Published on Aug 18, 2023 Updated 0 Hours ago

हेपेटाइटिस के उन्मूलन के लिए वैश्विक स्तर पर एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है. इसमें समाज, स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराने वालों, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच मिला-जुला और बहुक्षेत्रीय समन्वय भी होना चाहिए.

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए हेपेटाइटिस के ख़तरे का समाधान

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस के तौर पर मनाता है. 28 जुलाई डॉ. बारूक ब्लमबर्ग का जन्मदिन है जिन्होंने हेपेटाइटिस बी के वायरस की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. विश्व हेपेटाइटिस दिवस को एक अवसर के तौर पर देखा जाता है जहां व्यक्ति से लेकर सरकार तक कई स्तरों की कोशिशों को इस बीमारी के ख़िलाफ़ बेहतर जवाब के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हेपेटाइटिस में लिवर में सूजन हो जाता है जिसकी वजह हेपेटाइटिस वायरस के पांच मुख्य प्रकार, जिन्हें A, B, C, D और E कहा जाता है, और गैर-संक्रामक एजेंट हैं. इससे लिवर में समस्या हो जाती है. हालांकि टाइप B और C हेपेटाइटिस सबसे सामान्य हैं जिसकी वजह से लिवर सिरोसिस और कैंसर हो जाता है और मरीज की मौत हो जाती है. WHO के अनुसार दुनिया भर में लगभग 35.4 करोड़ लोगों को हेपेटाइटिस B या C इन्फेक्शन है. ज़्यादातर रोगियों को टेस्ट और इलाज की सुविधा नहीं है. उचित टीकाकरण, जल्दी पता चलने और इलाज के ज़रिये समय से पहले मौत को रोका जा सकता है.

WHO के अनुसार दुनिया भर में लगभग 35.4 करोड़ लोगों को हेपेटाइटिसB या C इन्फेक्शन है. ज़्यादातर रोगियों को टेस्ट और इलाज की सुविधा नहीं है. उचित टीकाकरण, जल्दी पता चलने और इलाज के ज़रिये समय से पहले मौत को रोका जा सकता है.

हेपेटाइटिस की आर्थिक कीमत देखें तो अध्ययनों से पता चलता है कि 2001 से 2020 के बीच अकेले हेपेटाइटिस B वैक्सीन ने 73 निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों (LMIC) में बीमारी के खर्च में लगभग 49 अरब अमेरिकी डॉलर और आर्थिक एवं सामाजिक वैल्यू में 81 अरब अमेरिकी डॉलर  की बचत करने में मदद की है. दूसरी प्रमुख संचारी (कम्युनिकेबल) बीमारियों जैसे कि HIV/एड्स, ट्यूबरक्युलोसिस और मलेरिया के साथ हेपेटाइटिस को दुनिया के सामने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है. SDG (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) के टारगेट 3.3 में साफ तौर पर हेपेटाइटिस को रोकने के लिए ख़ास कदम उठाने की ज़रूरत का ज़िक्र किया गया है. फिर भी हेपेटाइटिस ऐसी बीमारी है जिसे अक्सर टॉप स्वास्थ्य प्राथमिकता के तौर पर नहीं रखा जाता है. इसके अलावा WHO के एक अध्ययन के अनुसार हेपेटाइटिस से जुड़ी लगभग 45 लाख मौतों को वैक्सीन कवरेज में बढ़ोतरी, इलाज और शैक्षणिक अभियान का इस्तेमाल करके रोका जा सकता है.

हेपेटाइटिस को रोकने का लक्ष्य

एक मुद्दा ये है कि महामारी के रूप में हेपेटाइटिस पर कई देशों में पर्याप्त अध्ययन नहीं हुआ है. इसकी वजह से राष्ट्रीय और राज्य- दोनों स्तरों पर हेपेटाइटिस से जुड़े आंकड़ों की कमी है. ऐसे में मज़बूत निगरानी कार्यक्रम (सर्विलांस प्रोग्राम) तैयार करना एक चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है. इसके अलावा वैक्सीन की उपलब्धता और कीमत एक बड़ी चुनौती है, ख़ास तौर पर निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में. वैक्सीन के उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों में रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) पर खर्च की गई भारी-भरकम रकम, वैक्सीन के विकास एवं परीक्षण में लगने वाला समय और असफलता मिलने का भारी जोखिम शामिल हैं. जहां आर्थिक और प्रक्रियागत रुकावटें स्थानीय स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन में देरी लगाती हैं, वहीं राजनीतिक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक तनाव ज़रूरतमंद देशों को तकनीक के ट्रांसफर या वैक्सीन के निर्यात को रोकते हैं. ये सभी बातें सामूहिक रूप से निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में बीमारी का बोझ कम करने में रोकथाम और नियंत्रण की कोशिशों को कमज़ोर करती हैं.

