Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 07, 2024 Updated 0 Hours ago

अगले अमेरिकी चुनाव डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों की जीत के समान संभावनाओ के साथ लड़े जाने की उम्मीद है. इस संभावना से सियोल में ख़तरे की घंटी फिर से बज रही है.

अमेरिका-दक्षिण कोरिया संबंधों के ऊपर मंडराता एक खतरा हैं ट्रंप

अमेरिका इस बैकयानी अमेरिका (US) वापस गया है - यह एक ऐसा नारा है जो बाइडन के राजनीतिक नेतृत्व की कमान संभालने के बाद अमेरिका ने अपने सहयोगियों और साझेदारों के लिए एक आश्वस्त करने वाले स्वर में बुलंद किया. यह संदेश विशेषतः एशिया-प्रशांत इलाके के लिए था जहां अमेरिका की हब-एंड-स्पोक गठबंधन नीति ने अपनी पहुंच और प्रभाव को मजबूत किया हुआ था लेकिन वह सब ट्रंप प्रशासन के तहत दबाव में गया. जापान और दक्षिण कोरिया दोनों को ट्रंप प्रशासन के राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा. ट्रंप की मोल-तोल की राजनीति के अंतरगत अपने सहयोगियों के पास से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव शामिल किए जिसमे यह शर्त शामिल थी कि सहयोगी देश अपने देशों में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती के लिए अगर अधिक धन देने में विफ़ल रहते हैं तो अमेरिकी सैनिकों की वापसी की जाएगी. बाइडन प्रशासन की अब तक की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक अमेरिका की गठबंधन प्रतिबद्धताओं के बारे में किसी भी संदेह को दूर करने के साथ-साथ अपने सहयोगियों को उनके समर्थन के बारे में आश्वासन देना रहा है. यह प्रयास अमेरिकी राजनयिक तंत्र को वैश्विक मानचित्र पर वापस लाने और अमेरिकी राजनयिक और राजनीतिक समर्थन की कटौती  की आशंकाओं को दूर करने का था. बाइडन प्रशासन के काल में हिंद-प्रशांत इलाके में सहयोगियों के बीच अमेरिका के बारे में उसके स्वार्थी होने की एक धारणा को दूर करने के लिए वाशिंगटन की ओर से कई प्रयास किए गए. दक्षिण कोरिया इन प्रयासों के केंद्र में थे और जापान जैसे अन्य महत्वपूर्ण सहयोगियों के साथ भी यह प्रयास किए गए. जब राष्ट्रपति बाइडन ने पिछले साल अगस्त में जापान और दक्षिण कोरिया के नेताओं को कैम्प डेविड में आमंत्रित किया तब यह कदम किसी के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी. इस कदम के दो उद्देश्य थे. पहलाप्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के दो सबसे महत्वपूर्ण सहयोगियों को चीन के खिलाफ़ एक साझा निवारक रणनीति का आश्वासन देना और दूसरा टोक्यो और सियोल के बीच राजनयिक सौहार्द को पुनः स्थापित करना

 अगले अमेरिकी चुनाव डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों की जीत के समान संभावनाओ के साथ लड़े जाने की उम्मीद है. इस संभावना से सियोल में ख़तरे की घंटी फिर से बज रही है क्योंकि ट्रंप के सत्ता में वापस आने का डर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संबंधों पर मंडरा रहा है. इस तरह की आशंकाओं ने एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा कर दिया है कि अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के दौर में US-ROK संबंधों का भविष्य क्या होगा?

