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Published on Apr 19, 2025 Updated 0 Hours ago

सत्ता में ट्रंप की वापसी ने टैरिफ युद्ध छेड़कर अमेरिका और चीन की दुश्मनी को और गंभीर बना दिया है. टैरिफ युद्ध ने चीन के साथ अमेरिका के आर्थिक और सामरिक मुक़ाबले को पहले से कहीं ज़्यादा इकतरफ़ा और टकराव वाला रुख़ दे दिया है.

अमेरिका-चीन टकराव में ट्रंप की नई भूमिका तय

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ये हमारी चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ का 169वां लेख है


व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी के बाद और उसके बाद के हफ़्तों में उनके नीतिगत फ़ैसलों की वजह से जो अराजकता फैली है, उसमें से दुनिया में अमेरिका की भूमिका और दबदबे को आकार देने के मामले में चीन को लेकर उनकी जो नीति है वो सबसे मज़बूत, सबसे निर्णायक और अलग दिखने वाली है. ट्रंप के नारे मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) का घरेलू नीतियों पर बहुत अधिक ज़ोर है. फिर भी ऐसा लग रहा है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में चीन धीरे धीरे केंद्रीय भूमिका में आता जा रहा है और अब चीन को ख़ास तौर से निशाना बनाना अमेरिका की लाजमी रणनीति बनती जा रही है. चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर वार और पलटवार अब अमेरिका द्वारा कई सेक्टरों में दिमाग़ को हिला देने वाले 145 प्रतिशत के स्तर पर जा पहुंचा है और इसी तरह चीन ने भी पलटवार किया है, जिसकी वजह से लोगों को अमेरिका के ट्रेज़री सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट की उस बात पर यक़ीन होने लगा है, जब उन्होंने दावा किया था कि शुरू से ही ट्रंप के टैरिफ़ युद्ध का असल मक़सद चीन के अलावा बाक़ी सभी देशों पर लगाए गए टैरिफ को वापस 10 प्रतिशत की बुनियादी दर पर वापस ले जाने का ही था. अब तक चीन ने जो प्रतिक्रिया दी है, उसे देखकर लगता है कि प्रेसिडेंट ट्रंप से मोल-भाव करने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कॉल करने की संभावना बेहद कम हो गई है. ख़ास तौर से इसलिए भी, क्योंकि चीन ने साफ़ साफ़ कहा है कि वो किसी की दादागिरी की धौंस में नहीं आने वाला है. 

अब तक चीन ने जो प्रतिक्रिया दी है, उसे देखकर लगता है कि प्रेसिडेंट ट्रंप से मोल-भाव करने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कॉल करने की संभावना बेहद कम हो गई है.

चीन पर टैरिफ की ऊंची दरें थोपने के ट्रंप के फ़ैसले से चीन के बंदरगाहों पर काम लगभग ठप हो गया है. हो सकता है कि चीन के प्रति सख़्ती करने के साथ अन्य देशों के ऊपर सिर्फ़ दस प्रतिशत का बुनियादी टैरिफ लगाकर ट्रंप प्रशासन अनजाने में ही चीन की असल रणनीति पर आगे बढ़ गया है. हालांकि, इस पर चीन की प्रतिक्रिया को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये नीति टकराव की दिशा में बढ़ रही है. अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने चीन के साथ जो व्यापार युद्ध छेड़ा है, वो असल में अपने तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझीदारों- कनाडा, चीन और मेक्सिको के ख़िलाफ़ ही नहीं, इनके अलावा 50 और देशों के ख़िलाफ़ भी व्यापार की जंग है. इसके अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर के मामले में महंगाई बढ़ने से लेकर विकास दर कम होने तक के कयास लगाए जा रहे हैं. हालांकि, शुरुआती दिनों में अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर इसके असर को पूरी तरह से बता पाना अभी जल्दबाज़ी होगी. लेकिन, अमेरिकी टैरिफ के जवाब में चीन के पलटवार ने इसके कुछ संकेत ज़रूर दिए हैं. अमेरिका के कारोबारियों को सबसे बड़ा झटका तो चीन ने ये दिया है कि अहम खनिज तत्वों और मैग्नेट जैसे ज़रूरी सामान की अमेरिका को आपूर्ति रोक दी है. इसका अमेरिका पर व्यापक असर पड़ने की आशंका है. कहा जा रहा है कि चीन के इस क़दम से न सिर्फ़ अमेरिका के बल्कि पूरी दुनिया के कार उद्योग, अंतरिक्ष क्षेत्र के निर्माता, सेमीकंडक्टर कंपनियां और सेनाएं प्रभावित होंगी.

