Author : Oommen C. Kurian

Published on Mar 30, 2020 Updated 0 Hours ago

सक्रिय रूप से टेस्ट, संक्रमण वाले इलाक़ों की पहचान करके वायरस को ख़त्म करने के लिए कठोर क़दम उठाना ही भारत का जवाब होगा.

टेस्ट करें या न करें- भारत कैसे आगे बढ़े?

16 मार्च 2020 को पत्रकारों से बात करते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने साफ़ किया कि गैर-ज़रूरी दहशत से परहेज करने के लिए कोविड-19 के कम टेस्ट करने की रणनीति बनाई गई है. उसी दिन बाद में ICMR ने भी टेस्टिंग का आंकड़ा जारी किया. 17 मार्च तक भारत ने 11623 लोगों के 12513 सैंपल टेस्ट किए. 19 मार्च को सुबह 10 बजे तक भारत ने 12426 लोगों के 13316 सैंपल टेस्ट किए और टेस्ट का आंकड़ा रोज़ाना 1000 की रफ़्तार से बढ़ रहा है. ICMR के मुताबिक़ 10000 सैंपल से ज़्यादा प्रतिदिन की अनुमानित टेस्टिंग क्षमता के साथ सिर्फ़ एक छोटे से हिस्से का इस्तेमाल फिलहाल किया जा रहा है.

भारत जैसे पैसे की कमी से जूझ रही स्वास्थ्य प्रणाली के लिए कोविड-19 जैसी वायरल बीमारी जो बिना रोकथाम के तेज़ी से फैल सकती है और बुजुर्गों और दूसरी बीमारी से जूझ रहे लोगों को मार सकती है, ये हालात ठीक नहीं हैं. इस बात की उम्मीद ज़्यादा है कि भारत में कोरोना वायरस के कम मामले आने की वजह कम टेस्टिंग है और वायरस कितनी तेज़ी से और कहां तक फैला है इसका पता बाद में चलेगा.

ये देखते हुए कि भारत में महामारी अभी भी दूसरे चरण में है, इस बात की ज़रूरत है कि टेस्टिंग, आइसोलेशन और संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाना हमारी कोशिशों का अहम हिस्सा होना चाहिए. टेस्टिंग के साथ-साथ सामाजिक दूरी और हाथ धोने के उपाय हमारी व्यापक कोशिशों में होना चाहिए. भारत के बेहद सीमित स्वास्थ्य सुविधा की क्षमता को देखते हुए ट्रांसमिशन की कड़ी को तोड़ना अत्यंत महत्वपूर्ण है. टेस्टिंग की रणनीति को व्यापक बनाने के पीछे ठोस दलीलें हैं. भारत में फिलहाल उन्हीं लोगों के टेस्ट हो रहे हैं जिन्होंने विदेश यात्रा की है या जो कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों के संपर्क में आए हैं और उनमें कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं. कोरोना के ख़िलाफ लड़ाई में प्राइवेट लैबोरेटरी को न्यौता देकर टेस्ट को व्यापक करने का फ़ैसला कुछ दिनों में लिया जा सकता है.

अगर भारत ने बुजुर्ग मरीज़ों या दिल, सांस और निमोनिया के गंभीर मरीजों को टेस्ट करना शुरू किया होता और इनमें कोरोना संक्रमण की पुष्टि होती तो ये संभव है कि इससे दहशत फैलती. छोटे-मोटे लक्षण वाले लोग भी अस्पताल जाकर टेस्ट और इलाज कराने के लिए भीड़ लगा देते. इसकी वजह से अस्पतालों में ही वायरस के फैलने की शुरुआत हो जाती और इसका शिकार बुजुर्ग और बीमार लोग बनते.

