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Published on Jun 11, 2024 Updated 0 Hours ago
टीसेट-1A की लॉन्चिंग से रिश्ते हुए मज़बूत, लेकिन भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग में अब भी चुनौती बरकरार!

अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सहयोग भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण तत्व रहा है. भारत और अमेरिका के बीच अतंरिक्ष और फ्रंटियर टेक्नोलॉजी में सहयोग को लेकर कई समझौते हुए हैं. सहयोग के इस सिलसिले की नई कड़ी है क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ इनीशिएट (iCET). इस पर दोनों देशों में जनवरी 2023 को सहमति बनी थी. इसका उद्देश्य दो उभरती हुई महत्वर्ण तकनीकों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी (QT) के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना है. iCET इस बात का मूल्यांकन करने का एक अच्छा आधार है कि क्या AI और QT जैसी अग्रणी तकनीक़ को मज़बूत रक्षा सहयोग के लिए ज़रूरी ध्यान और ट्रैक्शन मिल सकता है.

हालांकि AI और QT टेक्नोलॉजी में ये सहयोगात्मक साझेदारी "रक्षा क्षेत्र में नई खोज और तकनीकी सहयोग" का हिस्सा नहीं हैं. यहां तक कि सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियोज़ (SDRs), अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स (UAVs) और सेंसर्स भी iCET के तहत नहीं है. iCET एक ऐसा "इनोवेशन ब्रिज" बनाने की बात करता है, जो दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र से जुड़े स्टार्ट अप्स को जोड़ने का काम करे. ये घनिष्ठ तकनीकी सहयोग का एक ऐसा विज़न है, जिसकी परिभाषा के मुताबिक नई टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के लिए इसकी आवश्यकता होती है. लेकिन ये उन खास क्षेत्रों को लेकर चुप रहता है, जिन्हें पूरा करने के लिए फोकस और बेंचमार्क की आवश्यकता होती है. हालांकि AI और QT के क्षेत्र में अमेरिका और भारत के बीच रक्षा के मामलों में सहयोग बढ़ाने की गुंजाइश मौजूद है.

भारत और अमेरिका के बीच अतंरिक्ष और फ्रंटियर टेक्नोलॉजी में सहयोग को लेकर कई समझौते हुए हैं. सहयोग के इस सिलसिले की नई कड़ी है क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ इनीशिएट (iCET). 


अंतरिक्ष प्रोद्यौगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां भारत और अमेरिका के बीच सहयोग नागरिक और व्यापारिक उद्देश्यों तक ही सीमित है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण अमेरिका की सेटेलॉजिक कंपनी और भारत की टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड (TASL) के बीच नवंबर 2023 में हुआ समझौता है. इस सहयोग से TSAT-1A को विकसित किया गया. इसे अप्रैल 2024 में स्पेस एक्स कंपनी के फाल्कन 9 रॉकेट के साथ केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया. TSAT-1A सब मीटर रिज़ॉल्यूशन वाला एक इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल अर्थ ऑब्ज़र्वेशल (EO) सेटेलाइट है. इसकी भेजी तस्वीरें अपनी रेंज में गतिशील और उच्च संग्रह क्षमता वाली होती हैं. मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल क्षमता के माध्यम से इनमें कम विलंब वितरण की विशेषता होती है. सेटेलॉजिक और TASL की अपनी-अपनी जो क्षमताएं थीं, उन दोनों के एक साथ आने ने TSAT-1A सेटेलाइट के विकास, एकीकरण और लॉन्च को संभव बनाया. सेटेलॉजिक की खासियत एडवांस अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सेटेलाइट का विकास और उसे एकीकृत करना है, जबकि TASL की विशेषता सेटेलाइट की जटिल प्रणाली का एकीकरण करना है. कर्नाटक में वेमागल इलाके में स्थित TASL के परिसर में इस सेटेलाइट को जोड़ने, एकीकरण और टेस्टिंग (AIT) का काम किया गया. सेटेलॉजिक और TASL रक्षा क्षेत्र के लिए समर्पित स्पेस स्टार्ट अप्स नहीं हैं. TASL तो टाटा संस की सहायक कंपनी है जबकि सेटेलॉजिक 14 साल पुरानी कंपनी है. फिर भी ये एक उदाहरण पेश करते हैं कि अमेरिका और भारत के स्टार्ट अप इनोवेशन के ज़रिए किस तरह आपस में सहयोग कर सकते हैं. iCET में भी यही कहा गया है.

 

