Published on Feb 22, 2021 Updated 0 Hours ago

देश के रूप में हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम विकास के लिए कौन सा रास्ता चुनते हैं. इसके साथ-साथ ये भी कि हम अपनी पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान कैसे करते हैं.

प्रदूषण मुक्त अर्थव्यवस्था की राह में छोटे राज्यों का सबसे ज़्यादा योगदान

भारत जिस वक़्त कोविड-19 महामारी के झटकों से उबरने की कोशिश कर रहा है, उस वक़्त मज़बूत अर्थव्यवस्था के लिए सभी हिस्सेदारों को अपनी प्राथमिकता की दिशा बदलकर आर्थिक बहाली के लिए नये रास्ते पर चलने की ज़रूरत है. ऐसा रास्ता जो समावेशी और टिकाऊ हो. हाल के दिनों में उत्तरी राज्यों में वायु-प्रदूषण की परेशानी भारत जैसे देश के लिए आर्थिक बहाली के ऐसे रास्ते की ज़रूरत पर मंथन को और भी ज़रूरी बनाती है जो अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की निरंतरता के बीच संतुलन बरकरार रखता है.

हालांकि, कुछ लोग दलील दे सकते हैं कि ‘टिकाऊ विकास’ आदर्शवादी सपना है जो वास्तविकता से बहुत दूर है. लेकिन देश के दो राज्य हमें पहले से ही आगे का रास्ता दिखा रहे हैं. पहले ये सिक्किम था जिसने ख़ुद को 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक और प्लास्टिक मुक्त राज्य घोषित किया. अब अंडमान और निकोबार द्वीप और लक्षद्वीप को सरकार ने ऐसे केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर वर्गीकृत किया है जो अपनी 100 प्रतिशत बिजली नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों से उत्पन्न करते हैं. उदाहरण के तौर पर सिक्किम 1998 से बदलाव के इस दौर से गुज़र रहा है. ये वो वक़्त था जब जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ विकास दुनिया भर में प्रचलन में नहीं थे. अपने नाज़ुक इकोसिस्टम को बचाने के लिए ऑर्गेनिक राज्य बनने का सिक्किम का सफ़र आधिकारिक तौर पर 2003 में शुरू हुआ और तब से इसने लंबी दूरी तय की है. सिक्किम ने पर्यावरण बचाने के लिए कई दूसरे क़दम भी उठाए हैं जिनका मक़सद पानी का संरक्षण, सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक, इको-फ्रेंडली पैकेजिंग के इस्तेमाल को प्रोत्साहन और स्वास्थ्य एवं सफ़ाई की सुविधाओं में बढ़ोतरी है. इन क़दमों के नतीजे के तौर पर सिक्किम आज पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ विकास मॉडल का उदाहरण है. सिक्किम का सकल राज्य घरेलू उत्पादन (जीएसडीपी) 2015-16 से 2019-20 के बीच सालाना 15.86% की दर से बढ़ा. सिक्किम में फूलों की 5,000 प्रजातियां, 515 दुर्लभ ऑर्किड, 60 बसंती गुलाब की प्रजातियां और 36 रोडोडेन्ड्रॉन की प्रजातियां पाई जाती हैं. अगले कुछ वर्षों में जब इलेक्ट्रिक गाड़ियां बड़ी संख्य़ा में चलने लगेंगी तो ये छोटे राज्य कार्बन-न्यूट्रल बनने की तरफ़ भी छलांग लगा सकते हैं.

सिक्किम ने पर्यावरण बचाने के लिए कई दूसरे क़दम भी उठाए हैं जिनका मक़सद पानी का संरक्षण, सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक, इको-फ्रेंडली पैकेजिंग के इस्तेमाल को प्रोत्साहन और स्वास्थ्य एवं सफ़ाई की सुविधाओं में बढ़ोतरी है. 

