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1987 में ब्रंटलैंड कमीशन की रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद टिकाऊ विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) मुख्यधारा में आया. ब्रंटलैंड कमीशन को औपचारिक रूप से पर्यावरण और विकास पर विश्व आयोग (WCED) के नाम से जाना जाता है और इसने टिकाऊ विकास को ऐसा विकास बताया “जो भविष्य की पीढ़ी के द्वारा अपनी जरूरत को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना मौजूदा पीढ़ी की जरूरत को पूरा करती है“. ये परिभाषा, जो कि वास्तव में एक पीढ़ी के लोगों के साथ–साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक के लोगों के बीच समानता की वकालत करती है, नई तरह की विकास की रूपरेखा को पेश करने की पहली आधिकारिक कोशिश थी.
MDG से SDG तक बदलाव विकास से जुड़ी चुनौतियों को समझने की क्रमिक प्रक्रिया और एक व्यापक, एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता का प्रतिनिधित्व करता है.
नीचे प्रस्तुत (आंकड़ा 1) रेखा चित्र (डायग्राम) टिकाऊ विकास के त्रिकोण का प्रतिनिधित्व करती है जिसे श्रीलंका के अर्थशास्त्री मोहन मुनासिंघे ने 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन (अर्थ समिट) के दौरान पेश किया था. व्यापक रूप से स्वीकृत ये धारणा तीन प्रमुख कार्यक्षेत्रों– अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण– के एक–दूसरे से जुड़े होने को मान्यता देती है. ये धारणा जोर देकर कहती है कि पर्यावरण से जुड़ा परिवर्तन कम समय और लंबे समय में संस्थानों, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास को प्रभावित करता है. इसी तरह सामाजिक मूल्यों और व्यवहार में बदलाव आर्थिक विकास और पर्यावरण से जुड़े प्रबंधन पर असर डाल सकते हैं. अंत में, आर्थिक विकास, धन का वितरण और कल्याण का वितरण सामाजिक और पर्यावरण से जुड़ी विशेषताओं को प्रभावित करते हैं.
आंकड़ा 1: टिकाऊ विकास के तत्व
स्रोत: मुनासिंघे, 2007
मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (MDG) अंतर्राष्ट्रीय विकास से जुड़े आठ लक्ष्यों का सेट था जिसे संयुक्त राष्ट्र ने साल 2000 में 15 वर्षों की टाइमलाइन के साथ तैयार किया था. इन्हें तैयार करने का उद्देश्य दुनिया की महत्वपूर्ण चुनौतियों जैसे कि गरीबी, भूख, बीमारी, लैंगिक (जेंडर) असमानता और दूसरे जरूरी मुद्दों का समाधान करना था. इसके अलावा उन लक्ष्यों में सूचकों (इंडिकेटर) और डाटा के जरिए प्रगति की निगरानी करने के लिए SMART (स्पेसिफिक, मेजरेबल, अचिवेबल, रेलीवेंट और टाइम–बाउंड यानी विशेष, मापने योग्य, हासिल करने योग्य, प्रासंगिक और समय सीमा के अनुसार) गोल के महत्व को बताया गया था. अगले कदम के तौर पर सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 169 टारगेट के साथ 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (SDG) को अपनाया जिनका उद्देश्य लोगों के जीवन में सुधार लाना, धरती की रक्षा करना है. ये भौतिक, सामाजिक, मानवीय और प्राकृतिक पूंजी को आगे ले जाने और इसके विपरीत की जटिल परस्पर क्रिया के जरिए मानव जाति के लिए समृद्ध भविष्य को समर्थ करने वाले हैं.
MDG से SDG तक बदलाव विकास से जुड़ी चुनौतियों को समझने की क्रमिक प्रक्रिया और एक व्यापक, एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता का प्रतिनिधित्व करता है. विकासशील देशों में नीतिगत सोच के कई पहलुओं में (आर्थिक) विकास की अंधभक्ति वाली जिद के बावजूद टिकाऊ विकास की धारणा ने इकोसिस्टम सेवाओं, पर्यावरण से जुड़े नुकसान, सामाजिक चिंताओं और जीवन की गुणवत्ता (क्वालिटी) से लेकर आर्थिक विकास तक को जोड़कर महत्वपूर्ण ख्याति हासिल कर ली है. इस बड़े बदलाव, जो एक शताब्दी से कम समय में हो रहा है, को एक क्रांति से कम के तौर पर नहीं देखा जा सकता है.
