Author : Soumya Bhowmick

Published on Jul 02, 2023 Updated 0 Hours ago
टिकाऊ विकास: परिवर्तन की क्रमिक प्रक्रिया

मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (MDGs ) से सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (SDGs ) तक

1987 में ब्रंटलैंड कमीशन की रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद टिकाऊ विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंटमुख्यधारा में आयाब्रंटलैंड कमीशन को औपचारिक रूप से पर्यावरण और विकास पर विश्व आयोग (WCED) के नाम से जाना जाता है और इसने टिकाऊ विकास को ऐसा विकास बताया “जो भविष्य की पीढ़ी के द्वारा अपनी जरूरत को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना मौजूदा पीढ़ी की जरूरत को पूरा करती है“. ये परिभाषाजो कि वास्तव में एक पीढ़ी के लोगों के साथसाथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक के लोगों के बीच समानता की वकालत करती हैनई तरह की विकास की रूपरेखा को पेश करने की पहली आधिकारिक कोशिश थी.

MDG से SDG तक बदलाव विकास से जुड़ी चुनौतियों को समझने की क्रमिक प्रक्रिया और एक व्यापक, एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता का प्रतिनिधित्व करता है.

नीचे प्रस्तुत (आंकड़ा 1) रेखा चित्र (डायग्रामटिकाऊ विकास के त्रिकोण का प्रतिनिधित्व करती है जिसे श्रीलंका के अर्थशास्त्री मोहन मुनासिंघे ने 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन (अर्थ समिटके दौरान पेश किया थाव्यापक रूप से स्वीकृत ये धारणा तीन प्रमुख कार्यक्षेत्रों– अर्थव्यवस्थासमाज और पर्यावरण– के एकदूसरे से जुड़े होने को मान्यता देती हैये धारणा जोर देकर कहती है कि पर्यावरण से जुड़ा परिवर्तन कम समय और लंबे समय में संस्थानोंसांस्कृतिक और आर्थिक विकास को प्रभावित करता हैइसी तरह सामाजिक मूल्यों और व्यवहार में बदलाव आर्थिक विकास और पर्यावरण से जुड़े प्रबंधन पर असर डाल सकते हैंअंत मेंआर्थिक विकासधन का वितरण और कल्याण का वितरण सामाजिक और पर्यावरण से जुड़ी विशेषताओं को प्रभावित करते हैं.

आंकड़ा 1: टिकाऊ विकास के तत्व

स्रोतमुनासिंघे, 2007

मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (MDG) अंतर्राष्ट्रीय विकास से जुड़े आठ लक्ष्यों का सेट था जिसे संयुक्त राष्ट्र ने साल 2000 में 15 वर्षों की टाइमलाइन के साथ तैयार किया थाइन्हें तैयार करने का उद्देश्य दुनिया की महत्वपूर्ण चुनौतियों जैसे कि गरीबीभूखबीमारीलैंगिक (जेंडरअसमानता और दूसरे जरूरी मुद्दों का समाधान करना थाइसके अलावा उन लक्ष्यों में सूचकों (इंडिकेटरऔर डाटा के जरिए प्रगति की निगरानी करने के लिए SMART (स्पेसिफिकमेजरेबलअचिवेबलरेलीवेंट और टाइमबाउंड यानी विशेषमापने योग्यहासिल करने योग्यप्रासंगिक और समय सीमा के अनुसारगोल के महत्व को बताया गया थाअगले कदम के तौर पर सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 169 टारगेट के साथ 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (SDG) को अपनाया जिनका उद्देश्य लोगों के जीवन में सुधार लानाधरती की रक्षा करना हैये भौतिकसामाजिकमानवीय और प्राकृतिक पूंजी को आगे ले जाने और इसके विपरीत की जटिल परस्पर क्रिया के जरिए मानव जाति के लिए समृद्ध भविष्य को समर्थ करने वाले हैं

MDG से SDG तक बदलाव विकास से जुड़ी चुनौतियों को समझने की क्रमिक प्रक्रिया और एक व्यापकएकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता का प्रतिनिधित्व करता है. विकासशील देशों में नीतिगत सोच के कई पहलुओं में (आर्थिकविकास की अंधभक्ति वाली जिद के बावजूद टिकाऊ विकास की धारणा ने इकोसिस्टम सेवाओंपर्यावरण से जुड़े नुकसानसामाजिक चिंताओं और जीवन की गुणवत्ता (क्वालिटीसे लेकर आर्थिक विकास तक को जोड़कर महत्वपूर्ण ख्याति हासिल कर ली हैइस बड़े बदलावजो एक शताब्दी से कम समय में हो रहा हैको एक क्रांति से कम के तौर पर नहीं देखा जा सकता है

टिकाऊ विकास क्यों? 

