Published on Jun 09, 2017 Updated 0 Hours ago

जीएसटी को लेकर पूरी दुनिया की निगाहे भारत पर हैं, ऐसे में नि बातों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है।

दुनिया में जीएसटी की जयकार, लेकिन हम रहें सतर्क
स्रोत : अरुण जेटली/फेसबुक

जीएसटी परिषद जब शनिवार (3 जून) को अपनी बैठक में गहन विचार-विमर्श शुरू करेगी तो उसे इस तथ्‍य को अवश्‍य ही ध्‍यान में रखना चाहिए कि भारतीय कर प्रणाली में आमूलचूल बदलाव के तहत जल्‍द ही लागू किए जाने वाले वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। दरअसल, समूचा विश्‍व यह मानकर चल रहा है कि आगे चलकर भारत में आर्थिक विकास को नई रफ्तार देने में जीएसटी का ही सबसे अहम योगदान होगा। अत: ऐसे में जीएसटी परिषद को केंद्र एवं राज्यों के बीच की राजकोषीय उलझनों या टैक्‍स दरों में संशोधन से परे देखने की जरूरत है। परिषद को इसके बजाय एक ज्‍यादा बड़े लक्ष्य पर अपना ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए और वह लक्ष्‍य यह है कि जीएसटी को कुछ इस तरह से लागू किया जाए जिससे कि उद्यमियों को काफी सहूलियत हो और फि‍र इसके जरिए उनकी गतिशीलता का भरपूर लाभ उठाया जाए। जीएसटी को कुछ इस तरह से लागू न किया जाए जिससे कि उद्यमियों की गतिशीलता ही कुंद हो जाए और फि‍र उस वजह से आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाए। मालूम हो कि विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के कारण आर्थिक विकास को पहले ही करारा झटका लग चुका है। हालांकि, गनीमत की बात यह है कि आर्थिक विकास अब पटरी पर आ गया है।

चूंकि हम भारतीय तर्क-वितर्क करने में काफी अच्‍छे हैं, इसलिए 1 जुलाई से लागू होने वाली कराधान की जीएसटी प्रणाली पर चिंता जताना एवं यहां तक कि उस पर संशय जताना भी बिल्‍कुल जायज है। हालांकि, इसके साथ ही विश्‍व भर में जीएसटी को लेकर जताए जा रहे व्‍यापक उत्‍साह की अनदेखी कतई नहीं की जानी चाहिए। मार्च 2017 में पेश किए गए एक पेपर में अर्थशास्त्री ईवा वान लीमपुट और एलेन ए. वियंसेक ने यह अनुमान जताया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर जीएसटी का सकारात्‍मक असर 3.1 फीसदी से लेकर 4.2 फीसदी तक की वृद्धि के रूप में होगा, जो इसे दहाई अंकों के अपेक्षित जादुई स्‍तर पर भी ले जाएगा।

 उन्‍होंने फेडरल रिजर्व सिस्टम के संचालक मंडल की बैठक में पेश अपने पेपर ‘भारत में विकास पर जीएसटी का असर‘ में लिखा है, “हमने यह पाया है कि जीएसटी से समग्र तौर पर भारत में कल्याणकारी माहौल बढ़ने की उम्मीद है और इस लिहाज से इसके एक समावेशी नीति होने का अनुमान है कि इससे सभी भारतीय राज्यों में कहीं ज्‍यादा कल्याण सुनिश्चित होगा।” उन्‍होंने यह भी लिखा है, “इसके अलावा मॉडल से यह भी पता चला है कि जीएसटी से बुनियादी अनुमानों के तहत वास्‍तविक जीडीपी में 4.2 फीसदी की बढ़त होगी, जो विनिर्माण के उत्पादन में बढ़ोतरी की बदौलत संभव होगी। हमें यह भी पता चला है कि समस्‍त टैक्स दरों के अंतर्गत वस्‍तुओं का जो वितरण किया गया है वह विकास के नजरिए से खास मायने रखता है। चूंकि अब और ज्‍यादा वस्‍तुओं को उच्‍च टैक्‍स दरों के दायरे में ला दिया गया है, अत: ऐसे में वास्तविक जीडीपी और विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में बढ़त कम हो जाएगी।”