2014 से भारत सरकार भी बहुत सक्रिय है. उसने ऐसी कई हरियाली वाली नीतियां बनाई हैं जो प्रगतिशील और असरदार हैं. चाहे कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पेरिस समझौते पर पहल हो या महत्वाकांक्षी नमामि गंगे, जल शक्ति और स्वच्छ भारत अभियान की पहल हो, भारत ने हमेशा पर्यावरणीय चेतना के मामले में आगे बढ़कर क़दम बढ़ाए हैं. जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता कम करने के लिए भी क़दम उठाए गए हैं. सरकार का विशेष ध्यान इलेक्ट्रिक गाड़ियों और लिथियम आयन बैटरी के उत्पादन के लिए अनुकूल नीतिगत रूपरेखा बनाने से लेकर देश में मेट्रो रेल परिवहन को बढ़ावा देने पर रहा है. इक्विटी और कर्ज़ के ज़रिए भारत के नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को 175 गीगावॉट से बढ़ाकर 450 गीगावॉट करने का प्रधानमंत्री का ऐलान भी भारत के कम कार्बन अर्थव्यवस्था बनने की तरफ़ एक बड़ा क़दम है. जलवायु संरक्षण की तरफ़ मौजूदा सरकार की यात्रा को पूरी दुनिया में मान्यता मिली है. जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन इंडेक्स (सीसीपीआई) की रैंकिंग में भारत 2020 में दिग्गज 10 देशों में शामिल हो गया. 2014 के 31वें रैंक के मुक़ाबले ये बड़ा बदलाव है.

प्रदूषण मुक्त कार्य प्रणाली को अपनाने में छोटे राज्य आगे हो सकते हैं लेकिन बड़े राज्य इसे पूरी तरह दोहरा नहीं सकते हैं. एक बेहतर रास्ता ये हो सकता है कि बड़े राज्य छोटे राज्यों के संकेत समझें और अपनी क्षमता के मुताबिक़ एक मॉडल बनाएं.

इन संरचनात्मक सुधारों और सरकार के समर्थन पर भरोसा जताते हुए देश में प्रदूषण मुक्त अर्थव्यवस्था पर निवेश लगातार बढ़ रहा है और भारत के लिए भविष्य बेहतर और उज्ज्वल लग रहा है. क्रिसिल के अनुमानों के मुताबिक़, प्रदूषण मुक्त अर्थव्यवस्था में निवेश अगले तीन वर्षों में 35 प्रतिशत बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपये हो सकता है. लेकिन भारत जैसे विविधता भरे देश में प्रदूषण मुक्त आर्थिक बहाली के लिए इन क़दमों से बहुत ज़्यादा उपायों की ज़रूरत होगी, ख़ास तौर पर ज़्यादा आबादी वाले राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार में. टिकाऊ आर्थिक विकास, करोड़ों लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालना, बिजली के कनेक्शन से दूर लोगों तक बिजली पहुंचाना और मुख्य़ रूप से नौजवान आबादी के लिए पर्याप्त रोज़गार के मौक़े उत्पन्न करना, ये अभी भी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर राज्य सरकारों को दूसरी चिंताओं से पहले प्राथमिकता देनी होगी. प्रदूषण मुक्त कार्य प्रणाली को अपनाने में छोटे राज्य आगे हो सकते हैं लेकिन बड़े राज्य इसे पूरी तरह दोहरा नहीं सकते हैं. एक बेहतर रास्ता ये हो सकता है कि बड़े राज्य छोटे राज्यों के संकेत समझें और अपनी क्षमता के मुताबिक़ एक मॉडल बनाएं. लेकिन बदलाव के लिए सभी राज्यों में जो चीज़ समान है, वो है हर स्तर पर भागीदारों को शामिल करना. चाहे वो केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार या स्थानीय निकाय या फिर आम नागरिक.

