Published on Sep 10, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन के भारी विरोध के बाद भी जारी की गई इस रिपोर्ट में शिंजियांग सूबे में वीगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों के मानव अधिकारों के भयंकर उल्लंघन पर से पर्दा उठाया गया है.

संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार कार्यालय की रिपोर्ट: शिंजियांग में ज़ुल्म-ओ-सितम का पर्दाफ़ाश

31 अगस्त को अपना पद छोड़ने से पहले संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग की पूर्व प्रमुख, मिशेल बैशलेट ने चीन के शिंजियांग वीगर स्वायत्तशासी क्षेत्र में मानव अधिकारों के हालात पर बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट को जारी कर दिया. इस रिपोर्ट में ये हक़ीक़त उजागर की गई है कि आतंकवाद निरोध और उग्रवाद निरोधक रणनीतियों के नाम पर शी जिनपिंग की अगुवाई वाली चीन की सरकार ने मानव अधिकारों का भयंकर तरीक़े से उल्लंघन किया है. संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट कहती है कि शिंजियांग के मुसलमानों के ख़िलाफ़ चीन के ग़लत बर्तावों को अंतरराष्ट्रीय अपराधों का दर्जा दिया जा सकता है और इसे ख़ास तौर सेइंसानियत के ख़िलाफ़ जुर्मकहा जा सकता है. रिपोर्ट में चीन से अपील की गई है कि वोपेशेवर प्रशिक्षण केंद्रों, क़ैदख़ानों या नज़रबंदी के दूसरे शिविरों में ज़बरदस्ती क़ैद करके रखे गए सभी व्यक्तियों (मुस्लिम अल्पसंख्यकों) को रिहा करने के लिए तुरंत ज़रूरी क़दम उठाए.’ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) द्वारा मिशेल बैशलेट के दफ़्तर पर लगातार डाले जा रहे कूटनीतिक दबाव के बाद भी इस रिपोर्ट को जारी किया गया. अप्रवासी वीगर नागरिकों के साथ साथ दुनिया भर के नागरिक संगठनों ने मिशेल बैशलेट के साहस की खुलकर तारीफ़ की है.

संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट कहती है कि शिंजियांग के मुसलमानों के ख़िलाफ़ चीन के ग़लत बर्तावों को अंतरराष्ट्रीय अपराधों का दर्जा दिया जा सकता है और इसे ख़ास तौर से ‘इंसानियत के ख़िलाफ़ जुर्म’ कहा जा सकता है.

पिछले कई महीनों से चीन लगातार कूटनीतिक अभियानों और दबाव की रणनीतियों के ज़रिए संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय (OHCHR) द्वारा शिंजियांग सूबे में चीन द्वारा मानव अधिकारों के उल्लंघन का मूल्यांकन करने वाली ये रिपोर्ट जारी करने से रोकने की कोशिश कर रहा था. शिंजियांग में चीन ने दस लाख से ज़्यादा मुसलमानों को नज़रबंदी या प्रशिक्षण शिविरों में क़ैद कर रखा है. रिपोर्ट जारी होने के बाद चीन ने आरोप लगाया कि इस रिपोर्ट को अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने मिलकर तैयार किया है और ये ‘झूठ का पुलिंदा’ है. चीन ने तो मिशेल बैशलेट पर जज़्बाती दबाव डालने की भी कोशिश की, जिन्होंने इसी साल मई में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शिंजियाग सूबे का दौरा किया था. चीन ने कहा कि बैशलेट ने तो निजी तौर परशिंजियांग के सुरक्षित और स्थिर समाजको देखा था.

शिंजियांग सूबा उस वक़्त से ही सुर्ख़ियों में है, जब से अमेरिका और उसके विचारों से सहमत अन्य पश्चिमी देशों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर हिंसक रूप से ऐसी सांस्कृतिक आक्रामकता को बढ़ावा देने के आरोप लगा थे, जो नरसंहार और सबसे भयंकर अपराधों के दर्जे में आते हैं. शिंजियांग के हालात को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती चिंता के चलते ही मिशेल बैशलेट और UNHCR का एक प्रतिनिधिमंडल इस साल मई में छह दिन के लिए चीन के दौरे पर गया था. ये प्रतिनिधिमंडल शिंजियांग में तमाम तरह के लोगों से मिला था. इनमें कारोबार के प्रतिनिधि, अकादेमिक विद्वान, स्थानीय अधिकारी और नागरिक समूहों के संगठन शामिल थे. बैशलेट की इस बात के लिए आलोचना हुई थी कि उन्होंने इस दौरे के दौरान, चीन और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के प्रति बहुत नर्मी बरती थी. फिर भी बैशलेट ने बाद में वादा किया था कि वो 31 अगस्त को अपना पद छोड़ने से पहले ये रिपोर्ट ज़रूर प्रकाशित करेंगी.

