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Published on Jul 14, 2023 Updated 0 Hours ago
साज़िशकारी ख़तरा: चीन और पाकिस्तान का रणनीतिक आपसी सहयोग

चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग व्यापक और गहरा है. यह संभावना कम ही है कि चीन और पाकिस्तानी के सैन्य संबंधों पर पाकिस्तान में जारी राजनैतिक और आर्थिक उथल-पुथल का कोई असर पड़ेगा. चीन और पाकिस्तान के आपसी सहयोग की प्रगाढ़ता चीन के पूर्व विदेश मंत्री और अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के विदेशी मामलों के आयोग के कार्यालय (OFAC) के निदेशक वांग यी के बयान से साफ़ हो जाती है जिन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान में चल रहे भारी घरेलू संकट के बावजूद बीजिंग पाकिस्तान की संप्रभुता, अखंडता, स्थिरता और एकता बनाए रखने के लिए दृढ़ता से उसके साथ है. पीपल्स रिपब्लिकन आर्मी (पीएलए) का शीर्ष नेतृत्व और केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) को नहीं लगता कि मौजूदा संकट द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगा. मई 2023 में पाकिस्तानी नौसेना प्रमुख अमजद खान नियाज़ी के दौरे के दौरान, चीनी रक्षा मंत्री ली शांगफू ने ज़ोर देकर कहा था कि सैन्य सहयोग द्विपक्षीय संबंध के मूल में है. उन्होंने कहा, “दोनों सेनाओं के आपसी सहयोग को नए क्षेत्रों में ले जाने, सहयोग के नए उच्च स्तर बनाने पर काम करना चाहिए ताकि वह सभी तरह के खतरों और चुनौतियों का सामना करने की अपनी क्षमता को बढ़ा पाएं और दोनों देशों के साथ ही क्षेत्र के सुरक्षा हितों को मिलकर बनाए रख सकें. “पाकिस्तान में जारी राजनैतिक और आर्थिक संकट के बीच चीन का हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान के साथ ज़िम्मेदारी साझा करने के बारे में सोचना दुस्साहरपूर्ण लग सकता है. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन के लिए पाकिस्तान तेल और गैस संपन्न अरब की खाड़ी (पीजी) तक पहुंच के लिए आवश्यक और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति दर्ज करवाने की योजना के लिए अनिवार्य है.

चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग व्यापक और गहरा है. यह संभावना कम ही है कि चीन और पाकिस्तानी के सैन्य संबंधों पर पाकिस्तान में जारी राजनैतिक और आर्थिक उथल-पुथल का कोई असर पड़ेगा.

बेशक चीन-पाकिस्तान की रणनीतिक साझीदारी की मज़बूती निरंतर बनी हुई है. उदाहरण के लिए, माओ ज़ेदोंग के शासनकाल में हुई सांस्कृतिक क्रांति (सीआर) के दौरान मिडिल किंगडम के नेता के रूप में, माओ के नेतृत्व ने बाहरी दुनिया से संपर्क वस्तुतः पूरी तह से खत्म कर दिया था. फिर भी चीन ने जिस एकमात्र देश के साथ आधिकारिक कूटनीतिक संबंध बनाए रखे थे वह पाकिस्तान था. उसके बाद से बीजिंग और रावलपिंडी दोनों के संबंध उत्तरोत्तर तेज़ी से विकसित हुए हैं और आजकल वे भारत को एक मज़बूत चुनौती देने वाली जोड़ी बने हुए हैं.

चीन ने 1980 में परखे जा चुके डिज़ाइन सीधे पाकिस्तान को देकर न सिर्फ़ पाकिस्तानी परमाणु हथियार कार्यक्रम को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि इसने पाकिस्तान को एम-9 और एम-11 जैसी बैलिस्टिक मिसाइल की आपूर्ति भी की. परमाणु हथियारों और मिसाइलों के प्रसार की चीन की इन निर्लजज्तापूर्ण हरकतों ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को कई गुना बढ़ा दिया. चीन-पाकिस्तानी सहयोग इस परमाणु और मिसाइल साझेदारी को और मज़बूत कर रहा है जिसका विस्तार पारंपरिक सैन्य जुड़ाव से लेकर अंतरिक्ष और मिसाइल रक्षा (एमडी) तक है. बाद के दोनों क्षेत्रों यानी कि अंतरिक्ष और एमडी पर विशेष ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है.

अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग

चीन-पाकिस्तान की सांठ-गांठ अंतरिक्ष क्षेत्र में खुफ़िया जानकारी, निगरानी और टोह लेने (आईएसआर) के साथ ही उपग्रह नेविगेशन तक में है. बीजिंग सालों से पाकिस्तान को अंतरिक्ष अन्वेषण, विज्ञान और अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण में तो सहयोग दे ही रहा है, चीन ने 2013 से पाकिस्तान को अपने स्वदेशी बाइडॉ सैटेलाइट नेविगेशन (सैटनैव) प्रणाली में भी शामिल कर लिया है, जो अमेरिका निर्मित ग्लोबल पोज़ीशनिंग सैटेलाइट (जीपीएस) नेटवर्क का चीनी समकक्ष है. 2020 में, चीनी उपग्रह नेविगेशन कार्यालय (सीएसएनओ) ने बाइडॉ से संबद्ध लगातार चलने वाले रेफ़रेंस स्टेशन (सीओआरएस) को पाकिस्तान में स्थापित करने पर सहमति दे दी. अंतरिक्ष-जनित आईएसआर क्षेत्र में इस सहयोग से पाकिस्तानी मिसाइलों की पूरे भारत में लक्ष्य को भेदने की सटीकता में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी होगी. संक्षेप में कहें तो, बाइडॉ सैटनैव की ताकत से रावलपिंडी की अपने दुश्मन के सैन्य ठिकानों पर सटीकता से हमला करने की क्षमता में वृद्धि होनी चाहिए और होगी. बाइडॉ प्रणाली से चीनी और पाकिस्तानी बलों के बीच अंतर-संचालनीयता (अंतिम उपयोगकर्ता के प्रयास के बिना, समन्वित तरीके से जुड़ने और संचार करने के लिए विभिन्न प्रणालियों, उपकरणों, अनुप्रयोगों या उत्पादों की क्षमता) को भी बड़े पैमाने पर बढ़ाएगी. और भी डरावनी बात यह है कि चीन ने हाल ही में पाकिस्तान को एसएलसी-18 रडार प्रणाली की आपूर्ति की है.

अब पाकिस्तान न सिर्फ़ भारत की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं पर नज़र रख सकता है बल्कि एलईओ में भारतीय उपग्रहों की चाल का सही-सही अनुमान लगाने की क्षमता भी उसके पास आ गई है.

यह डिजिटल तक़नीक से लैस एक ऐक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (एईएसए) है जो पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में सैटेलाइट्स के साथ ही बैलिस्टिक मिसाइलों को ढूंढेगा, उनका पीछा करेगा और पहचान करेगा और यह माना जाता है कि यह अपनी तरह का पहला ऐसा एईएसए रडार है जो ज़्यादा बड़े दायरे और कम आवृत्ति (लो फ़्रीक्वेंसी) पर काम कर सकता है. इस रडार प्रणाली की सबसे महत्वपूर्ण बात इसका लोचनीय होना है जिसकी वजह से यह अपने ट्रैकिंग के दायरे को सिकोड़ सकता है और उसका विस्तार कर सकता है. अब तक भारत इस मामले में आगे था कि यह पूरे पाकिस्तान में मिसाइलों और अन्य सैन्य आवाजाही पर पूरी तरह नज़र रख सकता था और उनका पता लगा सकता था, अब पाकिस्तान न सिर्फ़ भारत की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं पर नज़र रख सकता है बल्कि एलईओ में भारतीय उपग्रहों की चाल का सही-सही अनुमान लगाने की क्षमता भी उसके पास आ गई है. एसएलसी-18 रडार से प्राप्त डाटा का इस्तेमाल न सिर्फ़ पाकिस्तान करेगा बल्कि यह उपयोग करने के लिए चीन को भी दिया जाएगा. इससे भी चिंताजनक बात यह है कि चीनी सरकार के इस फ़ैसले से पता चलता है कि बीजिंग के पास न सिर्फ़ नवीनतम तक़नीकों का विकास करने की क्षमता है बल्कि इसे वह उन देशों को दे सकता है जिन्हें चीन की सरकार (पीआरसी) मित्र देश मानती है. एसएलसी-18 चीन द्वारा विकसित की गई ऐसी उन्नत तक़नीक है जो पाकिस्तान और इसके प्रमुख रणनीतिक संरक्षक के बीच गहरे गठजोड़ को दर्शाती है. अंतरिक्ष सहयोग के अलावा चीन और पाकिस्तान ने एमडी (मिसाइल रक्षा) के क्षेत्र में भी एक सुविधाजनक समझौता किया है.