सबसे पहले, दुनिया की चुनौतियों का समाधान करने के लिए टिकाऊ विकास दुनिया के सामने मौजूद जरूरी पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का एक जवाब है. इन चुनौतियों में महामारी के बाद व्यापक आर्थिक प्रभाव से लेकर वैश्विक खाद्य और ऊर्जा बाजारों पर यूक्रेन–रूस संघर्ष का असर शामिल हैं. इसके परिणामस्वरूप लोग जलवायु परिवर्तन, गरीबी, असमानता, संसाधनों की कमी और पर्यावरण को नुकसान जैसे मुद्दों का समाधान तलाशने में योगदान देने के लिए जरूरी जानकारी और हुनर हासिल कर सकते हैं. दूसरा, विकास का मॉडल अब स्वाभाविक रूप से एक से ज्यादा विषय से जुड़ा है जो पर्यावरण विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, इत्यादि जैसे विषयों पर आधारित है. एक से ज्यादा विषय का स्वरूप अलग–अलग अकादमिक विषयों की जांच की पेशकश करता है और जटिल समस्याओं की व्यापक समझ विकसित करता है.
तीसरा, कई लोग सकारात्मक रूप से समाज और पर्यावरण पर असर डालने की इच्छा से प्रेरित होते हैं. इनके पास टिकाऊ पद्धतियों और नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान के लिए जानकारी और साधन होते हैं, चाहे वो रिसर्च, समर्थन, नीतिगत विकास या व्यावहारिक तौर पर लागू करने के तरीके से हो. चौथा, टिकाऊ विकास समस्याओं को हल करने के लिए एक संपूर्ण और सिस्टम आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है. ये सोच–विचार का महत्वपूर्ण कौशल एवं जटिल प्रणालियों का विश्लेषण, उनकी एक–दूसरे पर निर्भरता के बारे में समझ को विकसित करता है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि टिकाऊ विकास बड़े बदलाव के लिए फायदा उठाने के बिंदुओं की पहचान करता है.
पार्थ दासगुप्ता, पुष्पम कुमार और शून्सुके मनागी, जिन्होंने टिकाऊ विकास और समावेशी संपत्ति की धारणा पर कुछ बुनियादी काम किए हैं, सलाह देते हैं कि SDG को हासिल करने की तरफ प्रगति रुक गई है क्योंकि प्रगति की समीक्षा पर निगरानी करने के साधनों की कमी है. आर्थिक विकास के लिए ज्यादातर विकासशील और अविकसित अर्थव्यवस्थाओं ने मुख्य रूप से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से जुड़े विकास और शेयर बाजार के प्रदर्शन पर ध्यान दिया है जबकि प्रगति के दूसरे मानकों को नजरअंदाज कर दिया है. लेकिन सिर्फ GDP विकास ही व्यापक तौर पर आर्थिक क्षमताओं और विकास की वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.
प्रगति के मानक के तौर पर GDP विकास पर जरूरत से ज्यादा ध्यान का नतीजा ये निकला है कि अर्थशास्त्री दलील देते हैं कि तकनीकी विकास प्राकृतिक संसाधनों में कमी की वजह से उत्पादकता में आई कमी की भरपाई कर सकता है.
