Author : Vivek Mishra

Published on Aug 18, 2022 Updated 0 Hours ago

एक स्पष्टतया भिन्न चीन नीति, जो बीजिंग के प्रति कोई रियायत न बरतती हो, बनाने की राजनीतिक मजबूरी ने बाइडेन प्रशासन को असमंजस में डाल रखा है.

ताइवान मुद्दा: अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के गले की फांस

राष्ट्रपति बाइडेन के अब तक के कार्यकाल के अधिकांश समय, अमेरिका-चीन संबंध के पर्यवेक्षकों ने चीन को लेकर उनके प्रशासन की नीति का उत्सुकता से इंतज़ार किया. कई ने सोचा कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के मई 2022 में जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में दिये गये भाषण ने चीन के प्रति बाइडेन प्रशासन के नीतिगत दृष्टिकोण का ख़ाका खींचा, जो तीन प्रमुख रणनीतिक स्तंभों पर टिका था : निवेश, संरेखण (अलाइन) और प्रतिस्पर्धा. हालांकि, नैंसी पेलोसी की हाल में संपन्न हुई ताइवान यात्रा के नतीजे और चीन के प्रतिशोधात्मक नीतिगत जवाबी क़दम अमेरिका-चीन संबंधों की उस प्रत्याशित राह को बदल सकते हैं जिसे बाइडेन बनाना चाहते थे, और यह बदलाव बदतरी के लिए है. 

नैंसी पेलोसी की अघोषित यात्रा को लेकर जब अटकलें बढ़ीं, तो चीन ने इस नियोजित यात्रा का हवाला देते हुए अमेरिका को ‘आग से नहीं खेलने’ के लिए सचेत किया था. इसी ऊंचे स्वर और भाषा का इस्तेमाल चीन द्वारा पिछले साल बाइडेन और शी की नवंबर में हुई बैठक के दौरान भी किया गया था.

मुहावरे की भाषा में कहें तो, एक दुरुस्त चीन नीति बनाना राष्ट्रपति बाइडेन के लिए पहले ही दिन से गले की फांस रहा है. ताइवान का मुद्दा अब उस दुविधा के केंद्र में हैं. अपने पूर्ववर्ती से मिली शत्रुतापूर्ण अमेरिका-चीन रिश्ते की विरासत और एक स्पष्टतया भिन्न चीन नीति, जो बीजिंग के प्रति कोई रियायत न बरतती हो, बनाने की राजनीतिक मजबूरी ने बाइडेन प्रशासन को असमंजस में डाल रखा है. इसके बावजूद, बाइडेन प्रशासन ने एक ऐसी रणनीति अपनाकर ताइवान मुद्दे पर चीन को आज़माने की कोशिश की है जो काग़ज़ पर ‘एक चीन नीति’ बनाये हुए है, लेकिन जिसने ज़मीन पर और बयानबाज़ी में पुरानी हदों को लांघा है. इस दोहरे रवैये की पराकाष्ठा का परिणाम, बीजिंग की गंभीर चेतावनियों के बावजूद, अमेरिका के निचले सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी की हालिया ताइवान यात्रा के रूप में सामने आया. नैंसी पेलोसी की अघोषित यात्रा को लेकर जब अटकलें बढ़ीं, तो चीन ने इस नियोजित यात्रा का हवाला देते हुए अमेरिका को ‘आग से नहीं खेलने’ के लिए सचेत किया था. इसी ऊंचे स्वर और भाषा का इस्तेमाल चीन द्वारा पिछले साल बाइडेन और शी की नवंबर में हुई बैठक के दौरान भी किया गया था. 