ट्रंप के कार्यकाल में सबसे अधिक नुक़सान पूर्वोत्तर एशिया में अमेरिका के संधि सहयोगी दक्षिण कोरिया के साथ अमेरिका के संबंधों को हुआ. अलग-अलग मुद्दों ने इस दौरान अमेरिका - दक्षिण कोरिया (ROK)  संबंधों को निर्धारित किया. बाइडन की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में की गई पहल ने प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी उपस्थिति और नेटवर्क को मजबूत करने की दिशा में काम किया और सियोल की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया. अगले अमेरिकी चुनाव डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों की जीत के समान संभावनाओ के साथ लड़े जाने की उम्मीद है. इस संभावना से सियोल में ख़तरे की घंटी फिर से बज रही है क्योंकि ट्रंप के सत्ता में वापस आने का डर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संबंधों पर मंडरा रहा है. इस तरह की आशंकाओं ने एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा कर दिया है कि अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के दौर में US-ROK संबंधों का भविष्य क्या होगा?

 

सियोल के भय का निवारण 

 

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप इस साल 27 जून और 10 सितंबर को होने वाली दो बहसों में आमने-सामने होंगे और इस बहस को सियोल निश्चय ही बड़े ध्यान से सुनेगा. पिछले महीने टाइम पत्रिका को ट्रंप का दिया हुआ इंटरव्यू पहले से ही सियोल में बेचैनी पैदा कर चुका है. इस साक्षात्कार में ट्रंप ने NATO और दक्षिण कोरिया के संदर्भ में अमेरिकी सहयोगियों के ऊपर अमेरिका द्वारा किए जाने वाले सैन्य ख़र्च के मुद्दे को दोहराया थायह पूछे जाने पर कि क्या आप (ट्रंप) दक्षिण कोरिया से अमेरिकी सैनिकों को वापस लाएंगे, डोनाल्ड ट्रम्प ने जवाब दिया, 'मैं चाहता हूं कि दक्षिण कोरिया हमारे साथ ठीक से व्यवहार करें' और आगे कहा कि 'हमने (अमेरिका) सही मायने में उनकी अधिकांश सेना के लिए भुगतान किया है और वे अरबों डॉलर का भुगतान करने के लिए सहमत भी हुए लेकिन शायद अब जब मैं चला गया हूँ तब वे बहुत कम भुगतान कर रहे हैं. मुझे नहीं पता कि क्या आप जानते हैं कि उन्होंने मेरे द्वारा किए गए सौदे पर फिर से बातचीत की होगी.’ इन टिप्पणियों ने सियोल में कई लोगों के लिए विश्वास की खाई को बढ़ा दिया है और 2019 में ट्रंप द्वारा पैदा की गई भावनाओं की याद दिला दिया हैं

 इस डर से कि वार्ता फिर से सियोल और वाशिंगटन के बीच विवाद का विषय न बन जाए,  दोनों देशों ने इस साल जनवरी में सिक्योरिटी मेशर्स अग्रीमेंट (SMA) को तेजी से आगे बढ़ाया जो दक्षिण कोरिया में तैनात 28,500 US फोर्सेज कोरिया (USFK) के सैनिकों के लिए रक्षा लागत के साझा वहन को अंतिम रूप देगा. 

बाइडन प्रशासन ने US-ROK संबंधों को मजबूत करने के लिए कुछ मजबूत संरचनात्मक उपाय किए हैं ताकि वे दोनों देशों में नेतृत्व परिवर्तन के बावजूद भविष्य में सुरक्षित रहें. इस डर से कि वार्ता फिर से सियोल और वाशिंगटन के बीच विवाद का विषय बन जाएदोनों देशों ने इस साल जनवरी में सिक्योरिटी मेशर्स अग्रीमेंट (SMA) को तेजी से आगे बढ़ाया जो दक्षिण कोरिया में तैनात 28,500 US फोर्सेज कोरिया (USFK) के सैनिकों के लिए रक्षा लागत के साझा वहन को अंतिम रूप देगा. SMA के अंतर्गत US फोर्सेज कोरिया (USFK) में कोरियाई श्रमिकों से संबंधित निर्माण लागत और रसद सहायता से संबंधित अन्य व्यय भी शामिल हैं.  2025 के अंत में अपनी समाप्ति तिथि से दो साल पहले की गई SMA की बातचीत दोनों राजधानियों की एक साझा समझ की ओर इशारा करती है कि अगर ट्रम्प व्हाइट हाउस को संभालते हैं तो यह संबंधों में एक अड़चन बन सकते हैंइससे पहले SMA पर मार्च 2021 में छह साल के लिए हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें दोनों पक्ष दक्षिण कोरिया के पक्ष में 1.03 बिलियन अमरीकी डालर की राशि के साथ 13.9 प्रतिशत की वृद्धि पर सहमत हुए थे. जबकि ट्रम्प प्रशासन के तहत यह राशि कुछ अतिरिक्त गारंटी के साथ 400 प्रतिशत प्रस्तावित की गई थीरक्षा लागत के साझा वहन पर वार्ता का दूसरा दौर 16 मई 2024 को आयोजित किया गया.  

