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पिछले एक दशक के दौरान चीन की आर्थिक समस्याओं, घरेलू स्तर पर कर्ज़दारी और बाहरी आलोचनाओं ने BRI को नया आकार दिया है. इस तरह चीन को अमेरिका के एक विकल्प के रूप में खड़ा करने में मदद की है.
पिछले दिनों बीजिंग में संपन्न तीसरा बेल्ट एंड रोड फोरम (BRF) पहले दशक में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के काम-काज और आने वाले समय में इसकी राह की समीक्षा के लिए एक अच्छा अवसर था. अब तक आयोजित तीन फोरम अपने-आप में BRI की प्रगति के मापदंड हैं. 2017 में आयोजित पहले BRF में 29 देशों के नेता शामिल हुए. 2019 में शामिल देशों का आंकड़ा बढ़कर 37 हो गया लेकिन इस बार केवल 23 देशों के नेता शामिल हुए. एक हद तक ये बदलाव मौजूदा समय के भू-राजनीतिक रुझानों और BRI के सामने मौजूद चुनौतियों को दर्शाता है.
ये साल BRI की परिकल्पना की 10वीं सालगिरह भी है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में BRI की सोच को आगे बढ़ाया था जिसे अंत में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नाम दिया गया और सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट एवं 21वीं शताब्दी का समुद्री सिल्क रोड इसके भाग थे.
ये साल BRI की परिकल्पना की 10वीं सालगिरह भी है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में BRI की सोच को आगे बढ़ाया था जिसे अंत में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नाम दिया गया और सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट एवं 21वीं शताब्दी का समुद्री सिल्क रोड इसके भाग थे. इसमें अब डिजिटल सिल्क रोड को भी जोड़ दिया गया है. शुरुआत में BRI के निवेश, जिसका अनुमान अभी 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, का ज़ोर बुनियादी ढांचा था. सरकारी स्वामित्व वाले चीन के बैंकों और कंपनियों ने दुनिया भर में बिजली के प्लांट, रेलवे, हाईवे, पोर्ट, टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर और स्मार्ट सिटी के लिए पैसे का इंतज़ाम और निर्माण किया.
लेकिन इस प्रक्रिया में कई लोगों ने चीन के स्वार्थी हितों को बढ़ावा, भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन और ग्लोबल साउथ के ग़रीब देशों के लिए कर्ज़ का जाल तैयार करने के लिए BRI की आलोचना की. लेकिन पिछले दिनों आयोजित BRF में उपस्थिति इस बात का संकेत देती है कि जहां तक ग्लोबल साउथ का सवाल है, BRI चीन के उदय एवं उसकी वैश्विक महत्वाकांक्षा का संकेत और उन देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनी हुई है.
हालांकि, पिछले दशक के दौरान चीन की आर्थिक समस्याओं और घरेलू स्तर पर कर्ज़दारी के साथ-साथ बाहरी आलोचना ने BRI को नया आकार दिया है. तीसरे BRF से ठीक पहले चीन के द्वारा जारी श्वेत पत्र में ज़्यादातर आलोचनाओं का समाधान करने की कोशिश की गई है जिसे इस वाक्य में समझाया गया है: “BRI समावेशी और सतत विकास की तरफ खुले, हरित और साफ सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है. भ्रष्टाचार के लिए इसमें ज़रा सी भी जगह नहीं है और ये स्थिर एवं अच्छी गुणवत्ता वाले विकास को बढ़ावा देती है.”
2021 में जारी एक रिपोर्ट में ऐडडेटा ने इस शताब्दी के पहले दो दशकों में चीन के विदेशी विकास वित्त कार्यक्रम के “असाधारण विस्तार” के बारे में बताया है. 85 अरब अमेरिकी डॉलर की सालाना प्रतिबद्धता के साथ चीन अमेरिका और दूसरी बड़ी शक्तियों की तुलना में 2:1 के अनुपात में खर्च कर रहा था. इस अध्ययन में 18 वर्षों के दौरान 165 देशों में 843 अरब अमेरिकी डॉलर के 13,427 प्रोजेक्ट पर विचार किया गया.
एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष ये था कि कर्ज़ एक मुद्दा था और “चीन के कर्ज़ का बोझ रिसर्च संस्थानों, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों या पहले समझी गई निगरानी ज़िम्मेदारियों वाले अंतर-सरकारी संगठनों की तुलना में काफी ज़्यादा था.” कर्ज़ की समस्या BRI की आलोचना में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. इसके बावजूद कुछ मायनों में इसे ज़रूरत से ज़्यादा बताया गया है. जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के द्वारा चीन अफ्रीका रिसर्च इनिशिएटिव पर एक रिपोर्ट से भी इसका संकेत मिलता है. इसमें एक ऐसे चीन का कैरिकेचर चित्र नहीं है जो अलग-अलग देशों को कर्ज़ के जाल में फंसने के लिए मजबूर कर रहा है ताकि उनका शोषण किया जा सके. कई मामलों में चीन के कर्ज़दाताओं के लालच और भ्रष्टाचार ने ज़रूरत से ज़्यादा परियोजनाओं को तैयार करने की योजना बनाई.
आलोचना के बावजूद इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि BRI चीन और उसके साझेदारों के लिए फायदेमंद रही है. द हिंदू में कहा गया है कि “BRI में शामिल होने वाले देशों में चीन के साथ निवेश और व्यापार में उछाल देखा गया है.”
इनमें से कई मुद्दों पर 2019 में आयोजित दूसरे बेल्ट एंड रोड फोरम में विचार किया गया था और चीन की सरकार ख़ुद भी BRI के साथ जुड़ी बड़ी परियोजनाओं के बारे में समस्याओं को लेकर जागरूक हुई. इसके नतीजतन BRI के नज़रिए में बदलाव शुरू हुआ. चीन ने ये समझना शुरू कर दिया कि चीज़ों को बदलने की ज़रूरत है. नया नारा था “छोटा और सुंदर” और इसके साथ ही कम निवेश एवं अधिक लाभ वाली परियोजनाओं पर ज़ोर दिया जाने लगा. एक और घटनाक्रम है नया “डिजिटल सिल्क रोड” जो टेलीकॉम और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान देता है जिससे चीन की उन कंपनियों को फायदा होगा जो चीन के उपकरणों पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों का सामना कर रहे हैं.
विदेशी संबंध से जुड़े टास्क फोर्स पर परिषद की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में कोविड-19 ने एक बदलाव को प्रेरित किया जिसकी वजह से ये सुनिश्चित हुआ कि BRI “एक छोटी, किफायती और तकनीक केंद्रित उपक्रम बन सकती है.” लेकिन ये पहल कहीं जाने वाली नहीं है. फूडान यूनिवर्सिटी के ग्रीन फाइनेंस डेवलपमेंट सेंटर की पिछले दिनों की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना की औसत लागत 2022 के 617 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस साल की पहली छमाही में घटकर 392 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि “2018 के चरम (पीक) की तुलना में परियोजना की औसत लागत 48 प्रतिशत कम हो गई है.”
आलोचना के बावजूद इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि BRI चीन और उसके साझेदारों के लिए फायदेमंद रही है. द हिंदू में कहा गया है कि “BRI में शामिल होने वाले देशों में चीन के साथ निवेश और व्यापार में उछाल देखा गया है.” इसने श्वेत पत्र का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि 2013 और 2022 के बीच BRI के साझेदार देशों के साथ चीन का व्यापार सालाना 6.4 प्रतिशत की दर से बढ़कर 19.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर जबकि कुल निवेश 380 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तीसरे BRF के चीफ गेस्ट थे. ये इस बात का संकेत है कि यूक्रेन में युद्ध के बीच रूस को चीन आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन मुहैया करा रहा है.