अमेरिका के लिए पेलोसी की ताइवान यात्रा सैन्य ख़तरे का अनुमान लगाने में भी सहायक हुई हो सकती है. ख़ुद राष्ट्रपति बाइडेन ने इस यात्रा के ख़िलाफ़ सार्वजनिक रूप से सलाह दी. बाइडेन की चेतावनी के अलावा वास्तव में कार्यपालिका और विधायिका के बीच ‘शक्तियों के विभाजन’ को पेलोसी की यात्रा को न्यायोचित ठहराने के लिए इस्तेमाल किया गया

बाइडेन प्रशासन की चीन नीति में कई पुनर्समायोजन देखे गये हैं, जो शायद उसकी चीन नीति की सार्वजनिक घोषणा में देरी की व्याख्या करते हैं. अमेरिका की चीन नीति में सबसे महत्वपूर्ण लेकिन बारीक बदलाव यह रहा है कि वह ‘प्रतिस्पर्धी – जब यह होना चाहिए, सहयोगी – जब यह हो सकता हो, और विरोधात्मक – जब यह ज़रूरी हो जाए’ की अपनी शुरुआती स्थिति से पीछे हटते हुए ‘निवेश, संरेखण और प्रतिस्पर्धा’ करने की रणनीति पर आ गया है. जब यह अनाकार नीति आकार ले रही थी, तभी अमेरिका-चीन संबंधों के केंद्र में ताइवान आ चुका है. यह अब तक हासिल फ़ायदों को पीछे धकेलने, बाइडेन के बाकी बचे कार्यकाल के दौरान अमेरिका-चीन संबंधों की बेहतरी की संभावना को बाधित करने का ख़तरा पैदा कर रहा है.

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू फ़ायदे

भले ही नैंसी पेलोसी पर चीन की आंख में कोंचने का आरोप लगाया जा सकता हो, लेकिन इस यात्रा ने हिंद-प्रशांत के अमेरिकी साझेदारों को भरोसेमंद आश्वासन देने के साथ ही बाइडेन को आने वाले मध्यावधि चुनाव के मद्देनज़र घरेलू राजनीतिक फ़ायदा पहुंचाया हो सकता है. घरेलू स्तर पर बात करें तो, यह यात्रा ताइवान मुद्दे को अमेरिका की द्वि-दलीय घरेलू सहमति में वर्षों से दुष्प्राप्य माने जाने का अंत है. यह भावना चीन की अमेरिका के साथ बढ़ती व्यापार निर्भरता और प्रशांत रंगभूमि (पैसिफिक थिएटर) में उसकी बढ़ती सैन्य शक्ति के समानुपातिक रूप में ख़ुद-ब-ख़ुद मज़बूत होती चली गयी थी. हालांकि यह यात्रा अमेरिकी राजनेताओं द्वारा ज़्यादा बार-बार यात्राओं के लिए प्रतीकात्मक द्वार नहीं खोलती हो सकती है, लेकिन इसने अमेरिका के साथ पूर्ण-स्तरीय युद्ध या ताइवान पर तत्काल आक्रमण की चीन की भूख को प्रकट किया है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, पेलोसी की ताइवान यात्रा बाइडेन की हिंद-प्रशांत प्रतिबद्धताओं को दो तरह से पुन: केंद्र में ले आयी. इस यात्रा को प्रशांत रंगभूमि के साथ ही साथ ज़्यादा बड़े हिंद-प्रशांत में अमेरिकी सहयोगियों को, वॉशिंगटन की इस क्षेत्र के प्रति प्रतिबद्धताओं को लेकर आश्वस्त करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा गया. इसके अलावा, इसने इस नैरेटिव का जवाब पेश किया कि यूरोप में एक लंबा चलने वाला युद्ध हिंद-प्रशांत पर ध्यान केंद्रित करने के अमेरिका के रणनीतिक संकल्प और उसकी क्षमताओं को, ख़ासकर चीन के खिलाफ़ खड़ा होने में, कमज़ोर कर सकता है.

अमेरिका को दो-हिस्सों में बंटी चीनी रणनीति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें से एक, अमेरिका को सीधे निशाने पर लेता है और दूसरा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके सहयोगियों को आज़माता है, जहां ताइवान सबसे पहले चपेट में आता है.

