Expert Speak Raisina Debates
Published on May 28, 2024 Updated 0 Hours ago

आज के दौर में युद्धों को जीतने के लिए नैरेटिव्स तैयार करना और उन्हें फैलाकर अपने पक्ष में माहौल बनाना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. चीन इस तथ्य को समझने के बाद सूचना युद्ध में अपनी रणनीतिक क्षमताएं बढ़ाने में जुट गया है.

सूचना युद्ध में महारत हासिल करने के लिए चीन की नई रणनीतियाँ

यूरोप और पश्चिम एशिया में लंबे समय से चल रहे युद्धों से चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने काफ़ी कुछ सीखा है. पीएलए का मानना है कि लंबे वक़्त तक चलने वाली लड़ाइयों में अपने पक्ष को सशक्त करने के लिए सिर्फ़ आमने-सामने के संघर्ष में बढ़त हासिल करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि इसके अलावा भी कई और प्रयास करने होंगे. इसी के मद्देनज़र पीएलए जहां एक तरफ अपने लॉजिस्टिक्स को बढ़ाने पर अधिक ध्यान दे रही है, वहीं दूसरी तरफ परोक्ष युद्ध यानी प्रचार या दुष्प्रचार के ज़रिए अपने पक्ष में माहौल बनाने की रणनीति पर फोकस कर रही है. जो लोग चीन के नज़रिए में आए इस बदलाव को धरातल पर समझना चाह रहे हैं, उन्हें हाल के दिनों में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौरों और उनकी बयानबाज़ी को बारीक़ी से देखना चाहिए. इससे साफ तौर पर यह पता चल जाएगा कि चीन अपने इस नए नज़रिए या कहा जाए कि रणनीति को किस प्रकार से अमल में ला रहा है.

 जो लोग चीन के नज़रिए में आए इस बदलाव को धरातल पर समझना चाह रहे हैं, उन्हें हाल के दिनों में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौरों और उनकी बयानबाज़ी को बारीक़ी से देखना चाहिए.

चीनी सैन्य अभ्यास 

राष्ट्रपति जिनपिंग पीएलए की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख हैं. इसी हैसियत से हाल ही में उन्होंने चोंगकिंग में स्थित आर्मी मेडिकल यूनिवर्सिटी का दौरा किया था. वहां उन्होंने युद्ध के दौरान लड़ाई के मैदान में घायल सैनिकों के इलाज के तरीक़ों, सैनिकों की स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा से संबंधित लॉजिस्टिक सहयोग में बेहतर तालमेल के लिए नई-नई तकनीक़ों का उपयोग किए जाने की बात कही थी. इसके अलावा, जिनपिंग ने चीनी सेना के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस चिकित्सा विश्वविद्यालयों की स्थापना पर भी बल दिया, साथ ही बेहतर चिकित्सा सुविधाओं को वर्तमान समय में युद्ध जीतने के लिए ज़रूरी बताया. इसके साथ ही उन्होंने मेडिकल छात्रों और सैन्य कर्मियों से 'रेड मिलिट्री डॉक्टर्स' यानी सैन्य चिकित्सकों की एक नई पीढ़ी को तैयार करने का भी आह्वान किया, यानी ऐसे सैन्य चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षित करने की बात कही, जो युद्ध के मैदान में जवानों का बेहतर तरीक़े से उपचार करने में सक्षम हों और सैनिकों की क्षमता बढ़ाने में सहयोग करें. ज़ाहिर है कि शी जिनपिंग का यह आह्वान कहीं कहीं पीएलए की युद्ध से संबंधित तैयारियों में बढ़ोतरी को लेकर लगातार दिए जाए उनके बयानों के ही मुताबिक़ है. पीएलए ने हाल ही में झेजियांग प्रदेश के समुद्र तटीय द्वीपों से घायल सैनिकों को निकालने के लिए सैन्य अभ्यास किया था. इस अभ्यास की ख़बरों के कुछ दिनों बाद ही जिनपिंग ने देश के प्रमुख सैन्य चिकित्सा विश्वविद्यालय का दौरा किया. कुछ रणनीतिकारों के मुताबिक़ पीएलए के घायल सैनिकों को युद्ध के मैदान से सकुशल निकालने वाले इस सैन्य अभ्यास का मकसद ताइवान पर संभावित चीनी हमले की स्थिति में सेना की तैयारियों को परखना था.

