Published on Sep 20, 2023 Updated 0 Hours ago
स्थायी शहरी परिवहन: शहरों में साइकिल से चलना आसान बनाने की ज़रूरत

पर्यावरण के लिए मुफ़ीद और परिवहन के सस्ते साधन के तौर पर साइकिलों के योगदान का सम्मान करते हुए, संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 3 जून को विश्व साइकिल दिवस घोषित किया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 मार्च 2022 को एक प्रस्ताव अपनाते हुए टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए साइकिलों को सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के एक अभिन्न अंग के तौर पर शामिल किया था. WHO ये मानता है कि सेहत में समता लाने के लिए पैदल चलने और साइकिल चलाने का सुरक्षित मूलभूत ढांचा होना ज़रूरी है. दुनिया के कई प्रमुख शहरों में साइकिल चलाने के लिए ऊर्जावान, सक्रिय और काम में लाए जा सकने वाली सुविधाएं उपलब्ध हैं. हालांकि, अगर कोलंबिया की राजधानी बोगोटा को छोड़ दें, इनमें से ज़्यादातर शहर, जैसे कि एम्सटर्डम, कोपेनहेगेन, बर्लिन, ताइपे और टोक्यो, विकसित देशों में स्थित हैं. किसी विकासशील  देश में साइकिल चलाने की अच्छी सुविधा मौजूद होना एक दुर्लभ बात ही है. वैसे तो, विकासशील देशों में शहरीकरण और शहरी जीवन का विस्तार बहुत तेज़ गति से हो रहा है. लेकिन, इन देशों में सार्वजनिक परिवहन के माध्यम के तौर पर साइकिल पर बहुत ही कम तवज्जो दी जा रही है.

विकासशील देशों में शहरीकरण और शहरी जीवन का विस्तार बहुत तेज़ गति से हो रहा है. लेकिन, इन देशों में सार्वजनिक परिवहन के माध्यम के तौर पर साइकिल पर बहुत ही कम तवज्जो दी जा रही है.

भारतीय शहरों में साइकिलों का उपयोग

भारत के शहरों में बड़ी तादाद में ऐसे लोग रहते हैं, जो अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. ये कामगार आने-जाने के लिए साइकिल का ख़ूब इस्तेमाल करते हैं. ऐसे कामगारों में अख़बार डालने वाले, घरेलू काम करने वाले, निर्माण क्षेत्र में मज़दूरी करने वाले, डिलीवरी  या कूरियर पहुंचाने वाले शामिल हैं. बदक़िस्मती से, भारत में शहरी योजना निर्माण और क़ानून, दोनों ने ही साइकिल चलाने की इस आदत की अनदेखी की है और उनका झुकाव मोटर वाहनों के प्रति ज़्यादा रहा है. इसकी वजह से भारतीय शहरों में साइकिल चलाने को लेकर सुरक्षा के मसले खड़े होते रहे हैं. कोलकाता जैसे कुछ शहरों में उपनिवेशवाद के दौर के क़ानून, जैसे कि कैलकटा पोलिस लॉज़ 1866 (1910 में संशोधित) को शहरी परिवहन में ख़लल डालने को रोकने और दंड देने के लिए बनाया गया था. आज भी पुलिस वाले  इन क़ानूनों के बहाने से साइकिल चलाने वालों को परेशान करते हैं. भले ही परिवहन के पसंदीदा साधन के तौर पर मोटर गाड़ियों को बढ़ावा देने वाले ये पूर्वाग्रह मौजूद हैं. फिर भी भारत के शहरों में पैदल या फिर साइकिल से चलने वालों की अच्छी ख़ासी तादाद रहती है.

