Author : Ramanath Jha

Published on Jul 17, 2023 Updated 0 Hours ago
सतत् विकास लक्ष्य (SDG) -11 और भारत

2022 के सतत विकास रिपोर्ट, कुल 163 राष्ट्रों में भारत को 121वीं रैंक प्रदान करते हुए एसडीजी इंडेक्स स्कोर के मापदंड पर 60.3 अंक प्रदान करती है. 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से, दो लक्ष्य (खपत, उत्पादन और जलवायु परिवर्तन) को एसडीजी लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में पटरी पर चलते हुए दिखाया गया है. इसमे गरीबी उन्मूलन, किफ़ायती और स्वच्छ ईंधन, बेहतर कार्य और आर्थिक बढ़त, बेहतर स्वास्थ्य और कुशलता, उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचा, और स्वच्छ जल और सैनिटेशन आदि भी सम्मिलित है. बाकी बचे सात,अब भी काफी पीछे हैं. इनमें शून्य भुखमरी, गुणवत्तापरक शिक्षा, लैंगिक समानता, जल के नीचे जीवन, ज़मीन पर जीवन, शांति, न्याय और मज़बूत संस्थान, और लक्ष्य प्राप्ति के प्रति साझेदारी आदि शामिल हैं. घटाए गए असमानता लक्ष्य के पास कोई जानकारी नहीं थी और इसलिए इसका आकलन नहीं किया गया है. इसके आगे, इस रिपोर्ट में सर्वप्रथम तो एक लक्ष्य ऐसा पाया गया है जहां चुनौतियां हैं; दो लक्ष्य ऐसे हैं जो महत्वपूर्ण मुद्दे बने हैं और 11 लक्ष्य बड़ी चुनौतियों का सामना करते हैं. 

हालांकि, ये तो एसडीजी 11 (सतत् शहर और समुदाय) है जहां, स्थिति और भी बदतर है. यह लक्ष्य शहरों और मानव बस्तियों को 10 लक्ष्यों के साथ सुरक्षित और टिकाऊ बनाना है. I) सुरक्षित और किफ़ायती आवास; ii) किफ़ायती और सतत् परिवहन सिस्टम; iii) समाहित और सतत् शहरीकरण; iv) विश्व की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों का बचाव; v) प्राकृतिक आपदाओं से पड़ने वाले विपरीत प्रभावों को कम करना; vi) शहरों पर पड़ने वाले पर्यावरणीय दुष्प्रभावों में कमी लाना; vii) सुरक्षित और समावेशी हरित स्थानों तक पहुंच प्रदान करना; viii) मजबूत राष्ट्रीय और प्रांतीय विकास योजना; ix) शामिल संसाधन दक्षता और आपदा जोख़िम में कमी के लिए नीतियों को लागू करना; x) सतत् और लचीलापन निर्माण में कम से कम विकसित देशों को सहायताइस रिपोर्ट के अनुसार किसी देश के प्रदर्शन का आकलन चार संकेतकों के आधार पर किया जाता है: बस्तियों में रह रही शहरी आबादी का अनुपात; ii) व्यास में 2.5 माइक्रोन से कम के कणों की वार्षिक औसत सांद्रता (पीएम 2.5); iii) बेहतर जल स्त्रोतों तक पहुँच; और iv) परिवहन ट्रांसपोर्ट से संतुष्टि. ये आलेख, भारतीय शहरों से संबंधित, एसडीजी के चंद अति महत्वपूर्ण चिंता के क्षेत्र से मुखातिब होती है.   