यह कैसा मॉडल है? यहां तक कि सबसे वफादार समर्थक और अभिलाषी लोग भी इस आंकड़े को रेंज से बाहर एवं विचित्र पाएंगे। हालांकि, केवल यही जोड़ी जीएसटी की जयजयकार नहीं कर रही है। विश्व बैंक ने 29 मई को जारी और इस पेपर को उद्धृत करने वाले अपने भारत विकास अपडेट में इस बात का उल्‍लेख किया है कि जीएसटी से भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक स्‍वरूप प्रदान करने और फि‍र इसके जरिए आर्थिक विकास में वृद्धि होगी। रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.2 फीसदी रहेगी, जो वित्त वर्ष 2017 में 6.8 फीसदी आंकी गई है। रिपोर्ट में यह कहा गया है, “विकास अनुमानों में संशोधन विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के असर और निवेश में बेहतरी के संयोजन को प्रतिबिंबित करता है जिसे अपेक्षा से कहीं ज्‍यादा दीर्घकालिक पाया गया है।” रिपोर्ट में इस बात का भी उल्‍लेख किया गया है, “निजी निवेश में बढ़ोतरी की बदौलत वित्‍त वर्ष 2020 तक जीडीपी वृद्धि दर 7.7 फीसदी हो जाएगी। निजी निवेश में बढ़ोतरी दरअसल सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में हालिया वृद्धि और निवेश माहौल में सुधार से संभव हुई है।”

जीएसटी प्रणाली आर्थिक विकास के लिए उत्प्रेरक साबित होगी, इसका एक कारण यह है कि देश के भीतर व्यापार के मार्ग में बाधाएं दूर हो जाएंगी और लेन-देन एवं उनके जरिए करों पर बेहतर ढंग से नजर रखी जा सकेगी। इसमें यह भी कहा गया है, “ऐसे विक्रेता, जो जीएसटी श्रृंखला (चेन) में नहीं हैं, वे इनपुट क्रेडिट का दावा करने में असमर्थ होंगे और ऐसे में वे पंजीकृत विक्रेताओं (वेंडर) के मुकाबले नुकसान में रहेंगे। चूंकि क्रेडिट श्रृंखला केवल तभी काम करेगी जब सभी लेन-देन बाकायदा दर्ज किए जाएंगे, अत: जीएसटी लागू होने के बाद आर्थिक लेन-देन का बेहतर ढंग से खुलासा हो सकेगा, जिसका प्रत्यक्ष कर के संग्रह पर भी जोरदार सकारात्मक असर पड़ सकता है।”

विश्व बैंक में भारत के कंट्री डायरेक्‍टर जुनैद कमाल अहमद के मुताबिक, जीएसटी चार चैनलों के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था में एक परिवर्तनकारी और विकास-प्रेरक की भूमिका निभाएगा। सबसे पहले, यह कारोबारी प्रक्रियाओं, निवेश और लाभप्रदता को प्रभावित करेगा। दूसरा, यह बिजनेस करने की लागत को कम कर देगा। तीसरा, यह सभी राज्यों में माल ढुलाई की रसद (लॉजिस्टिक्‍स) लागत को कम कर देगा। चौथा, निजी निवेश बढ़ सकता है क्योंकि वस्‍तुओं एवं सेवाओं के बीच का अंतर समाप्त हो जाएगा और सेवाएं मुहैया कराने में एक इनपुट के रूप में इस्तेमाल होने वाले पूंजीगत सामान पर भी इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा। अहमद ने कहा, “भारत अब भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और जीएसटी के प्रति उसके नजरिए से इसे काफी बढ़ावा मिलेगा।”

हालांकि, इसके साथ ही उन्‍होंने विकास की राह में मौजूद चार खतरों के बारे में भी आगाह किया। एक, वैश्विक परिदृश्‍य में निरंतर अनिश्चितता, जिसमें बढ़ता वैश्विक संरक्षणवाद भी शामिल है। दो, कॉरपोरेट ऋण के अत्यधिक बोझ, बढ़ते एनपीए, जरूरत से ज्‍यादा क्षमताओं और नियामकीय एवं नीतिगत चुनौतियों के रूप में निजी निवेश की बाधाएं। तीन, यदि निजी निवेश में कमी आती है, तो यह भारत की संभावित विकास दर पर नकारात्मक असर डालेगी। चार, कच्‍चे तेल एवं अन्‍य जिंसों की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी के कारण नकारात्मक कारोबारी शर्तों के रूप में झटके लग सकते हैं।