हाल के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के मुताबिक़, भारत के 50 प्रतिशत घरों में साइकिल मौजूद है. इसके उलट, शहरों में केवल 13.8 प्रतिशत आबादी ही आवाजाही के लिए कार का इस्तेमाल करती है. फिर भी शहरों के मूलभूत ढांचे के विकास का ज़्यादातर ज़ोर कारों के लिए सुविधा देने पर होता है. मुंबई की ही मिसाल लें, तो 2017 के एक सर्वे के मुताबिक़ केवल दो प्रतिशत सफ़र साइकलों से होता है. इसके अतिरिक्त, शहर में सड़कों के विकास के ज़्यादा प्रोजेक्ट, जैसे कि बांद्रा वर्ली सी लिंक और ईस्टर्न फ्रीवे में साइकिल चलाने के लिए कोई सुविधा नहीं दी गई है. ये बातें, नॉन मोटोराइज़्ड ट्रांसपोर्ट (NMT) को प्राथमिकता देने वाली उस नीति के उलट हैं, जिसकी वकालत कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान फॉर ग्रेटर मुंबई में की गई थी. ये योजना वृहद मुंबई महानगर निगम (MCGM) ने 2016 में तैयार की थी. इसमें पैदल और साइकिल से चलने के लिए रास्ते बनाने में इज़ाफ़ा करने की योजना पेश की गई थी. भारतीय सड़कों में महिलाओं के साइकिल से चलने की राह में भी सुरक्षा संबंधी कई चुनौतियां देखी जाती हैं. साइकिल से चलने वाली महिलाओं को अक्सर सड़कों पर गाड़ी से चलने वाले मर्दों के बेहूदा इशारों और परेशान करने वाली हरकतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे हालात की वजह से भारत में साइकिल चलाने वाली महिलाओं और पुरुषों की तादाद में बहुत फ़र्क़ देखा जाता है. इन्हीं कारणों से महिलाएं अपने आने-जाने के रास्ते बदल देती हैं और उन इलाक़ों में जाने से बचती हैं, जहां सड़कें सुनसान होती हैं.

हाल के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के मुताबिक़, भारत के 50 प्रतिशत घरों में साइकिल मौजूद है. इसके उलट, शहरों में केवल 13.8 प्रतिशत आबादी ही आवाजाही के लिए कार का इस्तेमाल करती है.

साइकिल से चलने के फ़ायदे

दि एनर्जी एंड  रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़, अगर कम दूरी के सफ़र को मोटरगाड़ी के बजाय साइकिल से किया जाए, तो, इससे तेल की बचत और कार्बन डाइऑक्साइड  के उत्सर्जन में जो कमी आएगी, उससे भारत को हर साल 18 हज़ार करोड़ रुपए का फ़ायदा हो सकता है (ये रैंक  2015-16 में भारत की GDP के 1.6 प्रतिशत के बराबर है). TERI की रिपोर्ट में कहा गया था कि परिवहन क्षेत्र का 82 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड  उत्सर्जन, मोटरगाड़ी से परिवहन की वजह से होता है. वहीं, भारत के शहरों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए गाड़ियों से निकलने वाला धुआं सबसे अधिक ज़िम्मेदार है.

कोविड-19 की वजह से जब लॉकडाउन लगा था, तब बहुत से लोगों ने आवाजाही के लिए साइकिल इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. बहुत से लोगों ने इसे वर्ज़िश करने और मन-बहलाव के साधन के तौर पर भी अपनाया था. डिलीवरी  की सेवाएं देने वालों (gig workers) के बीच भी साइकिल काफ़ी लोकप्रिय है. क्योंकि, एक तो उनकी तनख़्वाह कम होती है, और दूसरे पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों से चलना महंगा भी होता है. हालांकि, भयंकर गर्मी के दौरान साइकिल से चलने की वजह से उनकी सेहत को भी बहुत नुक़सान होता है. भारत में खाने-पीने के बहुत से लोकप्रिय ठिकानों के बाहर आपको अक्सर बड़ी तादाद में डिलीवरी  करने वाले अपनी साइकिल लेकर अगले ऑर्डर का इंतज़ार करते दिख जाएंगे.

भारत में साइकिलों को बढ़ावा देने के लिए क्या करने की ज़रूरत है?

भारत के शहरों को विश्व स्तर का बनाने की आकांक्षा पूरी करने को ऐसे बेहतरीन सार्वजनिक मूलभूत ढांचे निर्मित करने से जोड़ना चाहिए जो सबको समान नज़र से देखें और टिकाऊ भी हों. जलवायु के ज़रिए से भारत के शहर भयंकर गर्मी, हीटवेव, बाढ़ और बीमारियों की शक्ल में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इनसे निपटने के लिए नए शहरों की योजना बनाने और पुराने शहरों को नया आकार देने की ज़रूरत है, ताकि साइकिल चलाने को बढ़ावा दिया जा सके. हाल के वर्षों में भारत सरकार ने शहरों में साइकिल चलाने को बढ़ावा देने के लिए कुछ उपाय किए हैं. इनमें स्मार्ट सिटी कार्यक्रम के तहत इंडिया Cycles4Change Challenge भी शामिल है.

