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हालांकि सउदी के फंड श्रीलंका की निवेश ज़रूरतों के लिए उपयुक्त हैं, लेकिन इसकी वजह से अनजाने में ही बीजिंग-रियाद रणनीतिक साझेदारी में मदद मिल सकती थी.
सउदी अरब के अजलान समूह ने, विवादास्पद चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी (सीएचईसी) के साथ और भी विवादास्पद कोलंबो पोर्ट सिटी (सीपीसी) परियोजना के संयुक्त विकास के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे सउदी अरब और श्रीलंकाई दोनों पक्षों ने ‘रणनीतिक साझेदारी’ कहा है. अभी इस बात का खुलासा नहीं हुआ है कि क्या मेज़बान श्रीलंकाई सरकार को इस समझौते को लेकर भरोसे में लिया गया था या सीएचईसी के मूल समझौते में भविष्य की तारीख पर संपत्ति में विदेशी ग्राहकों और किराएदारों को रोके बगैर ‘संयुक्त डेवलपर्स’ लाने का प्रावधान किया गया था.
विश्लेषकों का मानना है कि सीपीसी, चीन की एक और ‘सफेद हाथी परियोजना’ साबित होने वाली है. यह परियोजना, अन्यथा विस्मयकारी परियोजनाओं पर मेज़बान देश के कर्ज़ के बोझ को तो बढ़ाती है, लेकिन जिसकी उस देश की सीमित आवश्यकताओं और उपयोग के लिए बहुत कम या कोई प्रासंगिकता नहीं है.
विश्लेषकों का मानना है कि सीपीसी, चीन की एक और ‘सफेद हाथी परियोजना’ साबित होने वाली है. यह परियोजना, अन्यथा विस्मयकारी परियोजनाओं पर मेज़बान देश के कर्ज़ के बोझ को तो बढ़ाती है, लेकिन जिसकी उस देश की सीमित आवश्यकताओं और उपयोग के लिए बहुत कम या कोई प्रासंगिकता नहीं है. ऐसे में यह परियोजना जहां स्थापित हो रही है, उस देश के लिए या तो बेहद कम उपयोगी है अथवा संपूर्णत: अनुपयोगी साबित होगी. श्रीलंका के दक्षिणी सिरे पर व्याप्त हंबनटोटा बंदरगाह ऐसा ही एक उदाहरण है, क्योंकि यह आकांक्षापूर्ण चीन को हिंद महासागर की संचार लाइनों (एसएलओसी) में जहाजों की आवाजाही पर नज़र रखने में सहायता करेगा. चीन के पास अब श्रीलंकाई क्षेत्र का यह 99 साल पुराना बंदरगाह लीज-होल्ड पर है. इसके ऐवज में श्रीलंका मूल ऋण/निवेश का उच्च लागत पर पुनर्भुगतान करेगा.
इससे भी बदतर उदाहरण मटाला जिले में चीन द्वारा वित्त पोषित अंतर्राष्ट्रीय विमानतल है. इस विमानतल को दुनिया की सबसे खाली सुविधा के क्षेत्र के रूप में पहचाना जाता है. देश भर में चीन के वित्त पोषण से बने कई एक्सप्रेसवे ने राष्ट्रीय स्तर पर अन्यथा भीड़भाड़ वाली सड़कों पर यात्रा के लिए लगने वाले समय को कम कर दिया है. लेकिन विशेषत: वाणिज्यिक यातायात के घनत्व को देखकर उन्हें वित्तीय और आर्थिक दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता.
चीन द्वारा वित्त पोषित कोलंबो के लोटस टावर्स, 1,150 फीट की ऊंचाई पर देश की सबसे ऊंची संरचना का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन ने सितंबर 2019 में राष्ट्रपति चुनाव से कुछ हफ्ते पहले किया था. हालांकि वे इस चुनाव में हार गए थे. इसकी देखने वाली शीर्ष गैलरी को तीन साल बाद इस साल सितंबर में जनता के लिए खोला गया था. इस परियोजना को लेकर भ्रष्टाचार से संबंधित विवाद बने हुए हैं, लेकिन वहां बेहद कम लोग जाते हैं. इसका दोष पहले दुनिया भर में कोविड लॉक-डाउन के मत्थे मार दिया गया. कोविड के बाद से जो अभूतपूर्व आर्थिक संकट आया है, उसने स्थानीय और विदेशी अर्थव्यवस्थाओं में समान रूप से व्यापार से जुड़े निवेश को अव्यवहारिक बना दिया है.
