Author : Ramanath Jha

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Published on May 21, 2024 Updated 0 Hours ago

दोनों घोषणापत्रों में शहरी समस्याओं के संबंध में काफी प्रशंसनीय दावे किए गए है, लेकिन इनमें वित्तीय मामलों में यूएलबीएस की भूमिका और कुछ लंबित शहरी सुधार के मुद्दों को संबोधित नहीं किया गया है.

वर्ष 2024 के दो मुख्य चुनावी घोषणापत्रों में शहरों को लेकर साझा किये गये विचार!

चुनावी घोषणापत्र  किसी भी राजनीतिक दल द्वारा मतदाताओं के सामने, चुनाव से पहले रखा जाने वाला एक चुनावी दस्तावेज़ होता है. इस  घोषणापत्र में राजनीतिक दल जनता को ये बताते हैं कि उनकी पार्टी के आने वाले दिनों में किस तरह के लक्ष्य, उद्देश्य, नीति और कार्यक्रम हैं. यह एक कागज़ी लेखा-जोखा होता है, जो पार्टी एवं मतदाताओं दोनों ही के लिए एक संदर्भ दस्तावेज की तरह काम करता है. मतदाता अक्सर  विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों को पढ़ने के बाद उसका अवलोकन करते हैं और उसके आधार पर अपनी एक राय कायम करते हैं कि किस पार्टी अथवा दल को चुनकर सरकार में लाये. उनका फैसला अक्सर उस पार्टी के पक्ष में जाता है जो जनता की राजनीतिक सोच आकांक्षाओं को पूरा करने का वादा करती है. इसलिए, किसी भी सटीक एवं सही निर्णय तक पहुँचने के लिए मतदाताओं के लिये ये ज़रूरी हो जाता है कि वो  इन घोषणापत्रों का ठीक-ठीक एवं बारीक अध्ययन करें. हालांकि, चुनावी घोषणापत्रों में दर्ज आश्वासन, भारत में कानूनी तौर पर लागू करना ज़रूरी नहीं समझा जाता है, और अदालत ने इसका फैसला पूरी तरह से जनता पर छोड़ रखा है

मतदाता अक्सर  विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों को पढ़ने के बाद उसका अवलोकन करते हैं और उसके आधार पर अपनी एक राय कायम करते हैं कि किस पार्टी अथवा दल को चुनकर सरकार में लाये.

यह लेख, भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों (भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के घोषणापत्रों में, भारतीय शहरों के लेकर जो विचार व्यक्त किये गये हैं उनका सीमित स्तर पर समीक्षा करता है. इसके पीछे का उद्देश् सिर्फ़ ये जानना और समझता है कि भविष्य में अगर इन दोनों में कोई पार्टी अगर सत्ता में आती है तो, उनके पास शहरों के विकास के लिए क्या योजनाएं हैं. ये लेख इसी तस्वीर को स्पष्ट करना चाहती है. इस लेख में इन चुनावी घोषणापत्रों में  शहरों के लिए किस तरह के प्रावधान और योजनाएं रखी गई हैं उनके बारे में  विशेष रूप से बात की गई है

 

कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र (न्याय पत्र)

न्याय पत्र (एनपी)’ के शीर्षक से छपे 2024 के आम चुनाव के छपे कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में, ग्रामीण एवं शहरी विकास को एक ही विषय के भीतर रखा गया है. इस शीर्षक के तहत 10 बिंदुओं की चर्चा की गई है, जिनमें छह बिंदुओं पर मुख्य रूप से शहरों से जुड़े मुद्दों की बात की गई है और दो बिंदु ऐसे हैं जिनमें ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए साझा उद्देश्यों को एक साथ जोड़ा गया है और उनकी चर्चा की गई है.   

