Published on Sep 23, 2022 Updated 0 Hours ago

एक अनुशासित लोकतांत्रिक सरकार की तरफ़ म्यांमार की राह 2008 के संविधान की वजह से बाधाओं से भरी हुई है.

म्यांमार में लोकतंत्र की पहेली

जब हम दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मना रहे हैं, उस वक़्त ये सही समय है कि हम लोकतंत्र की स्थापना की तरफ़ म्यांमार के संघर्ष का विश्लेषण करें. लोकतंत्र की ओर म्यांमार के बदलाव के धीमे पांच साल के बाद म्यांमार एक बार फिर निरंकुश शासन के कब्ज़े में आ गया है. अनुभवहीन लोकतंत्र के रूप में लोकप्रिय म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य बग़ावत हुई क्योंकि तामदौ (म्यांमार की सेना) ने 2020 के उस चुनाव को मानने से इनकार कर दिया था जिसमें नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) की दूसरी बार शानदार जीत हुई थी. वैसे तो तामदौ ने बयान दिया है कि 2023 में नया बहुदलीय चुनाव होगा लेकिन इस प्रक्रिया का उद्देश्य एक ‘अनुशासित’ लोकप्रिय सरकार की स्थापना करना है जो सुव्यवस्थित होगी और जिस पर सेना का नियंत्रण होगा. इस तरह सत्ता चाहे किसी भी दल की हो लेकिन सत्ता पर सेना का कब्ज़ा बरकरार रहेगा.

सत्ता में बदलाव का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने अक्सर ये बयान दिया है कि लोकतंत्र के लिए सिर्फ़ अखंड, निष्पक्ष और नियमित चुनाव के ज़रिए चुनी गई नई सरकार आवश्यक नहीं है बल्कि लोकतंत्र को उतना समावेशी भी होना चाहिए. 

2016 में लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में आने से पहले म्यांमार पर पांच दशकों से ज़्यादा समय तक सैन्य शासन रहा है. सत्ता में बदलाव का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने अक्सर ये बयान दिया है कि लोकतंत्र के लिए सिर्फ़ अखंड, निष्पक्ष और नियमित चुनाव के ज़रिए चुनी गई नई सरकार आवश्यक नहीं है बल्कि लोकतंत्र को उतना समावेशी भी होना चाहिए. ख़ास तौर पर नये राजनीतिक नेताओं को सरकार चलाने के लिए पर्याप्त प्रभावशाली ताक़त होनी चाहिए.

अगर हम NLD सरकार की राह पर ग़ौर करें तो सत्ता में रहते हुए नागरिक सरकार ने सिस्टम के भीतर धीरे-धीरे वांछित बदलाव लाने के लिए सेना के साथ उपयुक्त संबंध बरकरार रखने की इच्छा जताई थी. NLD ने देश के भीतर जातीय संघर्षों के मामले में सेना की कार्रवाई को लेकर बहुत ज़्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी. इस मामले में रोहिंग्या का मुद्दा एक बड़ा उदाहरण था जहां NLD सरकार ख़ामोश बनी रही और जिस समय 10 लाख से ज़्यादा लोगों को म्यांमार छोड़ना पड़ा उस वक़्त किसी भी तरह की जातीय सफाई या नरसंहार नहीं होने का दावा करते हुए NLD सरकार ने इसे म्यांमार का आंतरिक मुद्दा बताया था. अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने आंग सान सू की के शासन  की गंभीर आलोचना की जिन्हें शांति के लिए नोबल पुरस्कार मिला था और जो मानव अधिकार की प्रबल समर्थक मानी जाती थीं. म्यांमार की स्थिति को बदलने की शक्ति उनके पास भले ही नहीं थी लेकिन वो उस वक़्त के हालात से बेहतर ढंग से निपट सकती थीं.

लोकतांत्रिक शासन की रुकावटें

नागरिक सरकार के पास शक्ति कम होने की एक बड़ी वजह 2008 के संविधान के द्वारा तय पूर्व शर्त थी. जब सैन्य सरकार ने 2003 में बहुदलीय चुनाव कराने और ‘अनुशासित लोकतंत्र’ लाने का निर्णय लिया तो उसने सबसे पहले ऐसा संविधान बनाने की कोशिश की जो सत्ता का संतुलन उसके पक्ष में रखने में मदद करे. मौजूदा संविधान के तहत म्यांमार की संसद में ग़ैर-निर्वाचित सैन्य अधिकारियों का 25 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है. संविधान सशस्त्र सेना के कमांडर-इन-चीफ को आपातकाल में संप्रभु शक्ति भी देता है. इसके तहत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शाखाओं के ऊपर नियंत्रण का अधिकार शामिल है. संविधान में संशोधन करना पेचीदा है क्योंकि अनुच्छेद 436 के कुछ खंडों के तहत किसी भी संशोधन के लिए उसके पक्ष में 75 प्रतिशत सदस्यों का वोट देना आवश्यक है. इस तरह NLD पार्टी के द्वारा अभी तक सैन्य नियंत्रण या शक्ति को कम करने के लिए संविधान में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जा सका था.

लोकतांत्रिक सरकार के सही ढंग से काम-काज को सुनिश्चित करने के लिए नागरिक सरकार और सेना के बीच संबंधों में बदलाव महत्वपूर्ण है लेकिन इस परिवर्तन की बुनियाद को सैन्य नेताओं ने शक्ति और अधिकार के दृष्टिकोण के साथ स्थापित किया है. इस तरह वो बदलाव के सिलसिले और परिणामों को नियंत्रित कर सकते हैं.

ये चुनौतियां उन देशों में विशेष तौर पर विकट और कठिन होती हैं जहां सैनिक शासन की विरासत मज़बूत होती है और जहां लोकतंत्र की तरफ़ बदलाव के दौरान सेना अपने लिए राजनीतिक और संस्थागत लाभ सुरक्षित कर सकती है.

