए न्याय का  प्रावधान और पहुंच को सुनिश्चित किया जा सकेगा.  

तीसरा उपाय ये है कि अलग-अलग देशों के प्रमुखों को हर स्थिति में लैंगिक समानता को बढ़ाने और महिलाओं एवं युवा लड़कियों को अधिकार संपन्न करने के लिए तौर-तरीक़ों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें लागू करना चाहिए. आसान शब्दों में कहें तो वैश्विक निवेश का उद्देश्य महिलाओं, ख़ास तौर पर कमज़ोर समुदायों से आने वाली महिलाओं एवं लड़कियों, के कौशल, सामर्थ्य और ज्ञान को सीधे तौर पर बढ़ाने और उनका विस्तार करने पर होना चाहिए. इस तरह निर्णय लेने की जगह पर महिलाओं की भागीदारी में आने वाली बाधाओं को हटाया जा सकेगा. 

इसके अतिरिक्त महिलाओं के संगठन के काम-काज का समर्थन ज़रूर करना चाहिए. इसकी वजह ये है कि ऐसे संगठन जलवायु परिवर्तन पर सामुदायिक जागरुकता का निर्माण करने में प्रेरणादायक भूमिका अदा करते हैं और लोगों के जीवन, आजीविका, पर्यावरण और आवास पर संभावित असर को स्पष्ट करते हैं. इसके अलावा महिलाओं के संगठन रिसर्च में कमी को भी पूरा करते हैं जिसके कारण नीतिगत विकास होता है, संवाद के लिए जगह मिलती है और लोगों को अधिक सतत जीवन जीने में सहायता के लिए संस्थागत क्षमता का निर्माण होता है. 

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन एक जटिल वैश्विक घटना है जिसके लिए व्यापक वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है और इसमें हर व्यक्ति को शामिल होना चाहिए. इसलिए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन- जो कि सबसे बड़े शिखर सम्मेलन में से एक है- को महिलाओं को अलग रखने के बदले उनके द्वारा लाई जा रही इनोवेटिव जलवायु कार्रवाई को सम्मान देने और बढ़ाने के अवसर के रूप में काम करना चाहिए. इस सम्मेलन को एक मंच भी प्रदान करना चाहिए ताकि ये समझ में आ सके कि कैसे मौजूदा संरचना महिलाओं की भागीदारी को रोकती है और उसके बाद नीतिगत उपायों के साथ एक जवाबी तौर-तरीक़ा विकसित करना चाहिए जो पर्यावरणीय आपदाओं के तात्कालिक लैंगिक असर के साथ-साथ दीर्घकालिक असर का भी ध्यान रखे. 

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