रणनीतिक स्तर पर, अमेरिका के लिए पेलोसी की ताइवान यात्रा सैन्य ख़तरे का अनुमान लगाने में भी सहायक हुई हो सकती है. ख़ुद राष्ट्रपति बाइडेन ने इस यात्रा के ख़िलाफ़ सार्वजनिक रूप से सलाह दी. बाइडेन की चेतावनी के अलावा वास्तव में कार्यपालिका और विधायिका के बीच ‘शक्तियों के विभाजन’ को पेलोसी की यात्रा को न्यायोचित ठहराने के लिए इस्तेमाल किया गया, इसके बावजूद बाइडेन ने उन राजनीतिक फ़ायदों का आकलन ज़रूर किया होगा जो इससे हासिल हो सकते हैं. अगर यात्रा रद्द कर दी जाती, तो अमेरिका की बांह मरोड़ने की चीन की क्षमता को लेकर जो नैरेटिव और स्वर जोर पकड़ते, उन्होंने अमेरिकी क्षमताओं और एक भरोसेमंद गठबंधन सहयोगी के रूप में उसके प्रति धारणा को लेकर मूल्यांकन को कमज़ोर बना दिया होता. ख़ासकर, ताइवान की खाड़ी और उससे लगे समुद्र में अपनी ‘एंटी-ऐक्सेस एरिया डिनायल’ (A2AD) क्षमताओं के उपयोग में चीनी क्षमता ख़तरे की हद तक स्पष्ट दिखने लगी होती. जिस समय पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया, उस दौरान ताइवान के पूर्व में चार जंगी जहाज़ों को तैनात करने का अमेरिका का फ़ैसला चीन की ओर से वास्तविक ख़तरे के आकलन के अनुरूप था.

बाइडेन प्रशासन की चीन के प्रति ज़्यादा शत्रुतापूर्ण नहीं होने की नीति, ख़ासकर ट्रंप प्रशासन से तुलना किये जाने पर, दो बाध्यताओं में निहित है : पहला, पूर्व प्रशासन की तुलना में अपने नीतिगत दृष्टिकोण को साफ़ तौर पर अलग दिखाने की आवश्यकता डेमोक्रेटिक पार्टी के ख़ास चरित्र को रेखांकित करती है. यह बाइडेन प्रशासन को चीन के साथ संलग्नता बनाये रखने की अनुमति देता है, जबकि वह साथ ही साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहता है. दूसरा, ट्रंप प्रशासन लेन-देन से फ़ायदों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ताइवान और इसके साथ ही अमेरिका के दूसरे सहयोगियों को अधर में डाल सकता था, जबकि बाइडेन प्रशासन के लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर फोकस और गठबंधनों को मज़बूत बनाने के वादे ने एक अलग दृष्टिकोण के प्रति आश्वस्त किया है.

अभी तक, बाइडेन प्रशासन की चीन नीति को इन शब्दों में सुरक्षित ढंग से बयान किया गया, ‘हम संघर्ष या एक नया शीत युद्ध नहीं चाह रहे हैं. इसके उलट, हम दोनों से बचने के लिए दृढ़संकल्पित हैं.’ पेलोसी की यात्रा शायद इस रक्षात्मक-सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बदलेगी जिसे अमेरिका ने चीन को लेकर बढ़ावा दिया, मुख्यत: चीन के भविष्य के क़दमों के चलते. नैन्सी पेलोसी के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाकर तथा अमेरिका के साथ रक्षा और जलवायु वार्ताएं रद्द कर चीन पहले ही पेलोसी की यात्रा के विरोध में कड़ी जवाबी कार्रवाई कर चुका है. चीन ने पहली बार ‘मीडियन लाइन’ (एक अनाधिकारिक अलंघनीय रेखा जो ताइवान की खाड़ी के मध्य से गुज़रती है) पार करके ताइवान के इतने नज़दीक ज़िंदा गोला-बारूद दाग कर सैन्य अभ्यास का संचालन भी किया. जवाब में अमेरिका ने चीनी राजदूत को तलब कर उसकी सैन्य कार्रवाइयों का विरोध किया. तात्कालिक चीनी प्रतिक्रिया से परे, पेलोसी की यात्रा की प्रतिक्रिया में चीन के असली आखिरी दांव देखे जाने बाकी हैं. अमेरिका को दो-हिस्सों में बंटी चीनी रणनीति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें से एक, अमेरिका को सीधे निशाने पर लेता है और दूसरा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके सहयोगियों को आज़माता है, जहां ताइवान सबसे पहले चपेट में आता है. इसे देखते हुए, बाइडेन प्रशासन की चीन नीति में अब ताइवान तेज़ी से एक केंद्रीय मुद्दा बनता जा रहा है.