 

परमाणु निरस्त्रीकरण और अमेरिका फर्स्ट की नीति 

 

ट्रंप के कार्यकाल के दौरान वाशिंगटन और सियोल के बीच विवाद का एक और महत्वपूर्ण बिंदु कोरियाई उपद्वीप  यानी प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण का मुद्दा हो सकता है. यदि ट्रम्प निर्वाचित होते हैं तो संभवतः उत्तर कोरिया के प्रति एक स्पष्ट रूप से अलग दृष्टिकोण अपनाएंगे जिससे परमाणु निरस्त्रीकरण के व्यापक एजेंडे पर प्रभाव पड़ेगा. अपने कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने उत्तर कोरिया की धरती पर कदम रखते हुए और तीन मौकों पर किम जोंग उन से मुलाकात करके इतिहास रचा. हालांकि, इन कार्रवाइयों ने ट्रंप की अप्रत्याशितता और अपरंपरागत राजनयिक शैली को प्रदर्शित किया लेकिन उन्होंने दक्षिण कोरिया में अविश्वास भी पैदा किया और क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन को अस्थिर कर दिया. यह सर्वविदित है कि प्रतिरोध राजनीतिक संकेत और देशों के व्यवहार पर बहुत अधिक निर्भर करता है और ट्रंप के इस दौरे ने दक्षिण कोरिया को एक अनिश्चित स्थिति में पाया जो अमेरिका के विस्तारित प्रतिरोध नीति पर आश्रित है. वास्तव में, ट्रम्प के राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से और प्योंगयांग के साथ बातचीत में अधिक खुलापन आने से अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच मतभेद पैदा होने के आसार है. यदि ट्रंप जीत जाते हैं तो उनके किम जोंग उन के साथ फिर से बातचीत करने और यहां तक कि प्योंगयांग के परमाणु हथियारों को कायम रखने के लिए उत्तर कोरिया की शर्त को स्वीकार करने की भी उम्मीद है.  यह रुख़ संभवतः गठबंधन में दरार पैदा करेगा और दक्षिण कोरिया के परमाणुकरण का समर्थन करने वाले रूढ़िवादियों के एक वर्ग को प्रोत्साहित करेगा

 यदि ट्रंप जीत जाते हैं तो उनके किम जोंग उन के साथ फिर से बातचीत करने और यहां तक कि प्योंगयांग के परमाणु हथियारों को कायम रखने के लिए उत्तर कोरिया की शर्त को स्वीकार करने की भी उम्मीद है. 

बाइडन ने अपनी हिंद-प्रशांत नीति और अन्य क्षेत्रीय नीतियों जैसे कि कैम्प डेविड में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय गठबंधन और OKUS समझौते के माध्यम से प्रशांत सागर इलाके में रणनीतिक संतुलन को बहाल करने की कोशिश की है. यून-बाइडन के द्विपक्षीय नेतृत्व काल ने संरचनात्मक विसंगतियों को दूर करने और संबंधों को स्थिर करने पर ध्यान केंद्रित किया है.

