Author : Naghma Sahar

Published on Apr 02, 2018 Updated 0 Hours ago

आखिर क्या वजह रही की अभी ट्रम्प और मून से किम जोंग उन की मीटिंग के पहले शी जिनपिंग ने उन्हें निजी यात्रा के लिए न्योता दिया?

ट्रेन टू बीजिंग

येलो रिवर के पार से हरे डिब्बों वाली एक रेलगाड़ी जब बीजिंग पहुंची तो इसके साथ ही दुनिया भर की सियासत में हलचल मच गयी। एशिया के इस हिस्से की भू राजनीती की पहेली में नए सवाल जुड़ गए लेकिन साथ ही कई चीज़ों पर से पर्दा हटा। ट्रेन में सवार वो रहस्यमयी मेहमान कोई और नहीं उत्तर कोरिया के युवा नेता, तानाशाह किम जोंग उन थे। रॉकेट मैन के नाम से जाने जाने वाले किम ने राष्ट्रपति ट्रम्प दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून के साथ शिखर वार्ता से पहले बीजिंग आकर ये साफ़ कर दिया है की उनका रिमोट मेड इन चाइना है।

किम जोंग उन के अचानक बीजिंग दौरे की अहमियत कई कारणों से है। अभी बीजिंग क्यूँ?

जब दक्षिण कोरियाई दूतावास ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को किम जोंग उन का निमंत्रण सौंपा और ट्रम्प ने उसे माना तो इन सब के बीच चीन स्पष्ट तौर पर अनुपस्थित था। इसमें कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु निरशस्त्रीकरण के लिए मिल कर वार्ता करने का प्रस्ताव है।

चीन यात्रा की टाइमिंग दिलचस्प है और कई सवाल खड़े करती है। मई में उत्तर कोरिया और ट्रम्प के बीच एक ऐतिहासिक बातचीत का मंच सजने वाला है। तो आखिर क्या वजह रही की अभी ट्रम्प और मून से किम जोंग उन की मीटिंग के पहले शी जिनपिंग ने उन्हें निजी यात्रा के लिए न्योता दिया। जवाब भी सवाल में ही है। चूँकि किम जोंग अमेरिका और दक्षिण कोरिया से मिलने की खुद ही पहल कर आये, और इस प्रक्रिया से चीन खुद को कटा हुआ महसूस कर रहा था इसलिए किम को न्योता देकर चीन महाखेल में वापस लौट आया है।

चीन यात्रा की टाइमिंग दिलचस्प है और कई सवाल खड़े करती है।

चीन की इस पहल पर मैं ने दक्षिण कोरिया में हमारे पूर्व राजदूत रह चुके विष्णु प्रकाश से बात की। उन्हों ने कहा की चीन नहीं चाहता की अमेरिका या किसी भी बड़ी शक्ति का प्रभाव उत्तर कोरिया पर पड़े। वो उत्तर्कोरेअ पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है। पिछले ३ हफ़्तों में कोरियाई दीप पर कई अहम डेवलपमेंट हुए। किम जोंग उन का दक्षिण कोरिया के साथ बदला हुआ दोस्ताना रवैय्या, ट्रम्प से मुलाक़ात की दक्षिण कोरिया के माध्यम से पहल, और इस पूरी प्रक्रिया में चीन का घटता रोल, चीन के लिए चिंता बढ़ा रहा था। किम जोंग की शी जिनपिंग से मुलाक़ात से ये साफ़ हो गया है की इस महाखेल में चीन बड़ी भूमिका निभाएगा।

विष्णु प्रकाश मानते हैं की इस मीटिंग की दूसरी बड़ी बात है की इस से अलग थलग पद रहे उत्तर कोरिया का पलड़ा मज़बूत हो गया है। और सब से दिलचस्प ये की उत्तर कोरिया के शासक जिन्हें सुरक्षा का खतरा रहता है और वो किसी पर भरोसा नहीं करते उन्हें शायद ट्रम्प से मीटिंग का वेन्यू मिल गया है। इस मुलाक़ात के लिए वेन्यू की तलाश थी।

चीन की खेल में वापसी

भले ही किम जोंग अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने वाले हों, जिसकी जगह और तारिख पर अभी सस्पेंस है, लेकिन ये साफ़ है की की परदे के पीछे असली किरदार चीन है। अगर ये बातचीत हो जाती है तो ये पहली बार होगा की कोई अमेरिकी राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के नेता से मिलेंगे। एक दुसरे को अपने अपने परमाणु बटन के साइज़ से डराने वाले नेता अब बातचीत की मेज़ पर आमने सामने बैठने को तैयार हैं। इस नाटकीय बदलाव का श्रेय सब लेना छह रहे हैं। दक्षिण कोरिया की भूमिका तो है ही लेकिन अमेरिका अभी भी अपनी पीठ थपथपा रहा है और चीन जो खुद को इस पूरे घटनाक्रम में अलग थलग महसूस कर रहा था वो एक्शन के केंद्र में लौट आया है, किम जोंग उन के चीन दौरे ने यही साफ़ किया है की इस छेत्र की शान्ति और स्थिरता में चीन का रोले केंद्र में है। वो यहाँ बड़ा खिलाडी है। तेज़ी से घटती राजनयिक घटनाक्रम के बाद पूरा फोकस जो अमेरिका और दक्षिण कोरिया पर शिफ्ट हो गया था वो चीन पर लौट आया है। शी का सहयोग उत्तर पर मैक्सिमम दबाव के लिए ज़रूरी रहा है। और इस मीटिंग ने चीन की अनोखी स्थिति को उजागर किया है इस नेगोसिअशन में। चीन अब अमेरिका और पूरी दुनिया से कह रहा है की की अगर किसी को भी कोरियाई द्वीप के भविष्य के बारे में कोई सम्जहुता जकरना है तो हमें नज़रंदाज़ नहीं कर सकते।

