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मोसुल की सांस्कृतिक विरासत की बहाली के लिए फंड देने से लेकर गज़ा के पुनर्निर्माण के लिए सहायता के वादे तक UAE के कदम मानवता और भू-राजनीतिक रणनीति के बारीक मेल-जोल के बारे में बताते हैं.
इराक़ में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड लेवंट (ISIL) के पतन के एक साल बाद 2018 में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने मोसुल में विरासत के पुनर्निर्माण के लिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने का वादा किया. यूनेस्को के महानिदेशक के मुताबिक इराक़ के इतिहास में सांस्कृतिक विरासत के रिकंस्ट्रक्शन के लिए ये सबसे बड़ा सहयोग रहा है. इसके कुछ साल बाद 2021 में UAE ने ऐलान किया कि इराक़ में युद्ध के बाद फिर से निर्माण के अपने व्यापक प्रयासों के तहत वो 3 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश सहायता के रूप में करेगा. दिसंबर 2023 में UAE ने इज़रायल-हमास युद्ध के बाद गज़ा के रिकंस्ट्रक्शन का अपना इरादा जताया बशर्ते अमेरिका के समर्थन से दो देशों की योजना को अमल में लाया जाए. हाल के समय में 4 जून 2024 को अमीरात के नेता ने तालिबान के साथ एक औपचारिक बैठक की जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता और विकास की तरफ भी योगदान करने की उसकी इच्छा का संकेत दिया गया. मोसुल से लेकर गज़ा और काबुल तक UAE की सामरिक प्रगति ने मीडिया का बहुत ज़्यादा ध्यान आकर्षित किया है. सुरक्षा रणनीतिकार UAE की मानवीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास की कोशिशों को एक समय छोटा कहे जाने वाले देश की एक बड़ी भू-राजनीतिक महत्वकांक्षा का हिस्सा बताते हैं जो अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में “देश की ब्रैंडिंग” का एक रूप है. अलग-अलग माहौल में UAE की मानवीय पहल की पृष्ठभूमि में ये लेख खाड़ी और दुनिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख किरदार के रूप में UAE की बदलती भूमिका के बारे में बताता है.
अलग-अलग माहौल में UAE की मानवीय पहल की पृष्ठभूमि में ये लेख खाड़ी और दुनिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख किरदार के रूप में UAE की बदलती भूमिका के बारे में बताता है.
UAE और इराक़ के बीच 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सांस्कृतिक समझौते के हिस्से के रूप में यूनेस्को के साथ साझेदारी में UAE मोसुल में सांस्कृतिक विरासत की जगहों का फिर से निर्माण कर रहा है. इन जगहों में अल-नूरी मस्जिद और इसकी अल-हदबा मीनार शामिल हैं जिन्हें ISIL ने तबाह कर दिया था. मोसुल में रिकंस्ट्रक्शन की योजना का विस्तार करके ISIL के कब्ज़े के दौरान बर्बाद चर्च की दो इमारतों के जीर्णोद्धार को भी शामिल किया गया. अल-नूरी मस्जिद और इसकी अल-हदबा मीनार, जो कि शहर की एक महत्वपूर्ण पहचान है, के पुनर्निर्माण का काम पूरा होने के करीब है और 2024 के आख़िर तक इन्हें फिर से खोल दिया जाएगा. मगर ये साफ नहीं है कि UAE जैसी एक बीच की ताकत इराक़ में सांस्कृतिक पुनर्निर्माण में निवेश क्यों कर रही है, ख़ास तौर पर कुवैत पर इराक़ के आक्रमण के बाद MENA (मिडिल ईस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीका) रीजन में बड़े क्षेत्रीय संगठनों में से एक खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ उसके तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए.