भारत शायद इस मामले में सही है कि यहां ज़्यादा टेस्ट करने की रणनीति नहीं अपनाई गई है क्योंकि बिना तैयारी के ऐसा करने पर दहशत फैल सकती है. अगर भारत ने बुजुर्ग मरीज़ों या दिल, सांस और निमोनिया के गंभीर मरीजों को टेस्ट करना शुरू किया होता और इनमें कोरोना संक्रमण की पुष्टि होती तो ये संभव है कि इससे दहशत फैलती. छोटे-मोटे लक्षण वाले लोग भी अस्पताल जाकर टेस्ट और इलाज कराने के लिए भीड़ लगा देते. इसकी वजह से अस्पतालों में ही वायरस के फैलने की शुरुआत हो जाती और इसका शिकार बुजुर्ग और बीमार लोग बनते. इबोला जैसी महामारी के दौरान भी कई उदाहरण हैं जब चेचक और मलेरिया जैसी बीमारी वाले लोग भी स्वास्थ्य सुविधा के चरमराने की वजह से मर गए.

ऐसी कई कहानियां पहले से हैं जहां कोरोना के छोटे-मोटे लक्षण वाले लोग कोविड-19 के टेस्ट के लिए अलग-अलग दिन कम-से-कम तीन बड़े अस्पताल गए लेकिन इसके बावजूद उन्हें लौटा दिया गया. टेस्ट कराने की इस आपाधापी की वजह दहशत है लेकिन पहले से भीड़भाड़ वाले अस्पतालों में वायरस के लक्षण वाले लोगों का भीड़ लगाना त्रासदी को बुलाने की तरह है. अस्पताल के भीतर ज़्यादा जोखिम वाले लोगों को संक्रमण से बचाने की सख़्त ज़रूरत है. व्यापक टेस्टिंग से ये जोखिम भी है कि ग़लत निगेटिव और पॉज़िटिव केस सामने आएंगे. ग़लत निगेटिव रिपोर्ट आने से बीमारी फैलेगी और ग़लत पॉज़िटिव रिपोर्ट से भी बीमारी फैलेगी.

हम अभी ये नहीं जानते कि भारत के भीतर कितने इलाक़ों में वायरस स्थानीय स्तर पर फैल रहा है क्योंकि ICMR की ओर से बहुत कम रैंडम सैंपल की जांच की गई है. लेकिन हम ये जानते हैं कि भारत के ज़्यादातर हिस्सों में वायरस अभी भी फैलने के चरण में है

दूसरी तरफ़ टेस्टिंग रणनीति को व्यापक नहीं बनाने का मतलब होगा कि वायरस के छोटे-मोटे लक्षण वाले लोग जोखिम वाले मरीज़ों को कोरोना फैलाते रहेंगे, उस वक़्त तक जब तक कि संक्रमित लोग बहुत ज़्यादा न हो जाएं और जिसका नतीजा लोगों के नुक़सान के रूप में होगा. इस दो तरफ़ा परेशानी से निपटना तभी संभव है जब लोगों को शिक्षित किया जाए, उन्हें भरोसे में रखा जाए और इसी बीच टेस्टिंग क्षमता को बढ़ाया जाए. हम अभी ये नहीं जानते कि भारत के भीतर कितने इलाक़ों में वायरस स्थानीय स्तर पर फैल रहा है क्योंकि ICMR की ओर से बहुत कम रैंडम सैंपल की जांच की गई है. लेकिन हम ये जानते हैं कि भारत के ज़्यादातर हिस्सों में वायरस अभी भी फैलने के चरण में है जहां इसे प्रभावशाली तरीक़े से रोका जा सकता है और एक-एक संदिग्ध मरीज़ की जांच करके, उसके संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान और उसे अलग-थलग करके और अगर उनमें लक्षण हैं तो उनकी जांच करके वायरस के फैलाव को रोका जा सकता है. शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन लोगों के डर को कम करेगा और आक्रामक टेस्टिंग रणनीति के हालात तैयार करेगा.

