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Published on May 30, 2024 Updated 0 Hours ago

हिंद-प्रशांत इलाके में चीन की आक्रामकता में हुई वृद्धि ने स्क्वॉड यानी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस के एक लघु समूह के उद्भव को प्रेरित किया है.

‘स्क्वॉड’: हिंद-प्रशांत के इलाके में एक लघु समूह का उदय!

जियोपोलिटिकल प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में हिंद-प्रशांत इलाके के सुरक्षा की तस्वीर एक महत्वपूर्ण फ्लैश प्वाइंट बनकर उभरी है. दक्षिण चीन सागर (SCS) में चीन की बढ़ती नौसैनिक आक्रामकता काफ़ी समय से इस क्षेत्र में रणनीतिक प्रभाव रखने वाले देशों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. अमेरिका (US) और अन्य समान विचार रखने  वाले देशों ने चीन की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों से अब उत्पन्न ख़तरों का मुकाबला करने के प्रयासों को तेज़ी से मज़बूत करने की कोशिश की है. हाल के महीनों में चीनी आक्रामकता का अधिकांश हिस्सा फिलीपींस की ओर केंद्रित था. फिलीपींस एक अमेरिकी सहयोगी है और सहयोगी होने के साथ-साथ दोनों में संधि भी है. वह नियमित रूप से SCS इलाके में बीजिंग के समुद्री उत्पात का सामना कर रहा है और इसलिए फिलीपींस की समुद्री सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस के रक्षा मंत्रियों ने हवाई द्वीप में समुद्री सहयोग को जारी रखने और बढ़ाने के तौर तरीकों पर चर्चा करने के लिए हाल ही में मुलाकात की. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चार देशों के इस समूह को पेंटागन के अधिकारियों ने 'स्कवॉड' नाम दिया है. 

दक्षिण चीन सागर (SCS) इलाके में आक्रामक नौसैनिक रुख़ के द्वारा विवादित समुद्री क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के बीजिंग के निरंतर प्रयासों ने इलाके में जियोपोलिटिकल प्रतिस्पर्धा को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

स्कवॉड, सुरक्षा और दक्षिण चीन सागर  

 

दक्षिण चीन सागर (SCS) इलाके में आक्रामक नौसैनिक रुख़ के द्वारा विवादित समुद्री क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के बीजिंग के निरंतर प्रयासों ने इलाके में जियोपोलिटिकल प्रतिस्पर्धा को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाल के दिनों में SCS में पनप रहा चीन और फिलीपींस के बीच का तनाव जियोपोलिटिक्स की बातचीत का केंद्र बिंदु रहा है. पश्चिमी फिलीपीन सागर, जिस पर मनीला का अधिकार क्षेत्र होने का दावा है, चीन और फिलीपींस के बीच के विवाद का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है. हालाँकि, चीन और फिलीपींस के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है. 2016 में, मनीला ने ‘नाइन-डैश’ रेखा पर अपने ऐतिहासिक दावों को चुनौती दे रहे बीजिंग के ख़िलाफ़ परमानेंट कोर्ट ऑफ़ अर्बीट्रेशन का रुख़ किया. ‘नाइन-डैश’ रेखा एक महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्ग है जो चीन के लिए संसाधनों के मुक्त प्रवाह और समुद्री हितों के लिए ज़रूरी है. चीन और फिलीपींस के सैनिकों के बीच आमने सामने के टकराव के बाद मार्च में तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था जिसमें मनीला के सैनिक घायल हो गए और उनके जहाज़ों को नुक़सान पहुंचा. इस घटना ने फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर को विवादित जलमार्गों में चीनी आक्रामकता को देखते हुए जवाबी कार्रवाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया. 

 

राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर, जिन्होंने 2022 में पदभार ग्रहण किया था, अब चीन से निपटने की मनीला की रणनीति में बदलाव लाए हैं.  मार्कोस जूनियर ने चीन का मुकाबला करने के अपने प्रयासों में अमेरिका के साथ गठबंधन किया है. इन तनावों के बीच, मनीला ने 2024 में अमेरिका-जापान-फिलीपींस त्रिपक्षीय सम्मेलन में शामिल होकर चीन से निपटने के लिए एक मज़बूत सोच को आगे बढ़ाने की अपनी इच्छा का संकेत दिया है. इस समूह ने 11 अप्रैल 2024 को वाशिंगटन में अपना पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया. इसके अलावा, अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने 03 मई, 2024 को ऑस्ट्रेलिया, जापान और फिलीपींस के अपने समकक्षों के साथ एक बैठक बुलाई, जिसमें दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस की नौवहन की स्वतंत्रता में बाधा डालने के चीनी कदम का मुक़ाबला करने के लिए सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए उनकी सामूहिक प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया गया. इस समूह के एक साथ आने को ‘स्कवॉड’ के गठन के रूप में प्रचलित किया गया है. बहरहाल, 3 जून 2023 को आयोजित की गई पहली बैठक के बाद स्कवॉड देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच दूसरी बैठक भी हुई जहाँ उन्होंने इस मुद्दे पर ही चर्चा की. 