मोसुल में UAE की मानवीय पहल के मामले को युगोस्लाविया के गृह युद्ध के बाद बोस्निया में विरासत के रिकंस्ट्रक्शन के लिए सऊदी अरब के साम्राज्य की भागीदारी के नज़रिए से देखा जा सकता है. सऊदी अरब की भागीदारी को बोस्निया के इस्लाम से अलग इस्लाम का रूप लाने के एक धार्मिक दखल के रूप में देखा गया था और इसकी जमकर आलोचना हुई थी. हालांकि इराक़ में UAE की पहल को अभी तक धार्मिक दखल नहीं बताया गया है लेकिन प्रोजेक्ट में स्थानीय कंपनी के साथ तालमेल के बदले मिस्र की निर्माण कंपनी को शामिल करने के लिए UAE की आलोचना की गई है. इसके अलावा मोसुल जैसे ऐतिहासिक शहर में “खाड़ी से प्रेरित” ज्यामितीय (क्यूबिस्ट) डिज़ाइन के लिए प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ तीखी प्रतिक्रिया हुई है. स्थानीय लोगों ने ये कहकर आलोचना की है कि ‘ये मोसुल नहीं है, शारजाह है’.
ये स्थिति तब है जब UAE समेत कई देश पूरे शहर में विरासत की जगहों को फिर से बनाने के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधन समर्पित कर रहे हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया के ‘आफ्टर इस्लामिक स्टेट’ प्रोजेक्ट के द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता चला कि मोसुल में दूसरे देश की अगुवाई में विरासत पुनर्निर्माण का मोसुल के लोगों की ज़िंदगी पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ा. विरासत का पुनर्निर्माण मोसुल के लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से कम प्राथमिकता वाला काम है. ये स्थिति तब है जब UAE समेत कई देश पूरे शहर में विरासत की जगहों को फिर से बनाने के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधन समर्पित कर रहे हैं. वैसे तो इस तरह का पुनर्निर्माण स्थानीय लोगों को सशक्त नहीं बना रहा है, जिसका पता लोगों की राय से चलता है, लेकिन इराक़ में UAE के द्वारा विरासत का फिर से निर्माण एक सोची-समझी सांस्कृतिक कूटनीति का कदम है जो वैश्विक मंच पर उसकी छवि को उभारने में मदद करता है.
मानवीय विकास इराक़ में UAE की विदेश नीति है जिसका पता 2021 में उसके द्वारा इराक़ में युद्ध के बाद पुनर्निर्माण के व्यापक प्रयासों के हिस्से के रूप में 3 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश के ऐलान से चलता है. UAE और इराक़ के साझा बयान के अनुसार “पहल का मक़सद आर्थिक एवं निवेश संबंधों को मज़बूत करना, सहयोग एवं साझेदारी के लिए नए अवसर तैयार करना और भाई जैसे इराक़ के लोगों के समर्थन में आर्थिक, सामाजिक एवं विकास से जुड़ी वृद्धि को आगे बढ़ाना है.” इसके अलावा उसी साल अबु धाबी पोर्ट्स ग्रुप ने निवेश की संभावनाओं की तलाश करने और समुद्री एवं परिवहन क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने के लिए इराक़ की जनरल कंपनी फॉर पोर्ट्स के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए.
UAE की एक कंपनी एक्रोटेक को 2022 में इराक़ के साथ UAE के पहले कृषि निवेश समझौते के लिए रखे जाने के साथ पूरा हुआ है. ये कंपनी उत्पादन बढ़ाने के लिए नवीनतम तकनीक और आधुनिक विज्ञान के इस्तेमाल में किसानों की मदद करेगी.
UAE आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को मज़बूत करने के लिए इराक़ में इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं पर ध्यान दे रहा है. जहां इराक़ और अबू धाबी ने 2021 में आर्थिक सहयोग और निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई समझौतों पर दस्तख़त किए, वहीं UAE ने इराक़ में खेती और पर्यटन का समर्थन करने में भी दिलचस्पी जताई है. ये UAE की एक कंपनी एक्रोटेक को 2022 में इराक़ के साथ UAE के पहले कृषि निवेश समझौते के लिए रखे जाने के साथ पूरा हुआ है. ये कंपनी उत्पादन बढ़ाने के लिए नवीनतम तकनीक और आधुनिक विज्ञान के इस्तेमाल में किसानों की मदद करेगी. रणनीतिक रूप से तैयार विदेशी सहायता नीति इराक़ में UAE की विदेश नीति है जो कि “क्षेत्रीय और वैश्विक बदलावों और चुनौतियों के प्रति सख्ती से जवाबदेह है, जिसका लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति, लाभ, मान्यता और महत्व प्राप्त करना है.”