लिटिल ब्रदर लौट कर आये

चीन के संविधान में आए हालिया बदलाव के बाद किम की ही तरह शी जिनपिंग भी जीवन भर अपने देश का नेतृत्व करेंगे, इसलिए इन दोनों के आपसी संबंध मायने रखते हैं। किम के बीजिंग दौरे ने उत्तर कोरिया और बड़े भाई चीन के बीच आ रही खटास को भी कम करने का काम किया है। बीते दिनों चीन और “लिटिल ब्रदर” कोरिया के बीच रिश्तों में कुछ तनाव भी आया था जिसकी बड़ी वजह थी किम का परमाणु कार्यक्रम। पिछले साल चीन ने किम को चेतावनी भी दी थी “कोई भी देश एकांतवास में नहीं जा सकता” इशारा साफ़ किम की तरफ था। शी जिनपिंग ने जब पिछले साल अपना विशेष दूत कोरिया भेजा था तो किम ने उस से मिलने से इनकार कर दिया था। बहरहाल रिश्तों में तनाव का मतलब उसका टूटना नहीं। ये चीन और उत्तर कोरिया की दोस्ती से साफ़ है। इस बार जब किम उत्तर कोरिया पहुंचे तो उनके स्वागत में शी ने पुराने तनावों को शांत करने वाली भाषा में स्वागत किया/चीन की न्यूज़ एजेंसी जिन्हुआ ने शी के हवाले से कहा की “इस दौरे की हम सराहना करते हैं।” उत्तर कोरिया ने कोरियाई प्रायद्वीप पर स्थति सुधरने के लिए काफी काम किया है माओ त्से ने सही कहा था चीन और उत्तर कोरिया उतने ही करीब लेकिन एक दुसरे से आज़ाद है जैसे की दांत और होंठ.. भले ही रिश्ते में हिचकियाँ हों लेकिन अभी भी कोरिया का ९० फीसदी कारोबार चीन पर निर्भर है। दोनों देशों के एतिहासिक रिश्ते भी हैं। चीनी सिनिकओं ने उत्तर कोरेअके युद्ध में उसकी ज़मीन पर खून बहाया है। आज के दुए में उत्तर कोरिया अमेरिका के लिए एक बफर की तरह भी काम करता है, दक्षिण कोरिया में तैनात ३० हज़ार सैनकों और चीन के बीच उत्तर कोरिया एक बफर है।

पिछले साल चीन ने किम को चेतावनी भी दी थी “कोई भी देश एकांतवास में नहीं जा सकता” इशारा साफ़ किम की तरफ था। शी जिनपिंग ने जब पिछले साल अपना विशेष दूत कोरिया भेजा था तो किम ने उस से मिलने से इनकार कर दिया था। बहरहाल रिश्तों में तनाव का मतलब उसका टूटना नहीं। ये चीन और उत्तर कोरिया की दोस्ती से साफ़ है।

क्या परमाणु हथियार छोड़ेंगे किम

शी जिनपिंग ने कहा कि चीन अपने लक्ष्य पर कायम है कि प्रायद्वीप में परमाणु हथियार नष्ट हो। इस पर किम जोंग-उन ने प्रतिक्रिया दी कि यह उनकी प्रतिबद्धता है कि वो परमाणु हथियार नष्ट करेंगे। सवाल ये उठता है की क्या अब चीन और फिर अमेरिका से मुलाक़ात के बाद उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियार छोड़ने को तैयार हो जाएगा। JNU में कोरियाई स्टडीज की प्रोफेसर वैजयंती राघवन से मैं ने ये सवाल किया। प्रोफ राघवन के मुताबिक ये तब ही हो सकता है जब उत्तर कोरिया सुरक्षित महसूस करे। सवाल है की वो कैसे सुरक्षित महसूस करेगा, क्या दक्षिण कोरिया पर अमेरिका का नुक्लेअर अम्ब्रेला कम करना इस परमाणु निरस्त्रीकरण की शर्त होगी, क्या Thaad को हटाना शर्त होगी। उत्तर कोरियाई नेता परमाणु हथियारों को अपने देश की प्रतिष्ठा और सम्मान के रूप में देखते हैं। परमाणु हथियार उनकी सुरक्षा की गारंटी हैं इसलिए मौजूदा परिस्थिति में ये मान लेना की उत्तर कोरिया परमाणु हथियार छोड़ देगा ये मुश्किल लगता है।