एनपी या न्याय पत्र एक ऐसे शहरी रोज़गार योजना का वादा करती है जो शहरी ढांचों के पुनर्निर्माण एवं नवीनीकरण मेंशहरी गरीबोंके लिए रोज़गार सृजन की गारंटी देता है. दूसरा, वो, “मौजूदा शहरों के विवेकहीन तरीके से हो रहे विस्तार पर रोक लगाने और और इन मौजूदा शहरों के नज़दीक ही एक दूसरे जुड़वां शहर बनाने की बात करता है,”परंतु नए एवं पुराने शहर के बीच एक स्पष्ट नो-कंस्ट्रक्शन ज़ोन होगा जो दोनों शहरों को विभाजित करेगा. इसके अलावा शहरों का संचालन और बेहतर हो सके इसके लिये, उसके मेयर, महापौर या चेयरमैन का चुनाव कम से कम पांच साल तक करने की बात है. इसके अलावा ये भी सुनिश्चित किया जाएगा कि जो भी व्यक्ति मेयर या चेयरमैन के पद पर आता है, उसके साथ उसकी अपनी एक पूर्ण परिषद भी होगी जिसके पास अगले पांच सालों के लिये सभी वित्तीय, प्रशासनिक और कार्यकारी फैसले लेने और लागू करने का अधिकार होगा

एनपी या न्याय पत्र एक ऐसे शहरी रोज़गार योजना का वादा करती है जो शहरी ढांचों के पुनर्निर्माण एवं नवीनीकरण में ‘शहरी गरीबों’ के लिए रोज़गार सृजन की गारंटी देता है.

इसके अलावा, परिवहन सुविधाओं को बेहतर किया जाएगा. साथ हीग्रामीण क्षेत्रों और उनके  नज़दीकी शहरों के बीच के यातायात संपर्क और परिवहन की सुविधा को और अधिक प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि गांव के निवासी भले ही शहरों में काम करने के लिये आयें पर उनका निवास स्थल गांव में ही बना रहेकांग्रेस पार्टी के मुताबिक वो शहरों को गांवों से जोड़ने के लिये एक सुचारु और सुरक्षित मल्टी मॉडल अर्बन पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा लाएगी. न्यायपत्र में शहरों में आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक को भी उजागर किया गया है और इसका मानवीय समाधान ढूँढे जाने का आश्वासन दिया गया है. अंत में पार्टी ने भरोसा दिया है कि वो राज्यों को इस बात के लिये राज़ी कर लेगी कि वो संविधान के 74वें संशोधन को अपने-अपने राज्यों में औपचारिक तौर पर लागू करे

 

भाजपा का घोषणापत्र (संकल्प पत्र)

संकल्प पत्र शीर्षक वाली भाजपा के घोषणापत्र में, ‘शहरों में रहने की सुगमतानामक एक हिस्सा है. दल का दृष्टिकोण (विज़न) विश्व स्तरीय शहरी ढांचा उपलब्ध कराना एवं टिकाऊ  जीवन को प्रोत्साहन देना है. इसमें कुल 13 बिंदु शामिल किये गये हैं. पहले हिस्से में, रियल इस्टेट इंडस्ट्री को (रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट) एक्ट (RERA) को मज़बूत करके, उसकी मदद से लोगों को कम लागत वाली आवासीय सुविधा देने की कोशिश करना है. साथ ही उन्हें कम कीमत और सरल अनुमोदन के ज़रिये घर का मालिकाना हक़ दिलवाने की भी बात है.   

उनका दूसरा लक्ष्य,“देश के सभी मेट्रो शहरों के नज़दीक नए सैटेलाइट टाउनशिपबसाना है. ये कर पाने के लिये ज़रूरी सभी तरह के सुधार एवं नीतिगत पहलों को मुकम्मल करना उनकी प्राथमिकता में शामिल होगा. पार्टी मिले-जुले इस्तेमाल और ट्रांज़िट ओरियेंटेड विकास को भी प्रोत्साहन देना चाहती है जिससे सभी प्रमुख शहरों में पाइपलाइन द्वारा गैस कनेक्शन के वितरण का विस्तार हो पाये.  

भाजपा का संकल्प पत्र एक “एकीकृत महानगरीय परिवहन प्रणाली” का निर्माण करना चाहती है, जो आवा-जाही के समय को और कम कर सके एवं “यातायात प्रबंधन और ट्रांसपोर्ट दक्षता में एआई तकनीक़ का सफल इस्तेमाल कर सके.”

भाजपा का संकल्प पत्र एकएकीकृत महानगरीय परिवहन प्रणालीका निर्माण करना चाहती है, जो आवा-जाही के समय को और कम कर सके एवंयातायात प्रबंधन और ट्रांसपोर्ट दक्षता में एआई तकनीक़ का सफल इस्तेमाल कर सके.” भाजपा अगर सरकार में आती है तो वह अपने इलेक्ट्रिक बसों के बेड़े की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ वॉटर सिक्योर सिटीज़ यानी पानी से सुरक्षित रहने वाले शहरों का सृजन करेगी. बीजेपी शहरी इलाकों को नया जीवन देने के लिये नई परिकल्पना करेगी और केंद्र-राज्य-शहरों के बीच साझेदारी की सहायता से लंबे समय तक प्रभावी रहने वाले बुनियादी परियोजनाओं की शुरुआत करेगी.