व्यापक आर्थिक विकास को जारी रखने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करके प्रगति की माप के रूप में GDP मानव पूंजी के महत्व, प्राकृतिक संसाधनों के बाजार से अलग फायदों और सकारात्मक एवं नकारात्मक बाहरी कारकों के मौद्रिक (मॉनेटरी) मूल्यांकन पर विचार करने में नाकाम है. इसके अलावा GDP उत्पादन और आमदनी की असमानता के साथ जुड़ी पर्यावरणीय एवं सामाजिक कीमत पर विचार करने में भी नाकाम है. इसका नतीजा अधूरे जीवन स्तर के रूप में दिखाई देता है. फिर भी इन सीमाओं को लेकर जागरूकता के बावजूद GDP अभी भी सम्मानजनक विकास के सूचक के रूप में विकास को लेकर बातचीत में बोलबाला रखता है. इसके परिणामस्वरूप, इन सीमाओं का समाधान करने के लिए GDP के कई विकल्पों का प्रस्ताव रखा गया है. इनमें समावेशी संपत्ति की धारणा शामिल है जो उत्पादित, प्राकृतिक, मानवीय और सामाजिक पूंजी में किसी देश की पूंजीगत संपत्ति के स्टॉक पर विचार करती है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के द्वारा तैयार आखिरी समावेशी संपत्ति रिपोर्ट (इनक्लूजिव वेल्थ रिपोर्ट) 2018 में सिफारिश की गई है कि ज्यादा व्यापक वैकल्पिक मानकों का इस्तेमाल करके प्रगति को मापने की तरफ बदलाव की जरूरत है. इंक्लूसिव वेल्थ इंडेक्स (IWI) सामाजिक मूल्यों को संसाधनों की बाजार कीमत के आमने–सामने लाकर मदद करता है और ये टिकाऊ विकास के मानकों को धारणा के तौर पर समझने का भविष्य हो सकता है. दूसरे मानकों से हटकर, IWI मौजूदा रुझानों और अतीत के बर्ताव को दिखाता है और भविष्य की स्थिति के बारे में बताता है. इस तरह ये सुनिश्चित करता है कि आगे की पीढ़ियां कम–से–कम उतनी ही खुशहाल हों, जितनी कि मौजूदा पीढ़ी.
प्रगति के मानक के तौर पर GDP विकास पर जरूरत से ज्यादा ध्यान का नतीजा ये निकला है कि अर्थशास्त्री दलील देते हैं कि तकनीकी विकास प्राकृतिक संसाधनों में कमी की वजह से उत्पादकता में आई कमी की भरपाई कर सकता है. पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसका जवाब ये कहते हुए दिया है कि तीन तरह की पूंजी– प्राकृतिक, उत्पादित और मानवीय– में जगह लेने की संभावना वास्तव में मुमकिन नहीं है. वैकल्पिक तौर पर IWI टिकाऊ विकास का एक व्यापक और बहुमुखी उपाय है जिसमें कई पहलू और लक्ष्य शामिल हैं. IWI में बढ़ोतरी कई सकारात्मक नतीजों में योगदान दे सकती है जिनमें गरीबी खत्म करना, बेहतर खाद्य सुरक्षा, टिकाऊ खेती, स्वस्थ जीवन और संपूर्ण कल्याण शामिल हैं.
आंकड़ा 2: SDG के बीच संपर्क
स्रोत: स्टॉकहोम रिजिलियंस सेंटर
वैसे तो सस्टेनेबिलिटी साइंस ने सस्टेनेबिलिटी के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े पहलुओं के बीच एक–दूसरे से जुड़े होने को दिखाने में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है लेकिन विकास से जुड़ी मौजूदा पद्धतियां इन पहलुओं को अलग मानती हैं. इसके परिणामस्वरूप सामाजिक–आर्थिक विकास से जुड़े उद्देश्यों को प्राथमिकता देने की तरफ रुझान है जबकि पर्यावरण को लेकर उससे जुड़े नतीजों को गलती से नजरअंदाज कर दिया जाता है. एजेंडा 2030 के लागू होने को सफलतापूर्वक आगे ले जाने के लिए ये जरूरी है कि इस रवैये से आगे बढ़ा जाए और लोगों एवं प्राकृतिक वातावरण के बीच जटिल परस्पर क्रिया को मान्यता दी जाए. इसके परिणामस्वरूप एक नये दृष्टिकोण की आवश्यकता है जहां SDG के आर्थिक और सामाजिक पहलुओं की परिकल्पना जीवमंडल के भीतर स्थापित अभिन्न अंग के तौर पर की गई है, जैसा कि ऊपर दिखाया गया है (आंकड़ा 2).
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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