घूम-फिर कर वहीं पहुंचे

ताइवान की राजनीतिक हैसियत पर अमेरिका-चीन की तनातनी से बढ़े तनाव के साथ, अमेरिका-चीन रिश्ते की मौजूदा अवस्था घूम-फिर कर वहीं पहुंच गयी है. 1995-96 में ‘ताइवान खाड़ी संकट’ के दौरान जब चीन ने ताइवान के काफ़ी क़रीब समुद्र में मिसाइलों को ‘परीक्षण के बतौर दागा’ था, तब राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने दो विमान वाहक युद्धक समूहों को ताइवान की खाड़ी में तैनात किया था. परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के ख़तरनाक संकेतों वाला, दोनों देशों के बीच यह तनाव दो हफ़्तों के बाद ख़त्म हुआ. इससे भी ज़्यादा अहम यह है कि इसने अमेरिका-चीन संबंधों में एक खिड़की खोली, जो अंतत: 1998 में राष्ट्रपति क्लिंटन की चीन यात्रा की ओर ले गयी. मौजूदा हालात में, अमेरिका और चीन के बीच तनाव की एक बढ़ी हुई अवस्था की संभावना बाइडेन और शी की आमने-सामने की पहली मुलाक़ात के आसार बना रही है, जो विधायी चुनौतियों से भरी हुई है. बाइडेन प्रशासन चीन के साथ कामकाजी रिश्ते बनाये रखने और उस आक्रामक कांग्रेस के बीच बंटा हुआ है जो चाहती है कि हाल में पारित ‘द ताइवान पॉलिसी ऐक्ट ऑफ 2022’ के ज़रिये ताइवानी रक्षा क्षमताओं को और मज़बूत किया जाए. अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने कुछेक अमेरिकी हथियारों के उत्पादन के लिए ताइवान को प्रोत्साहन देने के ज़रिये ताइवान की रक्षा रणनीति पर अमेरिकी प्रभाव बढ़ाने के लिए विधेयक भी पेश किया है. पेलोसी की ताइवान यात्रा के लिए अमेरिका में द्विदलीय समर्थन है. फिर भी, राष्ट्रपति बाइडेन का दृष्टिकोण चीन के प्रति रियायती दिखे बिना कांग्रेस के भीतर चीन के लिए नीतिगत स्थान (पॉलिसी स्पेस) बनाये रखना है.

जो चीज़ बाइडेन की चुनौतियों को ज़्यादा ग़ौरतलब बनाती है, वह है यूक्रेन संघर्ष. ठीक इसी समय, साझा अमेरिका-विरोधी भावना और रूस व चीन दोनों के ख़िलाफ़ अमेरिकी कार्रवाइयों के चलते एक खुली चीन-रूस धुरी की संभावना ने भी व्हाइट हाउस की समस्याओं को बढ़ा दिया हो सकता है. वैसे, बाइडेन प्रशासन के लिए चुनौतियों का कारण-प्रभाव चक्र (कॉज-इफेक्ट स्पाइरल), जो पेलोसी की यात्रा के कारण शुरू हुआ हो सकता है, शायद अभी सामने आना शुरू ही हुआ है. 

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