कोविड-19 की वजह से जब लॉकडाउन लगा था, तब बहुत से लोगों ने आवाजाही के लिए साइकिल इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. बहुत से लोगों ने इसे वर्ज़िश करने और मन-बहलाव के साधन के तौर पर भी अपनाया था.

राज्यों के स्तर पर बिहार और पश्चिम बंगाल ने स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल देने के कार्यक्रम शुरू किए हैं. माध्यमिक स्कूलों में लड़कियों और लड़कों की संख्या में अंतर पाटने में इन कार्यक्रमों की भूमिका सराही गई है. पश्चिम बंगाल सरकार की सबूजसाथी (सरकारी मदद से चलने वाले शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को साइकिल देने) योजना को स्कूल जाने वाले बच्चों के ऊपर सामाजिक प्रभाव के लिए ई-प्रशासन वर्ग में 2019 में वर्ल्ड समिट ऑन  इन्फॉर्मेशन सोसाइटी (WSIS) पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था. ऐसे उदाहरण दिखाते हैं कि साइकिल से आवाजाही से बढ़ावा देने के कई तरह के असर हो सकते हैं. और, विश्व स्तर पर मान्यता पाने वाली इन योजनाओं से जनता के उद्धार के लक्ष्य पाने में भी मदद मिलती है. भारत के शहरों के लिए योजनाएं बनाने वाले भी इन नीतियों से काफ़ी कुछ सीख सकते हैं और ऐसे मूलभूत ढांचे का निर्माण कर सकते हैं, जिससे साइकिल से चलने को बढ़ावा मिले. छोटे शहरों जैसे कि रांची और उपनगरीय इलाक़ों जैसे कि कोलकाता के न्यूटाउन की मिसालें, उचित राह दिखा सकते हैं, जिससे भारत के शहरों में साइकिल चलाने को सुगम बनाया जा सके. गड्ढा मुक्त सड़कें, साइकिल के लिए अलग लेन और आवाजाही के बड़े ठिकानों (बस अड्डों, रेलवे और मेट्रो स्टेशनों) पर साइकिलें खड़ी करने की सुविधाएं निर्मित करने जैसे कुछ बुनियादी क़दम उठाने से भारत के शहरों में साइकिल के चलन को बढ़ावा दिया जा सकता है. हाल के वर्षों में मेट्रो रेलवे जैसी सुविधाओं में निवेश करके भारत के शहरों की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है. लेकिन, राजधानी दिल्ली जैसे शहरों में भी स्टेशन से अपनी मंज़िल तक पहुंचने की सुविधाएं कम हैं. भारतीय शहरों में मल्टीमोडल इंटीग्रेशन योजना के तहत मेट्रो स्टेशनों पर साइकिल के अड्डे विकसित करने से इस चुनौती का काफ़ी हद तक समाधान किया जा सकता है.

अगर भारत में साइकिल चलाने की सुविधाओं के विस्तार को वैश्विक स्तर पर लागू किया जाए, तो इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के COP26 द्वारा तय लक्ष्यों को भी समय से पहले हासिल किया जा सकता है. इसमें 2030 तक ‘कुल संभावित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी लाने’ का वादा भी शामिल है. ये लक्ष्य पाने के लिए, भारत में साइकिल के इस्तेमाल से कार्बन क्रेडिट अर्जित करने का मूल्यांकन करना पहला क़दम होगा. फिर इसका इस्तेमाल नियमित रूप से साइकिल चलाने वालों को प्रोत्साहन देने के लिए भी किया जा सकता है. साइकिल और NMT के लिए मुफ़ीद शहरी भारत, अच्छी सेहत, बेहतरी, सस्ती और हरित ऊर्जा, घटी हुई असमानता, और टिकाऊ शहर के स्थायी विकास के लक्ष्य से भी तालमेल वाला होगा. शहरों को साइकिलों के मुफ़ीद बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तो एक नीति बनाने की ज़रूरत है. इसमें स्थानीय भागीदारों (जैसे कि नगर निकायों, शहरी स्थानीय निकायों और यातायात पुलिस के विभागों) को शामिल करने से ही भारतीय शहरों में साइकिलों को बढ़ावा देने के लिए उपायों के अच्छे नतीजे निकल सकेंगे.

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