Author : Vivek Mishra

Published on Mar 09, 2022 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन संकट के साथ-साथ अमेरिका की घरेलू चुनौतियां बाइडेन प्रशासन की चिंता का सबब बन गई हैं.

#Ukraine Crisis: बाइडेन की घरेलू राजनीति पर यूक्रेन संकट के असर की पड़ताल!

मौजूदा यूक्रेन संकट और वैश्विक मसलों में निरंतर सैन्य तौर-तरीक़ों से जुड़ने की अमेरिकी फ़ितरत ने वहां के नीति निर्माताओं के लिए अफ़ग़ानिस्तान की यादें ताज़ा कर दी हैं. यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई से जुड़ी घटनाएं बेहद अहम चरण में हैं. युद्ध में नागरिकों की मौतें हो रही हैं. संघर्ष तेज़ होता जा रहा है और अब रूस ने परमाणु तैयारियों से जुड़े तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में अमेरिका की भूमिका को लेकर देश-विदेश में सवालों और बहसों का दौर जारी है. यूक्रेन में रूसी कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ अमेरिकी लोग सामूहिक रूप से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के क़दम की आलोचना कर रहे हैं. यूक्रेनी संकट ने कई डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकंस को भी एकजुट कर दिया है. हालांकि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुले तौर पर पुतिन की तारीफ़ की है. इससे रिपब्लिकन पार्टी के भीतर की ये दुविधा साफ़ तौर से उभरकर सामने आ गई है कि ट्रंप पार्टी के लिए फ़ायदेमंद हैं या नुक़सानदेह? यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई को आक्रामक युद्ध के नज़रिए से देखा जा रहा है. इसके ख़िलाफ़ अमेरिका समेत दुनिया भर में भावनात्मक तौर पर समर्थन की लहर दिख रही है. यूक्रेन के हालात ने अमेरिका में राजनीतिक भावनाओं में पहले से कहीं ज़्यादा एकजुटता ला दी है. मिसाल के तौर पर अफ़ग़ानिस्तान में फ़ौजी टुकड़ियों की निरंतर मौजूदगी या मध्य पूर्व के किसी देश में अमेरिकी करदाताओं के ख़र्चे पर सुरक्षा मुहैया कराए जाने के मसलों पर अमेरिका में इस तरह की सियासी सहमति दिखाई नहीं दी है. इसकी सबसे अहम वजह रूस के साथ जारी संकट में यूरोपीय संघ का जुड़ाव और अटलांटिक के आर-पार रिश्तों को मज़बूत बनाने को लेकर बाइडेन प्रशासन के इरादे और प्रतिबद्धता है. ग़ौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में इन संबंधों में गिरावट आ गई थी.

यूक्रेन के हालात ने अमेरिका में राजनीतिक भावनाओं में पहले से कहीं ज़्यादा एकजुटता ला दी है. मिसाल के तौर पर अफ़ग़ानिस्तान में फ़ौजी टुकड़ियों की निरंतर मौजूदगी या मध्य पूर्व के किसी देश में अमेरिकी करदाताओं के ख़र्चे पर सुरक्षा मुहैया कराए जाने के मसलों पर अमेरिका में इस तरह की सियासी सहमति दिखाई नहीं दी है.