 

स्कवॉड के अलावा, अन्य छोटे और द्विपक्षीय समूह भी फिलीपींस की समुद्री सुरक्षा की चर्चा में शामिल हैं. इनमें अमेरिका-जापान-फिलीपींस के बीच के त्रिपक्षीय और अमेरिका और जापान के साथ फिलीपींस के द्विपक्षीय रक्षा संबंध शामिल हैं. ऑस्ट्रेलिया का इस विषय के साथ जुड़ना केवल संयुक्त सैन्य अभ्यास, या जिसे वह समुद्री सहयोग की  गतिविधि कहता है, के आयोजन से परे नहीं है. 

 

इस प्रकार, स्कवॉड के उद्भव को दो मायनों में देखा जाना चाहिए. पहला, क्षेत्र में ASEAN जैसे बहुपक्षीय संस्थानों की विफ़लता और कई ASEAN सदस्यों की चीन की बलपूर्वक कार्रवाई की पूरी तरह से निंदा करने से परहेज़ करना. दूसरा, द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय दोनों, एक व्यवहार्य सुरक्षा व्यवस्था के जाल के रूप में पश्चिम फिलीपीन सागर में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नए नए ढांचे की स्थापना. अन्य ढांचों की तुलना में वर्तमान संदर्भ में स्कवॉड की भूमिका मौजूद दायरे और प्रभाव क्षेत्र के संदर्भ में सीमित है. 

 

लघु समूहवाद और समुद्री सुरक्षा का सवाल  

 

इस नए लघु-पक्षीय समूह के गठन ने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को जन्म दिया है. हिंद-प्रशांत इलाके में इस तरह की सरंचनाए क्यों उभर रही हैं? इस क्षेत्र में लघु समूहवाद के उदय के क्या मायने है? इसके अलावा, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के इस समूह में शामिल होने और 'स्कवॉड' नाम दिए जाने के बाद, स्वाभाविक बात यह हो रही है कि अब पहले से मौजूद क्वॉड के संदर्भ में सवाल उठ रहे हैं. 

क्वॉड देशों के बीच तालमेल एक सुरक्षित और स्थिर हिंद-प्रशांत को बढ़ावा देने की दिशा में केंद्रित है. दूसरी ओर, स्कवॉड को उन विशेष झगड़ों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जो SCS क्षेत्र के हैं. और बारीकी से देखा जाए तो पश्चिम फिलीपीन सागर इलाके के हैं.

पहली बात तो यह है स्कवॉड के उद्भव को पहले से मौजूद क्वॉड की कीमत पर समझना गलत होगा. वॉशिंगटन, कैनबरा, टोक्यो और नई दिल्ली का नेतृत्व क्वॉड के महत्व को उजागर करना जारी रखे हुए हैं और इसके संबंध में विरोधाभासी कोई संकेत अब तक सामने नहीं आए है. क्वॉड देशों के बीच तालमेल एक सुरक्षित और स्थिर हिंद-प्रशांत को बढ़ावा देने की दिशा में केंद्रित है. दूसरी ओर, स्कवॉड को उन विशेष झगड़ों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जो SCS क्षेत्र के हैं. और बारीकी से देखा जाए तो पश्चिम फिलीपीन सागर इलाके के हैं. भारत की SCS क्षेत्र में क्वॉड के संदर्भ में भूमिका हालांकि प्रासंगिक है लेकिन एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित है. किसी भी लघु-पक्षीय समूह के काम करने का तरीका उनके सामूहिक भौगोलिक हितों पर आधारित होता है. और तो और, क्वॉड ने समुद्री सुरक्षा के बाबत सहयोग के क्षेत्रों के विस्तार में आशाजनक प्रगति की है. यह बात संयुक्त नौसैनिक सहयोग और मालाबार अभ्यास से सिद्ध होती है जिसे क्वॉड देशों की नौसेनाओं द्वारा नियमित रूप से हिंद-प्रशांत इलाके के महत्वपूर्ण भौगोलिक क्षेत्रों में अब तक आयोजित किया गया है. 