अजलान एंड ब्रदर्स होल्डिंग्स ग्रुप पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व में सबसे बड़े व्यापक समूह होल्डिंग्स में से एक है. इसे सउदी अरब में कपड़ा और रियल एस्टेट के लिए भी पहचाना जाता है
जैसा कि कुछ सोशल मीडिया एक्टिविसट्स पूछते हैं, क्या इन ऊंची इमारत से बाहर निकलने वाली रंगीन रोशनी की वजह से रंगीन होने वाली शाम पर खर्च किए गए पैसे और अतिरिक्त कर्ज़ टिकाऊ थे? इसी प्रकार चीन की अन्य वित्त पोषित परियोजनाओं ने स्थानीय उत्पादकों को लाभ नहीं पहुंचाया और ना ही स्थानीय लोगों को रोजगार ही दिया अथवा परिवारों की आय में इजाफ़ा ही किया था. इस प्रकार जब अवहनीय ऋण बोझ को लेकर इसके बारे में विचार किया जाए, तो इसे श्रीलंका के लिए दोहरा झटका ही माना जाएगा.
हमें इस पृष्ठभूमि में ही अजलान ब्रदर्स होल्डिंग्स के कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट में किए गए निवेश को देखना होगा. मुख्य आइडिया यह है कि सीएचईसी तथा अजलान ‘संयुक्त रूप से कोलंबो पोर्ट सिटी समेत 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स के अन्य महत्वपूर्ण पायलट विकास कार्यो का जिम्मा उठाएंगे. पोर्ट सिटी स्पेशल आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) कंपनी ने एक बयान में कहा गया है कि इसमें आने वाले वर्षों में कोलंबो इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर (सीआईएफसी) के चरण-1, मरीना वाटरफ्रंट कमर्शियल और मरीना होटल, सुपर लग्जरी विला और गोल्फ डेवलपमेंट के साथ बहुप्रतिक्षित वर्टीकल अर्थात लंबरूप विकास और व्यावसायिक गतिविधियों की शुरूआत होगी.
अजलान एंड ब्रदर्स होल्डिंग्स ग्रुप पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व में सबसे बड़े व्यापक समूह होल्डिंग्स में से एक है. इसे सउदी अरब में कपड़ा और रियल एस्टेट के लिए भी पहचाना जाता है. इस समूह ने बिजली, पर्यावरण, औद्योगिक निर्माण, स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन, प्रौद्योगिकी, खुदरा, रियल एस्टेट, वस्त्र और टेक्सटाइल्स, खनन, पानी, एफएमसीजी, लॉजिस्टिक्स, वित्त और फिनटेक, मनोरंजन और गेमिंग आदि क्षेत्र में 75 कंपनियों के साथ दुनिया भर के 25 से अधिक देशों में अपनी मौजूदगी स्थापित कर ली है.
बयान के अनुसार, ‘‘भविष्य के लिए तैयार बुनियादी ढांचे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी नीति ढांचे के साथ, पोर्ट सिटी एसईजेड के कारण संकट के बाद वाले दौर में श्रीलंका की आर्थिक और सामाजिक विकास गतिविधियों को गति मिलने की उम्मीद है. इसकी वजह से एशिया-प्रशांत के लिए एक हाई-एंड सर्विस हब के रूप में द्वीप-राष्ट्र के रणनीतिक स्थान और उच्च-गुणवत्ता वाले कार्य-बल की अपार संभावनाओं को खोलकर बहुराष्ट्रीय कंपनियां और एफडीआई, श्रीलंका के प्रति आकर्षित होंगी.’’
