Published on Feb 12, 2021 Updated 0 Hours ago

हर जोड़े- पृथ्वी-चंद्रमा और पृथ्वी-सूर्य- में लैग्रैंज बिंदु बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वो एक जगह से दूसरी जगह तक ऊर्जा पर कम लागत के साथ अंतरिक्ष यान या सामानों के आवागमन की इजाज़त देते हैं.

बाइडेन की अंतरिक्ष नीति में दिख रही है सैन्य ऊर्जा की कमी

उथल-पुथल भरे बदलाव के बाद नया-नवेला बाइडेन प्रशासन नई अंतरिक्ष नीति लेकर आया है. बाइडेन प्रशासन द्वारा घोषित इस नई अंतरिक्ष नीति में सेना पर साधारण ज़ोर दिया गया है. जहां तक अंतरिक्ष नीति की बात है तो कई मोर्चों पर बाइडेन ने अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से किनारा कर लिया है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि बाइडेन की अंतरिक्ष नीति में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक में निवेश को मंज़ूरी दी गई है जिसे ट्रंप ने साफ़ तौर पर ठुकरा दिया था और जिसको उन्होंने प्राथमिकता तो छोड़िए कभी चुनौती भी नहीं समझा. बाइडेन की अंतरिक्ष नीति में उस अध्ययन को भी शामिल किया गया है जिससे ये पता चलता है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम ख़राब हो रहा है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. ट्रंप की तरफ़ से की गई पहल के बावजूद बाइडेन प्रशासन में आर्टेमिस लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम को किसी तरह की दिक़्क़त की आशंका नहीं है. इस लूनर मिशन का मक़सद चांद पर पहली महिला और पहले पुरुष के उतरने के साथ-साथ चंद्रमा पर दक्षिणी ध्रुव की मौजूदगी को भी स्थापित करना है. इसे आर्टेमिस बेस कैंप कहा जाएगा. वैसे तो इस बात की उम्मीद कम है कि बाइडेन ट्रंप की अंतरिक्ष नीति को पूरी तरह नामंज़ूर कर देंगे लेकिन आर्टेमिस लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम का समय 2024, जो कि बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य था, से आगे बढ़कर संभवत: 2030 हो सकता है. भले ही चंद्रमा पर अमेरिका की वापसी अंतरिक्ष की खोज के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी हो और गहरे तौर पर अंतरिक्ष की खोज में शुरुआती क़दम हो.

बाइडेन की अंतरिक्ष नीति में उस अध्ययन को भी शामिल किया गया है जिससे ये पता चलता है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम ख़राब हो रहा है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है.

लेकिन बाइडेन प्रशासन की अंतरिक्ष नीति के सैन्य पक्ष की तरफ़ देखें तो इस बात का वास्तविक जोख़िम है कि ट्रंप प्रशासन के द्वारा शुरू की गई अमेरिकी स्पेस फोर्स (यूएसएसएफ) पूरी तरह भले ही ख़त्म न हो लेकिन उसे गहरा झटका लगेगा. पहले के प्रशासन की नीतियों से हटते हुए ट्रंप के द्वारा स्पेस फोर्स की स्थापना एक महत्वपूर्ण बदलाव था. इसकी स्थापना से लग रहा था कि स्पेस ऑपरेशन और मिशन के लिए नई तकनीक, क्षमता, सिद्धांत और रणनीति मिलेगी. अगर इन सभी काम को एक साथ किया जाए तो कम या औसत समय में इन्हें करना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है. लेकिन जैसा कि ब्लेडीन बोवेन ने सटीक ढंग से बताया, अमेरिकी स्पेस फोर्स की रूप-रेखा खींचने के बाद इसकी स्थापना का विरोध करने की ठोस वजह होनी चाहिए. बाइडेन प्रशासन में व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन पेस्की ने पूरी तरह वही किया: “वाह! स्पेस फोर्स. ये आज का हवाई जहाज़ है.” पेस्की ने राष्ट्रपति के हवाई जहाज़ एयर फोर्स वन के नये रंग को लेकर पहले पूछे गए सवालों से इसकी तुलना करते हुए कुछ चिड़चिड़े ढंग से जवाब दिया. रिपब्लिकन प्रतिनिधि माइकल वाल्ट्ज़ भी अपने जवाब में उसी तरह सख़्त थे. उन्होंने कहा, “ये बाइडेन प्रशासन के द्वारा चीन को गंभीरता से नहीं लेने का एक और उदाहरण है. इसके लिए प्रशासन स्पेस फोर्स के कर्मियों के शानदार काम की प्रतिष्ठा कम कर रहा है.” जैसा कि बोवेन ज़ोर देकर कहते हैं, आख़िरकार सेना को युद्ध लड़ने के साथ-साथ हर उस क्षेत्र और माहौल के बारे में सोचना होता है जिसमें युद्ध लड़े जाते हैं.