मध्य पूर्व में दीर्घकालीन शांति स्थापित करने और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को सुधारने की अपनी व्यापक महत्वाकांक्षा के हिस्से के रूप में 2020 में अब्राहम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर कर UAE ने इज़रायल के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को सामान्य बनाया. अमीरात का राजनीतिक रूप से अभिजात वर्ग अब्राहम अकॉर्ड को एक अधिक सौहार्दपूर्ण मिडिल ईस्ट की दिशा में एक आगे का कदम बताता है जिसके केंद्र में UAE है. वैसे तो ये समझौता मुख्य रूप से इज़रायल और फिलिस्तीन के लिए दो देशों के समाधान की सुविधा प्रदान करने के लिए नहीं किया गया था लेकिन व्यापक समझौते के हिस्से के रूप में इसका ज़िक्र एक उद्देश्य के तौर पर किया गया था. इज़रायल-हमास युद्ध शुरू होने के लगभग तीन महीने के बाद दिसंबर 2023 में UAE ने अमेरिका के द्वारा तय व्यापक रूप-रेखा के भीतर गज़ा के पुनर्निर्माण में योगदान करने की पेशकश की. ये उम्मीद की जा सकती है कि UAE ने गज़ा में अपनी संभावित पुनर्निर्माण की कोशिशों को अमेरिका के समर्थन वाले दो देशों के समाधान पर निर्भर रखा था जिसमें फिलिस्तीनी देश को मान्यता दी गई थी.
गज़ा का पुनर्निर्माण मानवीय संकट को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है और ये “इज़रायल एवं फिलिस्तीन के बीच दीर्घकालीन शांति” के लिए अभिन्न तत्वों में से एक है. मानवीय कूटनीति के इतिहास और इज़रायल के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंधों के साथ UAE एक व्यावहारिक पुनर्निर्माण साझेदार के रूप में खड़ा है जो इज़रायल और अमेरिका- दोनों को प्रभावित कर सकता है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र में UAE की स्थायी प्रतिनिधि लाना नुसीबेह के अनुसार दो देशों के समाधान की तरफ अमेरिका समर्थित रोड मैप के बिना “हम लोग पूरी ताकत नहीं लगाने जा रहे हैं. ये वो राह नहीं है जिसके लिए हमने अब्राहम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर किए थे.” इसके अलावा UAE गज़ा को महत्वपूर्ण मानवीय सहायता मुहैया कराने की वैश्विक कोशिशों में सबसे आगे रहा है. गज़ा में भेजी गई कुल सहायता में 27 प्रतिशत के महत्वपूर्ण योगदान के साथ UAE दुनिया में सबसे आगे है. अमेरिका और इज़रायल के लिए भरोसेमंद साझेदार के रूप में अपनी छवि बनाए रखने के साथ-साथ गज़ा को UAE की मानवीय सहायता ने न केवल उसे अरब देशों और घरेलू आलोचना से बचने में मदद की है बल्कि ज़ाहिर तौर पर अरब दुनिया में अपनी छवि बनाने में भी मदद की है.
पिछले दिनों अबु धाबी में इस्लामिक अमीरात ऑफ अफ़ग़ानिस्तान (IEA) के प्रतिनिधियों के साथ UAE के नेता शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल-नाहयान की बैठक ने कई तरह की चर्चाओं को तेज़ किया है. लेकिन UAE में तालिबान का कूटनीतिक दौरा कोई नई या असामान्य बात नहीं है. उदाहरण के लिए, अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से UAE ने वहां के हालात को अपनी मानवीय साख का प्रदर्शन करके पश्चिमी देशों के लिए एक कीमती साझेदार के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देखा है. ये 2020 में विदेशी राजनयिकों और लगभग 28,000 अफ़ग़ानी नागरिकों को काबुल से बाहर निकालने में UAE की मदद में अच्छी तरह से दिखा. 2021 में मानवीय परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए UAE की फंडिंग अफ़ग़ानिस्तान में उसकी मानवीय कूटनीति पर और अधिक ज़ोर देती है. इस बात को लेकर सर्वसम्मति है कि 2022 में अफ़ग़ानिस्तान में अनाज पहुंचाने और दूसरी राहत सामग्रियों की सप्लाई में UAE दृढ़ रहा. ये वो समय था जब अफ़ग़ानिस्तान गंभीर ग़रीबी से जूझ रहा था.
