Author : B. Rahul Kamath

Published on Sep 18, 2021 Updated 0 Hours ago

बगैर यूरोपियन यूनियन के सहयोगियों से सलाह मशविरा किए अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की सेना वापसी के बाद क्या यूरोपियन यूनियन को ईयू-आधारित सुरक्षा व्यवस्था बना लेना चाहिए ?

अफ़ग़ानिस्तान संकट और यूरोपीय संघ की राष्ट्रीयता का प्रश्न

अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का कब्जा एक ऐसी त्रासदी है जिसे पश्चिमी देशों ने बढ़ावा दिया और इसका असर अब इन मुल्कों का पीछा करेगा. यूरोपियन यूनियन (ईयू) के फैसले लेने को लेकर भ्रम की स्थिति रही है और इस फैसले लेने को लेकर स्वायत्तता का अभाव अफ़ग़ानिस्तान से नागरिकों को बाहर निकालने के प्रयासों में रुकावट पैदा कर सकता है. यूरोपियन यूनियन अफ़ग़ान शरणार्थियों के दूसरे देशों में शरण लेने को लेकर भी आपस में एकमत नहीं हैं जैसा कि 31 अगस्त को ब्रूसेल्स में आयोजित ईयू की आंतरिक मंत्रियों की बैठक में एक प्रस्ताव रखा गया जिसके तहत अफ़ग़ानिस्तान से विस्थापित होने वाले नए शरणार्थियों के सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों को वित्तीय सहायता मुहैया कराएगा.  यूरोपियन यूनियन द्वारा वित्तीय सहयोग का प्रस्ताव देना इस बात की ओर इशारा करता है कि ईयू के सदस्य देश अफ़ग़ानिस्तान के शरणार्थियों को अपनी जमीन से दूर रखना चाहते हैं जिससे की साल 2015 जैसा शरणार्थी संकट कहीं दोबारा ना पैदा हो जाए, जो सीरिया और इराक में  उग्रवाद बढ़ने और गृहयुद्ध की वजह से शुरू हुआ था.  यूरोपियन यूनियन अफ़ग़ानिस्तान से भारी तादाद में पलायन को रोकने के पक्ष में है यही वजह है कि अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसियों को वित्तीय सहयोग देना ईयू की प्राथमिकता है. पलायन करने वाले लोगों को शरण देने की यूरोप की अनिच्छा फिर से “यूरोप की किलेबंदी” करने जैसा होगा जैसा कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था.

यूरोपियन यूनियन द्वारा वित्तीय सहयोग का प्रस्ताव देना इस बात की ओर इशारा करता है कि ईयू के सदस्य देश अफ़ग़ानिस्तान के शरणार्थियों को अपनी जमीन से दूर रखना चाहते हैं जिससे की साल 2015 जैसा शरणार्थी संकट कहीं दोबारा ना पैदा हो जाए, जो सीरिया और इराक में  उग्रवाद बढ़ने और गृहयुद्ध की वजह से शुरू हुआ था

लोगों के पलायन को कैसे रोका जाए

फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने अपने नागरिकों और अफ़ग़ानियों को बाहर निकालने के लिए और समय की मांग की थी यहां तक कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने काबुल में सुरक्षित ज़ोन बनाने का भी प्रस्ताव रखा था बावजूद इसके कि तालिबान ने काबुल एयरपोर्ट के बाहर अपने लड़ाकों की तैनाती कर रखी थी. काबुल से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद भी यूरोपियन यूनियन के नागरिकों को बाहर निकालना प्राथमिकता थी. यूरोपियन यूनियन के आंतरिक मंत्रियों की 5 घंटे तक चली बैठक में यह समझौता हुआ कि किसी भी तरह से लोगों के पलायन को रोकना होगा क्योंकि  साल 2015 में जिस प्रकार अवैध पलायन के चलते संकट खड़ा हुआ था, जिससे यूरोपियन प्रभुता पर एक वक़्त ख़तरा मंडराने लगा था, ब्लेड स्ट्रैटेजिक फोरम (बीएसएफ) के लिए स्लोवानिया में सदस्य देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक हुई जिसमें अफ़ग़ान संकट को लेकर यूरोपियन यूनियन की रणनीति क्या होगी, अफ़ग़ानिस्तान पर सर्वसम्मत नीति बनाने को लेकर क्या मतभेद हैं इन विषयों पर चर्चा की गई. अफ़ग़ानिस्तान को लेकर ऐसी नीति बनाना जिसपर सभी सदस्य देश सहमत हो सकें इसे लेकर भी चुनौती है क्योंकि इस बैठक में सदस्य देशों ने इसे लेकर अलग- अलग मत दिए. यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश अफ़ग़ानिस्तान से अपने नागरिकों को बाहर निकालने के लिए अमेरिकी सेना पर आश्रित थे, जिसे लेकर यूरोपियन यूनियन की ओर से एकता और तैयारी की कमी दिखी.

यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने “यूरोपियन स्ट्रैटेजिक ऑटोनोमी” का प्रस्ताव रखा और सदस्य देशों से अपनी सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सुरक्षा पर निवेश बढ़ाने की बात कही.

यूरोपियन यूनियन पर दबाव

यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने “यूरोपियन स्ट्रैटेजिक ऑटोनोमी” का प्रस्ताव रखा और सदस्य देशों से अपनी सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सुरक्षा पर निवेश बढ़ाने की बात कही. जर्मनी और फ्रांस ने कई बार इस बात की इच्छा दोहराई है कि वास्तविक तौर पर एक यूरोपियन सेना खड़ी की जाए जिसकी सामान्य विदेश नीति और साझा लक्ष्य हों. जब से तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमा लिया है उसके बाद से इस तरह के शब्द आडंबरों की अहमियत एक बार फिर से बढ़ी है. यूरोपियन यूनियन की अमेरिका पर निर्भरता मुकम्मल है, इसलिए अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से निकलने के बाद यूरोपियन यूनियन द्वारा उस खाली जगह को भरने का दबाव बढ़ता जा रहा है. नाटो ने हमेशा से यूरोप की उस सेना पर निवेश करने का समर्थन किया है जिनकी तैनाती देश के बाहर होती है, लेकिन इस मामले पर सदस्य देशों के एकमत नहीं होने से यूरोपियन सेना की अभी तक बुनियाद नहीं रखी जा सकी है. यूरोपियन यूनियन ने अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो पर 1990 में बाल्कन युद्ध के दौरान भरोसा किया था, क्योंकि तब हिंसा को रोकने में यूरोपियन यूनियन की अक्षमता जगजाहिर हो चुकी थी.

यूरोपियन यूनियन दरअसल यूरोपीय स्ट्रैटेजिक संगठन की दिशा में काम कर रहे हैं, यह एक दस्तावेज है जो ईयू के अगले 10 साल में सुरक्षा और रक्षा से संबंधित लक्ष्यों की ओर इशारा करता है. रणनीतिक लिहाज से स्वायत्त ईयू क्षेत्रीय गुटों को यूरोप के पड़ोसी देशों की चुनौतियों से निपटने के तैयार करेगा.

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी एक तरह से ब्रूसेल्स के लिए जागने का वक्त है कि यूरोप अपनी रणनीति और सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने पर निवेश करे जिससे कि ये देश अमेरिका के बगैर स्वतंत्र होकर फैसला कर सके. अटलांटिक की दूसरी ओर जो आवाज उठ रही हैं उसके तहत अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की अनिश्चित समय तक व्यस्तता का समर्थन हासिल है लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों से बगैर बातचीत किए राष्ट्रपति ट्रंप की वास्तविक शांति समझौता को आगे बढ़ाना इस बात की ओर इशारा करता है कि जो बाइडेन की रूचि राष्ट्र निर्माण को लेकर उतनी नहीं रह गई है. यूरोपियन यूनियन के देशों के साथ समन्वय इस बात को बताता है कि अमेरिका अपने ट्रांसअटलांटिक सहयोगियों की कीमत पर रणनीतिक स्वायत्तता को अंजाम देता है. अमेरिकी सैनिकों और नागरिकों की वापसी का मतलब था कि दूसरे सहयोगी भी ऐसा करने वाले थे, जिससे कि यूरोपियन यूनियन को अफ़ग़ानिस्तान की वास्तविक हालत को पहचानने का अवसर मिल सके. हालांकि अमेरिका ने 31 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने के बाद भी अपने तरीकों में बदलाव नहीं किया, जबकि यूरोपियन यूनियन के नेता अपने नागरिकों को काबुल एयरपोर्ट से बाहर निकालने के लिए पूरी तरह से तालिबान पर निर्भर थे. अमेरिका के मुकाबले यूरोप को अफ़ग़ानिस्तान से सैन्य वापसी का झटका ज़्यादा सहना पड़ सकता है क्योंकि यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के साथ अफ़ग़ानिस्तान की सीमा करीब है. यूरोप के नेता साल 2015 के शरणार्थी संकट की त्रासदी की बुरी यादों से अब तक जूझ रहे हैं, जिसका परिणाम यह हुआ था कि इसने यूरोप की राजनीति को अस्थिर कर दिया क्योंकि इस घटना ने समूचे यूरोप में दक्षिणपंथी सियासी दलों को अपनी साख बढ़ाने का मौका दे दिया.