 

दूसरी बात, महत्वपूर्ण लघु-पक्षीय समूह का गठन ध्यान देने योग्य है.  हिन्द-प्रशांत इलाका एक विशाल समुद्री क्षेत्र है.  इस संदर्भ में, यह स्वाभाविक है कि कई देशों का अपने विशिष्ट उप-क्षेत्रों पर अलग-अलग ध्यान केंद्रित होने की संभावना अधिक है जो कई कारणों द्वारा निर्धारित होती है. सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि भौगोलिक स्थिति एक प्रमुख घटक है जो विभिन्न देशों के रणनीतिक फोकस की रूपरेखा को आकार देती है.  दूसरा, किसी देश द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतिक साझेदारी के लिए भूगोल एक प्रमुख बिंदु है. तीसरा, वैश्विक व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा और समुद्री संसाधनों के हित भी उन विशिष्ट उपक्षेत्रों को निर्देशित करते हैं जिनमें एक देश सक्रिय रहना चाहता है. यह बात हिंद-प्रशांत इलाके के मामले में भी स्पष्ट है. उदाहरण के लिए, अमेरिका ने अपना अधिकांश ध्यान हिंद-प्रशांत इलाके के प्रशांत महासागर की ओर केंद्रित किया है. दूसरी ओर, भारत के लिए, पश्चिमी हिंद महासागर सहित हिंद महासागर सुरक्षा हितों का प्राथमिक क्षेत्र रहा है. ऐसा प्रतीत होता है कि ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत रूब्रिक के तहत हिंद महासागर की ओर अपना ध्यान बढ़ा रहा है. इसी तरह, फिलीपींस के लिए, इसकी तत्काल समुद्री सीमा SCS हिंद-प्रशांत के संदर्भ में अपनी समुद्री सुरक्षा सोच के केंद्र में रहा है. इसके अलावा, स्कवॉड के मामले में, AUKUS की तरह इसमें शामिल सभी देश बड़े पैमाने पर अमेरिका के सुरक्षा संधि के भागीदार हैं. इसलिए एक उपक्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की वजह से एक सुरक्षा-उन्मुख व्यवस्था उभरने की संभावना है. 

 

इसके अलावा सीमित भौगोलिक दायरे के कारण इसके संचालन और  लघु समूहों में कम खिलाड़ियों के शामिल होने के कारण एक विशिष्ट ध्यान आकर्षित करने की क्षमता होती है. एक लघु-पक्षीय समूह में ख़तरे की धारणा की समान अनुभूति के कारण इसमें शामिल सभी खिलाड़ियों के सहयोग और इसके कार्य के प्रति प्रतिबद्धता की अधिक संभावना होती है. ये समूह अपने साझा लक्ष्यों के कारण सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में काम करते हैं. कई मायनों में, यह बात रणनीतिक और सुरक्षा हित के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों वाले देशों को शामिल करने वाले एक व्यापक बहुपक्षीय समूह के स्थान पर हिंद-प्रशांत में लघु समूहों के उदय को समझने में मदद करती है. इसके अतिरिक्त, लघु-समूह छोटे और विकासशील देशों के लिए सहयोग को बढ़ावा देने के एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में भी उभरा है जो अक्सर महान-शक्ति स्पर्धाओं में ख़ुद को स्थापित नहीं कर पाते हैं. इस तरह, क्षेत्र में शामिल शक्तियों के समुद्री सुरक्षा हितों के प्रति संवेदनशील विशिष्ट क्षेत्रों में सुरक्षा संरचनाओं के निर्माण में भी लघु समूह उपयोगी हैं. 

स्कवॉड के उदय ने अन्य बातों के अलावा हिंद-प्रशांत इलाके में लघु-समूहों  के उदय पर एक बहुत आवश्यक बहस को जन्म दिया है.  इस तरह के समूहों का प्रसार इस क्षेत्र में व्यापक जियोपोलिटिक्स में शामिल कई खिलाड़ियों के लिए एक वरदान के रूप में उभरा है

स्कवॉड के उदय ने अन्य बातों के अलावा हिंद-प्रशांत इलाके में लघु-समूहों  के उदय पर एक बहुत आवश्यक बहस को जन्म दिया है.  इस तरह के समूहों का प्रसार इस क्षेत्र में व्यापक जियोपोलिटिक्स में शामिल कई खिलाड़ियों के लिए एक वरदान के रूप में उभरा है. लघु समूहों को एक सहायक के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि वे क्षेत्र में शामिल खिलाड़ियों की रणनीतिक और सुरक्षा मजबूरियों को मद्देनज़र रखते हुए समुद्री सुरक्षा संरचनाओं के निर्माण में सहायक होते हैं जो उन्हें समुद्र में जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिक ज़मीन और बल प्रदान करते हैं.  यह उन परिस्थितियों का एक स्वाभाविक परिणाम है जिसमें हिंद-प्रशांत इलाके में जियोपोलिटिक्स पनपी है जिसमें विभिन्न रणनीतिक परिस्थिति वाले समुद्री इलाके और व्यापक हितों वाले देश शामिल हैं. 


सायंतन हलदर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के साथ जुड़े एक रिसर्च असिस्टेंट है.

अभिषेक शर्मा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के साथ जुड़े एक रिसर्च असिस्टेंट है. 

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