मिसाल के तौर पर, क़तर ख़ुद को अमेरिका की वापसी के बाद वाले अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों के लिए तेज़ी से अपरिहार्य देश के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहा है. मौजूदा इज़रायल-हमास युद्ध के बीच अपनी भूमिका वो और मज़बूत कर रहा है.
इसके अलावा मई 2022 में अफ़ग़ानिस्तान ने हेरात, काबुल और कंधार में हवाई अड्डों की सुरक्षा और इंतज़ाम के लिए UAE की कंपनी GAAC सॉल्यूशन के साथ एक समझौता किया. फिर दिसंबर 2022 में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यकारी रक्षा मंत्री मुल्ला याक़ूब ने दोनों देशों के संबंधों को और मज़बूत करने के लिए अवसरों पर चर्चा के उद्देश्य से UAE की यात्रा की. जिऑर्जियो कैफीरो जैसे विद्वान दलील देते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ सावधानीपूर्वक और व्यावहारिक तरीके से बातचीत करके UAE ने इस क्षेत्र में महाशक्तियों के बीच मुकाबले में महत्वपूर्ण देश बनने के अपने ख़ुद के हित को आगे बढ़ाया है. मिसाल के तौर पर, क़तर ख़ुद को अमेरिका की वापसी के बाद वाले अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों के लिए तेज़ी से अपरिहार्य देश के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहा है. मौजूदा इज़रायल-हमास युद्ध के बीच अपनी भूमिका वो और मज़बूत कर रहा है. क़तर और UAE के बीच भू-राजनीतिक मुकाबले को देखते हुए UAE में अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदगी उसके लिए अपने ऐतिहासिक विरोधी को मानवीय कूटनीति के माध्यम से बाहर करने का एक मौका है. इस तरह मानवीय सहायता MENA क्षेत्र और बाकी दुनिया में अपने दीर्घकालिक आर्थिक हितों को पूरा करने के लिए UAE की विदेश नीति का एक अभिन्न और रणनीतिक रूप से तैयार हिस्सा रही है.
मोसुल की सांस्कृतिक विरासत की बहाली के लिए फंडिंग से लेकर गज़ा के पुनर्निर्माण के लिए सहायता का वादा और तालिबान के तहत अफ़ग़ानिस्तान से बातचीत तक UAE के कदम मानवतावाद और भू-राजनीतिक रणनीति के बारीक मेल-जोल को दिखाते हैं. ये प्रयास UAE के द्वारा सॉफ्ट पावर कूटनीति के ज़रिए अपना अंतर्राष्ट्रीय कद एवं असर बढ़ाने, गठबंधन बनाने के लिए सांस्कृतिक एवं आर्थिक निवेशों का लाभ उठाने और वैश्विक मंच पर सकारात्मक छवि दिखाने की महत्वाकांक्षा को रेखांकित करते हैं. वैसे तो स्थानीय भागीदारी की कमी और अमीरात के सौंदर्यशास्त्र (एस्थेटिक्स) को थोपने के लिए मोसुल की पहल की आलोचना की जाती है लेकिन ये सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देकर इस नज़रिए का उदाहरण पेश करती है. इसी तरह इराक़ के बुनियादी ढांचे में UAE के भारी-भरकम निवेश का मक़सद आर्थिक निवेश और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है जो संभावित रूप से GCC के साथ इराक़ के संबंधों को नया आकार देगा. गज़ा में रिकंस्ट्रक्शन का प्रस्ताव, जो कि अमेरिका समर्थित दो देशों के समाधान पर निर्भर है, मिडिल ईस्ट की राजनीति में मध्यस्थ के रूप में UAE की सामरिक स्थिति को और ज़्यादा उजागर करता है. अंत में, तालिबान के साथ UAE की व्यावहारिक बातचीत क्षेत्रीय असर बरकरार रखने और क़तर की प्रमुखता का मुकाबला करने के उसके इरादे को दिखाता है. सामूहिक रूप से ये रणनीतिक कदम अपने भू-राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने और MENA रीजन एवं शेष विश्व में अपनी मौजूदगी का दावा करने के लिए UAE की सोची-समझी रणनीति को दिखाते हैं.
सबीने अमीर यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो में पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस की डॉक्टोरल रिसर्चर हैं.
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Sabine Ameer is a doctoral researcher in Politics and International Relations at the University of Glasgow, United Kingdom. Her research analyses whether there has been ...
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