सबसे पहलेदुनिया की चुनौतियों का समाधान करने के लिए टिकाऊ विकास दुनिया के सामने मौजूद जरूरी पर्यावरणीयसामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का एक जवाब हैइन चुनौतियों में महामारी के बाद व्यापक आर्थिक प्रभाव से लेकर वैश्विक खाद्य और ऊर्जा बाजारों पर यूक्रेनरूस संघर्ष का असर शामिल हैंइसके परिणामस्वरूप लोग जलवायु परिवर्तनगरीबीअसमानतासंसाधनों की कमी और पर्यावरण को नुकसान जैसे मुद्दों का समाधान तलाशने में योगदान देने के लिए जरूरी जानकारी और हुनर हासिल कर सकते हैंदूसराविकास का मॉडल अब स्वाभाविक रूप से एक से ज्यादा विषय से जुड़ा है जो पर्यावरण विज्ञानअर्थशास्त्रसमाजशास्त्रराजनीति विज्ञानइत्यादि जैसे विषयों पर आधारित हैएक से ज्यादा विषय का स्वरूप अलगअलग अकादमिक विषयों की जांच की पेशकश करता है और जटिल समस्याओं की व्यापक समझ विकसित करता है

तीसराकई लोग सकारात्मक रूप से समाज और पर्यावरण पर असर डालने की इच्छा से प्रेरित होते हैंइनके पास टिकाऊ पद्धतियों और नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान के लिए जानकारी और साधन होते हैंचाहे वो रिसर्चसमर्थननीतिगत विकास या व्यावहारिक तौर पर लागू करने के तरीके से होचौथाटिकाऊ विकास समस्याओं को हल करने के लिए एक संपूर्ण और सिस्टम आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देता हैये सोचविचार का महत्वपूर्ण कौशल एवं जटिल प्रणालियों का विश्लेषणउनकी एकदूसरे पर निर्भरता के बारे में समझ को विकसित करता है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि टिकाऊ विकास बड़े बदलाव के लिए फायदा उठाने के बिंदुओं की पहचान करता है

सकल घरेलू उत्पाद के आगे 

पार्थ दासगुप्तापुष्पम कुमार और शून्सुके मनागीजिन्होंने टिकाऊ विकास और समावेशी संपत्ति की धारणा पर कुछ बुनियादी काम किए हैंसलाह देते हैं कि SDG को हासिल करने की तरफ प्रगति रुक गई है क्योंकि प्रगति की समीक्षा पर निगरानी करने के साधनों की कमी हैआर्थिक विकास के लिए ज्यादातर विकासशील और अविकसित अर्थव्यवस्थाओं ने मुख्य रूप से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से जुड़े विकास और शेयर बाजार के प्रदर्शन पर ध्यान दिया है जबकि प्रगति के दूसरे मानकों को नजरअंदाज कर दिया हैलेकिन सिर्फ GDP विकास ही व्यापक तौर पर आर्थिक क्षमताओं और विकास की वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है

प्रगति के मानक के तौर पर GDP विकास पर जरूरत से ज्यादा ध्यान का नतीजा ये निकला है कि अर्थशास्त्री दलील देते हैं कि तकनीकी विकास प्राकृतिक संसाधनों में कमी की वजह से उत्पादकता में आई कमी की भरपाई कर सकता है.

