Author : Harsh V. Pant

Published on May 22, 2019 Updated 0 Hours ago

कुल मिलाकर दांव बहुत ऊंचे लगे हैं, क्योंकि यह चीन और अमेरिका के बीच व्यापार और वैश्विक प्रभुत्व को लेकर चल रही खींचतान का हिस्सा है.

तेज़ होती व्यापार युद्ध की तपिश!

व्यापारिक मोर्चे पर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है. इसी कड़ी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में चीन की दिग्गज तकनीकी कंपनी हुआवे पर प्रतिबंध लगा दिया. ट्रंप के इस आदेश के बाद हुआवे के लिए अमेरिकी बाजार में परिचालन संभव नहीं होगा. ट्रंप की सख़्ती के पीछे यह वजह बताई जा रही है कि चीन अपनी इस दिग्गज कंपनी के माध्यम से व्यापक स्तर पर जासूसी करवाने के अलावा महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे तक अपनी पहुंच बना सकता है.

अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने हुआवे टेक्नोलॉजीज़ कंपनी और 70 अन्य कंपनियों को अपनी तथाकथित ‘एंटाइटी लिस्ट’ में डाल दिया है। इसके चलते चीनी कंपनी अमेरिकी सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना अमेरिकी कंपनियों से किसी तरह की तक़नीकी या कलपुर्जो की ख़रीद-फरोख्त़ नहीं कर पाएगी. इसके साथ ही ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी करके अमेरिकी कंपनियों को हिदायत दी है कि वे ऐसी कंपनियों से दूरसंचार उपकरण न खरीदें जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोख़िम पैदा कर सकती हैं. गूगल और क्वालकॉम जैसी प्रमुख अमेरिकी कंपनियां हुआवे के साथ तकनीकी साझेदारी न करने की तैयारी कर रही हैं. हालांकि, अमेरिकी प्रशासन के आदेश में कहीं भी हुआवे का नाम नहीं लिया गया, लेकिन निशाना स्पष्ट रूप से वही है.

अमेरिका और चीन के बीच पहले से ही व्यापार युद्ध छिड़ा हुआ है. यह ताज़ा प्रकरण व्यापार युद्ध की उस आग में और घी डालने का ही काम करेगा. इस ट्रेड वॉर में तकनीक भी लड़ाई का एक प्रमुख अखाड़ा है तो यह प्रकरण न केवल द्विपक्षीय रिश्तों की प्रकृति, बल्कि निकट भविष्य में वैश्विक राजनीति एवं आर्थिकी पर भी अपना असर डालेगा.

स्वाभाविक रूप से हुआवे ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि अमेरिकी सरकार उसके व्यापार को खत्म करने का प्रयास कर रही है. कंपनी ने कहा है कि उसके व्यापार में बाधा डालने से अमेरिका अपने देश में अगली पीढ़ी के उन्नत मोबाइल नेटवर्क को विकसित करने में पीछे रह जाएगा. बीजिंग के अनुसार अमेरिका ने कुछ चुनिंदा चीनी कंपनियों को निशाना बनाने के लिए सरकारी नियम-कानूनों का सहारा लिया है ताकि, उनके सामान्य एवं कानून के दायरे में संचालित कारोबार पर प्रहार किया जा सके और चीन सरकार अपनी कंपनियों के वैधानिक अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए किसी भी कोशिश से पीछे नहीं हटेगी.

हुआवे कुछ अर्थों में चीनी राष्ट्रवाद के प्रतीकों में से एक मानी जाती है. इसे ‘चीन के उभार’ की एक अहम कड़ी के रूप में भी देखा जाता है. ऐसे में इस कंपनी पर किया गया कोई भी हमला चीन खुद पर एक हमला मानता है. इसके अलावा अमेरिका ने हुआवे की मुख्य वित्तीय अधिकारी मेंग वानझू के खिलाफ़ आरोप तय करने को लेकर अपने पत्ते भी अभी तक नहीं खोले हैं जिन्हें पिछले वर्ष दिसंबर में कनाडा से गिरफ्तार किया गया था.

अमेरिका और चीन के बीच यह संघर्ष केवल द्विपक्षीय स्तर पर ही नहीं रह गया है. वॉशिंगटन अपने सहयोगी देशों पर भी दबाव डाल रहा है कि वे चीनी कंपनी को अपने मोबाइल नेटवर्क के काम से दूर रखें. कुछ देशों पर इसका असर भी हो रहा है. ख़ासतौर से पश्चिम के देश हुआवे को लेकर उठ रहे सवालों को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं. हाल में डच खुफिया सेवा भी जासूसी के मामले में हुआवे की जांच कर रही है. उसे संदेह है कि चीनी सरकार हुआवे के माध्यम से ग्र्राहकों के डाटा में सेंधमारी कर रही है.