बदलाव के दौरान एक लोकतांत्रिक सरकार के लिए चुनौती होती है सेना के ऊपर नागरिक नियंत्रण के लिए काम-काजी संस्थानों की स्थापना. ये चुनौतियां उन देशों में विशेष तौर पर विकट और कठिन होती हैं जहां सैनिक शासन की विरासत मज़बूत होती है और जहां लोकतंत्र की तरफ़ बदलाव के दौरान सेना अपने लिए राजनीतिक और संस्थागत लाभ सुरक्षित कर सकती है. इस तरह NLD के द्वारा संविधान में संशोधन या सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) में सफलतापूर्वक सुधार करने में नाकामी दिखाई दी. इसके अलावा लोकतांत्रिक नेतृत्व की कमियों और उसके केंद्रीकृत स्वभाव ने एक स्थिर लोकतंत्र की तरफ़ प्रगति को और भी कमज़ोर किया.

सैन्य बग़ावत के बाद का शासन

2021 की सैन्य बग़ावत के बाद सैन्य शासन की चालें और भी बलपूर्वक और हिंसक हो गई हैं. वैसे तो कार्यवाहक सरकार अगले साल लोकतांत्रिक बहुदलीय चुनाव कराने का दावा कर रही है लेकिन उसके कार्यकलाप दमनकारी निरंकुश शासन से भरे पड़े हैं. सैन्य सरकार का नियंत्रण म्यांमार पर दो स्तरों पर है. एक तरफ़ वो लोगों को नियंत्रित करने के लिए ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की वापसी की मांग करने वाले लोकतंत्र समर्थक और जातीय आंदोलनों को क्रूरता से कुचल रही है. इसके लिए प्रदर्शनकारियों का अपहरण किया जा रहा है, उन्हें हिरासत में रखा जा रहा है या उनकी हत्या की जा रही है.

दूसरे स्तर पर सैन्य सरकार प्रतिष्ठित लोकतांत्रिक नेताओं और दलों पर निगरानी रख रही है. इस दौरान कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया जा रहा है और जिस किसी भी दल से सैन्य सरकार को ख़तरा महसूस होता है, उसे भंग किया जा रहा है. आंग सान सू की और दूसरे प्रमुख नेताओं पर अलग-अलग तरह के आरोप लगा कर ये सुनिश्चित किया गया है कि वो अपने जीवन काल में जेल से बाहर न निकल पाएं. लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारना आम लोगों और विपक्ष में डर पैदा करने का एक और तरीक़ा है. इसके अलावा सबसे बड़े विपक्षी दल के साथ किसी भी तरह का संवाद या वार्ता करने के लिए तैयार नहीं होना और उसे आतंकी संगठन घोषित करना आसियान के द्वारा भेजे गए 5-सूत्रीय सर्वसम्मति का पालन करने से इनकार करना है.

अब सैन्य सरकार राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन से जुड़े क़ानून में बदलाव करने की योजना बना रही है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आगे होने वाले चुनाव में किसी एक दल को मदद नहीं मिले और भारी बहुमत मिलना असंभव हो जाए. ये संशोधन निश्चित तौर पर लोकतंत्र समर्थक दलों की भागीदारी को प्रभावित करेगा और इस तरह सत्ता का संतुलन सैन्य शासन के पक्ष में बना रहेगा. वर्तमान में संघीय चुनाव आयोग इस बात को लेकर चिंतित है कि सैन्य बलों और अलग-अलग जातीय दलों के बीच चल रहे संघर्षों के कारण मतदाताओं से जुड़ी बुनियादी जनसांख्यिकीय गतिविधियां समय पर पूरी नहीं हो पाएंगी. इस प्रकार एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और समय पर चुनाव कराना असंभव लगता है.

अब सैन्य सरकार राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन से जुड़े क़ानून में बदलाव करने की योजना बना रही है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आगे होने वाले चुनाव में किसी एक दल को मदद नहीं मिले और भारी बहुमत मिलना असंभव हो जाए. 

2008 के संविधान के अनुसार आपातकाल एक साल के लिए लागू किया जा सकता है और इसे दो बार छह-छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है. इसके बाद चुनाव कराना होगा. पिछले दिनों आपातकाल को दूसरी बार बढ़ाया गया था और इसकी अवधि फरवरी 2023 में पूरी होगी और आदर्श रूप में उसके छह महीने के भीतर चुनाव होना चाहिए. विडंबना ये है कि सेना के जनरल चुनाव को टालने के लिए राजनीतिक अस्थिरता का ज़िक्र मुख्य कारण के तौर पर कर रहे हैं.

म्यांमार में लोकतंत्र समय की ज़रूरत प्रतीत होता है लेकिन शासन में बदलाव पर अध्ययन करने वाले अलग-अलग विद्वानों का मानना है कि परिवर्तन तभी होता है जब सैन्य शासन अपने-आप लोकतांत्रिक प्रक्रिया की तरफ़ बदलाव की पहल करता है. वैसे तो नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) एक वास्तविक सरकार की तरह काम कर रही है जिसकी अपनी कैबिनेट और मंत्रालय है, जहां वो बाहरी मान्यता के बिना नीतियां, फंडिंग इत्यादि तैयार करती है लेकिन उसकी ज़्यादातर शक्तियां अप्रासंगिक हो जाती हैं.

जैसा कि महसूस किया जा सकता है, उदारवादी लोकतांत्रिक सरकार की तरफ़ मौजूदा राजनीतिक बैर के कारण एक नियंत्रित लोकतंत्र का शासन आ सकता है जहां सत्ता की शर्तें सैन्य शक्ति की तरफ़ झुकी रहेंगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.