रिपोर्ट जारी होने के बाद चीन ने आरोप लगाया कि इस रिपोर्ट को अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने मिलकर तैयार किया है और ये ‘झूठ का पुलिंदा’ है.

शिंजियांग में मानव अधिकार

चीन के उत्तर पश्चिम में स्थित शिंजियांग सूबे में कभी स्थानीय वीगर और कज़ाख़ और उज़्बेक प्रवासी मुसलमानों की आबादी ज़्यादा थी. 1949 में चीन में कम्युनिस्ट क्रांति होने के बाद, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने शिंजियांग में हान नस्ल के चीनियों को बसाने का अभियान चलाया, ताकि शिंजियांग की आबादी की असल मुस्लिम पहचान को दबाया जा सके. आख़िरकार, स्थानीय मुस्लिम आबादी एक मामूली अल्पसंख्यक तबक़े में सिमट गई. शिंजियांग की राजधानी उरमुची और अन्य अहम केंद्रों जैसे कि करामाई और शिहेज़ी के इर्दगिर्द तमाम आधुनिक सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य सेवाओं, उद्योगों और शिक्षण संस्थानों का विकास करके हान नस्ल के लोगों को भारी संख्या में बसाया गया. कभी इस पूरे क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले वीगर मुसलमान, खेती को छोड़ दें, तो अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में हाशिए पर धकेल दिए गए. मिसाल के तौर पर आज भी 80 फ़ीसद से ज़्यादा वीगर कृषि क्षेत्र में काम करते हैं. वहीं, ज़्यादातर बेहतर रोज़गार पर बाहर से आकर बसे हान नस्ल के लोगों का क़ब्ज़ा है. यहां तक कि खेती से जुड़े रोज़गार में भी वीगर किसानों की औसत आमदनी 105 डॉलर बनी हुई है, जबकि हान जाति के लोगों की औसत आमदनी 386 डॉलर रहती है. इस इकतरफ़ा सामाजिक आर्थिक बदलाव ने शिंजियांग के और अधिक चीनीकरण को बढ़ावा दिया है. जबकि स्थानीय निवासियों की संस्कृति धूमिल होती जा रही है. इससे वीगरों के बीच उग्रवादी गतिविधियां पनप रही हैं.

मिसाल के तौर पर आज भी 80 फ़ीसद से ज़्यादा वीगर कृषि क्षेत्र में काम करते हैं. वहीं, ज़्यादातर बेहतर रोज़गार पर बाहर से आकर बसे हान नस्ल के लोगों का क़ब्ज़ा है. यहां तक कि खेती से जुड़े रोज़गार में भी वीगर किसानों की औसत आमदनी 105 डॉलर बनी हुई है, जबकि हान जाति के लोगों की औसत आमदनी 386 डॉलर रहती है.

शी जिनपिंग और मानव अधिकारों का उल्लंघन 

बढ़ते आर्थिक शोषण और आबादी बदलने वाली नीतियां लागू करने से शिंजियांग में जातीय असंतोष पैदा हो गया. इससे अक्सर वहां पर हिंसक विरोध प्रदर्शन होने लगे, जिन्हें चीन ने अलगाववाद और आतंकवाद का नाम दे दिया. शी जिनपिंग के तानाशाही राज में तो इस अशांत क्षेत्र के वीगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक और ख़ास निशाना बन गए. शी के दिशा निर्देश में शिंजियांग को चीन का सबसे ज़्यादा सैनिक उपस्थिति का सूबा बना दिया गया. शिंजियांग में आधुनिक तकनीक वाली सुरक्षा और लोगों की व्यापक डिजिटल निगरानी के साथ, सभी स्थानीय वीगर मुसलमानों के डीएनए प्रोफाइल तैयार करने जैसे क़दम उठाए गए. शी जिनपिंग ने सैनिक अधिकारी से राजनेता बने चेन क़ुआनगुओ को शिंजियांग का गवर्नर बना दिया. जबकि चेन, तिब्बत में अपनी अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों के लिए बदनाम थे. चेन ने ऐसी नीतियां बनाईं जो वीगरों की सांस्कृतिक पहचान की जड़ों पर चोट करती थीं. कुछ पश्चिमी देशों ने इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों पर ढाए जा रहे ज़ुल्मों को नरसंहार का नाम दिया था. चीन के अधिकारियों ने सूबे में बड़े पैमाने पर नज़रबंदी शिविर खोल दिए और राजनीतिक कट्टरपंथ के कार्यक्रम शुरू किए. चीन ने शिंजियांग की दो तिहाई से ज़्यादा मस्जिदों और अन्य धार्मिक इमारतों को या तो गिरा दिया या उन्हें नुक़सान पहुंचाया.