यह सब कुछ एक ऐसे समय में हो रहा है जब डच सरकार को नीदरलैंड में नए 5जी नेटवर्क के लिए हुआवे की भागीदारी पर विचार करना है. ब्रिटेन में भी दूरसंचार सेवा प्रदाता बीटी ने गत वर्ष पुष्टि की थी कि वह अपने 4जी नेटवर्क के प्रमुख़ इलाकों से हुआवे के उपकरण हटा रही है. खुफ़िया एजेंसी एमआइ6 द्वारा जताई चिंताओं के बाद कंपनी ने यह कदम उठाया था. ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान पहले ही हुआवे के 5जी उपकरणों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. यूरोप के अधिकांश देश भी चीन की इस तकनीकी दिग्गज के साथ अपने संबंधों की नए सिरे से समीक्षा में जुटे हैं.

कुल मिलाकर दांव बहुत ऊंचे लगे हैं, क्योंकि यह चीन और अमेरिका के बीच व्यापार और वैश्विक प्रभुत्व को लेकर चल रही खींचतान का हिस्सा है. कुछ हफ्तों पहले अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर का कुछ समाधान निकलता दिख रहा था, लेकिन अब उसमें नए सिरे से तल्ख़ी आ गई है. इसमें अमेरिका ने दबाव बढ़ाते हुए बीते हफ्ते चीन के 200 अरब डॉलर के चीनी आयात पर शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया.

चीन ने भी पलटवार करते हुए अमेरिका के 60 अरब डॉलर के उत्पादों पर आयात शुल्क की दरें बढ़ा दीं। इस साल की शुरुआत में ही दूरसंचार उपकरणों के मोर्चे पर हुआवे की बादशाहत कायम होते देख ट्रंप प्रशासन ने कुछ कदम उठाए थे जिनसे अमेरिका में नए वायरलेस नेटवर्क का जाल बिछाने के काम को गति दी जाए. इसमें आह्वान किया गया कि 5जी की होड़ अमेरिका को हर हाल में जीतनी चाहिए. मगर यह अभी तक स्पष्ट नहीं कि हुआवे के वर्चस्व की काट के लिए कोई कारगर और समन्वित रणनीति बनाई भी गई या नहीं, क्योंकि अमेरिका में हुआवे की टक्कर का कोई भी 5जी नेटवर्क आपूर्तिकर्ता नहीं है. इस मामले में चीन के प्रयास बहुत सधे हुए हैं और वह दशकों से तकनीकी मोर्चे पर छलांग को राष्ट्रीय प्राथमिकता के तौर पर लेता आया है.

तकनीकी क्रांति के अगले चरण में खेल का पासा पलटने की क्षमता वाली अपनी भूमिका को देखते हुए 5जी वैश्विक तकनीकी जगत का नेतृत्व करने की चीनी आकांक्षाओं की धुरी बनती हुई दिख रही है. हुआवे के इतिहास और चीनी कानूनों के चलते पश्चिमी देशों की राजधानियों में इस चीनी दिग्गज के उभार को लेकर घबराहट का भाव बढ़ा है. असल में चीन के कानून ऐसे हैं जिसमें अगर सरकार को कोई खुफ़िया जानकारी चाहिए तो इसमें घरेलू कंपनी को उसकी मदद करनी होती है.

भारत में भी अगले महीने से 5जी का बहुप्रतीक्षित ट्रायल शुरू होना है. हुआवे के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा खड़ी की गई चुनौतियों को देखते हुए इसे लेकर अभी भी कुछ हिचक स्वाभाविक है. परीक्षण के लिए अभी तक किसी भी सेवा प्रदाता ने हुआवे को साझेदार नहीं बनाया है. इस मामले में अभी फैसला किया जाना शेष है. शायद वह पहले दौर के परीक्षणों का हिस्सा न भी बने, लेकिन यह मामला अभी विचाराधीन है.

राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि हमेशा एक कड़ी से जुड़ी होती हैं, लेकिन व्यापार एवं तकनीकी टकराव में अमेरिका और चीन जैसे देशों में जो रणनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, उसमें भारत जैसे देशों के लिए रणनीतिक गुंजाइश लगातार सिकुड़ती जाएगी, ऐसे में नई दिल्ली को दीर्घकालिक दृष्टिकोण को देखते हुए ऐसी नीति अपनानी होगी जिससे न केवल हमारे तात्कालिक हित सुरक्षित रहें, बल्कि उसकी स्वयं की तकनीकी क्षमताओं को भी बल मिले.


ये लेख मूल रूप से जागरण में छपा था.

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