यूरोपियन यूनियन की स्वायतत्ता का सवाल

अफ़ग़ानिस्तान ने नाटो के कामकाज में नई ख़ामियों को खोज लिया है क्योंकि अमेरिका की विदेश नीति राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के तहत लगातार बदल रही है. ऐसे में अमेरिका पर यूरोपीय देशों की निर्भरता आने वाले समय में कम होगी क्योंकि यूरोपीय देशों के नेता अपनी सुरक्षा पर ज़्यादा निवेश कर सकते हैं.  जोसेफ बॉरेल, जो यूरोपियन यूनियन के विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधि हैं, उन्होंने भी यूरोपियन यूनियन की स्वायतत्ता का समर्थन किया है – अमेरिका की निर्भरता से कहीं अलग यूरोपियन यूनियन के हितों की रक्षा के लिए. अफ़ग़ानिस्तान संकट एक तरह से यूरोपीय देशों के नीति निर्माताओं के लिए जागने का समय है कि वो अपने ट्रांस अटलांटिक सहयोगियों से अलग होकर अपनी सुरक्षा हितों पर ध्यान दें साथ ही अमेरिका के साथ अच्छे रिश्ते बहाल रखें.

ईयू के लिए यह ज़रूरी है कि वो जल्द से जल्द अफ़ग़ानिस्तान में दूसरे देशों से समन्वय स्थापित करे जिससे सूचना इकट्ठा करने, फैसले लेने और अफ़ग़ानिस्तान में किसी बड़े मानवीय संकट को रोकने की तरफ कदम बढ़ाया जा सके.

यूरोपियन यूनियन दरअसल यूरोपीय स्ट्रैटेजिक संगठन की दिशा में काम कर रहे हैं, यह एक दस्तावेज है जो ईयू के अगले 10 साल में सुरक्षा और रक्षा से संबंधित लक्ष्यों की ओर इशारा करता है. रणनीतिक लिहाज से स्वायत्त ईयू क्षेत्रीय गुटों को यूरोप के पड़ोसी देशों की चुनौतियों से निपटने के तैयार करेगा. इस तरह की किसी संस्था की ज़रूरत ख़ास तौर पर अभी नहीं होती लेकिन जब से तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा हासिल किया है एक बार फिर से आतंकी ख़तरा बढ़ गया है. इतना ही नहीं, अवैध शरणार्थियों की घुसपैठ, ड्रग ट्रैफिकिंग और सबसे अहम मानवाधिकार संबंधी ख़तरा बढ़ गया है.