इनमें से दो जोखिमों या खतरों का वास्‍ता भारत से ही है, अत: इनका निराकरण निश्चित तौर पर आंतरिक रूप से ही कर दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, जीएसटी एक समाधान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएसटी को सुगमतापूर्वक क्रियान्वित करने से “आर्थिक गतिविधियां काफी बढ़ जाने की संभावना है।” टैक्स संबंधी जानकारी के प्रतिनिर्देश (क्रॉस-रेफरेंसिंग) और टैक्स संग्रह के बेहतर प्रचलन के जरिए केंद्र एवं राज्यों के राजस्व विभागों के बीच बेहतर सहयोग होने से विकास में तेजी आएगी। यह इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने के मामले में जीएसटी प्रणाली में शामिल सभी कंपनियों के हित में है। यह बिक्री में निरंतरता लाता है। 18 मई को श्रीनगर में हुई आम सहमति ने विकास के राजनीतिक पथ का निर्माण कर दिया है। जीएसटी परिषद को अब इस बात के लिए सावधान रहना चाहिए कि जीएसटी की प्रक्रिया कहीं उसके उद्देश्य से बड़ी न हो जाए और इसके साथ ही टैक्‍स से जुड़ी नौकरशाही द्वारा उद्यमों की प्रशासनिक आजादी को कुंद कर देने के कारण विकास के लाभ कम न हो जाएं। इसका असर, उदाहरण के लिए, कारोबार में आसानी सुनिश्चित करने के लिहाज से कैसा पड़ता है, इस बारे में हमें वर्ष 2019 तक ही पता चल पाएगा

अन्‍य दो जोखिमों में शामिल वैश्विक अनिश्चितताएं जैसे कि भू-राजनीतिक जोखिम या बढ़ता संरक्षणवाद अब एक सामान्‍य घटनाक्रम का हिस्सा है जिसे विभिन्‍न देश अब सहजता के साथ स्‍वीकार कर रहे हैं और इसके साथ ही उसकी उपेक्षा करना भी सीख रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बयानबाजी के बावजूद 18.6 ट्रिलियन डॉलर की यह अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण का साथ नहीं छोड़ेगी क्‍योंकि इसकी अपरिहार्यता से सभी वाकिफ हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भले ही अमेरिका द्वारा संभावित रूप से छोड़ी जा रही भूमिका को निभाने के लिए प्रयासरत हों, लेकिन इसके बावजूद 11.4 ट्रिलियन डॉलर की यह अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण के तहत केवल कुछ कार्यों को ही जारी रख पाएगी जिनमें छोटी अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करना एवं उसे बढ़ाना और अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए धन का उपयोग करना शामिल हैं। उदाहरण के लिए, चीन की सैन्य महत्वाकांक्षाएं जगजाहिर हैं। ‘ब्रेक्जिट’ को यदि छोड़ दें, तो यूरोपीय संघ के द्वार बिजनेस के लिए अब भी खुले हुए हैं, भले ही इसका मतलब फि‍लहाल चीन को अपनाना हो।

ऐसी स्थिति में भारत के लिए क्‍या खास है? अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, यहां विकास की गाथा जारी है। इसके वैश्विक आर्थिक आउटलुक अप्रैल माह 2017 में पिछले महीने कहा गया था, विश्‍व विकास दर वर्ष 2016 के 3.1 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2017 में 3.5 फीसदी और वर्ष 2018 में 3.6 फीसदी हो जाने की उम्मीद है। वहीं, दूसरी ओर भारत की आर्थिक विकास दर वर्ष 2017 में 7.2 फीसदी और वर्ष 2018 में 7.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। यही नहीं, प्रमुख सुधारों जैसे कि “हाल ही में मंजूरी प्राप्‍त राष्ट्रव्यापी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने” के फलस्‍वरूप मध्‍यम अवधि में भारत की आर्थिक विकास दर के और ज्‍यादा बढ़कर 8 फीसदी के उच्‍च स्‍तर को छू जाने की उम्‍मीद है।

जीएसटी सुधार राजनीतिक दलों, विचारधाराओं और केंद्र-राज्यों के बीच तनातनी से परे है। यह संभवत: स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा सुधार है जो न केवल आर्थिक है, बल्कि राजनीतिक भी है। इसे लागू करने की प्रक्रिया चाहे जो भी हो, लेकिन यह न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक प्रगति के लिए अब भी विकास की एक चमकदार चिंगारी है। हालांकि, यह भी माना जा रहा है कि समग्र रूप से डिजिटल टैक्स प्रणाली को अपनाने, लागू करने से संबंधित समस्याओं और दमनकारी टैक्‍स नौकरशाही जैसी मुश्किल समस्याओं से जूझे बगैर जीएसटी अस्तित्‍व में नहीं आएगा, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को कुछ झटके दे सकती हैं। अत: भले ही विश्‍व भर में विशेषज्ञों की यह राय हो कि जीएसटी विकास का एक अचूक उपाय या साधन है, लेकिन हमें अभी जमीन पर ही रहना चाहिए एवं इसको लागू किए जाने पर करीबी नजर रखनी चाहिए और इसके साथ ही यह उम्‍मीद करनी चाहिए कि जीएसटी परिषद 3 जून को अपनी बैठक में इस पर अपना प्रशासनिक ध्यान केंद्रित करेगी, जिसकी सख्‍त जरूरत है।

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