 

अमेरिका-चीन संबंध

चीन के साथ व्यापार युद्ध, ट्रंप के पहले कार्यकाल की विरासत है. बाइडेन प्रशासन ने ट्रंप की बनाई बुनियाद को आगे बढ़ाते हुए तकनीक क्षेत्र में चीन को निर्यात पर नियंत्रण जैसी नीतियों से आगे बढ़ाया था. ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान चीन से दूरी बनाने और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में अपनी बढ़त बनाए रखने को लेकर अमेरिका का आक्रामक रुख़ दिखा था. ट्रंप का पहला कार्यकाल ख़त्म होने के बाद से तकनीक, निवेश, निर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर नियंत्रण जैसे मामलों में चीन की क्षमताओं में ज़बरदस्त तरीक़े से इज़ाफ़ा हुआ है. इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला था, जब चीन की स्टार्टअप के आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के मॉडल डीपसीक ने दुनिया को झकझोर डाला था और बाज़ारों में तहलका मचा दिया था, जिससे निवेशकों के अरबों रुपए स्वाहा हो गए थे. डीपसीक तो इस बात छोटी सी मिसाल है कि चीन ने बेहद कम समय में तकनीकी क्षेत्र में कितनी लंबी छलांगें लगाई हैं. डीपसीक ये भी दिखाता है कि अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा का मिज़ाज किस क़दर बदल चुका है.

ट्रंप के पहले कार्यकाल के बाद जब बाइडेन सत्ता मे आए थे, तो उन्होंने चीन को लेकर ट्रंप की कुछ नीतियों को बनाए रखा था और ट्रंप प्रशासन के आक्रामक टकराव के उलट चीन से मुक़ाबला करने के लिए नई रणनीतियां विकसित की थीं, ताकि चीन के मुक़ाबले अमेरिका की बढ़त बनी रहे. बाइडेन प्रशासन ने अहम सहयोगी देशों के साथ साझेदारियों को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया, जो ट्रंप के दौर से बिल्कुल अलग थीं. यही नहीं, बाइडेन प्रशासन ने घरेलू तकनीकी और सेमीकंडक्टर निर्माण की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए लक्ष्य आधारित निवेश और क्षमता को बढ़ाने और अपग्रेड करने पर ज़ोर दिया था, जो चीन से मुक़ाबले में बढ़त बनाए रखने के लिए ही थे. इस दिशा में बाइडेन प्रशासन का सबसे ज़्यादा उम्मीद जगाने वाला क़दम चिप्स ऐंड साइंस एक्ट था. इसके तहत घरेलू मैन्युफैक्चरिंग, रिसर्च और विकास को बढ़ावा देने के लिए 52 अरब डॉलर आवंटित किए गए थे और निवेश पर 25 प्रतिशत टैक्स क्रेडिट का भी प्रावधान था. बाइडेन प्रशासन ने चीन को तकनीकी निर्यात में भी सख़्ती बढ़ाई थी और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और सेमीकंडक्टर उद्योग के अहम तत्वों के निर्यात पर रोक लगा दी थी. इसके अलावा, अमेरिका ने अहम सहयोगी देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया था. बाइडेन प्रशासन की चीन नीति में गठबंधन बनाने और सहयोगियों की क्षमता बढ़ाने पर काफ़ी ज़ोर दिया गया था.

ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन को लेकर पहले कार्यकाल से कहीं ज़्यादा सख़्ती और दबाव की नीति अपनाई है, जिसके तहत मुख्य रूप से टैरिफ के डंडे का बेलगाम इस्तेमाल है.

ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन को लेकर पहले कार्यकाल से कहीं ज़्यादा सख़्ती और दबाव की नीति अपनाई है, जिसके तहत मुख्य रूप से टैरिफ के डंडे का बेलगाम इस्तेमाल है. हालांकि, ट्रंप इस डंडे को अमेरिका के दोस्तों, सहयोगियों और साझीदारों सब पर समान रूप से चला रहे हैं. ये बात तमाम देशों पर जवाबी टैरिफ के एलान में साफ़ नज़र आती है. ट्रंप द्वारा कार्यकारी आदेश के ज़रिए घरेलू निर्माण उद्योग की क्षमताएं और निवेश बढ़ाने और टैरिफ को बराबर करने की रणनीति अब वैसे तो सभी देशों के लिए है. पर चीन के मामले में तो ये एकदम साफ़ नज़र आती है. ट्रंप प्रशासन की नीतियां, चीन पर दबाव बनाए रखने की बाइडेन प्रशासन की नीतियों की निरंतरता बनाए रखने वाली हैं. ये बात आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर ट्रंप के बहुत ज़ोर देने में ख़ास तौर से दिखाई देती है. 31 मार्च को एक कार्यकारी आदेश के ज़रिए ट्रंप ने यूनाइटेड स्टेट्स इन्वेस्टमेंट एक्सेलरेटर की स्थापना का हुक्म जारी किया था. ये संस्था लगभग एक अरब डॉलर के निवेश को बढ़ाने में सहयोग देगी और निवेशकों को सरकारी विनियमनों से निपटने में मदद करेगी. इस संस्था की ज़िम्मेदारी बाइडेन प्रशासन के चिप्स प्रोग्राम ऑफिस को चलाने की भी होगी, ताकि निवेशकों और आविष्कारकों को और अच्छा प्रोत्साहन दिया जा सके.

ट्रंप की भूमिका

अमेरिका में निवेश बढ़ाना अब ट्रंप के कार्यकाल में धमकाने वाली रणनीति बन गई है. 21 फरवरी 2025 को ट्रंप ने जो कार्यकारी आदेश जारी किया, उसका मक़सद अमेरिका फर्स्ट इन्वेस्टमेंट नीति तैयार करना था. इस नीति के तहत अमेरिका में निवेश का एक मज़बूत और खुला माहौल बनाए रखना है, जिससे आम नागरिकों और अर्थव्यवस्था को फ़ायदा हो. इससे भी अहम बात ये है कि इस आदेश में अमेरिकी कंपनियों और संपत्तियों में निवेश और बेहद उन्नत क्रिटिकल टेक्नोलॉजी हासिल करने के ग़ैरवाजिब तरीक़े अपनाने के लिए चीन की आलोचना की गई है. आदेश में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि चीन, अपने यहां अमेरिकी कंपनियों को प्रतिस्पर्धी माहौल नहीं उपलब्ध कराता है, ख़ास तौर से क्रिटिकल तकनीक के मूलभूत ढांचे में, और इसलिए पलटवार के तौर पर चीनी कंपनियों पर रोक लगाने के अमेरिकी फ़ैसले को जायज़ ठहराता है. क्रिटिकल तकनीकों तक चीन की पहुंच रोकना अब ट्रंप प्रशासन की प्रमुख नीतियों में से होगा, क्योंकि चीन तकनीक के मामले में बड़ी तेज़ी से अमेरिका की बराबरी पर पहुंचता जा रहा है. 

अमेरिका में निवेश बढ़ाना अब ट्रंप के कार्यकाल में धमकाने वाली रणनीति बन गई है.

अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी क्षेत्र में जो मुक़ाबला चल रहा है, वो आगे चलकर निर्णायक साबित होने वाला है. अगर हम मौजूदा चलन को आने वाले समय का संकेत मान लें तो ट्रंप प्रशासन के स्वदेश में क्षमता निर्माण तेज़ करने और हर मुमकिन तरीक़े से क्रिटिकल तकनीकों तक चीन की पहुंच को रोकने की नीति पर अमल जारी रखने की संभावना दिख रही है. इसके अलावा, ट्रंप चाहेंगे कि जहां भी मुमकिन हो वो समान विचारधारा वाले सहयोगियों के साथ साझेदारियां निर्मित करें. चीन के अलावा बाक़ी सभी देशों पर टैरिफ की ऊंची दरों को टालना एक तरह से चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप का नया व्यापार युद्ध ही है. इस दौरान ट्रंप इस व्यापार युद्ध के अलग अलग सेक्टरों पर पड़ने वाले असर का मूल्यांकन करके संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं. स्मार्टफोन, कंप्यूटर और कुछ दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ‘जवाबी टैरिफ’ की मार से छूट देना शायद वो इकलौते रियायत होगी जो चीन को हासिल होगी. क्योंकि, हो सकता है ट्रंप प्रशासन सेमीकंडक्टरों और फार्मास्यूटिकल्स पर नए टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है. 