हेपेटाइटिस के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य, आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव बीमारी के इलाज की दिशा में सुरक्षित और किफायती वैक्सीन को विकसित करने, बनाने और वितरण करने के लिए मज़बूत व्यवस्था का निर्माण करने की आवश्यकता को उजागर करते हैं, ख़ास तौर पर निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में. इस संबंध में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली हेपेटाइटिस को ख़त्म करने की तरफ 2016 से ही काम कर रही है जब उसने ग्लोबल हेल्थ सेक्टर स्ट्रैटजी को अपनाया. इसके मुताबिक 2030 तक नये इन्फेक्शन में 90 प्रतिशत की कमी और हेपेटाइटिस से जुड़ी मौतों में 65 प्रतिशत की कमी के लक्ष्य को तय किया गया है. लेकिन अधिकतर देश 2020 तक के लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रहे हैं. वैसे तो विभिन्न एजेंसियों के द्वारा कोशिशें की गई हैं लेकिन अलग-अलग देशों के सामने हेपेटाइटिस के मुश्किल बोझ को रोकने और सक्रिय रूप से मुकाबला करने के लिए सामूहिक एक्शन प्लान की आवश्यकता होगी. वैश्विक स्तर पर एक स्पष्ट स्वास्थ्य रणनीति तैयार करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एक माध्यम है. ऐसा करने से क्वालिटी और हिस्सेदारी से समझौता किए बिना सभी हितधारकों के लिए साफ जवाबदेही और ज़िम्मेदारी के साथ पहल शुरू की जा सकेगी. अलग-अलग देशों के लिए सहयोग मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने का एक ज़रिया है क्योंकि ये स्वास्थ्य से जुड़े लक्ष्यों को संगठित और तेज़ करने में मदद करता है. ये रफ्तार राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत दखल और सामंजस्य के लिए एक प्लैटफॉर्म तैयार करती है और एक देश से दूसरे देश तक आदान-प्रदान क्षेत्रीय स्तर पर संभावित एकीकृत स्वास्थ्य नीति से जुड़े कदम के लिए एक अवसर मुहैया कराता है. स्वास्थ्य नीति से जुड़े ये मुद्दे अलग-अलग देशों के बीच संवाद और कूटनीतिक संबंधों के लिए एक मिलन का बिंदु (कन्वर्ज़िंग प्वाइंट) भी प्रदान करते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा उजागर किये गये हेपेटाइटिस के मामलों के बोझ के लिए वैश्विक स्तर पर एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है. हेपेटाइटिस का समाधान करने में इलाज तक बेहतर पहुंच के लिए सफलतापूर्वक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की स्थापना की गई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा उजागर किये गये हेपेटाइटिस के मामलों के बोझ के लिए वैश्विक स्तर पर एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है. हेपेटाइटिस का समाधान करने में इलाज तक बेहतर पहुंच के लिए सफलतापूर्वक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की स्थापना की गई है. ध्यान देने की बात है कि WHO का ग्लोबल हेपेटाइटिस प्रोग्राम, कोएलिशन फॉर ग्लोबल हेपेटाइटिस एलिमिनेशन (CGHE), क्लिंटन हेल्थ एक्सेस इनिशिएटिव (CHAI) का हेपेटाइटिस इनिशिएटिव, वर्ल्ड हेपेटाइटिस अलायंस (WHA), डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (MSF) का हेपेटाइटिस प्रोग्राम और गिलियड साइंसेज़ एवं दुनिया भर के कई संगठनों के बीच सहयोग काफी काम करते हैं. इन साझेदारियों के माध्यम से डायरेक्ट-एक्टिंग एंटीवायरल ड्रग्स की लागत कम हो गई है, एक व्यापक आबादी को ये आसानी से और कम कीमत पर मिल रही है. इस तरह ये साझेदारी हेपेटाइटिस के उन्मूलन की दिशा में योगदान कर रही है.

हेपेटाइटिस के ख़िलाफ़ एक सामूहिक जवाब तैयार करने में अतीत के सहयोग की सफल व्यवस्था से सीख सकते हैं. 2003 का सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम  (SARS) और कोविड-19 महामारी ऐसी मिसाल पेश करती हैं जहां बीमारी के फैलाव को नियंत्रित करने में तालमेल मददगार था. इन बीमारियों की प्रतिक्रिया के तौर पर ग्लोबल आउटब्रेक अलर्ट एंड रिस्पॉन्स  नेटवर्क (GOARN) और एक्सेस टू कोविड-19 टूल्स एक्सेलेरेटर (ACT-A) जैसी व्यवस्था की स्थापना की गई थी. इन्हें शुरू करने में सरकारों, वैज्ञानिकों, व्यवसायों, सिविल सोसायटी, दान देने वालों और वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों का सहयोग मिला था. इस तरह इन पहल ने वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली का समर्थन देकर सफलतापूर्वक कुछ पहलुओं को बढ़ावा दिया जैसे कि टेस्ट और वैक्सीन की उपलब्धता. जहां इन गठबंधनों ने बीमारी के इलाज और वैक्सीन की उपलब्धता को सुधारने की दिशा में मदद की है, वहीं लगातार बीमारियों के प्रकोप ने अंतरक्षेत्रीय सहयोग की तरफ ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत को उजागर किया है.