पत्रकारों को ICMR ने जो बताया उसके मुताबिक़ भारत पहले से ही उस तरफ़ बढ़ रहा है जहां ज़्यादा मामलों की जांच होगी. अभी के मुताबिक़ यात्रियों और कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों के संपर्क में आने वालों समेत जिन लोगों में वायरस के लक्षण नहीं हैं, उन्हें घर में अलग-थलग रखा जाएगा और जैसे ही उनमें वायरस के लक्षण दिखेंगे उनका टेस्ट किया जाएगा. भारत में पहले से ही 72 लैबोरेटरी हैं और हफ़्ते के आख़िर तक 49 लैबोरेटरी और काम करने लगेगी. इसके अलावा NABL से मान्यता प्राप्त 51 प्राइवेट लैबोरेटरी को भी इसमें शामिल किया जा रहा है. ये भी साफ़ किया गया है कि टेस्टिंग किट इसमें कोई बाधा नहीं है.

हालांकि, अधिकारी दावा कर रहे हैं कि सिर्फ़ 10 फ़ीसद टेस्टिंग क्षमता का इस्तेमाल वर्तमान में हो रहा है लेकिन सरकारी क्षेत्र की लैबोरेटरी के कागज़ी दावों और वास्तविक क्षमता को लेकर कुछ चिंताएं हैं. टेस्टिंग को लेकर राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े नियमित रूप से नहीं बताए जा रहे हैं सिर्फ़ कुछ शुरुआती आंकड़े जारी किए जा रहे हैं. केरल ऐसा राज्य है जो टेस्टिंग और दूसरे मानदण्डों के आंकड़े रोज़ बताता है. केरल के टेस्टिंग आंकड़ों को देखकर साफ़ लगता है कि मार्च के दूसरे हफ़्ते से आगे रोज़ाना टेस्ट के आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई है.

चिंता की बात ये है कि पिछले मामले (जो सैंपल टेस्ट किए गए और जिनके नतीजे मालूम नहीं है का अंतर) दो हफ़्तों के दौरान तेज़ी से बढ़े हैं. 1 मार्च को पिछले मामले सिर्फ़ 15 के क़रीब थे जो कि 8 मार्च को बढ़कर 50 से ज़्यादा हो गए और 17 मार्च तक ये बढ़कर चिंताजनक 650 तक पहुंच गए. ये सरकारी लैबोरटरी के टेस्ट करने की क्षमता के दायरे की तरफ़ इशारा करता है और ये भी बताता है कि इस काम में प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल किया जाए और तुरंत टेस्टिंग की क्षमता में बढ़ोतरी हो. फर्ज़ी ख़बरों और उसकी वजह से लोगों के बीच दहशत पैदा होने से परहेज करने के लिए साफ़-साफ़ आंकड़े जारी करने की ज़रूरत है.

ये बेचैन करने वाला समय है. कुछ हफ़्तों तक क़रीब-क़रीब एक भी नया केस रिपोर्ट नहीं होने के बाद मार्च में भारत में नियमित तौर पर कोविड-19 के मामले सामने आ रहे हैं और ये आंकड़ा 166 पर पहुंच गया है जिनमें से तीन की मौत हो गई है. कोरोना वायरस की मीडिया कवरेज बढ़ने और शेयर बाज़ार के गिरने के साथ डर और दहशत कायम होने वाला यह माहौल बन रहा है. कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हर तरह की राजनीतिक प्रणाली वाली सरकारों के अजेय होने के दावों का पर्दाफ़ाश किया है. ऐसा लग रहा है कि चीन में कोरोना वायरस के मामले कम हो रहे हैं जबकि दुनिया के बाक़ी हिस्से में क़रीब-क़रीब सभी मामले और मौतें सामने आ रही हैं. लेकिन ज़्यादातर देश चीन की तरह हालात को संभाल नहीं सकते जहां मानव अधिकार के लिए कोई सम्मान नहीं है. सक्रिय रूप से टेस्ट, संक्रमण वाले इलाक़ों की पहचान करके वायरस को ख़त्म करने के लिए कठोर क़दम उठाना ही भारत का जवाब होगा.

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