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बौद्धिक संपदा के अधिकारों (TRIPS) में रियायत के जिस कमज़ोर किए गए प्रस्ताव को भारत और दक्षिण अफ्रीका ने सामने रखा है, उससे पता चलता है कि विकसित देशों की नीति लोगों की जान पर पैसे को तरज़ीह देने के लिए बनी है.
TRIPS Agreement: बौद्धिक संपदा के अधिकारों पर समझौता यानी ‘एक क़दम आगे, तो दो क़दम पीछे’
18 महीने से ज़्यादा वक़्त बीत चुका है, मगर विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य देश अब तक भारत और दक्षिण अफ्रीका के उस प्रस्ताव को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं, जिसके तहत कोविड-19 महामारी पर क़ाबू पाने और उसके इलाज के लिए बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी कुछ अधिकारों में रियायत (TRIPS Waiver) दी जा सके. अगर बौद्धिक संपदा के अधिकारों में एक अर्थपूर्ण और सकारात्मक रियायत पर सहमति बन जाए, तो बहुत से देश कोविड-19 के टीकों, ज़रूरी दवाओं और टेस्टिंग किट का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकेंगे.
लाखों लोगों की जान बचाने और अभी भी दुनिया के कई देशों में क़हर बरपा रही कोविड-19 महामारी को ख़त्म करने की इस कोशिश में ये सबसे अहम क़दम है, जिसका इंतज़ार किया जा रहा है. चीन के सबसे बड़े शहर शंघाई में इस वक़्त अनिश्चितकालीन लॉकडाउन लगा हुआ है और फिलाडेल्फिया ने दोबारा घर के भीतर मास्क का आदेश लागू कर दिया है. विकसित देशों का ये कहना कि महामारी ख़त्म हो गई है, निश्चित रूप से एक मज़ाक़ है. इन सुविधा वाले देशों ने पहले अपने यहां वैक्सीन की जमाख़ोरी की और अब कोविड-19 के टीके बनाने के एकाधिकार के ज़रिए मुनाफ़ा कमा रहे हैं. इसके साथ साथ ये देश विश्व व्यापार संगठन में TRIPS में रियायत की कोशिशों में बाधा डाल रहे हैं.
अगर बौद्धिक संपदा के अधिकारों में एक अर्थपूर्ण और सकारात्मक रियायत पर सहमति बन जाए, तो बहुत से देश कोविड-19 के टीकों, ज़रूरी दवाओं और टेस्टिंग किट का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकेंगे.
क्वॉड समूह द्वारा बौद्धिक संपदा के अधिकारों में बहुत मामूली रियायतों के प्रस्ताव और भारत व दक्षिण अफ्रीका के इन अधिकारों में रियायत (TRIPS Waiver) के मूल प्रस्ताव के बीच विश्लेषण करने के साथ इस लेख में ये तर्क दिया गया है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी प्रावधानों के तहत कोविड-19 टीके बनाने के अधिकार में निष्पक्ष रूप से रियायत दिया जाना मुमकिन है. लोगों की जान बचाने और महामारी को ख़त्म करने के लिए दुनिया की तरफ़ से उठाए जाने वाले इस सामूहिक क़दम को बहुपक्षीय संस्थाओं में बदलते उस नज़रिए का शिकार बनने से बचाना होगा, जो रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के नतीजे में पैदा हुए हैं.
ख़बर है कि पिछले महीने विश्व व्यापार संगठन की अगुवाई में क्वॉड, यूरोपीय संघ, भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के बीच हुई वार्ता ट्रिप्स में रियायत को लेकर एक समझौते पर पहुंच गई. हालांकि अभी भी विवाद के मुद्दे सुलझाने के लिए इस समझौते की शर्तें विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों के सामने नहीं रखी गई हैं. हालांकि इस प्रस्ताव की जो बातें लीक हुई हैं उसमें उन रियायतों का कोई ज़िक्र नहीं है, जिनका प्रस्ताव अक्टूबर 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने अपनी तरफ़ से रखा था. अगर क़ानूनी रूप से देखें, तो क्वॉड का ये प्रस्तावित समाधान अस्पष्ट है और इससे बौद्धिक संपदा के अधिकार की वो बाधाएं दूर नहीं होतीं, जिन्हें हटाने से कोविड-19 के टीकों और ज़रूरी दवाओं के साथ परीक्षण की किट का तेज़ी से उत्पादन बढ़ाया जा सके.
चीन के सबसे बड़े शहर शंघाई में इस वक़्त अनिश्चितकालीन लॉकडाउन लगा हुआ है और फिलाडेल्फिया ने दोबारा घर के भीतर मास्क का आदेश लागू कर दिया है. विकसित देशों का ये कहना कि महामारी ख़त्म हो गई है, निश्चित रूप से एक मज़ाक़ है.