इस तरह का सहयोग विकसित करने में सिविल सोसायटी संगठन एक ज़रूरी भूमिका निभाते हैं क्योंकि उन्हें प्रभावित लोगों के करीब माना जाता है जिसकी वजह से तेज़ प्रतिक्रिया के लिए एक अवसर मिलता है. इन हितधारकों की एक और भूमिका ये सुनिश्चित करना है कि सरकार और संस्थान अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करें. सिविल सोसायटी की केंद्रीय भूमिका यूक्रेन में मिलती है जहां अलायंस फॉर पब्लिक हेल्थ ने जेनेरिक दवाइयों की वकालत करके प्रभावी तौर पर HIV और हेपेटाइटिस के इलाज के लिए दवाओं की लागत कम की. इससे पता चलता है कि सिविल सोसायटी विकेंद्रीकरण के माध्यम से सहयोग की सुविधा देते हैं जो कि असरदार हेल्थकेयर पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है.

आगे की राह

हेपेटाइटिस से लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की राह में साझा रुकावटों और चुनौतियों का गहराई से जांच करना आवश्यक है. वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग की जटिलताओं को समझने के लिए भू-राजनीतिक तनाव, संसाधनों को बांटने की कमी, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और डेटा साझा करने में सीमित समझौते जैसे कारणों पर विचार करने की आवश्यकता है. इसके बावजूद हर किसी तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है. ये डेटा साझा करने, R&D, उत्पादन एवं वैक्सीन के वितरण में सुधार और हेपेटाइटिस से जुड़े जोखिमों को लेकर जागरूकता पैदा करने जैसे तौर-तरीकों से किया जा सकता है.

हेपेटाइटिस को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंतित करने वाली बीमारी के तौर पर स्वीकार किये जाने के बाद वैश्विक स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए भारत जैसे देशों की आवश्यकता है.

बीमारी के उन्मूलन के लिए समाज, स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराने वालों, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच मिले-जुले और बहुक्षेत्रीय समन्वय की ज़रूरत होती है. हेपेटाइटिस को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंतित करने वाली बीमारी के तौर पर स्वीकार किये जाने के बाद वैश्विक स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए भारत जैसे देशों की आवश्यकता है. दुनिया की कुल आबादी के पांचवें हिस्से के साथ हेपेटाइटिस के बोझ में भारत का एक बड़ा हिस्सा है. इससे निपटने के लिए भारत ने हेपेटाइटिस को लेकर एक राष्ट्रीय एक्शन प्लान की शुरुआत की है. इस तरह भारत इस क्षेत्र में ऐसा करने वाला पहला देश बन गया है. एक व्यापक कार्यक्रम के ज़रिये बीमारी का मुकाबला करने में भारत के अनुभव को देखते हुए भारत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने और हेपेटाइटिस के उन्मूलन की दिशा में सामूहिक तौर पर काम करने का नेतृत्व कर सकता है. हेपेटाइटिस की रोकथाम और इलाज में भविष्य के संभावित रुझानों और प्रगति की तरफ दूरदर्शी दृष्टिकोण रखना महत्वपूर्ण है. उभरते इलाजों को लेकर चर्चा, वैक्सीन की खोज और स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिए रणनीति बनाने से आगे की चुनौतियों के लिए कदम उठाने और तैयारी में प्रोत्साहन मिलेगा. टेलीमेडिसिन, डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड और AI से लैस डायग्नोस्टिक में तरक्की ये दिखा सकती है कि हेपेटाइटिस से लड़ाई में किस तरह तकनीक स्वास्थ्य देखभाल में क्रांति ला सकती है.

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Authors

Oommen C. Kurian

Oommen C. Kurian

Oommen C. Kurian is Senior Fellow and Head of Health Initiative at ORF. He studies Indias health sector reforms within the broad context of the ...

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Kiran Bhatt

Kiran Bhatt

Kiran Bhatt is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Sanjay Pattanshetty

Sanjay Pattanshetty

Dr. Sanjay M Pattanshetty is Head of theDepartment of Global Health Governance Prasanna School of Public Health Manipal Academy of Higher Education (MAHE) Manipal Karnataka ...

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