ब्लू वाटर नेवल फोर्स के मामले में अमेरिकी स्पेस फोर्स के ऑपरेशन का क्षेत्र काफ़ी ज़्यादा बढ़कर पृथ्वी की निचली कक्षा से लेकर चंद्रमा और उसके आगे तक हो जाएगा. अमेरिका का मक़सद ये सुनिश्चित करना है कि कोई देश चंद्रमा के ध्रुव या सामान्य तौर पर चंद्रमा की सतह पर दबदबा स्थापित नहीं करे. 

इसमें और भी ज़्यादा दिलचस्प बात ये है कि क्या यूएसएसएफ इतनी लचकदार बनी रहती है कि वो अमेरिकी के नीति निर्माताओं की मांगों से भरी काल्पनिक परीक्षा में पास हो पाती है या नहीं. ख़ास तौर पर वो परीक्षा जो अक्टूबर 2019 में एयर फोर्स स्पेस कमांड (एएफएससी) के तहत दिखी थी. अमेरिका के भीतर इस बात को लेकर बहस हो रही है कि स्पेस फोर्स को ब्लू वाटर नेवल फोर्स के समकक्ष बनाया जाए या ब्राउन वाटर नेवल फोर्स के समकक्ष. ब्लू वाटर नेवल फोर्स के मामले में अमेरिकी स्पेस फोर्स के ऑपरेशन का क्षेत्र काफ़ी ज़्यादा बढ़कर पृथ्वी की निचली कक्षा से लेकर चंद्रमा और उसके आगे तक हो जाएगा. अमेरिका का मक़सद ये सुनिश्चित करना है कि कोई देश चंद्रमा के ध्रुव या सामान्य तौर पर चंद्रमा की सतह पर दबदबा स्थापित नहीं करे. इस तरह चंद्रमा का क्षेत्र पृथ्वी से लेकर चंद्रमा के कक्ष और पांच लैग्रैंजियन बिंदु जो कि “संदर्भ में स्थायी जगह हैं” से लेकर चंद्रमा और पृथ्वी के बीच में हैं क्योंकि वो घूमते हैं. कम शब्दों में कहें तो जब सूर्य एवं पृथ्वी और पृथ्वी एवं चंद्रमा (जैसा कि पहले चित्र में दिखाया गया है) से समान मात्रा में केंद्र से दूर जाने वाला बल होता है तो चंद्रमा के सामने एल1 और पीछे एल2 के बीच की दूरी क़रीब 60,000 किलोमीटर होती है. ये पृथ्वी और सूर्य के बीच भी मौजूद होते हैं (जैसा कि दूसरे चित्र में दिखाया गया है) जो पांच अलग-अलग लैग्रैंज बिंदु भी दिखाते हैं. लेकिन सूर्य-पृथ्वी के दो लैग्रैंजियन बिंदु के मामले में वो पृथ्वी और सूर्य से 10-10 लाख मील दूर स्थिर होते हैं. लैग्रैंजियन बिंदु महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वहां बड़ी चीज़ें जैसे स्पेस स्टेशन समा सकते हैं. उदाहरण के लिए सूर्य-पृथ्वी का लैंग्रैंजियन बिंदु एल1 को लीजिए जहां सोलर और हेलियोस्फेरिक ऑब्ज़र्वेटरी (एसओएचओ) स्थित है और डीप स्पेस क्लाइमेट ऑब्ज़र्वेटरी एल2 पर है. इसके अलावा तीन अतिरिक्त लैग्रैंज बिंदु हैं लेकिन विज्ञान को अभी ये पता लगाना बाक़ी है कि एल3 की क्या उपयोगिता है. एल4 और एल5 के मामले में, जो कि काफ़ी स्थायी माने जाते हैं और जहां छोटे तारे और दूसरी खगोलीय चीज़ें जमा होती हैं, देखें तो ये अंतरिक्ष या कक्षा के भीतर नये इलाक़े के तौर पर काम कर सकते हैं क्योंकि ये पृथ्वी के नज़दीक हैं. इसी तरह पृथ्वी-चंद्रमा के एल1 और एल2 के मामले में, जो कि शून्य गुरुत्वाकर्षण के साथ सबसे महत्वपूर्ण लैग्रैंज बिंदु हैं, वहां आसानी से एक स्पेस स्टेशन स्थापित हो सकता हैं क्योंकि ये स्थायी हैं और वहां आपूर्ति ले जाने के लिए या मिशन के लिए लैंडिंग गियर की ज़रूरत नहीं होती. एल1 और एल2 पर ऊर्जा डिपो भी आसानी से स्थापित हो सकते हैं.