2005 में देश का शीर्ष पद हासिल करने के लिए अपने पहले चुनाव में राष्ट्रपति महिन्द राजपक्षे का ‘महिन्द चिंताया: श्रीलंका के लिए एक नया विजन’, घोषणापत्र में हब का विचार एक महत्वपूर्ण पहलू था. गौरतलब है कि अजलान का बयान भी श्रीलंका में उच्च गुणवत्ता वाले कार्यबल की क्षमता में मौजूद संभावनाओं का उपयोग करने की बात करता है. इसी बात का चीन के कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना में भी वादा किया गया है, लेकिन अभी तक कोई प्रगति या उससे जुड़े आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
संयोग से, अजलान-सीएचईसी समझौते पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनिपंग की सउदी अरब यात्रा से कुछ दिन पहले ही हस्ताक्षर किए गए थे. सउदी अरब में उन्होंने किंग सलमान और उनके 37 वर्षीय बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान (एमबीएस) से मुलाकात की थी. इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने कुल 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 46 सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इन समझौतों में सउदी अरब में चीनी भाषा सिखाने को लेकर किया गया समझौता भी था. याद रहे कि इसी यात्रा के दौरान रियाद ने खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) और अरब लीग के नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की मेजबानी भी की थी. इन बैठकों को शी ने ‘मिल का पत्थर’ कहकर संबोधित किया था.
दिसंबर के दूसरे सप्ताह में संपन्न इस तीन दिवसीय यात्रा का लहज़े और तेवर इस बात के संकेत दे रहे थे कि जीसीसी और अरब लीग के देशों को सउदी अरब, भू-रणनीतिक, भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक मामलों में अमेरिका की तुलना में एक केंद्रित स्थिति की ओर ले जाने की कोशिश कर रहा है. यह बात संयुक्त बयान से भी स्पष्ट हो गई थी, जिसमें चीन और सउदी अरब ने तेल बाज़ारों में स्थिरता की अहमियत पर बल दिया था. यह यूक्रेन में चल रहे युद्ध की ऊंचाई के दौरान वॉशिंगटन की उस सलाह को मानने से रियाद और ओपेक ने दो टूक इंकार कर दिया था कि रूस की ‘तेल कूटनीति’ को आज़माने और बेअसर करने के लिए इन देशों को तेल उत्पादन बढ़ाना चाहिए. संयुक्त बयान इस गुज़ारिश को ठुकराने के बाद आया था.
इनोवेशन और डिजिटलीकरण.यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि इस साझेदारी का श्रीलंका के पड़ोसी भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है. वैसे तो दिखावे के लिए जब भी कोई खाड़ी-अरब सरकार भारत अथवा भारतीयों को कोई रियायत या राजनीतिक समर्थन देती है तो देश में सरकार समर्थक समूह उस वक़्त काफी हंगामा मचाते है.
दोनों पक्षों ने जलवायु-परिवर्तन से निपटने में ‘स्त्रोतों की बजाय उत्सर्जन पर ध्यान केंद्रित करने’ के बारे में भी बात की थी. एक ओर जहां पश्चिम, विशेषत: यूएस कार्बन उत्सजर्न के लिए स्त्रोत पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत और चीन जैसे अग्रीम पंक्ति के विकासशील देशों को निशाना बना रहा है, वहीं दुनिया के लिए हाइड्रो-कार्बन का एक प्रमुख स्त्रोत खाड़ी-अरब देश, इस बात पर प्रकाश डालते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक पहल उत्सर्जन पर केंद्रित होनी चाहिए, जहां औद्योगिक पश्चिम ही कार्बन उत्सर्जन के लिए प्रमुखता से ज़िम्मेदार कहा जाता है.
सउदी और चीन पर निगाहें जमा कर बैठे लोगों के लिए, दोनों देशों द्वारा इस तरह की निकटता और एकजुट हितों और चिंताओं की ऐसी खुली अभिव्यक्ति का प्रदर्शन अभूतपूर्व है. परंपरागत रूप से, इस्लाम के पवित्र स्थलों मक्का और मदीना के स्वयंभू संरक्षक के रूप में पहचाने जाने वाले सउदी अरब और ईश्वर-विहीन कम्युनिस्ट चीन के बीच इस तरह उच्च स्तर की राजनीतिक-रणनीतिक पहचान दिखाई देगी, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. अब उनके सामूहिक अग्रगामी आंदोलन पर पैनी नजर रखी जाएगी.