चीन और अमेरिका के युद्ध में जो नया तनाव आया है, उसको देखते हुए क्रिटिकल खनिजों और मैग्नेट जैसे क्षेत्रों में चीन ने जो पलटवार किया है, वो शायद दुनिया में आपूर्ति श्रृंखलाओं का आकलन करके उन्हें पुनर्गठित करने की दिशा में पहला क़दम हो. इस बीच चीन का अमेरिका के टैरिफ के प्रति ख़ुद को अनुकूल बनाना शायद पूरी दुनिया में बड़ी ताक़तों के बीच होड़ और व्यापार को आकार देने वाला सबसे बड़ा बाहरी कारण हो. इसी वजह से शी जिनपिंग के वियतनाम, कंबोडिया और मलेशिया के दौरे को चीन द्वारा उस व्यापार युद्ध के असर को झेलने के लिए ख़ुद को तैयार करने की रणनीति की शुरुआत माना जा रहा है. वियतनाम जैसे देश, जिन पर ट्रंप की नई योजना के तहत टैरिफ की सबसे ज़्यादा मार पड़ी है, उनके लिए चीन के साथ रणनीतिक तालमेल बनाने से दोनों देशों को फ़ायदा हो सकता है.

निष्कर्ष

अभी तो ट्रंप को दूसरी बार सत्ता में आए हुए कुछ ही हफ़्ते हुए हैं. लेकिन, उनकी नीतियों ने वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र के पुराने नियमों को उलट पलट डाला है और इनसे दुनिया पर एक ऐसी नई व्यवस्था थोपने का ख़तरा बढ़ गया है, जिसमें अमेरिका सर्वोपरि होगा. चूंकि, ट्रंप के टैरिफ अमेरिका के घरेलू भागीदारों के लिए भी चिंता का विषय हैं. ऐसे में ये देखना होगा कि चीन के साथ मुक़ाबले और बाक़ी दुनिया से रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए ट्रंप प्रशासन टैरिफ को अपना मुख्य हथियार बनाए रखता है या नहीं.

अभी तो ट्रंप को दूसरी बार सत्ता में आए हुए कुछ ही हफ़्ते हुए हैं. लेकिन, उनकी नीतियों ने वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र के पुराने नियमों को उलट पलट डाला है और इनसे दुनिया पर एक ऐसी नई व्यवस्था थोपने का ख़तरा बढ़ गया है

भू-राजनीतिक नज़रिए से देखें तो अमेरिका के रणनीतिक आकलनों में चीन के ‘तेज़ी से बढ़ती चुनौती’ की हैसियत बनाए रखने की संभावना है. ट्रंप प्रशासन हिंद प्रशांत क्षेत्र में साझेदारी के ज़रिए काम करने की अहमियत को समझ रहा है. क्योंकि इस विशाल इलाक़े में साझा ख़तरों और चुनौतियों से मिलकर निपटना ज़रूरी है. इसका उदाहरण हमें क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी साझा बयान में साफ़ दिखा था. हाल ही में अमेरिका के रक्षा मंत्री पीटर हेगसेथ समेत ट्रंप प्रशासन के दो बड़े अधिकारियों ने अमेरिकी सेना के हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुख्यालय (USINDOPACOM) का दौरा किया था और कहा था कि अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में गठबंधनों और साझेदारियों को और मज़बूती देने के लिए प्रतिबद्ध है. ट्रंप के कार्यकाल में हिंद प्रशांत का केंद्रीय भूमिका में रहना लगभग तय है. क्योंकि ये दुनिया का वो इलाक़ा है, जहां पर ट्रंप के आर्थिक और रणनीतिक समीकरणों की लक़ीरें आपस में मिलती हैं.

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Authors

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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Akshat Singh

Akshat Singh

Akshat Singh is a Research Intern with the Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. ...

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