प्रस्तावित समाधान के इस ड्राफ्ट में बौद्धिक संपदा के अधिकारों (IPR) को निलंबित करने की बात नहीं है. क्योंकि इसमें मोटे तौर पर उपलब्ध रियायतों का ही ज़िक्र है. अपने मौजूदा स्वरूप में इस ड्राफ्ट में TRIPS समझौते की धारा 28.1, 31 और 39.3 का ज़िक्र किया गया है. वैसे तो समझौते के इस प्रस्ताव में ट्रिप्स समझौते के प्रावधानों का ज़िक्र किया गया है. लेकिन इसमें मौजूदा प्रावधानों में ही नई शर्तें जोड़ी गई हैं और उन शर्तों पर ख़ामोशी बरती गई है, जिनसे बौद्धिक संपदा के अधिकारों से कोई वास्तविक राहत मिल सके.
इस ड्राफ्ट में व्यापार के उन राज़ों को साझा करने की बात नहीं लिखी है, जिससे टीकों के निर्माण की पेचीदा प्रक्रिया को संरक्षण मिलता है. व्यापार के ये राज़ निर्माण की प्रक्रिया, फ़ॉर्मूल की वो तकनीक जो पेटेंट नहीं कराई गई है, सेल लाइनें, जीनोम की जानकारी और अन्य जैविक तत्वों से जुड़े होते हैं. व्यापार के इन रहस्यों के बग़ैर टीकों के बौद्धिक संपदा के अधिकारों में छूट का कोई मतलब नहीं होगा. इसीलिए, अपने मौजूदा स्वरूप में जिस तरह की रियायत का समझौता हुआ है, उसमें वैक्सीन के निर्माण और आपूर्ति की चुनौतियों का कोई समाधान नहीं उपलब्ध कराया गया है; इसके उलट ये इस बात की मिसाल है कि विकसित देशों ने किस तरह से विश्व व्यापार संगठन के नियमों का इस्तेमाल, विकासशील और बेहद कम विकसित देशों के हक़ सीमित करने के लिए किया है.
ड्राफ्ट प्रस्ताव को बारीक़ी से पढ़ें तो पता चलता है कि ये 2021 की यूरोपीय संघ की कोविड-19 के संकट से निपटने की व्यापारिक रणनीति से मिलता जुलता है. उसमें कोविड-19 के इलाज के संसाधनों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य लाइसेंस की बात कही गई है. यूरोपीय संघ का कहना रहा है कि बौद्धिक संपदा के अधिकारों में लचीलापन, जिसमें अनिवार्य और स्वैच्छिक लाइसेंस शामिल हैं, उनसे आपात स्थिति में बौद्धिक संपदा के अधिकारों की बाधाएं पार करने की पर्याप्त रियायतें मिल जाती हैं और कोई नई छूट देने की ज़रूरत नहीं है. हालांकि, वैसे तो अनिवार्य लाइसेंस की प्रक्रिया के तहत पेटेंट में छूट देना मुमकिन है. लेकिन, इसमें व्यापार के राज़ शामिल करने के लिए नया समझौता करने की ज़रूरत है. क्योंकि, ट्रिप्स और ट्रिप्स प्लस के ढांचे में इसकी व्यवस्था नहीं है. अनिवार्य लाइसेंस की पेचीदा प्रक्रिया और इसके विपरीत राजनीतिक और आर्थिक बंधनों के बारे में तो कई बार लिखा जा चुका है. यही वजह है कि पिछले दो साल में किसी भी दवा कंपनी ने कोविड-19 का टीका बनाने के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी नहीं किया है.
वैसे तो अनिवार्य लाइसेंस की प्रक्रिया के तहत पेटेंट में छूट देना मुमकिन है. लेकिन, इसमें व्यापार के राज़ शामिल करने के लिए नया समझौता करने की ज़रूरत है. क्योंकि, ट्रिप्स और ट्रिप्स प्लस के ढांचे में इसकी व्यवस्था नहीं है.
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने ट्रिप्स समझौते में जिस अस्थायी रियायत की गुज़ारिश की थी, वो इस तरह थी:
‘महापरिषद द्वारा सदस्य देशों के ट्रिप्स समझौते के भाग II की 1,4,5, और 7’ धाराएं लागू करने की ज़िम्मेदारी या ट्रिप्स समझौते के भाग III के तहत ये धाराएं लागू करने की ज़िम्मेदारी में कोविड-19 महामारी की रोकथाम, उस पर क़ाबू पाने या इलाज के लिए (X) वर्षों की छूट दी जानी चाहिए.’
‘ट्रिप्स समझौते की धारा 14 के प्रस्तुति देने वालों, फोनोग्राम (साउंड रिकॉर्डिंग) और प्रसारण करने वाले संगठनों पर लागू नहीं होगी.’