श्रीलंका के दृष्टिकोण से भी, चीन-सउदी अरब सहयोग अपेक्षित नहीं था. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि श्रीलंका में परियोजनाओं की सउदी फंडिंग, चीनी पहल और सहयोग की पेशकश की वज़ह से थी. अलग शब्दों में कहा जाए तो इसका मतलब यह भी हो सकता है कि चीन ‘ऋण-जाल कूटनीति’ के लिए आलोचना की शुरूआत होने के बाद सउदी निवेश की मांग कर रहा था. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन को ऋणग्रस्त देशों में हंबनटोटा की तरह गैर-उत्पादक अचल संपत्ति/क्षेत्र की ज़्यादा आवश्यकता नहीं होगी. और उसे तृतीय तथा तीसरी दुनिया के देशों में अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पुन: प्राप्त करने के लिए अधिक धन की जरूरत होगी.
इसके बावज़ूद, श्रीलंका में सउदी निवेश तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे द्वारा की गई अपील से प्रवाहित होता है. यह अपील उन्होंने इस साल मार्च में कोलंबो का दौरा करने आए सउदी मंत्री फ़ैसल बिन-फरहान अल सउद से की थी. देश के आर्थिक संकट, जिसने आने वाले हफ़्तों में राजनीतिक अस्थिरता की धारणाओं को जन्म दिया था कि ऊंचाई पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की मांगों को पूरा करते हुए गोटा ने जुलाई के मध्य में पद छोड़ दिया और अपनी सुरक्षा के डर से देश छोड़कर भाग गए.
गोटा ने विशेष रूप से सउदी मेहमान के समक्ष कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी आधारित विकास, कोलंबो पोर्ट सिटी, बंदरगाहों, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी, कपड़ा और कपड़े के क्षेत्रों में उपलब्ध निवेश के अवसरों पर प्रकाश डाला था. अजलान की प्रोफ़ाइल हालांकि श्रीलंका की निवेश-आवश्यकताओं और अवसरों की दृष्टि से फिट बैठती है, लेकिन इस बात का पता नहीं चला है कि क्या कोलंबो ने आर्थिक क्षेत्र में बीजिंग-रियाद की रणनीतिक साझेदारी, जो किसी तीसरे राष्ट्र पर केंद्रित है की राह आसान की थी.
यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि इस साझेदारी का श्रीलंका के पड़ोसी भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है. वैसे तो दिखावे के लिए जब भी कोई खाड़ी-अरब सरकार भारत अथवा भारतीयों को कोई रियायत या राजनीतिक समर्थन देती है तो देश में सरकार समर्थक समूह उस वक़्त काफी हंगामा मचाते है. यह बात उस वक़्त देखने को मिली थी, जब संयुक्त अरब अमीरात ने एक हिंदू मंदिर को मंजूरी दी थी. लेकिन यह स्थानीय सरकार का सभी धार्मिक विश्वासों और उनके अनुयायियों का स्वागत करने वाली पहल के तहत लिया गया फैसला था.
श्रीलंका में संयुक्त निवेश पर सउदी-चीन सहयोग एक अलग ही मामला है. राजनीतिक-कूटनीतिक दृष्टिकोण से, अब तक जिसे चीन के रणनीतिक हित और कदम के रूप में देखा जा रहा था, उसे कम से कम सउदी अरब की आर्थिक पहल के रूप में भी देखा जाना चाहिए. इसका तात्पर्य यह भी है कि जहां तक श्रीलंका में निवेश का संबंध है, वहां राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की अध्यक्षता वाली कोलंबो की वर्तमान सरकार ने भले ही उनकी फर्मों का समर्थन न किया हो, लेकिन चीन और सउदी अरब के बीच ‘रणनीतिक साझेदारी’ का समर्थन तो कर ही दिया है.
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N. Sathiya Moorthy is a policy analyst and commentator based in Chennai.
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