दुनिया के तमाम नेताओं ने रूस के ख़िलाफ़ पाबंदियां लगाने की मांग की है. अमेरिका में इन अपीलों और उनके प्रभावों की अपने तौर पर व्याख्या की गई है. अमेरिका के भीतर ये मांग अलग-अलग आकार ले रहीहैं. इनमें रूस के ख़िलाफ़ सियासी तानों से लेकर वस्तुओं, सेवाओं और उत्पादों के बहिष्कार तक के मसले शामिल हैं.  यूटा के गवर्नर स्पेंसर जे कॉक्स ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर यूटा डिपार्टमेंट ऑफ़ एल्कोहोलिक बेवरेज  कंट्रोल को “रूस में तैयार और रूसी ब्रांड के सभी उत्पादों को फ़ौरन अपने ताक़ से हटाने” को कहा है. इसी तरह टेक्सस के गवर्नर ग्रेग एबॉट ने रेस्टोरेंटों, बार और खुदरा विक्रेताओं को रूसी ब्रांड के तमाम उत्पाद हटाने का हुक़्म सुनाया है. अर्कांसस  के सीनेटर टॉम कॉटन ने भी ऐसे ही विचार सामने रखे हैं. न्यू हैंपशायर के गवर्नर और रिपब्लिकन नेता क्रिस सुनुनु ने भी ऐसे ही क़दमों का एलान किया है. डेमोक्रैट पार्टी के कुछ नेताओं ने भी रूसी उत्पादों के बहिष्कार की मांग के साथ अपना सुर मिलाया है. वर्जिनिया स्टेट सीनेट के बड़े डेमोक्रेट नेता एल. लुईस ल्युकास ने “तमाम रूसी वोदका और सभी तरह के रूसी उत्पादों को हटाने” की अपील की है. दरअसल कारोबार और प्रशासन के स्तर पर रूस के ख़िलाफ़ तमाम तरह का अंतरराष्ट्रीय प्रतिरोध धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया है. मौजूदा भावनाएं उसी का प्रकटीकरण हैं. कनाडा के ओंटारियो, मानिटोबा, न्यू ब्रंसविक, ब्रिटिश कोलंबिया और न्यूफ़ाउंडलैंड ने भी अपने-अपने स्टोर्स में रूसी वस्तुओं पर पाबंदी लगाने के क़दम उठाए हैं. 

सियासी स्तर पर यूक्रेन संकट ने न सिर्फ़ डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकंस के बीच की सियासी गुटबाज़ी को बल्कि रिपब्लिकन पार्टी के भीतरी मतभेदों को भी बेपर्दा कर दिया है. एक ओर रिपब्लिकन हुकूमत वाले टेक्सास  सरीखे कुछ राज्यों ने रूसी उत्पादों के सामूहिक बहिष्कार के विचार का समर्थन किया है तो वहीं दूसरी ओर रिपब्लिकन पार्टी के भीतर सियासी दक्षिणपंथी ट्रंप के धड़े ने पुतिन और उनकी नीतियों के प्रति लगाव का इज़हार किया है. अमेरिका का नया सियासी दक्षिणपंथी धड़ा वर्ष 2016 से ट्रंप के शिगूफ़ों पर सवार होकर आगे बढ़ रहा है. ये तबका अलोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं और एकाधिकारवादी नेताओं को ऊंची नज़रों से देखता है. और तो और पिछले कुछ अर्से से अमेरिका का सियासी दक्षिणपंथी धड़ा अमेरिका में अपने बदलते वैश्विक दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहा है. इस सिलसिले में वो अमेरिका में सांस्कृतिक टकरावों और बढ़ते विभाजनों को ख़ूब हवा दे रहा है. हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला कि रिपब्लिकंस और रिपब्लिकन पार्टी की विचारधारा से जुड़े निर्दलीयों में से 62 प्रतिशत लोग पुतिन को बाइडेन के मुक़ाबले ‘ज़्यादा मज़बूत नेता’ मानते हैं. ट्रंप ने ख़ुद पुतिन की तारीफ़ करते हुए उन्हें “ समझदार” बताया है. पुतिन के प्रति ट्रंप के लगाव से रिपब्लिकन पार्टी दो धड़े में बंट गई है. एक ओर ट्रंप के धुर समर्थक हैं जबकि दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो रिपब्लिकन पार्टी को वैकल्पिक दिशा में ले जाना चाहते हैं. बहरहाल डेमोक्रैटिक पार्टी से जुड़े लोगों का मानना है कि रिपब्लिकन पार्टी के भीतर ट्रंप की लोकप्रियता घट रही है और वो इस बात से ख़ुश हैं. हालांकि 2022 के मध्यावधि चुनावों से पहले रिपब्लिकन पार्टी के भीतर नेतृत्व की रेस में ट्रंप आगे हैं और 2024 के राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के लिए भी वो ताल ठोंक सकते हैं. 

सियासी स्तर पर यूक्रेन संकट ने न सिर्फ़ डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकंस के बीच की सियासी गुटबाज़ी को बल्कि रिपब्लिकन पार्टी के भीतरी मतभेदों को भी बेपर्दा कर दिया है.