ट्रिप्स समझौते के (बौद्धिक संपदा के अधिकारों की उपलब्धता, दायरे और इस्तेमाल के मानकों से जुड़े) भाग II का संबंध कॉपीराइट और संबंधित अधिकारों (धारा 1), औद्योगिक डिज़ाइन (धारा 4), पेटेंट (धारा 5) और ज़ाहिर न की गई जानकारी के संरक्षण (धारा 7) से जुड़ा है.
भाग III (बौद्धिक संपदा के अधिकार लागू करने) का संबंध सामान्य ज़िम्मेदारियों (धारा 1), नागरिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं और उपायों (धारा 2), प्रावधानों और उपायों (धारा 3), सीमा संबंधी उपायों से जुड़ी ख़ास ज़रूरतों (धारा 4) और आपराधिक प्रक्रियाओं (धारा 5) से जुड़ा है.
ये साझा प्रस्ताव उस अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी ढांचे के अंदर आता है, जो व्यापार और मानव अधिकारों से जुड़ा है. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना करने वाले मराकेश समझौते की धारा IX में ये प्रावधान है कि कोविड-19 जैसी महामारी वाली आपात स्थिति में बौद्धिक संपदा के अधिकारों में रियायत देना मुमकिन है. इसके अलावा विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय संधि में हस्ताक्षर किए हैं. इसमें शारीरिक और मानसिक सेहत के उच्चतम मानक हासिल करने के लोगों के अधिकारों (धारा 12) और वैज्ञानिक तरक़्क़ी का सुख उठाने के अधिकार (धारा 6) को स्वीकार किया गया है. सदस्य देशों ने क़ानूनों और संधियों के वियना समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं. इस समझौते के तहत सभी देशों की ये ज़िम्मेदारी है कि वो इसे लागू करने के मक़सद को नुक़सान पहुंचाने के लिए काम नहीं करेंगे (धारा 18) और संधि की व्याख्या ईमानदारी से करेंगे.
दक्षिण अफ्रीका और भारत को चाहिए कि वो दुनिया में सेहत की समानता के लिए बौद्धिक संपदा के अधिकारों में एक न्यायोचित और असरदार रियायती व्यवस्था के लिए संघर्ष करें.
अगर सेहत के आपातकाल के वक़्त भी ये प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते, तो फिर ऐसी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं का मतलब ही क्या है? विकसित देशों को चाहिए कि वो कोविड-19 टीकों और बौद्धिक संपदा के अधिकारों के मामले में सेहत के मानव अधिकारों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों की सकारात्मक रूप से व्याख्या करें. इन क़ानूनों और समझौतों की चुनिंदा तरीक़े से व्याख्या करने से अंतरराष्ट्रीय क़ानून की पवित्रता भंग होती है. मानवता को चोट पहुंचती है और ऐतिहासिक रूप से चले आ रहे अन्याय को भी बढ़ावा मिलता है.
महामारी के पिछले दो वर्षों के दौरान, कम आमदनी वाले केवल 16 प्रतिशत लोगों को ही कोरोना के टीके की एक डोज़ मिल सकी है. वहीं ज़्यादा आमदनी वाले देशों के नागरिक बूस्टर डोज़ भी लगवा रहे हैं. दुर्भाग्य से टीकों के वितरण की ये असमानता बनी हुई है.
बौद्धिक संपदा के अधिकारों में रियायत देने का समय ख़त्म होता जा रहा है. लेकिन इससे जुड़ी वार्ता की प्रक्रिया पर दुनिया के बदले हुए हालात का बोझ भी लद गया है. यूक्रेन में रूस का विशेष सैन्य अभियान बहुपक्षीय संगठनों के काम-काज में बाधा बन गया है. इससे रियायतों को लेकर चल रही बातचीत भी प्रभावित हुई है. हालांकि, यूक्रेन संकट का असर कोविड-19 से जुड़े बौद्धिक संपदा के अधिकारों में रियायत पर नहीं पड़ना चाहिए. इसका एक उपाय लाखों लोगों की जान बचाएगा और महामारी को ख़त्म करने में मददगार साबित होगा. इसीलिए, इन वार्ताओं को अपने मक़सद हासिल करने में नाकाम नहीं होने देना चाहिए. दक्षिण अफ्रीका और भारत को चाहिए कि वो दुनिया में सेहत की समानता के लिए बौद्धिक संपदा के अधिकारों में एक न्यायोचित और असरदार रियायती व्यवस्था के लिए संघर्ष करें.
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Nishant Sirohi is an advocate and a legal researcher specialising in the intersection of human rights and development - particularly issues of health, climate change, ...
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