जीवन शैली की गुणवत्ता के पहलू को ध्यान में रखते हुए, पार्टी ने ये आश्वासन दिया है कि वो शहरों में नये हरित क्षेत्रों के विकास, जल निकायों को दोबारा जीवित करने, और शहरों को और भी ज्य़ादा टिकाऊ बनाने के लिए ज़रूरी प्राकृतिक क्षेत्रों का विकास करेगी. संकल्प पत्र में खुले लैंडफिल को खत्म करने, डिजिटल शहरी भूमि रिकॉर्ड प्रणाली के गठन एवं विशाल कन्वेंशन सेंटर बनाने का भी वादा है. पार्टी, राज्य सरकारों और शहरों के साथ मिलकर काम करते हुए उन्हें कानून, उप-कानून और शहरी योजना प्रणाली के सृजन में मदद करने, और शहरों के स्कूलों में ज़रूरी नये शहरी पाठ्यक्रम तैयार करने में प्रोत्साहित करने की इच्छुक है.  

 

घोषणापत्रों के शहरी वादों कीसमीक्षा’ 

 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अगर सरकार में आती है तो उसके द्वारा लॉन्च किये जाने वाला शहरी रोज़गार योजना, जो कि शहरी गरीबों पर केंद्रित है एक स्वागत योग्य पहल होगा. उसने ये प्रेरणा राजस्थान सरकार की उस पुस्तक से लिया हुआ लगता है जिसमें साल 2022 में वहां की राज्य सरकार ने शहरी रोज़गार गारंटी योजना की शुरुआत की थी. इस स्कीम के तहत शहरी गरीबों को एक साल में कम से कम 100 दिनों का रोज़गार दिये जाने का प्रावधान था.  

सच तो ये है कि कांग्रेस पार्टी का न्यायपत्र सही मायनों में मौजूदा बड़े शहरों का जिस  विवेकहीन तरीके से विस्तार हो रहा है उसपर रौशनी डालने का काम कर रही है. हालांकि, एक मौजूदा शहर के निकट किसी जुड़वा शहर के निर्माण एवं दोनों के बीच एक नो कंस्ट्रक्शन ज़ोन बना कर,देश के पश्चिम और दक्षिणी क्षेत्र में बहुत तेज़ शहरीकरण, और कम शहरी इलाकों में काफी कम शहरीकरण होने के जोख़िम हैं. निश्चित तौर पर, जहां तक संभव हो, शहरीकरण का देशभर में प्रसार किया जाना चाहिए. इसके साथ ही, यूएलबी एवं पारास्टेटल की कम क्षमता को ध्यान में रखते हुए, अवैध निर्माण पर नकेल कसने के लिये, बीच में बसाये गये  हरित और नो कंस्ट्रक्शन ज़ोन का रख-रखाव हो पायेगा इसमें संदेह है.   

 “मुख्य कार्यकारी के रूप में मेयर या महापौरके पद को मज़बूत करने के विचार को व्यापक समर्थन प्राप्त है. हालांकि,अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि भारतीय संविधान में इसे अनिवार्य बनाए जाने को लेकर उचित संशोधन नहीं किए जाने तक, केंद्र सरकार इसे किस प्रकार से लागू करेगी, इस पर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है. 74वें संशोधन में ऐसा कोई भी प्रावधान शामिल नहीं है. ग्रामीण-शहरी संपर्क एवं मल्टी-मॉडल अर्बन पब्लिक ट्रांसपोर्ट एक चर्चित उद्देश्य है, लेकिन ये अब तक लागू नहीं किये जा सके हैं. आश्चर्यजनक रूप से एवं सुखद तौर पर, न्याय पत्र अब आवारा कुत्तों के आतंक और उनसे होने वाले ख़तरे को बख़ूबी पहचान रही है, शहरों की सड़कों से इनकी नामौजूदगी एक स्वागत योग्य  कदम होगा. इस सच्चाई को भली भांति जानते हुए कि 74वें संशोधन की मूल भावना को राज्यों से वैधानिक स्वीकृति नहीं मिली है, कांग्रेस पार्टी ने अपने न्याय पत्र में ये आश्वासन दिया है कि सरकार में आने पर वे राज्य सरकारों को इसे इसके मूल रूप में लागू करने के लिये राज़ी कर लेगी. हालांकि, ये थोड़ा मुश्किल लगता है क्योंकि कांग्रेस शासित प्रदेशों के अलावा अन्य राज्यों ने इस पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया है.