 

ताइवान की प्रासंगिकता 

 

जनवरी 2021 में ट्रंप के व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद से चीन और अमेरिका दोनों में ताइवान के मुद्दे पर तल्ख़ी आई है. जबकि अमेरिकी सीनेट ने ताइवान पालिसी एक्ट 2022 का प्रस्ताव दिया है जो ताइवान के साथ अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों को नए सिरे से मजबूत करने का प्रयास करता है. वही चीन के हाल की कार्रवाइयों से पता चलता है कि यह ताइवान पर आक्रमण करने के लिए अति तत्परता से काम कर रहा है. इन परिस्थितियों ने प्रशांत सागर इलाके के सुरक्षा संतुलन को पारंपरिक और रणनीतिक दोनों तौर पर ख़तरे में डाल दिया हैइस क्षेत्र में उभरती प्रतिस्पर्धात्मक परिस्थिति ने सियोल को एक रणनीतिक दुविधा में पहुंचा दिया है जिसमें एक तरफ वो अपनी गठबंधन प्रतिबद्धताओं में बंधा है और दूसरी ओर वह चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी गठबंधन के कारण फ़ंसने का डर से जूझ रहा हैहालांकि राष्ट्रपति यून के नेतृत्व में दक्षिण कोरिया ने ताइवान स्ट्रेट में शांति और स्थिरता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए एक स्पष्ट रुख़ लेकर आगे कदम बढ़ाया है फिर भी उसने जापान की तरह ही ताइवान में पनप रहीं स्थिति में अमेरिका के साथ कोई संयुक्त कार्यवाही नहीं की हैयह विषय संभवतः विवाद बन सकता है क्योंकि इस समय अमेरिका चीन को रोकने के उद्देश्य से हिंद-प्रशांत में अपने एसेट्स  को फिर से रणनीतिक तौर पर ढालने की कोशिश में लगा है. यदि ट्रम्प जीत जाते हैं, तो ताइवान के सन्दर्भ में USFK का ध्यान उत्तर कोरिया से चीन की ओर स्थानांतरित हो जाएगा. हाल ही में एक साक्षात्कार में, ट्रंप प्रशासन में एक वरिष्ठ पद पर आसीन एल्ब्रिज कोल्बी ने यह राय व्यक्त की थी. उन्होंने यहां तक कहा कि केवल उत्तर कोरिया पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय 'चीन से संबंधित संभावनाओंसे निपटने के लिए USFK को नए तौर से तैयार करने की आवश्यकता हैइस बात ने दक्षिण कोरियाई रणनीतिक विशेषज्ञों के बीच आत्मरक्षा के महत्व और US-ROK  गठबंधन पर फिर से विचार करने के बारे में बहस छेड़ दी है. जापान के साथ साउथ कोरिया के ऐतिहासिक रूप से जटिल संबंध सियोल को रणनीतिक स्पष्टता प्रदान करने में विशेष रूप से बाधक रहे हैं

 यदि ट्रम्प जीत जाते हैं, तो ताइवान के सन्दर्भ में USFK का ध्यान उत्तर कोरिया से चीन की ओर स्थानांतरित हो जाएगा.

दक्षिण कोरिया के सन्दर्भ में ट्रंप और उनके कुछ निर्णय जैसे कि कोरिया-U.S. मुक्त व्यापार समझौते (KORUS) का उनका संशोधन का प्रयास बहुत ही गंभीर है, विशेषकर तब जब ट्रंप ने चुनाव के ट्रेंड और धन उगाहने में बाइडन पर बढ़त बनाए रखी है. इसके ठीक विपरीत, बाइडन प्रशासन अगले डेमोक्रेटिक प्रेसीडेंसी के तहत US-ROK संबंधों में स्थिरता पर अपना दांव लगाएगा जो पिछले चार वर्षों में इस दिशा में कुछ बुनियादी कार्यों को देखते हुए तकनीकी-सहयोग के क्षेत्रों में सबसे बड़ी बात होगी.

 


विवेक मिश्रा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं

 अभिषेक शर्मा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट 

हैं

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

Read More +
Abhishek Sharma

Abhishek Sharma

Abhishek Sharma is a Research Assistant with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the Indo-Pacific regional security and geopolitical developments with a special ...

Read More +