टेबल 1: राज्यों द्वारा पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए उठाये जा रहे कदम

उठाए गए क़दम राज्य
राज्य जो एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाए

1. सिक्किम

2. हिमाचल प्रदेश

3. मेघालय

4. असम

5. तेलंगाना

6.  उत्तर प्रदेश

7. महाराष्ट्र

8. तमिलनाडु

पिछले 4 वर्षों में सर्वश्रेष्ठ अक्षय ऊर्जा प्रतिष्ठान वाले शीर्ष राज्य

1. कर्नाटक

2. गुजरात

3. आंध्र प्रदेश

4. तमिलनाडु

5. राजस्थान

6. तेलंगाना

7. महाराष्ट्र

8. मध्य प्रदेश

9. सिक्किम

10 उत्तर प्रदेश

जैविक प्रमाणन एजेंसियों वाले राज्य

1.  मध्य प्रदेश

2. गुजरात

3. तेलंगाना

4. सिक्किम

5. बिहार

6. कर्नाटक

7. ओडिशा

8. राजस्थान

9. उत्तराखंड

10. छत्तीसगढ़

11. तमिलनाडु

12.  उत्तर प्रदेश

स्वीकृत इलेक्ट्रिक वाहन नीति वाले राज्य

1. आंध्र प्रदेश

2. कर्नाटक

3. केरल

4. मध्य प्रदेश

5. महाराष्ट्र

6. दिल्ली

7. तमिलनाडु

8. तेलंगाना

9. उत्तराखंड

10. उत्तर प्रदेश

समर्पित जल नीति के साथ राज्य 1. मेघालय

कई भारतीय ज़िले, ख़ासतौर पर सीमा या दूरदराज़ इलाक़ों में स्थित, अपेक्षाकृत आसानी से कार्बन न्यूट्रल और ऑर्गेनिक बन सकते हैं. ज़िलों को 100 प्रतिशत ‘ग्रीन ज़िले’ के तौर पर वर्गीकृत करना एक क़दम हो सकता है. एक ग्रीन ज़िला सिंगल यूज़ प्लास्टिक वेस्ट उत्पन्न नहीं करेगा, उसकी ऊर्जा की ज़रूरतें सिर्फ़ वैकल्पिक स्रोतों से पूरी होंगी, वहां आने-जाने के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा और ऐसा ज़िला लोगों की गतिविधियों के लिए उतना ही पानी इस्तेमाल करेगा जितना वो प्राकृतिक तौर पर उत्पन्न करता है. लेकिन इसके लिए हर किसी की साझा कोशिश की ज़रूरत होगी- स्थानीय प्रशासन से लेकर ज़िले के निवासियों तक की. साथ ही इसमें सफलता तभी मिलेगी जब लोग अपने व्यवहार में बदलाव लाएंगे. पूर्वोत्तर के कई राज्य जैसे मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और असम पहले से ही सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं. सरकार की सब्सिडी के समर्थन और सरकारी योजनाओं के सही ढंग से लागू होने से सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन भी तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है. साथ ही बिना बांध वाली पनबिजली परियोजनाएं ज़्यादा व्यावहारिक बन रही हैं. ऐसे में 100 प्रतिशत ग्रीन बनने का सपना देश भर के कई ज़िलों के लिए ज़्यादा दूर नहीं है.

सरकार की सब्सिडी के समर्थन और सरकारी योजनाओं के सही ढंग से लागू होने से सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन भी तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है. 

देश के रूप में हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम विकास के लिए कौन सा रास्ता चुनते हैं. इसके साथ-साथ ये भी कि हम अपनी पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान कैसे करते हैं. अनुमानों के मुताबिक़, एक देश के तौर पर प्रदूषण मुक्त बदलाव के लिए भारत को अगले दशक में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के औसत निवेश की ज़रूरत पड़ेगी. इसके लिए समर्पित ग्रीन फंड, इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश, आधुनिक तकनीकी मदद और सबसे बढ़कर विकास की पहल में मूल व्यवहार में बदलाव की ज़रूरत होगी. ऐसा होने से बदलाव तेज़ी से होगी.

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