ईयू के सामने चुनौतियां

काबुल पर तालिबानी कब्जे को रोकने में पश्चिमी देशों की अक्षमता अब उनपर इस बात की जिम्मेदारी डालती है कि वो किस तरह से अपने हितों की रक्षा कर सकें, और तालिबान के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द्विपक्षीय स्वीकार्य समझौते की जमीन तैयार कर सकें. जल्द ही ईयू को संकट रोकने और शांति स्थापित करने के लिए सैन्य बल को बढ़ाना होगा क्योंकि यूरोपीय देश अगर अपने पड़ोस में शांति कायम नहीं करेंगे तो इसका प्रतिकूल असर उनके देशों पर पड़ना तय है. यूरोपियन कमीशन ने मानवीय सहायता की राशि को चौगुना बढ़ाकर इसे 200 मिलियन यूरो कर दिया है जबकि विकास के लिए दी जाने वाली राशि में कटौती कर दी है. हालांकि ईयू के सामने जो मुख्य चुनौतियां हैं वो यह हैं कि अफ़ग़ानिस्तान सीमा के अंदर बगैर किसी बाहरी मुल्क की मौजूदगी के मानवीय सहायता राशि का आवंटन वो कैसे करे? ईयू एक ऐसे भूराजनीतिक जाल में खुद को फंसा पाता है जहां तालिबान के साथ समझौता करने के लिए चीन, पाकिस्तान, भारत और रूस भी कोशिशों में लगे हैं. ईयू के लिए यह ज़रूरी है कि वो जल्द से जल्द अफ़ग़ानिस्तान में दूसरे देशों से समन्वय स्थापित करे जिससे सूचना इकट्ठा करने, फैसले लेने और अफ़ग़ानिस्तान में किसी बड़े मानवीय संकट को रोकने की तरफ कदम बढ़ाया जा सके.

अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी एक्शन प्लान को लागू करने से पहले ईयू को अपने सदस्य देशों के बीच एकमत बनाने की ज़रूरत है जिसमें पलायन के मुद्दे से लेकर विकास और सुरक्षा से संबंधित मामले पर समन्वय स्थापित करना आवश्यक है.  

हालांकि यह भी सच है कि ईयू तालिबान को मान्यता देने या फिर उसके साथ संबंध स्थापित करने के लिए किसी भी तरह की जल्दी में नहीं है. यूरोपियन कमीशन के एशिया और पैसिफिक के मैनेजिंग डायरेक्टर, गुन्नार वेगांड ने कहा कि ईयू तालिबान के साथ संवाद कायम करना चाहता है जिससे वो अपने समझौतों को प्रभावी बना सके साथ ही तालिबान को  मान्यता देने में ईयू कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता क्योंकि तालिबान को वो अफ़ग़ानिस्तान सरकार का कानूनी प्रतिनिधि नहीं मानता है. उन्होंने इसके अलावा कुछ शर्तों की सूची बनाई है, जिसमें मानवाधिकार के लिए सम्मान, राहतकर्मियों के लिए बिना रोकटोक कहीं भी जाने का अधिकार जैसी बातें शामिल होंगी तभी तालिबान के साथ आधिकारिक रिश्ते बहाल किए जाएंगे. अफ़ग़ानिस्तान में ईयू मिशन की कार्यक्षमता ब्रूसेल्स से जारी रहेगी जबकि अफ़ग़ानिस्तान में सामान्य परिस्थितियां बनने का इंतजार किया जाएगा.

अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी एक्शन प्लान को लागू करने से पहले ईयू को अपने सदस्य देशों के बीच एकमत बनाने की ज़रूरत है जिसमें पलायन के मुद्दे से लेकर विकास और सुरक्षा से संबंधित मामले पर समन्वय स्थापित करना आवश्यक है. ईयू की आंतरिक परिस्थितियां भी इसमें शामिल हैं क्योंकि जर्मनी में आगामी चुनाव में सत्ता परिवर्तन की संभावना बनी हुई है तो फ्रांस में भी इमैनुअल मैक्रों को अगले साल चुनाव का सामना करना है. और यही दोनों देश यूरोपियन सेना के ज़बर्दस्त समर्थक हैं. अफ़ग़ान संकट के साथ ही इसमें दो राय नहीं कि यूरोपियन नेतृत्व को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है, तो ऐसे में ईयू के लिए रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करना और अपने परंपरागत ट्रांस अटलांटिक रिश्तों को बहाल रखने की संभावना बढ़ जाती है. जो बाइडेन के लिए ‘अमेरिका वापसी कर रहा है’ लेकिन यूरोपीय देशों के लिए अफ़ग़ानिस्तान से अलग उन्हें राह तलाशने की आवश्यकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.