भाजपा द्वारा किफ़ायती एवं सस्ते आवास को प्रोत्साहित किए जाने का वादा वाकई प्रशंसनीय है. हालांकि, अकेले RERA अधिनियम को मज़बूत करने भर से वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे. इसके लिये ज़रूरी है कि पहले ज़मीनों के इस्तेमाल और किराया नियंत्रण पर राज्यों द्वारा सुधार की एक पूरी प्रक्रिया लागू की जाये. न्याय पत्र भी मेट्रो शहरों के नज़दीक सैटेलाइट टाउनशिप के निर्माण को प्रोत्साहित करती है और हूबहू वही बातें संकल्प पत्र में भी दोहराया गया है. जिस कारण उनपर भी वही चेतावनी लागू होती है जो न्याय पत्र के उद्देश्यों के लिये कहा गया है. सभी प्रमुख शहरों तक गैस-पाइपलाइन का प्रसार ज़रूर एक स्वागत योग्य कदम है, और इसी तरह से, महानगरीय परिवहन प्रणाली में एआई तकनीक़ का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक बसों का विस्तार भी स्वागत योग्य कदम है.   

जल सुरक्षित शहरों पर प्रकाश डालना, अपशिष्ट जल का उपचार करना, केन्द्र, राज्य/प्रदेशों एवं शहरों के बीच बुनियादी ढांचों संबंधी साझेदारी, खुले प्राकृतिक स्थानों एवं जल निकायों के साथ शहरों को पुनर्जीवित करने की योजना, खुले लैंडफिलों को समाप्त करना, और डिजिटल अर्बन लैंड/भूमि रिकॉर्ड की प्रणाली विकसित करना, शहरी प्रशासन के लिए काफ़ी अहम है. राज्यों को अपने यहां के नियम-क़ायदों कानूनी प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने के लिये प्रेरित करने, कन्वेंशन सेंटर बनाने, और शहरी इलाकों के स्कूली पाठ्यक्रमों में सुधार करने की योजना को भी काफी अच्छी और प्रशंसनीय प्रतिक्रिया मिली है.  

दुर्भाग्यवश, दोनों ही घोषणापत्रों मे दशकों से विचाराधीन शहरी सुधार की एक पूरी श्रृंखला  का अभाव है, जो शहरों के कायाकल्प के लिये काफी अहम हैं.

दुर्भाग्यवश, दोनों ही घोषणापत्रों मे दशकों से विचाराधीन शहरी सुधार की एक पूरी श्रृंखला  का अभाव है, जो शहरों के कायाकल्प के लिये काफी अहम हैं. ये वे सुधार योजनाएं थीं जो शहरी सुधार के केंद्र में थी और उनके होने से शहरी अर्थव्यवस्था भी बेहतर होती और शहरी नागरिकों को भी रहने के लिये बेहतरीन जगह मिल पाती. दोनों ही घोषणा पत्रों में शहरी स्थानीय  निकायों के वित्तीय और क्रियान्वयन संबंधी मसले पर चुप्पी सधी है. इसके अलावा इन शहरी योजनाओं और शासकीय सुधार के सुझावों में किसी शहरी शिक्षाविद या विचारक के विचारों को शामिल किया गया है. पर ये भी तय है कि, घोषणापत्र में सभी चरणों का विवरण नहीं दिया जा सकता है. हालांकि, शहरीकरण के उद्देश्यों को सटीक तरह से हासिल करने के महत्व को ध्यान में रखते हुए, अगर इन घोषणापत्रों में मौलिक संरचनात्मक सुधारों के बारे में कुछ शुरुआती जानकारी दी गई होती तो ये संकेत काफी उत्साहवर्धक होता. इसके बिना, शुरू किए जा रहे ऐसे कई पहलों को लेकर प्रतिकूल प्रतिक्रिया भी हो सकती है.  

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