विश्व बिरादरी की निराशा

यूक्रेन संकट को लेकर बाइडेन प्रशासन की प्रतिक्रिया विश्व बिरादरी की उम्मीदों के मुताबिक नहीं रही है. पारंपरिक तौर पर अमेरिका ऐसे संकटों पर मज़बूत रुख़ अपनाता रहा है. बहरहाल 6 महीनों से भी कम के वक़्त में ऐसा दूसरी बार है जब अमेरिका ने उम्मीदों के हिसाब से ठोस रुख़ नहीं अपनाया है. अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में भी ऐसा ही देखने को मिला था. दुनिया भर में सियासी और आर्थिक हालात तेज़ी से बदल रहे हैं. महामारी ने इन बदलावों को और हवा दी है. इससे अंतरराष्ट्रीय पटल पर अमेरिकी अगुवाई और फ़ौजी दखलंदाज़ियां सीमित हो गई हैं. अमेरिकी रसूख़ में आई इस गिरावट के लिए कई कारकों को ज़िम्मेदार बताया जाता है. अपने संसाधनों पर ज़्यादा बोझ न डालने की अमेरिकी फ़ितरत और दुनिया के थानेदार की भूमिका निभाने की घटती सियासी हसरत इन कारणों में शामिल है. भले ही इन बदलावों की रफ़्तार बेहद तेज़ रही है, लेकिन अमेरिका को लेकर दुनिया की उम्मीदों में अब भी इस अनुपात में गिरावट नहीं आई है. इसके चलते वहां की घरेलू सियासत और अंतरराष्ट्रीय भूमिका- दोनों में विसंगति आ गई है. 

अमेरिका में घरेलू तौर पर अंतर्मुखी नीतियां और रुझान प्रमुख सियासी रणनीति बनती जा रही है. ट्रंप की ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ नीति ने इसे ताक़त दी. हालांकि इससे अंतरराष्ट्रीय पटल पर अमेरिका की ताक़त और प्रभाव (असलियत और सोच के लिहाज़ से) को काफ़ी धक्का पहुंचा है. अमेरिकियों के मौजूदा रुझानों के आकलन से इनमें से कुछ पेचीदगियों का पता चलता है. ख़ासतौर से यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर अमेरिका की प्रतिक्रिया से ये बात ज़ाहिर होती है. हाल के सर्वेक्षण से पता चलता है कि रूस-यूक्रेन संकट के दौरान राष्ट्रपति जो बाइडेन की विदेश नीति पर अमेरिकियों के भरोसे में गिरावट आई है. यूक्रेन संकट से निपटने के बाइडेन के तौर-तरीक़ों का महज़ 36 फ़ीसदी अमेरिकी ही समर्थन करते हैं जबकि 55 प्रतिशत अमेरिकी इसे नापसंद कर रहे हैं. इतना ही नहीं आर्थिक मोर्चे पर बाइडेन के प्रदर्शन को सिर्फ़ 37 फ़ीसदी जनता का समर्थन हासिल है. पिछले साल ये आंकड़ा 54 प्रतिशत था. आगामी मध्यावधि चुनावों के मद्देनज़र इस तरह का घटता जनसमर्थन बाइडेन की संभावनाओं के लिए शुभ संकेत नहीं है. अमेरिका के इतिहास में किसी नए राष्ट्रपति के पद संभालने के 401 दिनों के भीतर महज़ दूसरी बार इतनी ख़राब रेटिंग देखने को मिली है. यूक्रेन संकट बाइडेन की सियासी कामयाबियों पर असर डालने वाले सबसे ताज़ा कारकों में से एक है. बाक़ी मसलों में अफ़ग़ानिस्तान से सैनिकों की वापसी, अफ़ग़ान संकट, बढ़ती महंगाई और मताधिकार से जुड़े भारी बदलावों वाले क़ानून पास कराने की डेमोक्रेटिक पार्टी की क़वायद शामिल हैं. ख़ासतौर से रिपब्लिकन पार्टी के भीतर 86 प्रतिशत प्रतिभागियों ने मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट पर बाइडेन की प्रतिक्रिया से नापसंदगी जताई है. 53 फ़ीसदी निर्दलीयों और 31 प्रतिशत डेमोक्रैट्स ने भी ऐसा ही रुख़ जताया है. 

क्या बाइडेन हवा का रुख़ बदल पाएंगे? 