चीन-पाकिस्तान की मिसाइल रक्षा क्षेत्र में सांठ-गांठ

दो साल पहले, पाकिस्तान सेना (पीए) ने चीन उत्पादित वायु रक्षा (एडी) प्रणाली एचक्यू-9/पी यानी हाई-टू-मीडियम एयर डिफ़ेंस सिस्टम सरफ़ेस टू एयर मिसाइल (एचएमएडीएसएएम) प्रणाली खरीदी. एच9-9/पी, जिससे पाकिस्तान की आसमान से संभावित खतरों से मुकाबला करने की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है, ने भारत के सबसे बड़े दो पड़ोसियों की कपटपूर्ण संधि से पैदा होने वाले एक और ख़तरे को सामने ला दिया है. यह पाकिस्तान की “कॉम्प्रेहेन्सिव लेयर्स इंटीग्रेटिड एयर डिफ़ेंस” (सीएलआईएडी)” का हिस्सा है. कुछ रिपोर्टों के अनुसार, यह एस-300 का चीनी संस्करण है या कम से कम इसे लंबी दूरी वाले रूसी मूल के एस-300 सर्फेस टू एयर मिसाइल (एसएएम) की तरह माना जाता है. पहले ऐसा माना जा रहा था कि यह इंटर-सर्विस पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) की मदद से 100 किलोमीटर (किमी) की दूरी तक मिसाइल और विमान दोनों को उड़ा सकता है, इसके बारे में बढ़ा-चढ़ा कर यह दावा भी किया गया था कि इसमें “एक गोली से ढेर करने की संभावना” भी है, लेकिन एचक्यू-9/पी में संभवतः सिर्फ़ 100 किमी तक स्थिर-पंख वाले विमानों को रोक पाने की क्षमता है और इतनी दूरी तक लक्ष्य को भेद सकने वाले रडार क्रॉस सेक्शन (आरसीएस) के बारे में अभी पूरी जानकारी सामने नहीं आई है.

भारत को न सिर्फ़ अपनी मिसाइल शक्ति में विभिन्न किस्मों को शामिल करना होगा बल्कि संख्या बल में भी दोनों देशों से मज़बूत होना होगा.

इसमें कोई शक नहीं कि भारत को एसएलसी-18 को निष्क्रिय करने की क्षमता विकसित करनी होगी और चीन से मुकाबला करने के लिए उसके बराबर की क्षमता का विकास करना होगा. भारत को न सिर्फ़ अपनी मिसाइल शक्ति में विभिन्न किस्मों को शामिल करना होगा बल्कि संख्या बल में भी दोनों देशों से मज़बूत होना होगा. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और राजनीति के संकट में होने के बावजूद, मौजूदा घरेलू अशांति अस्थाई है, चीन-पाकिस्तान की रणनीतिक सांठ-गांठ चिरस्थाई है.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम में सीनियर फेलो हैं

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