सतत विकास लक्ष्य के अनुरूप प्रदर्शन 

एसडीजी 11 के क्षेत्र में भारत के प्रदर्शन में सुधार के ख़ातिर, जो सबसे पहली चीज भारतीय शहरों को करनी चाहिए वो है धीरे धीरे झुग्गी झोपड़ियों को कम करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए, अंततः पूरी तरह से खत्म करना. चूंकि, शहरी अर्थव्‍यवस्‍थाओं का एक बड़ा हिस्‍सा ऐसे कम-सम्पन्न नागरिकों द्वारा उपलब्‍ध कराए गए श्रम से समर्थित होता है, इसलिए उन्हें भी कम महंगी/सस्ते किराये पर आश्रय और किफ़ायती आवास प्रदान करके, शहर के भीतर ही जोड़ा जाना चाहिए. हालांकि, ये उस तेज़ी से नहीं हो रहा है, जिस तेज़ी की दरकार है. इसके परिणाम स्वरूप, 828 मिलियन लोग (भारतीय शहरी आबादी का कुल 17 प्रतिशत) अब भी, बस्तियों में रहते हैं और इनकी संख्या में क्रमशः वृद्धि जारी है. 2015 में, भारत सरकार ने, 4,318 शहर और नगर में रह रहे प्रत्येक शहरी बेघर लोगों को 30 m2 का आवास देने के उद्देश्य से, प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई शहरी) को लॉन्च किया. अब तक, कुल 11.2 मिलियन आवासों का आवंटन किया जा चुका है.  

चूंकि, ज्य़ादातर प्रवासी, रोज़गार के तलाश में, अपने अपने गांवों को खाली कर के शहर में पहुँच रहे है, ये पिछड़ने की प्रक्रिया बदस्तूर जारी है. मेगा और मेट्रोपोलिटन शहरों में बड़ी मात्रा में किफ़ायती जमीन ढूंढ पाना बड़ा मुद्दा है. इन सारी चुनौतियों का एसडीजी 11 के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव दिखता है. एक तरफ जहां राज्यों ने रियल एस्टेट नियामक की नियुक्ति की है, उनकी भूमिका, बिल्डरों और खरीदारों के बीच समानता और निष्पक्षता बरतने तक ही सीमित रह गई है. हालांकि, वे ऐसे किसी भी किफ़ायती आवासीय सेक्टर को छूने से भी परहेज़ करते है, जिससे बस्ती, झुग्गी झोपड़ी आदि प्रभावित हो. मुफ्त आवास के राष्ट्रीय मॉडल को लंबे समय से भारत जैसे बड़े देश में एक अनसाउंड मॉडल के रूप में मान्यता दी गई है. स्थिति को और बदतर बनाते हुए, भारत लंबे समय से शहरों में पलायन का गवाह रहा है, जिस वजह से मुफ्त़ आवास की मांग एक टिकाऊ मॉडल बन गई है. सरकारी ज़मीनों पर किफ़ायती मकान बनाया जाना और इन निर्मित आवासों को दीर्घकालीन ऋण के रूप में दिया जाना, एक बेहतर विकल्प/समाधान साबित हो सकता है. इसके अलावा, राज्यों को किफ़ायती आवास और किराया आवास क्षेत्रों में भारत सरकार द्वारा सुझाए गए आवास सुधारों को अपनाने की आवश्यकता है, और निजी व्यवसायों के लिए, इन क्षेत्रों में उद्यम करने के लिए इसे सार्थक बनाने की आवश्यकता है. दुर्भाग्यवश, ऐसा वाकई हो रहा है, ये दिखाने/साबित करने के लिए काफी कम प्रमाण उपलब्ध है.  

भारतीय शहरों की पर्यावरणीय गाथा ज्य़ादातर नकारात्मक ही रही है. भारत में पीएम 2.5 के औसत विकेन्द्रीकरण के आधार पर, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन (डबल्यूएचओ) के वार्षिक वायु गुणवत्ता गाइड्लाइन वैल्यू  से 10.7 गुणा अधिक होकर, अन्य राष्ट्रों की तुलना में, आठवें पायदान पर है. मध्य और दक्षिण एशिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 12 भारतीय शहरों के होने की वजह से भी शहरी रैंकिंग में काफी कमी आयी. इस दिशा में, भारतीय शहरों में अब भी, काफी काम किये जाने की आवश्यकता है. इन चुनौतियों का संज्ञान लेते हुए भारत सरकार ने, नेशनल  क्लीन एयर मिशन (सीएएम-इंडिया) नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है. यह परिवहन मंत्रालय, पावर, निर्माण, कृषि, ग्रामीण विकास, पर्यावरण और राज्यों के साथ वायु प्रदूषण कम करने के लिए एक क्षेत्रीय पहल है. इसमें एक विशिष्‍ट शहरी घटक भी है, जिसने पीएम 2.5 को अगले पांच  वर्षों में एक-तिहाई कम करने के लक्ष्य के साथ, 102 प्रदूषित भारतीय शहरों का चयन किया है   