 

कोरोना महामारी के बाद से राष्ट्रपति जिनपिंग कभी-कभार ही विदेशी दौरों पर जाते हैं. हालांकि, जब भी वे विदेश यात्रा पर जाते हैं, तो उसके पीछे कोई ख़ास मकसद ज़रूर होता है और कोई विशेष संदेश देने की रणनीति होती है. हाल ही में जिनपिंग ने यूरोप की यात्रा की थी, लेकिन उनके इस दौरे का समय बहुत ख़ास था. वर्ष 1999 के मई महीने में ही नाटो द्वारा तत्कालीन संघीय गणराज्य यूगोस्लाविया में चीनी दूतावास पर बमबारी की गई थी, जिसमें तीन चीनी नागरिकों की मौत हो गई थी. इस घटना की यादों को ताज़ा करने के लिए शी जिनपिंग ने सर्बिया के एक समाचार पत्र में एक लेख भी लिखा था. इस लेख में विस्तार से बताया गया था कि किस प्रकार से नाटो के हवाई हमलों में 8,000 नागरिक हताहत हुए थे और लगभग दस लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था. जिनपिंग ने ऐसे वक़्त में पूर्व की घटनाओं का उल्लेख करके नैरेटिव गढ़ने का काम किया, जब पश्चिमी देश यूक्रेन में संघर्ष को लेकर रूस पर हमलावर हैं और उसकी निंदा कर रहे हैं. इसके अलावा, अमेरिका भी मानवाधिकार उल्लंघन के मसले पर चीन को लगातार घेरने की कोशिश कर रहा है.

 पीएलए ने हाल ही में झेजियांग प्रदेश के समुद्र तटीय द्वीपों से घायल सैनिकों को निकालने के लिए सैन्य अभ्यास किया था. इस अभ्यास की ख़बरों के कुछ दिनों बाद ही जिनपिंग ने देश के प्रमुख सैन्य चिकित्सा विश्वविद्यालय का दौरा किया.

चीनी राष्ट्रपति दुनिया में अपने पक्ष में नैरेटिव बनाने को लेकर कितना गंभीर है, यह हाल ही में उनके द्वारा इन्फॉर्मेशन सपोर्ट फोर्स यानी सूचना सहायता बल (ISF) के गठन के फैसले से समझा जा सकता है. जिनपिंग ने पूर्व में गठित स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स यानी रणनीतिक समर्थन बल को भंग करके ISF की स्थापना की है. ज़ाहिर है कि चीनी सेना ने पूर्व में साइबर, अंतरिक्ष, राजनीतिक और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में सहायता के लिए और नई क्षमताएं विकसित करने के लिए रणनीतिक समर्थन बल का गठन किया गया था. जिनपिंग ने 'wngluò xìnxī xìtìng' [网络信息体系] के विचार को भी प्रस्तावित किया है, जिसका मतलबइंटरनेट इन्फॉर्मेशन सिस्टमहोता है. यानी उन्होंने आज के दौर के युद्धों को जीतने के लिए इंटरनेट सूचना प्रणाली के उपयोग को महत्वपूर्ण बताया है. चीन की सरकारी मीडिया ने सूचना सहायता बल को सिर्फ़ आधुनिक सेना का एक प्रमुख स्तंभ बताया है, बल्कि देश की सेना के आधुनिकीकरण में तेज़ी लाने का भी अहम माध्यम करार दिया है. वर्तमान समय में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के युद्ध को लेकर विचारों में जो बदलाव आया है, वो चीनी रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख से भी ज़ाहिर होता है. इस लेख में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि आज के दौर के युद्धों को जीतने के लिए सूचना पर दबदबा यानी अपने हिसाब से सूचना फैलाने की काबिलियत लड़ाई का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होगा. इस लेख के मुताबिक़ सूचना पर नियंत्रण आज युद्ध में जीत-हार निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