रक्षा क्षेत्र में विस्तार



जैसा कि ऊपर बताया गया है कि TSAT 1-A स्पेसक्राफ्ट हाइपरस्पेक्ट्रल और मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड ले जाता है. रक्षा क्षेत्र में ये काफी महत्व रखता है. मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड मीडियम रिज़ॉल्यूशन के इमेजिंग डेटा को कैप्चर कर सकता है. इसी मदद से किसी क्षेत्र में ज़मीन के इस्तेमाल, जंगल के आकार, कृषि उत्पादन की प्रवृति, जल निकायों और वहां की पर्यावरण की स्थिति का पता लगाया जा सकता है. अगर रक्षा के क्षेत्र में इनके इस्तेमाल की बात करें तो मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड इमेजरी इंटेलिजेंस (IMINT) का काम कर सकती है. इससे मिसाइल बेस, परमाणु परीक्षण स्थल, एयरबेस और दूसरे बड़े सैनिक प्रतिष्ठानों की तस्वीरें ली जा सकती हैं. अमेरिका का लैंडसेट और फ्रांस का SPOT सेटेलाइट व्यावसियक रूप से मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजरी उपलब्ध करवाते हैं. कुछ मामलों में अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) जैसी रक्षा संस्थाओं से आधिकारिक तौर पर भी ये तस्वीरें हासिल की जा सकती हैं. भारत के रक्षा मंत्रालय और सेटेलाइट रिमोट सेंसिग से जुड़ी सरकारी एजेंसियां, जैसे कि डिफेंस इमेज प्रोसेसिंग एंड एनालिसिस सेंटर (DIPAC) ने भी विदेशों से IMINT के ज़रिए तस्वीरें प्राप्त की हैं. हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सेटेलाइट उच्च रिज़ॉल्यूशन के इमेजिंग स्पेसक्राफ्ट हैं. मल्टीस्पेक्ट्रल सेटेलाइट की तुलना में हाइपरस्पेक्ट्रल सेटेलाइट काफी बेहतर होते हैं. मल्टीस्पेक्ट्रल सेटेलाइट से बहुत कम स्पेक्ट्रल बैंड पर इमेज डेटा बना सकते हैं, जबकि हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सेटेलाइट एक साथ सैंकड़ों-हज़ारों स्पेक्ट्रल बैंड पर हाई रिज़ॉल्यूशन की फोटो उपलब्ध करा सकते हैं. इनके डेटा इतने विस्तृत होते हैं कि ये इंद्रधनुष के हर रंग के प्रकार के बारे में जानकारी दे सकते हैं. वैसे हक़ीकत ये है कि मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग (MSI) सिस्टम और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग (HSI) सिस्टम एक-दूसरे के अनुपूरक होते हैं. दोनों के अपने आंतरिक फायदे होते हैं. यही वज़ह है कि TSAT-1A सेटेलाइट मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग पेलोड लेकर जाता है.

TASL तो टाटा संस की सहायक कंपनी है जबकि सेटेलॉजिक 14 साल पुरानी कंपनी है. फिर भी ये एक उदाहरण पेश करते हैं कि अमेरिका और भारत के स्टार्ट अप इनोवेशन के ज़रिए किस तरह आपस में सहयोग कर सकते हैं. iCET में भी यही कहा गया है.


हालांकि टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड ने AIT और सेटेलॉजिक ने मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपर स्पेक्ट्रल पेलोड विकसित करने में अपनी दक्षता साबित की है, लेकिन TASL को एडवांस स्पेक्ट्रल फोटोग्राफी क्षमता विकसित करने पर भी ध्यान देना होगा. ये काम अमेरिका या भारत में स्थित स्टार्ट अप कंपनियों के साथ मिलकर किया जा सकता है. भारतीय कंपनियों के लिए इस क्षमता को हासिल करना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LaC) पर चीन की फौज की तैनाती की जानकारी के लिए भारत क्लासीफाईड इमेजरी डेटा के लिए अमेरिका पर बहुत निर्भर है. TSAT-1A भारत की इमेजरी इंटेलिजेंस (IMINT) की ज़रूरत को कुछ ही हद तक पूरा करने में सक्षम है. अगर कोई भारतीय कंपनी भू-स्थानिक और इमेजिंग स्पेसक्राफ्ट को विकसित करने में तकनीकी दक्षता हासिल कर लेती है तो भारत भी IMINT से प्राप्त तस्वीरों को अमेरिका के साथ साझा कर सकता है. ये भारत के लिए बड़ी बात होगी.

TSAT-1A पेलोड जिस हद तक रक्षा क्षेत्र में इस्तेमाल हो रहा है, उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा से जुड़े अंतरिक्ष संबंधी रिश्तों को विस्तार देने की संभावना मौजूद है. लेकिन डिफेंस स्टार्ट अप्स के बीच सहयोगी उपक्रमों के माध्यम से अन्य क्षेत्रों, खासकर QT और AI में, लागू करने में वक्त लगेगा. फिर भी ये कहा जा सकता है कि सेटेलॉजिक और TASL के बीच का सहयोग दोनों देशों के बीच साझा उपक्रमों में सहयोग के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है. दोनों देशों की निजी कंपनियां QT और AI में रक्षा से जुड़े साझा उपक्रमों का विस्तार कर सकती हैं.

अगर कोई भारतीय कंपनी भू-स्थानिक और इमेजिंग स्पेसक्राफ्ट को विकसित करने में तकनीकी दक्षता हासिल कर लेती है तो भारत भी IMINT से प्राप्त तस्वीरों को अमेरिका के साथ साझा कर सकता है. ये भारत के लिए बड़ी बात होगी.


इस तरह ये कहा जा सकता है कि अमेरिका और भारत के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग और रक्षा क्षेत्र में इसके इस्तेमाल के विस्तार की संभावनाएं हैं. TSAT-1A की लॉन्चिंग इस अतिरिक्त सहयोग में आधार का काम कर सकती है क्योंकि ये सहयोग स्पेस टेक्नोलॉजी से आगे जाता है.


(कार्तिक बोम्मकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.)

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