जबकि यह माना जाता है कि वायु प्रदूषण की प्रकृति भौगोलिक सीमाओं से परे है क्योंकि प्रमुख प्रदूषक अपनी स्वयं की पहल करते हैं.  चूंकि वायु प्रदूषण में, वाहन उत्सर्जन की बड़ी भूमिका है, इसलिए पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन और ई- मोबिलिटी को दी गई अतिरिक्त समर्थन, इस दिशा में एक सार्थक कदम है. हालांकि, देश में सभी बड़े शहरों में ई-बसों के नेटवर्क को और भी विस्तृत किया जाना ज़रूरी है. आज, मात्र 63 शहरों में, किसी प्रकार से बस सर्विसेज़ उपलब्ध है. ये सेवा शुरू करने के लिए, आधे मिलियन आबादी वाले शहरों को लक्ष्य करते हुए शुरुआत की जा सकती है. आज उनकी संख्या लगभग 100 है. उसके बाद इस योजना को ऐसे सभी शहरों में बिछाया जा सकता है, जहां म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन है.  

अन्य क्षेत्र जहां ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है, वो है बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन और बेहतरीन निर्माण कार्य जिनमे धूल में कमी और बेहतर निर्माण अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है – वायु प्रदूषण में इन सब का योगदान है. हरित बिल्डिंग टेक्नोलॉजी का अपनाया जाना,काफी मददगार साबित होगा. शहरों को हर उस संभव जगह को हरित किये जाने की ज़रूरत है – चाहे वो ज़मीन हो, पोडियम हो अथवा रूफटॉप या छत हो.    

आगे की राह 

भारतीय शहरों में बेहतर जल आपूर्ति लक्ष्य प्राप्ति के संदर्भ में, भारत सरकार ने अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन की शुरुआत की. इस कार्यक्रम के अंतर्गत, देश में सभी शहरों और नगरों में रहे सभी शहरी हाउसहोल्ड/घरों को नल का जल कनेक्शन दिए जाने का प्रावधान है. इसे वर्षा से प्राप्त जल संग्रह को लक्षित जल शक्ति अभियान का सहयोग प्राप्त है. यह तय है कि शहरी योजना के बाहर, अवैध रूप से बढ़ रहे गैर व्यावसायिक/गैर पारंपरिक हिस्सों से मिल रही चुनौती दृष्टव्य है. हालांकि, मिशन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, इन क्षेत्रों में किसी अन्य रचनात्मक तरीकों से जल आपूर्ति किये जाने का कोई भी तरीका बिल्कुल ही ज़रूरी होगा. इसके साथ ही, अवैध भूमिगत जल निकालने को रोकने वाले नियामक उप-नियम, स्थानीय जल निकायों का कायाकल्प, पानी के लिए बेहिसाब पर बेहतर नियंत्रण और सीवेज ट्रीटमेंट और रिसाइक्लिंग के मुद्दे को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी

अन्य एसडीजी 11 लक्ष्यों में से कई सतत् शहरीकरण के सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य में शामिल हैं जो शहरों में निर्मित और गैर-निर्मित पर्यावरण को संतुलित करने के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमता है. ये, कई भागों में, खुलेपन और हरियाली, बेहतर समुचित शहरी प्रबंधन, बेहतर आपदा कटौती और शमन और अधिक समावेशिता, आदि में अपना भरपूर योगदान देंगे. ये शहर को आबादी को संतुलित करने में और घनत्व बढ़ाने एवं समुचित बेहतर शहरी जीवनशैली अपनाने में मददगार साबित होगी. दुर्भाग्यवश, पिछले सेंसस द्वारा प्रकट किए गए दशकीय आंकड़े इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि मेगा और महानगरीय शहर बड़े पैमाने पर सघन हो रहे हैंबहुत उच्च मानव घनत्व अन्य सभी पहलों को एक दिखाई देने वाला सकारात्मक प्रभाव बनाने से रोकते हैं, क्योंकि अधिक से अधिक लोग अनिवार्य रूप से अधिक निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर प्रदूषण और एसडीजी चुनौतियों से निपटने के लिए स्थान में कमी का नेतृत्व करते हैं. स्पष्ट तौर, शहरों की सघनता एक विकल्प नहीं हो सकती. 

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