 

तकनीकी क्षेत्र में भूमिका 

 

सीपीसी की युद्ध रणनीति में साफ तौर पर बदलाव आया है और इसके तहत सूचना युद्ध को प्रमुखता दी जा रही है. देखा जाए तो युद्ध के दौरान मददगार साबित होने वाला यह बदलाव कई वजहों से प्रेरित हो सकता है. पहली वजह यह है कि युद्ध में बेतहाशा ख़र्च होता है. चीनी रणनीतिकार सुन त्जु ने चीन के शासकों को बहुत पहले ही आगाह कर दिया था कि लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष किस प्रकार से देश के संसाधनों, पैसों के रूप में और मनुष्यों के रूप में, दोनों को ही समाप्त कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि रूस के तत्कालीन रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू ने बताया था कि रूस-यूक्रेन युद्ध में सितंबर 2022 तक 5,937 रूसी सैन्य कर्मियों ने अपनी जान गंवाई थी. हालांकि, सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के पूर्व निदेशक डेविड पेट्रियस का अनुमान है कि इराक़ में अमेरिकी युद्ध के दो दशकों के दौरान जितने सैनिकों की जान गई थी, रूस ने यूक्रेन से युद्ध शुरू होने के एक महीने के भीतर ही उसकी तुलना में दोगुनी संख्या में अपने सैन्य कर्मियों को खो दिया. सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए तमाम वीडियो में रूसी सैनिकों द्वारा बताया गया है कि रूस को यूक्रेन के साथ लड़ाई में जानमाल की भारी क्षति पहुंची है. इन वीडियो में दिखाया गया है कि किस प्रकार से बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों की मौत हो रही है और वे अपने अधिकारियों के आदेशों की अनदेखी कर रहे हैं. यही नहीं, यूक्रेन द्वारा रूसी सैनिकों के लिए 'मैं जीना चाहता हूं' नाम की जो पहल शुरू की गई है, उसे भी ज़बरदस्त समर्थन मिला है. जो रूसी सैनिक वापस रूस नहीं लौटना चाहते हैं, उनके लिए यह पहल शुरू की गई है और इसके तहत कई रूसी सैनिकों ने यूक्रेनी सेना के सामने आत्मसमर्पण किया है. जहां तक अमेरिका की बात है, तो उसकी वायु सेना बहुत उन्नत है और इराक़ अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान घायल जवानों को राहत पहुंचाने एवं बचाने में उसकी हवाई क्षमता काफ़ी कारगर साबित हुई थी. इसके बावज़ूद, पेंटागन आगे की तैयारियों में जुटा हुआ है और पिछले कुछ वर्षों से अपने सैन्य चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षित कर रहा है, ताकि भविष्य में ऐसे किसी युद्ध में घायल सैनिकों को ज़ल्द से ज़ल्द मदद पहुंचाई जा सके. अमेरिका की डिफेंस हेल्थ एजेंसी इसके लिए सैन्य चिकित्सा कर्मियों के प्रशिक्षण में कई नई-नई चीज़ों को जोड़ रहा है, ताकि घायल सैनिकों को इलाज के लिए युद्ध के मैदान से सुरक्षित निकालने में विशेषज्ञता हासिल हो सके. चीन की बात करें तो पीएलए अगर किसी लंबे युद्ध में फंसती है, तब इसका चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर भी बुरा असर पड़ सकता है. चीन द्वारा सूचना युद्ध को प्रमुखता देने की दूसरी वजह यह है कि राष्ट्रपति जिनपिंग ने रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में चल रहे टकराव के दौरान वैश्विक स्तर पर देशों एवं लोगों के अलग-अलग रुख से काफ़ी कुछ सीखा है. रूस-यूक्रेन युद्ध की बात की जाए, तो इसमें रूस वैश्विक स्तर पर अलग-थलग सा पड़ गया है, जबकि हमास-इजराइल टकराव की बात करें, तो पूरी दुनिया में फिलिस्तीन को भरपूर समर्थन मिला है और उसको लेकर सहानुभूति भी लगातार बढ़ रही है. पश्चिमी देशों में जिस प्रकार से फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं, उससे भी यह स्पष्ट हो जाता है. इन वाकयों से शी जिनपिंग को यह सीख मिली है कि लंबे समय तक चलने वाले युद्धों के दौरान वैश्विक स्तर पर लोगों तक अपने पक्ष को सही तरीक़े से पहुंचाना और उनके विचारों को अपने मुताबिक़ बदलना बेहद अहम है.