किम, शी और ट्रम्प

चीन के लिए ये दौरा एक राहत की बात है। जब मार्च के शुरुआत में किम ने ट्रम्प से सीधी बात का प्रस्ताव रखा था तो चीन कुछ घबरा गया था। उन्हें लगा वो बातचीत की प्रक्रिया से बाहर हो गए हैं और अब ट्रम्प उन्हें ट्रेड वॉर की धमकी देंगे और चीन के पास तोल मोल के लिए उत्तर कोरिया का पांसा भी नहीं होगा। चीन में आशावादियों को अब उम्मीद है की ट्रम्प से होने वाली शिखर वार्ता के जो खतरे हैं उसको चीन अब कुछ नियंत्रित कर पायेगा।

ट्रम्प के सत्ता सँभालने के पहले साल में किम ने ताबड़तोड़ परिक्षण शुरू किये, ऐसी मिसाइल टेस्ट की जिसकी रेंज में अमेरिका भी था, लेकिन फिर विंटर ल्य्म्पिक के दौरान मौक़ा पाते ही रुख बदला, दक्षिण कोरिया से सुलह की बात की और ट्रम्प से मुलाक़ात की भी। दुनिया को हैरानी में दाल दिया। ध्यान दें तो इस पूरी घटनाक्रम के दौरान ट्रम्प प्रशासन सिर्फ किम जोंग उन के क़दमों का जवाब दे रहा है, जैसा इस हफ्ते भी हुआ, जब किम बख्तरबंद ट्रेन में बीजिंग पहुँच गए और शी के साथ मुस्कुराते नज़र आये, तो अमेरिका फिर हैरान रह गया।

चीन में आशावादियों को अब उम्मीद है की ट्रम्प से होने वाली शिखर वार्ता के जो खतरे हैं उसको चीन अब कुछ नियंत्रित कर पायेगा।

ट्रम्प ने बातचीत के लिए किम का निमंत्रण स्वीकार तो कर लिया है लेकिन ट्रम्प के नए सुरक्षा सलाहकार बोल्टन नार्थ कोरिया के साथ किसी समझौते के लिए तैयार होंगे या नहीं इस पर बड़ा सवाल है। वो अपने आक्रामक रुख और सैनिक हस्तक्षप की तरफदारी के लिए जाने जाते हैं। बुश प्रशासन में इराक युद्ध के दौरान बोल्टन काफी सक्रिय थे। बोल्टन कह चुके हैं की उत्तर कोरिया से परमाणु हथियार छोड़ने की बात के अलावा कोई और बात करना समय की बर्बादी होगी।

अब किम और शी की मीटिंग के बाद शी जिनपिंग सारा श्रेय लेते हुए ये कह रहे हैं की कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त करने के लक्ष्य को लेकर चीन प्रतिबध्ह है। चीन ऐसा कर के उत्तर कोरिया के मसले को हल करने में और इस पूरे क्षेत्र में लीडरशिप का रोल निभाने में मजबूती से जमा हुआ है। वो एक विश्व शक्ति बन ने की राह पर बढ़ते हुए वैश्विक राजनीती में केंद्रीय भूमिका निभाना चाहता है.. वो ये दिखाना चाहता है की उत्तर कोरिया में शांति और स्थिरता अगर कायम होगी तो वो चीन की वजह से ही होगी। इसलिए अब किम जोंग उन के बदले हुए सुर के पीछे शी जिनपिंग का हाथ ही माना जायेगा और ऐसा प्रतीत हो रहा है की ट्रम्प एक पक्ष बन कर रह गए हैं। ट्रम्प अपने देश में हर दिन एक नए आंतरिक विवाद में घिरे रहते हैं, ऐसे में उत्तर कोरिया की समस्या को वो समय समय पर अपने तरकश से निकालते रहते हैं ताकि लोगों का ध्यान भी बंटा रहे। यही वजह है की ट्रम्प अपनी शुरूआती धम्कियों के बावजूद दरअसल उत्तर कोरिया को लेकर काफी संभल कर क़दाम्र खते हैं। उन्हें इसे हल करने की कोई जल्दी भी नहीं।

किम जोंग उन के बीजिंग दौरे में थोडा रहस्य और बहुत सारा ड्रामा था, ये दौरा इस बात को साफ़ कर रहा है की प्रायद्वीप की सियासत का एजेंडा किम जोंग उन ही तय कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से शिखर वार्ता के पहले अब किम जोंग उन का पलड़ा भारी है। किम ने अभी ये साफ़ नहीं किया है की वो कितनी रियायत के लिए तैयार हैं और अमेरिका से उन्हें बदले में क्या चाहिए। फिर भी इस कूटनीतिक प्रक्रिया पर किम हावी रहे।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.