इसकी वजह से शायद यूरोप के देशों की हाज़िरी कम देखी गई. पिछली बार 2019 में चेक गणराज्य, ग्रीस, सर्बिया, स्विट्ज़रलैंड, बेलारूस, रूस और इटली के नेता BRF में शामिल हुए थे. इस बार सिर्फ हंगरी के विक्टर ओर्बन और सर्बिया के अलेक्ज़ेंडर वुचिच BRF में शामिल हुए. पुतिन की मौजूदगी शायद एक समस्या हो सकती है लेकिन शी जिनपिंग की प्रमुख परियोजना को लेकर एक हद तक यूरोप के देशों में अविश्वास भी है. इसका संकेत इटली के द्वारा BRI से अलग होने की योजना से भी मिलता है.
तीसरे BRF के उद्घाटन के दौरान शी जिनपिंग के भाषण की थीम थी कि कैसे चीन और दुनिया का विकास “एक साझा भविष्य में” जुड़ा है.
लेकिन ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) के नेताओं की अच्छी मौजूदगी थी. इनमें से कई हमारे क्षेत्र के नेता हैं जैसे कि श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, इंडोनेशिया के जोको विडोडो, थाईलैंड के श्रेथा थाविसिन, पाकिस्तान के अनवारुल हक काकड़, पापुआ न्यू गिनी के जेम्स मरापे और केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो.
तीसरे BRF के उद्घाटन के दौरान शी जिनपिंग के भाषण की थीम थी कि कैसे चीन और दुनिया का विकास “एक साझा भविष्य में” जुड़ा है. इस मायने में BRI चीन का दरवाजा दुनिया के बड़े हिस्से के लिए खोल रही थी लेकिन अंतिम लक्ष्य सिर्फ़ चीन का आधुनिकीकरण नहीं बल्कि पूरी दुनिया का आधुनिकीकरण था.
उन्होंने आठ कदमों के बारे में भी बताया जो BRI की नई दिशाओं के बारे में बताते हैं:
BRI को काफी आलोचना झेलनी पड़ी है, ख़ास तौर पर चीन की कंपनियों के कर्ज़ देने के तौर-तरीकों और कर्ज़ लेने वाले कुछ देशों में परियोजना के संदिग्ध फायदों की वजह से. फिर भी, कुल मिलाकर ये देखना मुश्किल नहीं है कि BRI की वजह से चीन को काफी बढ़त हासिल हुई है. ये बढ़त मुख्य रूप से दुनिया भर में अपने असर का विस्तार करने में मिली है और ये सिर्फ़ बंदरगाहों और रेलवे के ज़रिए ही नहीं बल्कि चीन को लेकर ग्लोबल साउथ के कई देशों के रवैये में भी दिखती है.
आज भू-राजनीति और समय ने BRI को चीन के व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण के साथ मिला दिया है जो कि वैश्विक विकास की पहल, वैश्विक सुरक्षा की पहल और वैश्विक सभ्यता की पहल के विचारों में समझाया गया है.
आज भू-राजनीति और समय ने BRI को चीन के व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण के साथ मिला दिया है जो कि वैश्विक विकास की पहल, वैश्विक सुरक्षा की पहल और वैश्विक सभ्यता की पहल के विचारों में समझाया गया है. ये दूसरे श्वेत पत्र से स्पष्ट है जिसे तीसरे BRF से पहले सितंबर में जारी किया गया था और जिसका शीर्षक है “साझा भविष्य का एक वैश्विक समुदाय: चीन के प्रस्ताव और कदम”. चीन अब साफ तौर पर “निष्पक्ष, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था” के लिए नियम तैयार करने में ख़ुद को अमेरिका और पश्चिमी देशों के एक विकल्प के रूप में पेश कर रहा है और इस उद्देश्य के लिए BRI उसका पसंदीदा साधन बनी हुई है.
मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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