इन निराशाजनक आंकड़ों के बावजूद कुछ लोगों को लगता है कि बाइडेन अपनी क़िस्मत बदल सकते हैं. यूक्रेन का ताज़ा संकट राष्ट्रपति के तौर पर बाइडेन के कार्यकाल को नया आयाम देने वाला लम्हा साबित हो सकता है. भले ही आम धारणा के मुताबिक अमेरिका सैन्य तौर-तरीक़ों से जवाब न दे लेकिन यूक्रेन को बाइडेन की मदद, रूस पर लगाई गई पाबंदियां और यूरोपीय मित्रों और सहयोगियों को भरपूर समर्थन का संदेश उनके सियासी रुतबे में फिर से जान फूंक सकता है. बाइडेन ने यूक्रेन के लिए 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद को मंज़ूरी दी है. इनमें से 35 करोड़ डॉलर रक्षा साज़ोसामान की ख़रीद और सैन्य प्रशिक्षण और शिक्षा मुहैया कराने के लिए है. बाक़ी के 25 करोड़ डॉलर अमेरिकी हितों की हिफ़ाज़त के लिए मंज़ूर किए गए हैं. इन फ़ैसलों की चौतरफ़ा सराहना हुई है. रूस को अभूतपूर्व ढंग से ‘ज़बरदस्त नुक़सान’ पहुंचाने से जुड़ी नीतियों की अगुवाई करने, उन्हें आकार देने और अमल में लाने में बाइडेन प्रशासन का नेतृत्व अटलांटिक के आर-पार रिश्तों में नई जान फूंकने में निर्णायक साबित हो सकता है. ईयू और नेटो के संबंधों के लिहाज़ से भी ये बेहद अहम हो सकता है. इतना ही नहीं यूक्रेन संकट के बाद के कालखंड में एक समूह के तौर पर ईयू और पूर्वी यूरोप के छोटे-छोटे देशों के साथ बाइडेन प्रशासन के जुड़ावों में मज़बूती आने के आसार हैं. इससे ईयू और अमेरिका के बीच के रिश्तों में एक नए युग का आग़ाज़ हो सकता है.  

अंतरराष्ट्रीय पटल पर अमेरिकी अगुवाई और फ़ौजी दखलंदाज़ियां सीमित हो गई हैं. अमेरिकी रसूख़ में आई इस गिरावट के लिए कई कारकों को ज़िम्मेदार बताया जाता है. अपने संसाधनों पर ज़्यादा बोझ न डालने की अमेरिकी फ़ितरत और दुनिया के थानेदार की भूमिका निभाने की घटती सियासी हसरत इन कारणों में शामिल है.

ग़ौरतलब है कि आंतरिक मोर्चे पर बाइडेन प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के नामांकनों और दूसरे घरेलू मसलों पर संसद में जारी भारी मतभेदों से जूझता रहा है. ऐसे में यूक्रेन संकट ने प्रशासन को एक वैकल्पिक रास्ता अपनाने पर मजबूर कर दिया. अफ़ग़ानिस्तान की नाकामियों के बाद ये दूसरा मौक़ा है जब राष्ट्रपति बाइडेन के सियासी क़दमों को विदेश नीति के मोर्चे पर एक बड़े संकट के चलते नई दिशा मिली है. हालांकि इन हालातों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था. प्रशासन के रुख़ में आए इस बदलाव की झलक 1 मार्च को राष्ट्रपति के स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण में भी देखने को मिली. 

बहरहाल, विदेश नीति से परे घरेलू मोर्चे पर बाइडेन के सामने और भी चुनौतियां हैं. महामारी के चलते लागू पाबंदियों में ढिलाई बरतने को लेकर बाइडेन प्रशासन पर गवर्नरों का भारी दबाव रहा. अब भी राष्ट्रपति को तमाम नाराज़गियों का सामना करना पड़ रहा है. कनाडा के पीपुल्स काफ़िले की तर्ज़ पर ट्रक चालकों का प्रदर्शन वॉशिंगटन डीसी में सिर उठा रहा है. प्रदर्शनकारी अपनी तमाम मांगों के साथ ज़ोर-आज़माइश कर रहे हैं. उनकी एक मांग ये है कि अमेरिका में राजनेताओं की आपातकालीन शक्तियां ख़त्म कर दी जाएं. ग़ौरतलब है कि इन्हीं शक्तियों के इस्तेमाल से अमेरिका में कोरोना से जुड़ी तमाम पाबंदियां लगाई गई थीं. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि घरेलू मोर्चे पर तमाम चुनौतियों से जूझ रहे राष्ट्रपति बाइडेन अंतरराष्ट्रीय पटल पर आए एक और बड़े तूफ़ान से कैसे निपटते हैं. 

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Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

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