 चीन द्वारा सूचना युद्ध को प्रमुखता देने की दूसरी वजह यह है कि राष्ट्रपति जिनपिंग ने रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में चल रहे टकराव के दौरान वैश्विक स्तर पर देशों एवं लोगों के अलग-अलग रुख से काफ़ी कुछ सीखा है.

लेकिन सच्चाई यह है कि चीन ने सूचना युद्ध को लेकर अपनी इस नई रणनीति पर पहले से ही अमल करना शुरू कर दिया है. फिलीपींस के विदेश मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि दक्षिण चीन सागर में समुद्री विवाद को लेकर चीन दुष्प्रचार कर रहा है और इस मुद्दे पर फिलीपींस की जनता को गुमराह कर रहा है, साथ ही उसके अंदरूनी मामलों में भी दख़ल दे रहा है. फिलीपींस सरकार के मुताबिक़ चीन द्वारा उसकी नौसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी और एक चीनी डिप्लोमेट के बीच कथित बातचीत की जो ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी की गई है, उसका मकसद सिर्फ़ भ्रम फैलाना है. फिलीपींस सरकार का कहना है कि चीन ऐसा करके सेकेंड थॉमस शोल को लेकर झूठा नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहा है और यह जताने का प्रयास कर रहा है कि सेकेंड थॉमस शोल विवाद पर दोनों देशों के बीच एक अनौपचारिक समझौता हुआ था.

 

आगे की राह 

 

चीन के प्रचीन युद्ध रणनीतिकार सुन त्ज़ु ने युद्ध के दौरान दूसरों तक अपने नज़रिए और विचारों को पहुंचाने के लिए ड्रम घंटा-घड़ियाल को यानी ज़ोर-शोर से अपने पक्ष को सामने रखने को एक अहम हथियार बताया था. गौरतलब है कि चीन द्वारा सूचना सहायता फोर्स की स्थापना का निर्णय अमेरिका द्वारा वीडियो-शेयरिंग ऐप टिकटॉक पर पाबंदी लगाने की क़वायद के बाद लिया गया है. दरअसल, अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, ऐसे में अब चीनी मूल की कंपनी को इस ऐप के स्वामित्व को वापस लेना होगा. क्या इसका मतलब यह है कि पीएलए अब सूचना युद्ध में ज़्यादा दिलचस्पी लेगी?

 

जिस प्रकार से शी जिनपिंग ने अपने सामरिक दृष्टिकोण में सूचना युद्ध को तरजीह दी है और इससे जुड़ी रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने का आह्वान किया है, उसने भारत के सामने भी नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. वर्ष 2020 में हुए गलवान संघर्ष के बाद भारत ने देश में चीन के असर को कम करने के लिए तमाम क़मद उठाए हैं और टिकटॉक सहित कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन चीनी समाचार एजेंसियों और भारतीय मीडिया के बीच ख़बरें साझा करने के समझौते अभी भी बरक़रार हैं और यह कहीं कहीं परेशानी का सबब बने हुए हैं.


कल्पित मानकीकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.

 सत्यम सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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