2018 में शिंजियांग से आई ख़बरों से पता चला कि दस लाख से ज़्यादा मुसलमानों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पट्टी पढ़ाने या दोबारा प्रशिक्षण देने के लिए नज़रबंदी शिविरों में क़ैद कर लिया गया है और चीन ने इसे धार्मिक उग्रवाद और अलगाववाद से निपटने का एक तरीक़ा बताया. लंबी दाढ़ी रखने वाले वीगर मुसलमानों, हिजाब पहनने वाली महिलाओं या परिवार नियोजन के कार्यक्रम मानने वाले लोगों को इन नज़रबंदी शिविरों में भेज दिया गया. उन्हें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की वफ़ादारी की क़समें खाने को मजबूर किया गया और ये कहा गया कि वो इस्लाम और अपनी संस्कृति को छोड़ दें और चीन की भाषा सीख लें. कुछ मोटे अनुमानों के मुताबिक़ चीन ने शिंजियांग में 1200 नज़रबंदी शिविर बनाने लिए 10.8 करोड़ डॉलर से भी ज़्यादा की रक़म ख़र्च की. इन नज़रबंदी शिविरों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ज़ुल्म वाले चीनीकरण का अभियान चलाया. इसके लिए टॉर्चर, यौन हिंसा, बंधुआ मज़दूरी और ज़बरदस्ती नज़रबंदी और महिलाओं के गर्भपात कराने शुरू कर दिए गए. इन तमाम ज़ुल्मों के चलते वीगर मुसलमानों की आबादी की क़ुदरती विकास दर रुक गई और कोविड-19 महामारी के दौरान तो, बहुत से वीगरों के अंग को अवैध तरीक़े से निकालकर बेच दिया गया.

2018 में शिंजियांग से आई ख़बरों से पता चला कि दस लाख से ज़्यादा मुसलमानों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पट्टी पढ़ाने या दोबारा प्रशिक्षण देने के लिए नज़रबंदी शिविरों में क़ैद कर लिया गया है और चीन ने इसे धार्मिक उग्रवाद और अलगाववाद से निपटने का एक तरीक़ा बताया.

सितंबर 2020 में शी जिनपिंग ने वीगरों पर ढाए जा रहे इस ज़ुल्मसितम को एक ऐसाकामयाब अभियानबताकर तारीफ़ की, जिसने शिंजियांग सूबे में हिंसक आतंकवाद को कुचलकर स्थिरता क़ायम की है. हालांकि पश्चिमी देशों ने शिंजियांग को चीन का क़ैदखाना बताकर उसकी आलोचना की. शिंजियांग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अभियान कोनरसंहारबताते हुए कुछ पश्चिमी नेताओं ने तो संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद के अध्यक्ष को साझा चिट्ठियां भी लिखीं और मांग की कि शिंजियांग में कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई में चलाए जा रहे मानव अधिकार विरोधी अभियानों की जांच की जाए. इन नेताओं ने बीजिंग ओलंपिक खेलों के बहिष्कार की भी अपील की. अमेरिकी सीनेट ने 2020 के वीगर मानव अधिकार नीति क़ानून को पारित करके कुछ चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध भी लगाए.

शी जिनपिंग की छवि को बचाने के लिए, चीन की सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी के सभी राजनयिकों ने मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को जारी होने से रोकने के लिए ज़बरदस्त अभियान चलाया. जून के आख़िर में चीन ने जेनेवा में अपने जैसे तानाशाही देशों के राजनयिकों और ख़ास तौर से मुस्लिम देशों का समर्थन हासिल करने के लिए एक चिट्ठी भी प्रचारित करनी शुरू कर दी. इस चिट्ठी के मुताबिक़, ‘अगर चीन के शिंजियांग पर इस मूल्यांकन को प्रकाशित किया गया तो मानव अधिकारों का राजनीतिकरण और खेमेबंदी होने लगेगी. इससे मानव अधिकार परिषद की विश्वसनीयता को भी चोट पहुंचेगी और OHCHR इसके सदस्य देशों के बीच सहयोग की भावना को भी नुक़सान होगा.’ चीन ने कुछ देशों परचीन की छवि ख़राब करनेकी कोशिश का भी आरोप लगाया. ज़बरदस्त कूटनीतिक अभियान चलाने के साथ, चीन द्वारा और अपने आर्थिक दबदबे का इस्तेमाल करके रिपोर्ट का प्रकाशन रोकने की कोशिशें नाकाम रहीं और बैशलेट ने अपना वादा निभाते हुए, अपने कार्यकाल के आख़िरी दिन ये रिपोर्ट जारी ही कर दी. हालांकि अभी ये देखना बाक़ी है कि इस रिपोर्ट का चीन पर असर कितना होगा और क्या वो शिंजियांग में अपनी नीतियों में कोई बदलाव भी लाएगा या नहीं?

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