एवं चंद्रमा और पृथ्वी एवं सूर्य के बीच लैग्रैंजियन बिंदु दूसरे कारणों जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा की वजह से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसलिए अमेरिका नहीं चाहेगा कि कोई प्रतिस्पर्धी वहां दबदबा स्थापित करे. लेकिन आज इस मामले में एक प्रमुख प्रतिस्पर्धी- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) मौजूद है. लैग्रैंज बिंदु को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करने को लेकर चीन के पास बेहद महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं. हर जोड़े- पृथ्वी-चंद्रमा और पृथ्वी-सूर्य- में पांच लैग्रैंज बिंदु बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वो एक जगह से दूसरी जगह तक ऊर्जा पर कम लागत के साथ अंतरिक्ष यान या सामानों के आवागमन की इजाज़त देते हैं. पृथ्वी-चंद्रमा लैग्रैंजियन बिंदु पर वर्चस्व का मतलब है सैटेलाइट विरोधी सिस्टम “मज़बूत स्थिति” में रहेगा. पृथ्वी-सूर्य के जोड़े में पांच लैग्रैंजियन बिंदु के मामले में अमेरिका जैसे आधुनिक देश का मक़सद सौर प्रणाली के भीतरी हिस्से में वर्चस्व स्थापित करना होगा. अमेरिका के अंतरिक्ष रणनीति समुदाय के भीतर लैग्रैंजियन बिंदु के सैन्य महत्व के ऊपर चर्चा और बहस ख़ास बात नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि इसने हाल के दिनों में अहमियत हासिल की है बल्कि ये सिलसिला शीत युद्ध के समय से है.

यूएसएसएफ की स्थापना आंशिक पुष्टि मुहैया कराती है और इस बात का सबूत देती है कि यूएसएसएफ किसी दूसरे प्रतिस्पर्धी की चुनौती को रोकने के लिए तैयार है. ये प्रतिस्पर्धी साफ़ तौर पर चीन है जो पृथ्वी-सूर्य और पृथ्वी-चंद्रमा के बीच लैग्रैंज बिंदु तक इस तरीक़े से पहुंचना चाहता है जो अमेरिका और अंतरिक्ष के मामले में दूसरे कामयाब देशों के लिए नुक़सानदेह है.

शीत युद्ध ख़त्म होने और आज के बीच तकनीकी और वैज्ञानिक कामयाबी और तरक़्क़ी के अलावा चीन के उदय ने सैन्य अवसर और ख़तरे पैदा किए हैं. वास्तव में यूएसएसएफ की स्थापना आंशिक पुष्टि मुहैया कराती है और इस बात का सबूत देती है कि यूएसएसएफ किसी दूसरे प्रतिस्पर्धी की चुनौती को रोकने के लिए तैयार है. ये प्रतिस्पर्धी साफ़ तौर पर चीन है जो पृथ्वी-सूर्य और पृथ्वी-चंद्रमा के बीच लैग्रैंज बिंदु तक इस तरीक़े से पहुंचना चाहता है जो अमेरिका और अंतरिक्ष के मामले में दूसरे कामयाब देशों के लिए नुक़सानदेह है. इस समय ये साफ़ नहीं है कि चीन किसी तरह का नियंत्रण हासिल करने में कामयाब होगा या नहीं लेकिन अगर बाइडेन प्रशासन अंतरिक्ष में चीन की सैन्य महत्वाकांक्षा को कम करके आंकता है तो ये बहुत बड़ी मूर्खता होगी क्योंकि अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा चालू है.

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