व्यापक आर्थिक विकास को जारी रखने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करके प्रगति की माप के रूप में GDP मानव पूंजी के महत्वप्राकृतिक संसाधनों के बाजार से अलग फायदों और सकारात्मक एवं नकारात्मक बाहरी कारकों के मौद्रिक (मॉनेटरीमूल्यांकन पर विचार करने में नाकाम हैइसके अलावा GDP उत्पादन और आमदनी की असमानता के साथ जुड़ी पर्यावरणीय एवं सामाजिक कीमत पर विचार करने में भी नाकाम हैइसका नतीजा अधूरे जीवन स्तर के रूप में दिखाई देता हैफिर भी इन सीमाओं को लेकर जागरूकता के बावजूद GDP अभी भी सम्मानजनक विकास के सूचक के रूप में विकास को लेकर बातचीत में बोलबाला रखता हैइसके परिणामस्वरूपइन सीमाओं का समाधान करने के लिए GDP के कई विकल्पों का प्रस्ताव रखा गया हैइनमें समावेशी संपत्ति की धारणा शामिल है जो उत्पादितप्राकृतिकमानवीय और सामाजिक पूंजी में किसी देश की पूंजीगत संपत्ति के स्टॉक पर विचार करती है

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के द्वारा तैयार आखिरी समावेशी संपत्ति रिपोर्ट (इनक्लूजिव वेल्थ रिपोर्ट) 2018 में सिफारिश की गई है कि ज्यादा व्यापक वैकल्पिक मानकों का इस्तेमाल करके प्रगति को मापने की तरफ बदलाव की जरूरत हैइंक्लूसिव वेल्थ इंडेक्स (IWI) सामाजिक मूल्यों को संसाधनों की बाजार कीमत के आमनेसामने लाकर मदद करता है और ये टिकाऊ विकास के मानकों को धारणा के तौर पर समझने का भविष्य हो सकता हैदूसरे मानकों से हटकर, IWI मौजूदा रुझानों और अतीत के बर्ताव को दिखाता है और भविष्य की स्थिति के बारे में बताता हैइस तरह ये सुनिश्चित करता है कि आगे की पीढ़ियां कमसेकम उतनी ही खुशहाल होंजितनी कि मौजूदा पीढ़ी

प्रगति के मानक के तौर पर GDP विकास पर जरूरत से ज्यादा ध्यान का नतीजा ये निकला है कि अर्थशास्त्री दलील देते हैं कि तकनीकी विकास प्राकृतिक संसाधनों में कमी की वजह से उत्पादकता में आई कमी की भरपाई कर सकता है. पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसका जवाब ये कहते हुए दिया है कि तीन तरह की पूंजी– प्राकृतिकउत्पादित और मानवीय– में जगह लेने की संभावना वास्तव में मुमकिन नहीं हैवैकल्पिक तौर पर IWI टिकाऊ विकास का एक व्यापक और बहुमुखी उपाय है जिसमें कई पहलू और लक्ष्य शामिल हैं. IWI में बढ़ोतरी कई सकारात्मक नतीजों में योगदान दे सकती है जिनमें गरीबी खत्म करनाबेहतर खाद्य सुरक्षाटिकाऊ खेतीस्वस्थ जीवन और संपूर्ण कल्याण शामिल हैं

आंकड़ा 2: SDG के बीच संपर्क

स्रोतस्टॉकहोम रिजिलियंस सेंटर 

वैसे तो सस्टेनेबिलिटी साइंस ने सस्टेनेबिलिटी के सामाजिकआर्थिक और पर्यावरण से जुड़े पहलुओं के बीच एकदूसरे से जुड़े होने को दिखाने में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है लेकिन विकास से जुड़ी मौजूदा पद्धतियां इन पहलुओं को अलग मानती हैंइसके परिणामस्वरूप सामाजिकआर्थिक विकास से जुड़े उद्देश्यों को प्राथमिकता देने की तरफ रुझान है जबकि पर्यावरण को लेकर उससे जुड़े नतीजों को गलती से नजरअंदाज कर दिया जाता हैएजेंडा 2030 के लागू होने को सफलतापूर्वक आगे ले जाने के लिए ये जरूरी है कि इस रवैये से आगे बढ़ा जाए और लोगों एवं प्राकृतिक वातावरण के बीच जटिल परस्पर क्रिया को मान्यता दी जाएइसके परिणामस्वरूप एक नये दृष्टिकोण की आवश्यकता है जहां SDG के आर्थिक और सामाजिक पहलुओं की परिकल्पना जीवमंडल के भीतर स्थापित अभिन्न अंग के तौर पर की गई हैजैसा कि ऊपर दिखाया गया है (आंकड़ा 2).


सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.

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